साइज डज नॉट मैटर एनी मोर, बड़ी-बड़ी कारों के जमाने अब लदते नजर आ रहे हैं। भारत की अग्रणी ऑटोमोबाइल कंपनी टाटा मोटर्स ने 'नैनो' से इस परिवर्तन की शुरुआत 2008 के ओटो एक्सपो में की थी और नामी-गिरामी ऑटो निर्माता कंपनियाँ भी अब इसी राह पर चल पड़ी हैं।
कमोबेश सभी ऑटोमोबाइल कंपनियाँ अब छोटे और कम कीमत की कार बाजार में उतार रही हैं। एशिया, यूरोप और मध्य-पूर्व के देशों में यातायात और बढ़ती पार्किंग समस्या के चलते भी लोगों का रुझान छोटी और मध्यम कारों की और बढ़ा है।
दिल्ली में चल रहे 10वें ऑटोएक्सपो में भी यही बात नजर आती है। यह परिवर्तन एकाएक नहीं हुआ है। छोटी कारों को भारत जैसे अत्यधिक जनसंख्या वाले देश में हाथों-हाथ लिया गया। इसके पीछे कई कारण रहे जैसे - मध्यमवर्गीय परिवारों की बढ़ती क्रय शक्ति, लगातार बढ़ता यातायात और पार्किंग की समस्या, छोटे शहरों का मध्यम शहरों में बदलना, फाइनेंस का आसानी से कम दरों पर उपलब्ध होना, लोगों को अपने बजट में कई विकल्पों का मिलना।
पिछले साल की मंदी की मार से उबर रहे लोगों के लिए अब कम कीमत की कारों के बहुत से विकल्प हैं। एक अनुमान के अनुसार 2016 तक भारत में कारों की बिक्री 3 मिलियन यूनिट सालाना हो जाएगी और वर्तमान में बिक्री में लगभग दो-तिहाई हिस्सा हचबैक कारों का है।
जापान की मशहूर ऑटोमोबाइल कंपनी टोयोटा इस साल के अंत तक अपनी छोटी गाड़ी इटीयोस भारत में लाएगी। वहीं जर्मन ऑटोमोबाइल कंपनी वॉक्सवैगन अगले साल तक अपनी छोटी कार पोलो को बाजार में पेश करेगी। अमेरीकी ऑटोमोबाइल कंपनी जनरल मोटर्स भी शेवर्ले स्पार्क से छोटी कारो की दौड़ में पहले से है और आकर्षक लुक्स वाली नई शेवर्ले बीट इसकी ताजातरीन पेशकश है। एक और अमेरीकी ऑटोमोबाइल कंपनी फोर्ड भी भारत में छोटी कारों के मॉडल लॉंच करने वाली है।
फ्रांस की ऑटोमोबाइल कंपनी रेनॉल्ट भी निसान के साथ मिलकर भारत में छोटी और सस्ती कार लाने की तैयारी में है। कोरियन ऑटोमोबाइल कंपनी ह्युंडेई आई10 और आई20 के बाद अब आई30 लेकर आ रही है। जापान की एक और बड़ी ऑटोमोबाइल कंपनी होंडा की भी 1200 सीसी की एक छोटी और स्टाइलिश कार 2011 तक बाजार में आने की उम्मीद है।
भारतीय कार बाजार की पुरानी और विश्वसनीय कार निर्माता मारुति ने भी एक और नई छोटी गाड़ी का कॉन्सेप्ट पेश किया है। एफ3 नाम की इस कार में छह लोग बैठ सकेंगे और इस गाड़ी के दरवाजे पुराने जमाने की गाड़ियों की तरह उल्टे खुलते हैं।
इतनी सारी कारें और इतनी आकर्षक कीमतों से तो अब लगता है कि आम आदमी का 'कार का सपना' अब सपना नहीं रहेगा।