1965 भारत-पाक युद्ध: कई वर्षों के बाद पाकिस्तानी पायलट ने अफ़सोस जताया

Webdunia
मंगलवार, 19 सितम्बर 2017 (14:41 IST)
रेहान फजल
19 सितंबर, 1965 की सुबह गुजरात के मुख्यमंत्री बलवंतराव मेहता बहुत तड़के ही उठ गए थे। 10 बजे उन्होंने एनसीसी की एक रैली को संबोधित किया। खाना खाने के लिए घर लौटे और दोपहर डेढ़ बजे अहमदाबाद हवाई अड्डे के लिए रवाना हो गए।
 
उनके साथ उनकी पत्नी सरोजबेन, उनके तीन सहयोगी और 'गुजरात सामाचार' का एक संवाददाता था। जैसे ही वो हवाई अड्डे पहुंचे, भारतीय वायुसेना के पूर्व पायलट जहांगीर जंगू इंजीनियर ने उन्हें सेल्यूट किया।
 
विमान में बैठते ही इंजीनियर ने अपना ब्रीचक्राफ़्ट विमान स्टार्ट किया। उन्हें 400 किलोमीटर दूर द्वारका के पास मीठापुर जाना था जहाँ बलवंतराय मेहता एक रैली में भाषण देने वाले थे।
 
जहाज को शूट कर दें : उधर साढ़े तीन बजे के आसपास, पाकिस्तान के मौरीपुर एयरबेस पर फ्लाइट लेफ्टिनेंट बुखारी और फ्लाइंग ऑफिसर कैस हुसैन से कहा गया कि भुज के पास रडार पर एक विमान को चेक करें।
 
कैस अभी चार महीने पहले ही अमेरिका से एफ 86 सेबर का कोर्स कर लौटे थे। कैस ने बताया, 'स्क्रैंबल का सायरन बजने के तीन मिनट बाद मैंने जहाज स्टार्ट किया। मेरे बदीन रडार स्टेशन ने मुझे सलाह दी कि मैं बीस हजार फुट की ऊंचाई पर उड़ूं। उसी ऊंचाई पर मैंने भारत की सीमा भी पार की।'
 
'तीन चार मिनट बाद उन्होंने मुझे नीचे आने के लिए कहा। तीन हजार फुट की ऊंचाई पर मुझे ये भारतीय जहाज दिखाई दिया जो भुज की तरफ जा रहा था। मैंने उसे मिठाली गांव के ऊपर इंटरसेप्ट किया। जब मैंने देखा कि ये सिविलियन जहाज है तो मैंने उस पर छूटते ही फायरिंग शुरू नहीं की। मैंने अपने कंट्रोलर को रिपोर्ट किया कि ये असैनिक जहाज है।'
 
मैं उस जहाज के इतने करीब गया कि मैं उसका नंबर भी पढ़ सकता था। मैंने कंट्रोलर को बताया कि इस पर विक्टर टैंगो लिखा हुआ है। ये आठ सीटर जहाज है। बताइए इसका क्या करना है?
 
उन्होंने मुझसे कहा कि आप वहीं रहें और हमारे निर्देश का इंतजार करें। इंतजार करते-करते तीन-चार मिनट गुजर गए। मैं काफी नीचे उड़ रहा था, इसलिए मुझे फिक्र हो रही थी कि वापस जाते समय मेरा ईंधन न खत्म हो जाए। लेकिन तभी मेरे पास हुक्म आया कि आप इस जहाज को शूट कर दें।
 
सभी लोग मारे गए : लेकिन कैस ने तुरंत उस विमान को शूट नहीं किया। उन्होंने दोबारा कंट्रोल रूम से इस बात की तसदीक की कि क्या वो वास्तव में चाहते हैं कि उस विमान को गिरा दिया जाए।
 
क़ैस हुसैन याद करते हैं, 'कंट्रोलर ने कहा कि आप इसे शूट करिए। मैंने 100 फुट की दूरी से उस पर निशाना लेकर एक बर्स्ट फायर किया। मैंने देखा कि उसके बाएं विंग से कोई चीज़ उड़ी है। उसके बाद मैंने अपनी स्पीड धीमी कर उसे थोड़ा लंबा फायर दिया। फिर मैंने देखा कि उसके दाहिने इंजन से लपटें निकलने लगीं।'
 
फिर उसने नोज ओवर किया और 90 डिग्री की स्टीप डाइव लेता हुआ जमीन की तरफ गया। जैसे ही उसने जमीन को हिट किया वो आग के गोले में बदल गया और मुझे तभी लग गया कि जहाज में बैठे सभी लोग मारे गए हैं।
 
शूटिंग से पहले जहाज ने अपने विंग्स हिलाए : कैस बताते हैं कि शूटिंग से पहले उस विमान ने उन्हें बार-बार संकेत देने की कोशिश की थी कि वो एक असैनिक विमान है। 'जब मैंने उस जहाज को इंटरसेप्ट किया तो उसने अपने विंग्स को हिलाना शुरू किया जिसका मतलब होता है, हैव मर्सी ऑन मी। लेकिन दिक्कत ये थी कि हमें शक था कि ये सीमा के इतने नज़दीक उड़ रहा है। कहीं ये वहां की तस्वीरें तो नहीं ले रहा है?'
 
'बलवंतराय मेहता का तो किसी को ख्याल ही नहीं आया कि वो और उनकी श्रीमती और छह सात बंदे जहाज में होंगे। ऐसा भी कोई तरीका नहीं था कि रेडियो के जरिए ये पता लगाया जा सके कि उस जहाज के अंदर कौन है?'
 
सैनिक कामों के लिए असैनिक विमानों का इस्तेमाल : पाकिस्तान के एक उड्डयन इतिहासकार कैसर तुफैल लिखते हैं, 'भारत और पाकिस्तान दोनों ने 1965 और 1971 की दोनों लड़ाइयों में सैनिक कामों के लिए सिविलियन जहाज़ों का इस्तेमाल किया था। इसलिए हर विमान की सैनिक क्षमताओं का आकलन किया जा रहा था।'
 
'सिर्फ संयुक्त राष्ट्र और रेड क्रॉस के विमानों में उनकी पहचान बड़ी-बड़ी दिखाई देती है। उस समय के उड्डयन कानूनों में इस तरह की गलती न करने के लिए कोई प्रावधान नहीं था। 1977 में कहीं जाकर उसे जिनेवा कन्वेंशन का हिस्सा बनाया गया।'
 
कई अनुत्तरित सवाल : उसी दिन शाम को 7 बजे के बुलेटिन में आकाशवाणी ने घोषणा की कि एक पाकिस्तानी विमान ने भारत के एक सिविलियन जहाज को गिरा दिया है जिसमें गुजरात के मुख्यमंत्री बलवंतराय मेहता सवार थे।
 
पीवीएस जगनमोहन और समीर चोपड़ा अपनी किताब 'द इंडिया पाकिस्तान एयर वॉर ऑफ 1965' में लिखते हैं, 'नलिया के तहसीलदार को क्रैश साइट पर भेजा गया। वहां उन्हें गुजरात सामाचार के पत्रकार का जला हुआ परिचय पत्र मिला।'
 
'कई सवालों के जवाब अभी तक नहीं मिल पाए हैं, मसलन जहाज को लड़ाई की जगह पर बिना किसी एस्कॉर्ट विमान के क्यों जाने दिया गया? क्या जहाज भारतीय वायु सेना की जानकारी के बिना वहां गया?'
 
चार महीने बाद इस पूरे मामले की जांच रिपोर्ट आई। इसके अनुसार, 'मुंबई के वायुसेना प्रशासन ने मुख्यमंत्री के विमान को उड़ने की अनुमति नहीं दी थी। जब गुजरात सरकार ने जोर डाला तो वायु सेना ने कहा था कि अगर आप जाना ही चाहते हैं तो अपने रिस्क पर वहां जाइए।'
 
ये पहला मौका था कि भारत और पाकिस्तान की लड़ाई के बीच एक असैनिक विमान को निशाना बनाया गया था। बलवंतराय मेहता भारत के पहले राजनीतिज्ञ थे जो सीमा पर एक सैनिक एक्शन में मारे गए थे।
 
45 मिनट तक बचने के लिए उड़ते रहे: जहाज के पायलट जहांगीर इंजीनियर का परिवार उस समय दिल्ली में रहता था। उनकी बेटी फरीदा सिंह को सबसे पहले ये खबर उनके चाचा एयर मार्शल इंजीनियर से फोन पर मिली कि उनके पिता और इंजीनियर के भाई इस दुनिया में नहीं रहे।
 
फरीदा सिंह ने बताया, 'पहले सुनकर तो दुख हुआ ही। जब डिटेल्स आए तो और दुख हुआ। वो अपना पीछा कर रहे जहाज से बचने के लिए 45 मिनट तक उड़ते रहे। वो खुद फाइटर पायलट थे। उन्हें इस बात का अंदाजा था कि छोटे जहाज में सेबर जेट की तुलना में पेट्रोल कम खर्च होता है।'
 
'वो काफी देर तक अपने जहाज को ऊपर नीचे करते रहे। कैस हुसैन ने उन पर तब फायरिंग शुरू की जब उनके विमान में बहुत कम पैट्रोल रह गया था। वो जब इस मिशन के बाद जब मौरीपुर हवाई बेस पर उतरे तो उसमें इतना कम पैट्रोल था उनका इंजिन फ्लेम आउट हो गया था और उनके जहाज को टो करके ले जाना पड़ा था। आप कह सकते हैं कि डैडी ऑलमोस्ट मेड इट।'
 
कैस हुसैन का अफसोस का ईमेल : इसके बाद इस घटना पर कोई खास चर्चा नहीं हुई। कैस हुसैन भी इस ट्रेजेडी को अपने दिल में भरे, चुपचाप रहे।
 
46 साल बाद पाकिस्तान के एक अखबार में कैसर तुफैल का एक लेख छपा जिसमें उन्होंने इंजीनियर के विमान को युद्ध क्षेत्र में जाने की अनुमति देने के लिए भारतीय ट्रैफिक कंट्रोलर्स को जिम्मेदार ठहराया।
 
तब कैस ने तय किया कि वो भारतीय विमान के पायलट की बेटी फरीदा से संपर्क कर इस हादसे पर अपना अफसोस प्रकट करेंगे।
 
कैस हुसैन याद करते हैं, '11 फरवरी, 1965 को मेरे दोस्त कैसर तुफ़ैल ने कहा कि ये कहानी ऐसी है जिसका अब कोई प्रत्यक्षदर्शी नहीं है सिवाए आपके। उन्होंने मेरा इंटरव्यू लिया और वो 'डिफ़ेंस जर्नल पाकिस्तान' में छपा। फिर मेरे पास भारत की जांच कमेटी की रिपोर्ट आई जिसमें कहा गया था कि इंजीनियर का जहाज लैंड कर चुका था। उसे दो पाकिस्तानी जहाजों ने स्ट्रैफ़िंग करके जमीन पर तबाह किया।'
 
'मुझे लगा कि इनके परिवार वालों को ये तक नहीं पता है कि किन परिस्थितियों में उनकी मौत हुई थी। मुझे लगा कि मुझे उन लोगों को ढूंढ कर सही-सही बात बतानी चाहिए। मैंने इसका जिक्र अपने दोस्त नवीद रियाज से किया।'
 
'उनके ज़रिए मुझे जंगू इंजीनियर की बेटी फरीदा सिंह का ईमेल मिला। 6 अगस्त 2011 को मैंने उन्हें एक ईमेल लिखा जिसमें मैंने सारा किस्सा बयान किया। मैंने लिखा कि मानव जिंदगी का खत्म होना सबके लिए दुख की बात होती है और मैं इसका अपवाद नहीं हूं। मुझे आपके वालिद की मौत पर बहुत अफसोस है। अगर कभी मुझे मौका मिला तो मैं खुद आपके सामने आकर इस घटना पर अपना अफ़सोस प्रकट करूंगा।'
 
'माफी मैंने नहीं मांगी क्योंकि जब फाइटर पायलट अंडर ऑर्डर होता है तो दो सूरतें होती हैं। अगर वो मिस करता है तो कोर्ट ऑफ इनक्वाएरी होती है कि आपने क्यों मिस किया? और अगर वो जानकर नहीं मारता तो ये कोर्ट मार्शल ऑफेंस होता है कि आपने आदेश का उल्लंघन किया।' वो कहते हैं, 'मैं नहीं चाहता था कि मैं इनमें से किसी आरोप का हिस्सा बनूं।'
 
फरीदा का जवाब : उधर फरीदा सिंह को पहले ये पता ही नहीं चला कि कैस हुसैन ने उन्हें इस तरह की मेल लिखी है। उन्होंने बीबीसी को बताया, 'मुझे पता चला कि वो पायलट जिसने मेरे पिता के विमान को गिराया था, मुझे ढूंढ रहा है। मुझे ये सुनकर एक झटका सा लगा। मैं थोड़ा-सा झिझकी भी क्योंकि मैं अपने पिता की मौत के बारे में दोबारा कुछ नहीं सुनना चाहती थी।'
 
'उन दिनों मैं अपना ईमेल रोज नहीं खोलती थी। मेरे एक दोस्त ने मुझे फोन कर कहा कि आप के नाम इंडियन एक्सप्रेस में एक चिट्ठी छपी है। मैंने तुरंत अपना ईमेल खोला और उसे जवाब देने में एक मिनट की भी देरी नहीं की। उसके पीछे सबसे बड़ा कारण ये था कि उनके खत में कोई लाग लपेट नहीं था और वो दिल से लिखा गया था।'
 
वो बताती हैं, 'उन्हें उस बात के लिए काफी दुख था। उन्होंने लिखा कि मैं ऐसा नहीं करना चाहता था। ये अपने आप में बहुत बड़ी बात थी। वो व्यक्तिगत रूप से मेरे पिता के खिलाफ नहीं थे। ये लड़ाई थी।'
 
कैस कहते हैं, 'उनका बहुत ही अच्छा ईमेल था। मैंने तो सिर्फ़ एक कदम आगे बढ़ाया था लेकिन उन्होंने कई कदम आगे बढ़ाए..'
 
'लड़ाई में हम सब प्यादे हैं' : फरीदा कहती हैं कि मुझे इस बात पर आश्चर्य है कि कैस ने 46 साल बाद ऐसा क्यों किया, 'लेकिन एक चीज मेरे जहन में आई कि अगर दो देशों के बीच दुश्मनी है तो कोई तो उस पर मलहम लगाए। उन्होंने पहल की।'
 
'मैं कोई ऐसी चीज़ नहीं लिखना चाहती थी जो उन्हें बुरी लगे...मैंने एक मिनट के लिए भी नहीं सोचा कि ये पायलट की गलती है। वो एक लड़ाई लड़ रहे थे। बड़े अच्छे लोगों को भी लड़ाई में वो चीजें करनी पड़ती हैं जो उन्हें पसंद नहीं होती है।'
 
'मैंने उन्हें लिखा कि लड़ाई के खेल में हम सब लोग प्यादे होते हैं... मैंने उन्हें लिखा कि इसके बाद मैं उम्मीद करती हूं कि आपको शांति मिलेगी।'

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