मधुमेह सारे विश्व में और हमारे देश में भी तेजी से बढ़ रही एक व्याधि है। मधुमेह यानी डायबिटीज। यह सब आधुनिक खान-पान, प्रदूषित वातावरण, रहन-सहन आदि का परिणाम है।
इस व्याधि की चपेट में हर उस व्यक्ति के आने की संभावना रहती है जो श्रमजीवी नहीं है, परिश्रम नहीं करता, व्यायाम नहीं करता, खूब साधन सम्पन्न है, आराम की जिन्दगी जीता है, खूब खाता-पीता है, मोटा-ताजा है, इसलिए यह बीमारी सम्पन्नता की, बड़प्पन की और वीआईपी होने की प्रतीक बन गई है। ऐसा सौभाग्यशाली कोई बिरला ही मिलेगा जो बड़ा आदमी हो और उसे मधुमेह रोग न हो।
यह रोग संक्रामक नहीं है पर वंशानुगत प्रभाव से हो सकता है। जिनके माता-पिता या दादा-दादी को मधुमेह रहा हो, उन्हें तो बचपन से ही आहार-विहार के मामले में ज्यादा सावधानी बरतनी होगी। अगर एक बार दवा-इलाज, विशेषकर इन्सुलिन लेने के चक्कर में फँस गए तो वे जीवन पर्यन्त इस चक्र से निकल न सकेंगे। इस चक्कर में पड़कर घनचक्कर बनने से बचने के लिए सन्तुलित आहार लेना बहुत आवश्यक है।
मधुमेह होने के लक्षण मालूम पड़ते ही मूत्र और रक्त की जाँच करवा लें। सुबह खाली पेट रक्त की जाँच में शर्करा की मात्रा 80 से 120 एमजी (प्रति 100 सीसी रक्त) के बीच में होना सामान्य स्वस्थ अवस्था होती है। यदि यह अवस्था हो तो मनुष्य स्वस्थ है। यदि शर्करा की मात्रा 120 एमजी से ज्यादा, लेकिन 140 एमजी से कम हो तो यह मधुमेह की प्रारंभिक अवस्था होगी। यदि 140 एमजी से ज्यादा हो तो मधुमेह रोग ने जड़ जमा ली है ऐसा माना जाएगा।
भोजन करने के दो घण्टे बाद की गई जाँच में भी रक्त शर्करा 120 एमजी से कम पाई जाए तो मनुष्य स्वस्थ है, किन्तु यदि 140 एमजी तक या इससे कम पाई जाए तो मधुमेह होने की प्रारंभिक अवस्था मानी जाएगी, लेकिन अगर 140 एमजी से ज्यादा पाई जाए तो मधुमेह रोग से ग्रस्त होना मान लिया जाएगा। मधुमेह धीरे-धीरे पनपता है और जब तक उग्र अवस्था में न पहुँच जाए तब तक इसका साफ पता नहीं चल सकता, इसलिए मोटे शरीर वाले और 40 वर्ष से अधिक आयु वाले स्त्री-पुरु षों को 2-3 माह में एक बार स्वमूत्र और रक्त की जाँच कराते रहना चाहिए। यदि पेशाब में शर्करा पाई जाए या रक्तगत शर्करा सामान्य मात्रा से ज्यादा पाई जाए तो अपने आहार में तुरन्त उचित सुधार कर सन्तुलित आहार लेना शुरू कर देना चाहिए और आवश्यक परहेज का सख्ती से पालन करना चाहिए।
सन्तुलित आहार का तात्पर्य होता है शरीर को जितनी ऊर्जा की आवश्यकता हो, उतनी ऊर्जा देने वाला आहार ग्रहण करना। न कम न ज्यादा। मधुमेह का रोगी यदि प्रौढ़ावस्था का है, कम परिश्रम करता है, आराम की जिन्दगी जीता है तो 1500 से 1800 कैलोरीज प्रतिदिन मिलना उसके लिए काफी होती है। कैलोरीज का निश्चय शरीर के वजन के हिसाब से किया जाता है। मोटे व्यक्ति को वजन के हिसाब से प्रति किलो 20 से 25 कैलोरी प्राप्त होना पर्याप्त है, सामान्य श्रम करता हो तो 30 कैलोरी प्रति किलो और अधिक परिश्रम करता हो तो 35 कैलोरी प्रतिकिलो प्रतिदिन मिलना पर्याप्त होता है।
यदि रोगी दुबला-पतला है तो उसे थोड़ी ज्यादा कैलोरीज की जरूरत होगी यानी मोटे व्यक्ति की अपेक्षा 10 कैलोरी प्रति किलो ज्यादा कैलोरीज। यदि रोगी सामान्य शरीर का हो यानी न ज्यादा मोटा और न ज्यादा दुबला-पतला को मध्यम मात्रा यानी 5 कैलोरी प्रति किलो, मोटे व्यक्ति वाली मात्रा से ज्यादा और दुबले व्यक्ति वाली मात्रा से कम मात्रा में कैलोरी मिलना पर्याप्त होगा।
आज की व्यस्त और दौड़-धूपभरी दिनचर्या में फँसे व्यक्ति के लिए यह ख्याल रखना बहुत मुश्किल है कि दिनभर में उसे कितनी कैलोरीज वाला आहार लेना है और कितनी कैलोरीज वाला ले रहा है। यह जानने के लिए एक चार्ट रखें, जिसमें सभी खाद्य पदार्थों के नाम हों तथा उनके आगे कैलोरी की मात्रा अंकित हो।
सन्तुलित आहार के आंकड़ों को अगर रोगी समझ न सकें तो इतना ही जान-समझ लें कि उसे क्या खाना चाहिए और क्या नहीं खाना चाहिए, कितनी मात्रा में खाना चाहिए तो भी उसका काम मजे से चल सकता है। हम ऐसी ही आवश्यक और उपयोगी जानकारी सन्तुलित और पथ्य आहार के विषय में यहां प्रस्तुत कर रहे हैं, जिस पर अमल करना मुश्किल नहीं होगा। मन वश में हो, सन्तुलित और उचित आहार-विहार किया जाए, व्यायाम या योगासनों का अभ्यास किया जाए तो मधुमेह रोग से ग्रस्त होने का सवाल ही पैदा न हो।
घरेलू चिकित्सा
1. बेल के ताजे हरे पत्तों का रस 2-2 चम्मच सुबह-शाम पीना चाहिए। यह रस मिक्सर या ज्यूसर में पत्ते डालकर निकाला जा सकता है या सिल पर पानी के छींटे मारकर कूट-पीसकर, मोटे कपड़े से निचोड़ कर निकाला जा सकता है। यह बहुत गुणकारी प्रयोग है।
2. पलाश (ढाक) के फूलों का रस आधा-आधा चम्मच सुबह-शाम पीना चाहिए। यह भी उत्तम प्रयोग है।
3. गुड़मार 80 ग्राम, बिनोले की मिंगी और जामुन की गुठली 40-40 ग्राम, बेल के सूखे पत्ते 60 ग्राम, नीम की सूखी पत्तियाँ 20 ग्राम। सबको कूट-पीसकर महीन चूर्ण करके मिला लें। इसे आधा-आधा चम्मच मात्रा में सुबह-शाम भोजन करने से एक घण्टे पहले ठण्डे पानी के साथ फाँक लेना चाहिए। यह योग यकृत और अग्न्याशय को बल प्रदान कर उनके विकार नष्ट करता है, मूत्र में आने वाली शर्करा को रोकता है और रक्त शर्करा को नियंत्रित कर सामान्य मात्रा में रखता है। यह योग 'मधुमेह दमन चूर्ण' के नाम से बना-बनाया बाजार में भी मिलता है। यह परीक्षित है।
4. पिसी हल्दी आधा चम्मच और सूखे आंवलों का चूर्ण 1 चम्मच-सुबह शाम पानी के साथ सेवन करते रहने से पेंक्रियाज (अग्न्याशय) को बल मिलता है, जिससे इन्सुलिन नामक हार्मोन उचित मात्रा में बनता रहता है और रक्त शर्करा सामान्य मात्रा मे बनी रहती है। यह प्रयोग स्वस्थ व्यक्ति भी करे तो मधुमेह रोग के आक्रमण से बचा रह सकता है।
5. मेथीदाना 500 ग्राम, धो-साफकर, 12 घण्टे तक पानी में भिगोकर रखें। बीज फूल जाएँगे। इन्हें पानी से निकाल कर सुखा लें और कूट-पीसकर महीन चूर्ण कर लें। सुबह-शाम 1-1 चम्मच चूर्ण पानी के साथ सेवन करने से मधुमेह रोग में लाभ होता है।
6. एक प्रयोग बनी-बनाई आयुर्वेदिक औषधियों के मिश्रण से तैयार करने वाला भी प्रस्तुत कर रहे हैं। आयुर्वेदिक औषधि विक्रेता की दुकान से वसन्तकुसुमाकर रस या शिलाजत्वादि वटी (अम्बरयुक्त) और प्रमेहगज केसरी वटी की शीशी ले आएं। दोनों की 1-1 गोली सुबह-शाम दूध के साथ लें। इसके साथ मधुमेह दमन का चूर्ण भी सेवन करने से विशेष और शीघ्र लाभ होता है।
स्वयं इन नियमों का पालन करे- मधुमेह के रोगी को अपने डॉक्टर के परामर्श के अनुसार ही आहार लेना चाहिए। यह भी कहना उचित होगा कि रोगी पथ्य आहार का सेवन करता रहे तो रोग को नियंत्रण में रखना ज्यादा सरल होगा और चिकित्सा सफल हो सकेगी। रोगी को आहार ही नहीं, बल्कि विहार यानी रहन-सहन को भी नियमित और नियंत्रित करना होगा। इस हेतु निम्नलिखित प्रयोग उचित होंगे-
* प्रातः घूमने जाएं, लौटने के बाद घर में जमाया हुआ दही, थोड़ा सा पानी और जीरा, नमक मिलाकर पिएं। चाय-दूध न लें। दही की मात्रा अपनी इच्छा के अनुसार जितनी चाहें उतनी ले सकते हैं। दही के मामले में कुछ सावधानियां रखनी होंगी। एक तो दही रात में घर में ही जमाया हुआ हो, मलाईरहित दूध से जमाया हुआ हो, बाजार से लाया हुआ न हो। दूसरे, दही अलग एक पात्र में उतना ही जमाएं जितना खा सकें। तीसरे, दही को जब तक खाएं न, तब तक जमा रहने दें, काटें नहीं, क्योंकि जमा हुआ दही काटने के बाद खट्टा होना शुरू हो जाता है जो कि हानिकारक होता है, इसलिए बाजार से दही लाने को मना किया गया है।
* मेथी दाने का पानी, 'जाम्बुलिन', मूंग-मोठ आदि का प्रयोग कर सकते हैं। यह पूरा प्रयोग प्रातः 7 बजे से पहले कर लेना चाहिए ताकि 3-4 घण्टे बाद भोजन कर सकें।
* भोजन में जौ-चने के आटे की रोटी, हरी शाक सब्जी, सलाद और छाछ का सेवन करें। छाछ भोजन करते हुए घूंट-घूंट करके पीते रहें। भोजन के बाद एक सेवफल खा लिया करें। जौ व चने का आटा तैयार करने के लिए पांच किलो साफ किया हुआ जौ और एक किलो देसी चना मिलाकर पिसवा लें। यह आटा खत्म हो जाए तब 4 किलो जौ और 2 किलो चना मिलाएं। इसी प्रकार जौ की मात्रा कम और चने की मात्रा ज्यादा करते हुए जौ और चने की मात्रा बराबर कर लें फिर दोनो को बराबर वजन में यानी 3-3 किलो मिलाकर पिसवा लें। इस आटे की रोटी स्वादिष्ट भी होती है और शक्ति स्फूर्तिदायक भी, साथ ही साथ वजन घटाने में भी सहायक सिद्ध होती है।
* शाम का भोजन 7 बजे तक हर हालत में कर लिया करें। मधुमेह के रोगी को निश्चित समय पर ही भोजन करने का पूरा-पूरा ध्यान रखना चाहिए। भोजन में मीठे पदार्थ, शकर, मीठे फल, मीठी चाय, मीठे पेय, मीठा दूध, चावल, आलू, तले पदार्थों आदि का सेवन कर देना चाहिए। शकर की जगह सेकरीन की गोली का प्रयोग करके खाद्य या पेय पदार्थ को मीठा कर सकते हैं। आहार में वसा, प्रोटीन व कार्बोहाइड्रेटयुक्त पदार्थो का सेवन कम मात्रा में करना चाहिए- जैसे दूध, घी, तेल, फल, सूखे मेवे, अनाज, दाल आदि। मांसाहार और शराब का सेवन कतई नहीं करना चाहिए।
* रेशायुक्त खाद्य पदार्थों का सेवन ज्यादा मात्रा में करना चाहिए जैसे शाक सब्जी, आटे का चोकर, मौसमी फल, अंकुरित अन्न, अखण्ड दालें आदि।
* दिनचर्या में तेल मालिश, वायु सेवन हेतु सूर्योदय से पहले घूमने के लिए जाना, योगासन करना या कोई व्यायाम करना, दिन में चल-फिरकर करना हितकारी रहता है। योगासनों में सूर्य नमस्कार, भुजंगासन, शलभासन, योग मुद्रा, धनुरासन, सर्वागासन, पश्चिमोत्तानासन और अन्त में शवासन करना चाहिए। भोजन के बाद थोड़ी देर वज्रासन में बैठना चाहिए। योगासन या व्यावाम का अभ्यास अपनी शारीरिक क्षमता के अनुसार ही करना चाहिए उससे ज्यादा मात्रा में नहीं।