1528 से 2020 तक राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद से जुड़ा पूरा घटनाक्रम
बुधवार, 5 अगस्त 2020 (18:50 IST)
नई दिल्ली। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने बुधवार को अयोध्या में भूमि पूजन के बाद राम मंदिर की आधारशिला रखी। इस मौके पर उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भी मौजूद रहे। राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद भूमि विवाद से संबंधित घटनाक्रम इस प्रकार है-
1528 : मुगल शासक बाबर के कमांडर मीर बाकी ने बाबरी मस्जिद का निर्माण कराया।
1885 : महंत रघुबीर दास ने फैजाबाद जिला अदालत में याचिका दायर कर विवादित ढांचे के बाहर छतरी के निर्माण की अनुमति मांगी। अदालत ने याचिका खारिज कर दी।
1949 : विवादित ढांचे के बाहर केंद्रीय गुंबद में रामलला की मूर्तियां स्थापित की गईं।
1950 : रामलला की मूर्तियों की पूजा का अधिकार हासिल करने के लिए गोपाल सिमला विशारद ने फैजाबाद जिला अदालत में याचिका दायर की।
1950 : परमहंस रामचंद्र दास ने पूजा जारी रखने और मूर्तियां रखने के लिए याचिका दायर की।
1959 : निर्मोही अखाड़ा ने जमीन पर अधिकार दिए जाने के लिए याचिका दायर की।
1961 : उत्तरप्रदेश सुन्नी केंद्रीय वक्फ बोर्ड ने स्थल पर अधिकार के लिए याचिका दायर की।
1 फरवरी, 1986 : स्थानीय अदालत ने सरकार को पूजा के उद्देश्य से हिन्दू श्रद्धालुओं के लिए स्थान खोलने का आदेश दिया।
14 अगस्त, 1989 : इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने विवादित ढांचे के संबंध में यथास्थिति बनाए रखने का आदेश दिया।
6 दिसंबर 1992 : बाबरी मस्जिद ढांचे को ढहाया गया।
3 अप्रैल, 1993 : विवादित स्थल में जमीन अधिग्रहण के लिए केंद्र ने 'अयोध्या में निश्चित क्षेत्र अधिग्रहण कानून’ पारित किया। अधिनियम के विभिन्न पहलुओं को लेकर इलाहाबाद उच्च न्यायालय में कई रिट याचिकाएं दायर की गईं। इनमें इस्माइल फारूकी की याचिका भी शामिल थी। उच्चतम न्यायालय ने अनुच्छेद 139ए के तहत अपने अधिकारों का इस्तेमाल कर रिट याचिकाओं को स्थानांतरित कर दिया जो उच्च न्यायालय में लंबित थीं।
24 अक्टूबर, 1994 : उच्चतम न्यायालय ने ऐतिहासिक इस्माइल फारूकी मामले में कहा कि मस्जिद इस्लाम से जुड़ी हुई नहीं है।
अप्रैल, 2002 : उच्च न्यायालय में विवादित स्थल के मालिकाना हक को लेकर सुनवाई शुरू।
13 मार्च, 2003 : उच्चतम न्यायालय ने असलम उर्फ भूरे मामले में कहा, अधिग्रहीत स्थल पर किसी भी तरह की धार्मिक गतिविधि की अनुमति नहीं है।
30 सितंबर 2010 : उच्च न्यायालय ने 2:1 के बहुमत से विवादित क्षेत्र को सुन्नी वक्फ बोर्ड, निर्मोही अखाड़ा और रामलला के बीच तीन हिस्सों में बांटने का आदेश दिया।
9 मई 2011 : उच्चतम न्यायालय ने अयोध्या जमीन विवाद में उच्च न्यायालय के फैसले पर रोक लगाई।
26 फरवरी 2016 : सुब्रमण्यम स्वामी ने उच्चतम न्यायालय में याचिका दायर कर विवादित स्थल पर राम मंदिर बनाए जाने की मांग की।
21 मार्च 2017 : सीजेआई जेएस खेहर ने संबंधित पक्षों के बीच अदालत के बाहर समाधान का सुझाव दिया।
7 अगस्त : उच्चतम न्यायालय ने 1994 के इलाहाबाद उच्च न्यायालय के फैसले को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई के लिए तीन सदस्यीय पीठ का गठन किया।
8 अगस्त : उत्तरप्रदेश शिया केंद्रीय वक्फ बोर्ड ने उच्चतम न्यायालय से कहा कि विवादित स्थल से उचित दूरी पर मुस्लिम बहुल इलाके में मस्जिद बनाई जा सकती है।
11 सितंबर : उच्चतम न्यायालय ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश को निर्देश दिया कि 10 दिनों के अंदर दो अतिरिक्त जिला न्यायाधीशों की नियुक्ति करें जो विवादिस्त स्थल की यथास्थिति की निगरानी करे।
20 नवंबर : उप्र शिया केंद्रीय वक्फ बोर्ड ने उच्चतम न्यायालय से कहा कि मंदिर का निर्माण अयोध्या में किया जा सकता है और मस्जिद का लखनऊ में।
1 दिसम्बर : इलाहाबाद उच्च न्यायालय के 2010 के फैसले को चुनौती देते हुए 32 मानवाधिकार कार्यकर्ताओं ने याचिका दायर की।
8 फरवरी, 2018 : दीवानी याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई शुरू की।
14 मार्च : सुप्रीम कोर्ट ने स्वामी की याचिका सहित सभी अंतरिम याचिकाओं को खारिज किया।
6 अप्रैल : राजीव धवन ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर 1994 के फैसले की टिप्पणियों पर पुनर्विचार के मुद्दे को बड़े पीठ के पास भेजने का आग्रह किया।
6 जुलाई : उप्र सरकार ने उच्चतम न्यायालय में कहा कि कुछ मुस्लिम समूह 1994 के फैसले की टिप्पणियों पर पुनर्विचार की मांग कर सुनवाई में विलंब करना चाहते हैं।
20 जुलाई : उच्चतम न्यायालय ने फैसला सुरक्षित रखा।
27 सितम्बर : उच्चतम न्यायालय ने मामले को पांच सदस्यीय संविधान पीठ के समक्ष भेजने से इनकार किया। मामले की सुनवाई 29 अक्टूबर को तीन सदस्यीय नयी पीठ द्वारा किए जाने की बात कही
29 अक्टूबर : सुप्रीम कोर्ट ने मामले की सुनवाई उचित पीठ के समक्ष जनवरी के पहले हफ्ते में करना तय किया जिसे सुनवाई के समय पर निर्णय करना था।
12 नवंबर : अखिल भारत हिन्दू महासभा की याचिकाओं पर जल्द सुनवाई से उच्चतम न्यायालय का इनकार।
24 दिसंबर : उच्चतम न्यायालय ने मामले में याचिकाओं पर चार जनवरी को सुनवाई का फैसला किया।
4 जनवरी 2019 : उच्चतम न्यायालय ने कहा कि मालिकाना हक मामले में सुनवाई की तारीख तय करने के लिए उसके द्वारा गठित उपयुक्त पीठ दस जनवरी को फैसला सुनाएगी।
8 जनवरी : उच्चतम न्यायालय ने मामले की सुनवाई के लिए पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ का गठन किया जिसकी अध्यक्षता प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई ने की और इसमें न्यायमूर्ति एस ए बोबडे, न्यायमूर्ति एन वी रमन, न्यायमूर्ति यू यू ललित और न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ शामिल रहे।
10 जनवरी : न्यायमूर्ति यूयू ललित ने मामले से खुद को अलग किया जिसके बाद उच्चतम न्यायालय ने मामले की सुनवाई 29 जनवरी को नयी पीठ के समक्ष तय की।
25 जनवरी : उच्चतम न्यायालय ने मामले की सुनवाई के लिए 5 सदस्यीय संविधान पीठ का पुनर्गठन किया। नई पीठ में प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई, न्यायमूर्ति एसए बोबडे, न्यायमूर्ति डीवाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति अशोक भूषण और न्यायमूर्ति एसए नजीर शामिल रहे।
29 जनवरी : केंद्र ने उच्चतम न्यायालय से विवादित स्थल के आसपास की 67 एकड़ अधिग्रहीत जमीन को मूल स्वामियों को वापसी करने की अनुमति मांगी।
26 फरवरी : उच्चतम न्यायालय ने मध्यस्थता का सुझाव दिया और इस बारे में फैसले के लिए 5 मार्च की तारीख तय की कि मामले को अदालत की तरफ से नियुक्त मध्यस्थ के पास भेजा जाए अथवा नहीं।
8 मार्च : उच्चतम न्यायालय ने मध्यस्थता के लिए विवाद को एक समिति के पास भेज दिया जिसके अध्यक्ष उच्चतम न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश एफ एम आई कलीफुल्ला बनाए गए।
9 अप्रैल : निर्मोही अखाड़े ने अयोध्या स्थल के आसपास की अधिग्रहीत जमीन को मालिकों को लौटाने की केन्द्र की याचिका का उच्चतम न्यायालय में विरोध किया।
9 मई : तीन सदस्यीय मध्यस्थता समिति ने उच्चतम न्यायालय में अंतरिम रिपोर्ट सौंपी।
10 मई : मध्यस्थता प्रक्रिया को पूरा करने के लिए उच्चतम न्यायालय ने 15 अगस्त तक समय-सीमा बढ़ाई।
11 जुलाई : उच्चतम न्यायालय ने 'मध्यस्थता की प्रगति' पर रिपोर्ट मांगी।
18 जुलाई : उच्चतम न्यायालय ने मध्यस्थता प्रक्रिया को जारी रखने की अनुमति देते हुए 1 अगस्त तक परिणाम रिपोर्ट देने के लिए कहा।
1 अगस्त : मध्यस्थता की रिपोर्ट सीलबंद लिफाफे में अदालत को दी गई।
2 अगस्त : उच्चतम न्यायालय ने मध्यस्थता प्रक्रिया विफल रहने पर छह अगस्त से रोजाना सुनवाई का फैसला किया।
6 अगस्त : उच्चतम न्यायालय ने रोजाना के आधार पर भूमि विवाद पर सुनवाई शुरू की।
4 अक्टूबर : अदालत ने कहा कि 17 अक्टूबर तक सुनवाई पूरी कर 17 नवंबर तक फैसला सुनाया जाएगा। उच्चतम न्यायालय ने उत्तरप्रदेश सरकार को राज्य वक्फ बोर्ड के अध्यक्ष को सुरक्षा प्रदान करने के लिए कहा।
16 अक्टूबर : उच्चतम न्यायालय ने सुनवाई पूरी कर फैसला सुरक्षित रखा।
9 नवंबर 2019 : उच्चतम न्यायालय ने अयोध्या में पूरी 2.77 एकड़ विवादित भूमि रामलला को दी। केन्द्र और उत्तरप्रदेश सरकार को मस्जिद के निर्माण के लिए किसी प्रमुख स्थान पर पांच एकड़ जमीन मुसलमानों के देने का भी निर्देश दिया।
5 फरवरी, 2020 : प्रधानमंत्री ने अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के लिये 15 सदस्यीय न्यास की घोषणा संसद में की।
19 फरवरी : राम मंदिर ट्रस्ट ने पदाधिकारियों की नियुक्ति की।
5 अगस्त 2020 : प्रधानमंत्री मोदी ने अयोध्या में भूमिपूजन के बाद राम मंदिर की आधारशिला रखी। (भाषा)