बांदा-चित्रकूट में डकैतों का आतंक

रामदत्त त्रिपाठी

रविवार, 10 जून 2007 (00:52 IST)
गरीबी और सूखे
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की वजह से अकाल की मार झेल रहे उत्तरप्रदेश के बांदा-चित्रकूट जिलों में दो डाकू गिरोह खुलेआम लोकतंत्र पर डाका डालने की कोशिश कर रहे हैं।


चुनाव आयोग की तरफ से भेजे गए पुलिस और अर्द्घसैनिक बल भी पहाड़ी और जंगली क्षेत्रों में बसे गाँववालों में भरोसा कायम करने में नाकाम रहे हैं।

ददुआ और ठोकिया दोनों डाकू गिरोहों के लोग गाँव-गाँव में मतदाताओं को धमका रहे हैं कि वोट डालने वाली ईवीएम मशीनों से वो ये पता कर लेंगे कि किस बूथ पर उनके और विरोधी प्रत्याशी को कितने वोट मिले। गाँव वालों को डर है कि परिणाम आने के बाद जिन इलाकों में इन गिरोहों के उम्मीदवार हारेंगे वहाँ वे कहर बरपा सकते हैं।

डॉ. अंबिका प्रसाद पटेल उर्फ ठोकिया मध्यप्रदेश से कोई डिग्री लेकर छोटी-मोटी डॉक्टरी करता था। चार-पाँच साल पहले वह डाकू बन गया। पुलिस ने उस पर साढ़े तीन लाख रुपए का इनाम घोषित कर रखा है।

स्थानीय पत्रकारों के अनुसार ठोकिया पहले तो ददुआ के जरिए अपनी माँ को नरैनी विधानसभा क्षेत्र से टिकट दिलाना चाहता था। बात नहीं बनी तो उसने राष्ट्रीय लोकदल का टिकट हासिल किया।

स्थानीय पत्रकार अशोक निगम का कहना है कि हथियार बंद ठोकिया ने गाँव-गाँव घूमकर ग्राम प्रधान का चुनाव लड़ने वाले जीते-हारे प्रत्याशियों की बैठकें की हैं।

ठोकिया ने इन लोगों
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से कहा कि जिसको जितने वोट मिले थे उसकी तरफ से मेरी माँ को उतने ही वोट मिलने चाहिए वरना चुनाव के बाद जब सुरक्षा बल चले जाएँगे तब उनकी खैर नहीं।


एक अन्य पत्रकार रामलाल जयन ने ठोकिया की माँ पियरी देवी का चुनाव प्रचार देखा है। रामलाल का कहना है कि पियरी देवी एक लोकप्रिय नेता की तरह वोट मांगती हैं। ठोकिया कहीं-कहीं विनम्रतापूर्वक गाँवों के बुजुर्गों के पैर भी छू लेता है।

लेकिन उसकी विनम्रता भी डरावनी है। पत्रकार अशोक निगम का कहना है कि ठोकिया ने पहले ही धमकी देकर लोगों को डरा दिया है।

दादागिरी : उधर ददुआ कर्वी-मानिकपुर क्षेत्र में सत्तारूढ़ समाजवादी पार्टी के लिए प्रचार कर रहा है। उसका नारा है, 'बटन दबेगा साइकिल पर, नहीं तो गोली छाती पर'।

ददुआ अपने भाई बाल कुमार को कर्वी सीट से चुनाव लड़ाना चाहता था लेकिन बालकुमार प्रतापगढ़ जिले की पट्टी सीट से प्रत्याशी है। वहाँ से शिकायतें मिली हैं कि बाल कुमार न केवल मतदाताओं को बल्कि अधिकारियों को भी डरा धमका रहा है।

स्थानीय पत्रकार बताते हैं कि ददुआ इससे पहले बहुजन समाज पार्टी का समर्थक था लेकिन मायावती सरकार जाने के बाद वह समाजवादी पार्टी के साथ हो गया। ददुआ और ठोकिया दोनों ने अपने परिवार के रिश्तेदारों को ग्राम प्रधान, बीडीसी और जिला परिषद में पदाधिकारी बनवा रखा है।

यह भी पता चला कि ये दोनों डाकू गिरोह सरकारी योजनाओं के ठेकेदारों से आठ से 10 प्रतिशत कमीशन लेते हैं जिसे 'डाकू टैक्स' कहा जाता है। यह इनकी आर्थिक ताकत का आधार है जिससे ये हथियार, गाड़ियाँ और फोन खरीदते हैं।

अधिकारी दबी जुबान में कहते हैं कि राजनीतिक संरक्षण की वजह से वो लाचार हैं लेकिन ये भी सच है कि पुलिस और सरकारी महकमों में इन दोनों डाकू गिरोहों के मुखबिर और मददगार हैं। दोनों डाकुओं को उनकी कुर्मी बिरादरी का समर्थन हासिल है।

सुरक्षा : एक मोट अनुमान के अनुसार पिछले ड़ेढ दशक में सरकार ददुआ के सफाए पर 80 करोड़ से अधिक की राशि खर्च कर चुकी है।

सशस्त्र बल पीएसी और एसटीएफ के अलावा अब चुनावों में दूसरे अर्द्घसैनिक बल भी आ चुके हैं लेकिन कोई ददुआ की छाया तक भी नहीं पहुँच पाया है। चुनाव आयोग को इन डाकू गिरोहों की तरफ से डाका डालने की जानकारी है। पुलिस महानिदेशक जीएल शर्मा और राज्य के मुख्य निर्वाचन अधिकारी अनुज कुमार बिश्नोई ने भी इलाके का दौरा किया।

चित्रकूट के जिला मजिस्ट्रेट आरके सिंह का कहना है कि डाकू गिरोहों को मतदाताओं को डराने, धमकाने या सताने नहीं दिया जाएगा। लेकिन ये सब कदम अभी अपर्याप्त हैं और लोगों में भरोसा कायम करने में नाकाम रहे हैं। खासकर जंगली और सुदूर इलाकों में बसे लोग सोचते हैं कि उनकी रक्षा पुलिस या पीएसी नहीं कर पाएगी।