ग्रामीण अर्थव्यवस्था कैसे संभली रही?

- पाणिनी आनंद (दिल्ली से)
BBC
ग्रामीण क्षेत्र की अर्थव्यवस्था ने भी भारत को आर्थिक संकट के दौर में स्थिर रखने में मदद दी। वैश्विक आर्थिक मंदी के दौर में भारत के ग्रामीण विकास और ग्रामीण अर्थव्यवस्था के बारे में जानी मानी अर्थशास्त्री जयति घोष कहती हैं कि जहाँ संयुक्त प्रगतिशील गंठबंधन सरकार की पहली पारी गंभीर और सकारात्मक रही, वहीं दूसरी पारी में सरकार कम गंभीर नजर आ रही है। उनका मानना है कि सरकार की कुछ तैयारियों और बदलावों के संकेत स्वागत योग्य नहीं हैं।

उनका मानना है कि वैश्विक आर्थिक मंदी के दौर में भारत की अर्थव्यवस्था के कुछ स्थिर और संभले रहने के पीछे की वजह यह है ि ग्रामीण अर्थव्यवस्था मजबूत है।

ग्रामीण अर्थव्यवस्था के ऐसे कौन से पहलु हैं जिनके कारण भारतीय अर्थव्यवस्था को प्रतिकूल समय में भी मजबूती मिली? इसे किन चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है? ग्रामीण अर्थव्यवस्था के कई पहलुओं पर जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय की प्रोफेसर और जानी-मानी अर्थशास्त्री जयति घोष से बीबीसी की विशेष बातचीत:-

*क्या आप सहमत हैं कि वैश्विक आर्थिक मंदी के दौर में भारतीय अर्थव्यवस्था के कुछ संभले रहने में ग्रामीण क्षेत्र की अर्थव्यवस्था का योगदान है? यदि हाँ, तो किस रूप में?
- बिल्कुल है..बहुत अहम भूमिका है क्योंकि अभी भी 70 प्रतिशत श्रम ग्रामीण क्षेत्रों में ही है। इसकी एक अहम वजह यह भी है कि ग्रामीण क्षेत्र की अर्थव्यवस्था बहुत मजबूत तो नहीं है मगर दुनिया की हलचल से थोड़ी सी अलग है।

ये बात अलग है कि पिछले 10-15 साल से ग्रामीण क्षेत्र की अर्थव्यवस्था के सामने भी कई संकट पैदा हुए हैं, लेकिन यूपीए की सरकार 2004 में बनने के बाद ग्रामीण क्षेत्र की ओर थोड़ा-सा ध्यान बढ़ा है। पैसा ग्रामीण क्षेत्रों में गया है। किसानों के बैंकों से लिए गए ऋण माफ किए गए हैं और सबसे बड़ी बात तो यह है कि रोजगार गारंटी कानून जैसी चीज ग्रामीण क्षेत्र के लोगों को मिली है।

इन कुछ वजहों से ग्रामीण अर्थव्यवस्था में थोड़ा सा सुधार आया है और इस सुधार ने देश की पूरी अर्थव्यवस्था को संभाले रखने में अपनी भूमिका निभाई है।

पर चिंता अब इस बात को लेकर है कि देश में आर्थिक संकट के कारण जो कुछ समस्याएँ पैदा हुई हैं, उसके साथ सूखा भी पड़ गया है। इसकी वजह से किसानों के सामने एक बड़ी संकट की स्थिति पैदा हो गई है।

किसानों के हिसाब से देखें तो पिछले वर्ष खाद्यान्न का दाम बढ़ा और फिर नीचे गिरा। इसी तरह कैशक्रॉप का दाम जैसे तिलहन, गन्ना आदि भी ऊपर गया और फिर दाम नीचे गिरे। यह भी एक संकट हैइन सारी स्थितियों को देखते हुए ग्रामीण क्षेत्र में संकट की स्थिति पैदा होने की आशंका है। इस ओर ध्यान देने की जरूरत है।

*आखिर ऐसा क्या हुआ कि ग्रामीण स्तर के बाज़ार संभले रहे?
- देखिए, पहली बात तो है कि किसानों की कर्ज माफी ने आबादी को कुछ राहत दी। हालाँकि सारे किसान न तो बैंकों से ऋण ले पाते हैं और न ही उन तक इसका लाभ पहुँचा है, पर कुछ किसानों के कर्ज का बोझ घटा और उनको राहत मिली है।

दूसरा और सबसे बड़ा योगदान है रोजगार गारंटी कानून का। रोजगार कानून की वजह से लोगों को गाँव में एक तरह की गारंटी तो मिली कि 100 दिन का काम मिलेगा। जहाँ गाँवों में कोई विशेष राहत योजनाएँ नहीं चल रही थीं, स्थितियाँ और बिगड़ सकती थीं पर रोजगार कानून ने स्थितियों को संभाला।

लोगों को न्यूनतम मजदूरी नहीं मिलती थी। यहाँ उस मजदूरी के साथ 100 दिन का वादा था। सौ दिन न सही, 30-40 दिन तो काम मिला ही। इससे बहुत राहत मिली है लोगों को।

हम ऐसा भी न सोचें कि गाँव की अर्थव्यवस्था पूरी तरह से दुनिया के बाजार से अलग है। बल्कि पिछले 15 बरसों में इनका संबंध गहरा हुआ है क्योंकि अब किसान भी दुनिया के बाजार की ओर देखकर ही बीज बोते हैं, फसल पैदा करते हैं। उन्हें भी बाजार से बीज या खाद खरीदनी ही पड़ती है।

दूसरी बात यह है कि भारत का जो निर्यात पर आधारित बाजार है- जैसे आईटी या टैक्सटाइल के क्षेत्रों में हमारे गाँवों से पलायन करके गए मजदूर, उनका भी बहुत अहम योगदान है। अगर प्रोफेशनल के तौर पर नहीं तो सिक्योरिटी, क्लीनर, ड्राइवर जैसी कितनी ही जिम्मेदारियाँ ग्रामीण क्षेत्र से गए लोग उठाते हैं। इन लोगों के काम का मेहनताना कम है और इस वजह से इन लोगों ने हमारे कामों की कुल लागत को कम ही रखा है। इसलिए भी हम दुनिया के सामने मजबूती से खड़े रहे।

अब निर्यात घटने की वजह से इनमें से काफी लोग वापस जा रहे हैं। ये लोग उन्हीं इलाकों में वापस जा रहे हैं जहाँ स्थितियाँ पहले ही खराब हैं। नक्सलवाद की समस्या है, विकास न होने की समस्या है, आधारभूत ढाँचे के न होने की समस्या है। यह पूरी स्थिति विस्फोटक हो सकती थी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ और स्थिति संभली रही है और इसकी वजह बना है रोजगार गारंटी कानून।

*अभी तो ग्रामीण अर्थव्यवस्था ने एक अहम भूमिका निभाई है पर यदि यह स्थिति दोबारा पैदा होती है तो ग्रामीण अर्थव्यवस्था को किस तरह से तैयार रहने की जरूरत होगी।
- देखिए, आर्थिक संकट हो या न हो, ग्रामीण अर्थव्यवस्था को संभालना तो है ही। सबसे पहले जो बुनियादी जरूरतें हैं, उन्हें लोगों तक पहुँचाने के लिए प्रयास किए जाने चाहिए। हर घर में बिजली पहुँचाना, यह तो कोई बड़ी बात नहीं है। हर गाँव तक पक्का रास्ता पहुँचाना, यह कोई मुश्किल काम तो नहीं है। बांग्लादेश तक ने ऐसा सुनिश्चित कर लिया है तो फिर भारत में ये क्यों नहीं हो पा रहा है। पीने का साफ पानी घर-घर तक पहुँचना जरूरी है। इतना तो किया भी जा सकता है।

दूसरा ध्यान देना होगा सामाजिक स्तर पर आधारभूत ढाँचा खड़ा करने की ओर..सुविधाएँ उपलब्ध कराने की ओर..जैसे स्वास्थ्य, शिक्षा आदि...

अगर भारत ऐसा कर पाता है तो एक तो रोजगार बढ़ेगा, दूसरा ग्रामीण क्षेत्र की राष्ट्रीय आय में वृद्धि होगी। उत्पादन में बढ़त होगी। और इन सब चीजों से खुद विकास दिखाई देने लगेगा। अगर हम ग्रामीण विकास को मजबूत कर लें तो हमारी अर्थव्यवस्था को इस बात की चिंता नहीं करनी पड़ेगी कि दुनिया की अर्थव्यवस्था में क्या हो रहा है।

* क्या आपको लगता है कि आम आदमी का नारा देकर चलने वाली यूपीए सरकार ग्रामीण विकास को लेकर, ग्रामीण भारत की आर्थिक और बुनियादी स्थिति को लेकर गंभीर है?
- अगर सरकार समग्र विकास की बात कह रही है तो यह तभी पूरा हो सकता है जब वह ग्रामीण विकास भी सुनिश्चित करें। अभी तक के प्रयासों से यही दिखाई देता है कि सरकार तब तक इस दिशा में कोई कदम उठाती है जब तक कि उस पर इसका दबाव हो। इससे पहले की सरकार में (2004-09) वामदलों का काफी योगदान ग्रामीण क्षेत्र को लेकर रहा। उनकी ओर से सरकार पर ऐसा दबाव रहा जिसके चलते ग्रामीण विकास पर जोर दिया गया। प्रगतिशील अर्थव्यवस्था की ओर बढ़ा गया।

इस बार स्थितियाँ बदली हुई हैं। ग्रामीण विकास के प्रति सरकार उतनी गंभीर नहीं है। सभी के लिए खाद्य सुरक्षा की बात छोड़कर कुछ की खाद्य सुरक्षा की बात करने लगी है। रोजगार गारंटी कानून के साथ भी कुछ बदलाव लाने की कोशिश की जा रही है जो कि इसके खर्च और प्रभाव को सीमित करेंगे।

ये कोई अच्छे संकेत नहीं हैं। यदि सरकार पर सामाजिक स्तर पर दबाव बनेगा तब ही वह चुनाव से पहले किए गए वादों को ईमानदारी से निभाएगी।

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