तुला-चारित्रिक विशेषताएँ
चरित्र के प्रारंभिक लक्षण- सबको खुश रखने की चाहत होना, अन्य लोगों तथा संबंधियों पर अत्यधिक निर्भरता, स्वयं तथा जीवन के मध्य असंतुलन, अस्थिर चित्त, अनिर्णायक, ढुलमुल प्रवृत्ति, दो पाटों के मध्य पिसना, या तो स्वयं को या फिर भागीदार को अत्यधिक महत्व देना, शारीरिक जीवन और आत्मिक जीवन के मध्य किंकर्त्तव्यविमूढ़, स्वयं की अच्छाइयों की जानकारी न होना, यह अहसास करने में असमर्थ होना कि आपका भागीदार स्वयं की अचेतना को अपने व्यवहार में अभिव्यक्त करता है। चरित्र के उत्तरकालीन लक्षण- मानवीय मूल्यों की अनुभूति होना, शारीरिक जीवन तथा आत्मिक जीवन के मध्य संतुलन के लिए प्रयास करना, जीवन के सभी क्षेत्रों में संयम की इच्छा करना, अपनी ऐच्छिक जिम्मेदारी से भिज्ञ होना, स्वयं की अच्छाइयों के अस्तित्व से भिज्ञ होना। अंतःकरण के लक्षण- व्यक्तित्व तथा आत्मिक जीवन के मध्य संतुलन स्थापित करना, भौतिक इच्छाओं तथा बौद्धिक आध्यात्मिक प्रेम के मध्य साम्यावस्था स्थापित करना, अंतःकरण के आध्यात्मिक उद्देश्यों को अभिव्यक्त करने में समर्थ होना, बुद्धिमत्तापूर्ण चयन तथा उनकी जिम्मेदारियों को वहन करना, व्यक्तित्व की क्रियाशीलता में उच्चतर आत्मा से सामंजस्य स्थापित करना, उच्चतर आत्मा का साझेदार बनना, आकर्षण के नियम को समझना, उचित न्याय तथा सार्वभौमिक व्यवस्था से भिज्ञ होना, संपूर्णता की इंद्रिय संबंधी तथा संरचनात्मक प्रकृति से भिज्ञ होना, स्वयं की तथा ब्रह्मांड की साकल्यवाद संबंधी प्रकृति से भिज्ञ होना, वृहत संपूर्णता के एक भाग के रूप में अपनी भूमिका से भिज्ञ होना।