जलवायु समझौते पर राजनेताओं को नाउम्मीद होता देख अब दुनिया के धर्मगुरू एकत्रित हो रहे हैं पृथ्वी को बचाने के लिए कुछ नायाब तरीकों के साथ।
एक ओर सोमवार से बार्सिलोना में संयुक्त राष्ट्र की जलवायु परिवर्तन पर एक अहम बैठक की शुरुआत हो रही है जिसमें कोशिश है कि दिसंबर में होने वाले कोपेनहेगेन बैठक के लिए किसी साझा मसौदे पर सभी देशों के बीच कोई सहमति बन जाए।
वहीं दूसरी ओर नाउम्मीदी के इस माहौल में ब्रितानी राजघराने के आधिकारिक निवास विंडसर कासल में दुनिया के अलग-अलग धर्मों के दो सौ धर्मगुरू जमा हुए हैं।
ये अगले तीन दिनों तक एक साझा रणनीति तय करेंगे जिसके तहत वो अपने अनुयायियों को प्रेरित करेंगे धरती के बढ़ते तापमान को रोकने के लिए कदम उठाने को।
इसके आयोजकों का कहना है कि इस सम्मेलन को संयुक्त राष्ट्र का समर्थन प्राप्त है आम लोगों का आज तक का ये सबसे बड़ा जलवायु आंदोलन है।
पृथ्वी प्रतिज्ञा : ये धर्मगुरु अरबों लोगों का प्रतिनिधत्व कर रहे हैं और उनकी तरफ से वो प्रतिज्ञा करेंगे जलवायु परिवर्तन को रोकने के लिए उठाने वाले कदमों की।
विंडसर से बीबीसी संवाददाता क्रिस्टोफर लैंड्यू का कहना है कि शुरुआत से पहले ही कुछ प्रतिज्ञा सामने आ चुके हैं। चीन के ताओ मंदिर सौर उर्जा से चलेंगे, इसराइल में यहूदी माँस खाना कम कर देंगे, तनजानिया में ईसाई 80 लाख पेड़ लगाएँगे, धार्मिक ग्रंथों को पर्यावरण को कम नुकसान पहुँचाने वाले कागजों पर छापा जाएगा।
ये धर्मगुरु अपने अनुयायियों के बीच पर्यावरण के प्रति और चेतना पैदा करने की प्रतिज्ञा भी कर चुके हैं।
आयोजकों को उम्मीद है कि इस सम्मेलन से राजनेताओं को भी कोपेनेहेगेन की बैठक से पहले एक स्पष्ट संदेश जाएगा कि पर्यावरण को बचाने के लिए वो एक समझौते पर पहुँचें।
मुख्य तौर पर मतभेद इस बात से है कि विकसित देश पृथ्वी का तापमान बढ़ाने वाले ग्रीनहाउस गैसों में किस स्तर की कटौती करें। सहमति इस पर भी नहीं बन पाई है कि विकसित देश विकासशील देशों को ग्रीनहाउस गैसों में कटौती के लिए कितनी आर्थिक मदद दें। इसके अलावा विकासशील देश किस हद तक कटौती करेंगे उसका भी मापदंड नहीं तय हो पाया है।
संयुक्त राष्ट्र महासचिव बान की मून के उस बयान से और नाउम्मीदी पैदा हुई है जिसमें उन्होंने कहा है कि कोपेनहेगेन में कानूनी रूप से बाध्य कोई समझौता हो पाए इसके आसार नहीं हैं।