चंदन कुमार जजवाड़े, बीबीसी संवाददाता, राजगीर (बिहार) से
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार अपना गृह ज़िला है नालंदा। नालंदा के राजगीर, बोध गया और गया शहरों में बरसों बाद अब साल के 12 महीने नल का पानी लोगों को नसीब होगा।
नीतीश कुमार के 'सुशासन बाबू' के तमगे के साथ इस ख़बर को जोड़ कर देखें तो शायद आपको आश्चर्य हो। लेकिन ख़बर है 100 फ़ीसदी सच। इन इलाक़ों के लिए इसी रविवार को बिहार सरकार ने 'हर घर गंगाजल' योजना शुरू की है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार खुद इस परियोजना के उद्घाटन के लिए पूरे लाव लश्कर के साथ पहुंचे थे।
नीतीश ने दावा किया कि इस परियोजना से राजगीर, गया, बोधगया और नवादा में पानी की समस्या ख़त्म हो जाएगी। ये हाल तब है जब मई 2014 से फ़रवरी 2015 के एक छोटे से अंतराल को छोड़ दें तो बीते क़रीब 17 साल से नीतीश ही बिहार के मुख्यमंत्री रहे हैं।
जिस बिहार के लिए हर साल आने वाली बाढ़ ज़्यादा बड़ी समस्या है, वहां पानी की कमी होना भी कम हैरान नहीं करता। ख़ासकर उन इलाक़ों में जो ख़ुद मुख्यमंत्री का ही घर हो।
क्या है 'हर घर गंगाजल' योजना?
'हर घर गंगाजल' योजना के पहले चरण की शुरुआत राजगीर, गया और बोधगया से हुई है। नीतीश कुमार ने रविवार को राजगीर में, जबकि गया और बोधगया के लिए इसी सोमवार को 'जल, जीवन, हरियाली स्कीम' के तहत 'हर घर गंगाजल' योजना की शुरुआत की गई।
ये तीनों ही शहर धार्मिक लिहाज़ से भी ख़ास हैं और हर साल बड़ी संख्या में यहां हिन्दू और बौद्ध पर्यटक भी पहुंचते हैं।
सरकार की योजना अगले चरण में नवादा में 'हर घर गंगाजल योजना' शुरू करने की है।
'हर घर गंगाजल' योजना के तहत राज्य सरकार ने क़रीब 4500 करोड़ रुपये ख़र्च करने की योजना है।
अब इन इलाक़ों के हर घर में गंगा नदी का पानी पाइप के ज़रिए सप्लाई से नल तक पहुंचाया जाएगा।
इसके लिए बाढ़ के पानी को गंगा नदी से क़रीब 100 से 150 किलोलीटर दूर अलग-अलग विशाल जलाशयों में स्टोर किया जाएगा।
पानी की समस्या कितनी बड़ी
सेंट्रल ग्राउंड वाटर बोर्ड की रिपोर्ट के मुताबिक़ बिहार के कई पहाड़ी इलाक़ों (राजगीर, गया, बोध गया और नवादा) में बारिश का पानी नहीं ठहरता है। इसलिए गर्मियों में यहां की नदियां, तालाब, और बोरवेल तक सूख जाते हैं।
साल 2019-2020 से (सेंट्रल ग्राउंड वाटर बोर्ड) सीजीडब्लूबी के आंकड़ों के मुताबिक़ राजगीर में गर्मियों में भूजल स्तर 10।93 मीटर तक पहुंच जाता है, जबकि यह बारिश के बाद नवंबर के महीने में 5।02 मीटर नीचे तक होता है। गर्मियों के दौरान बाक़ी तीनों शहरों में भी भूजल स्तर स्वाभाविक तौर पर नीचे चला जाता है।
अंग्रेज़ी अख़बार इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट में दावा किया गया है कि बिहार के अलग-अलग इलाक़ों में बीते 10 साल में भू जल स्तर में 10 फ़ुट से 200 फ़ुट तक गिरावट का दावा किया गया है।
सप्लाई वाटर पहुंचाना एक चुनौती
अगस्त 2019 की नीति आयोग की एक रिपोर्ट के मुताबिक़ भारत के शहरी इलाक़े में पाइप से पानी पहुंचाना एक बड़ी चुनौती है। अगर शहरी इलाक़े में ज़मीन समतल न होकर ऊंची या नीची हो और जहां पाइप पहुंचाने के लिए इसे दूसरों की ज़मीन से गुज़ारना हो वहां यह समस्या और बड़ी हो जाती है।
इस रिपोर्ट में पहाड़ी राज्यों और दूसरे राज्य जहां मैदानी इलाक़े हैं, उनको लेकर भी रिपोर्ट दी गई है। इसमें शहरों में स्वच्छता और पानी की सप्लाई के मामले में बिहार का प्रदर्शन सबसे ख़राब बताया गया था।
सरकार का दावा है कि इस योजना से गया, बोधगया, नवादा और राजगीर के 20 लाख लोगों को फ़ायदा होगा।
अगले 30 साल तक इन शहरों की आबादी को 'हर घर गंगाजल' योजना से पानी मिलता रहेगा।
बिहार के जल संसाधन विकास सचिव संजय अग्रवाल ने बीबीसी को बताया, "हमारा मक़सद बाढ़ के दौरान चार महीने तक पानी लेकर राजगीर और तेतर रिजरवायर में रखना है। उसके बाद इस पानी को आठ महीने तक लोगों के इस्तेमाल के लिए सप्लाई वाटर के रूप में पहुंचाना है।"
वो कहते हैं, "अभी राजगीर जलाशय में तीन मीटर पानी है इसे हम नौ मीटर तक ले जाएंगे। जिसमें बाढ़ के पानी का भी सही इस्तेमाल हो जाएगा।"
उनका कहना है कि लगातार बोरिंग होने के चलते, यहां रहने से इस इलाक़े का वॉटर टेबल काफ़ी नीचे चला गया था। हमने जो जलाशय बनवाए हैं उसका क़रीब 40 फ़ीसदी पानी ज़मीन ख़ुद सोख लेगी। इससे ज़मीन में पानी का स्तर भी बेहतर होगा।
इस परियोजना पर हमने बिहार बीजेपी के अध्यक्ष संजय जायसवाल से भी बात की। उनका कहना है, "घर-घर पानी पहुंचे ये बहुत अच्छी बात है। लेकिन सवाल उठता है कि हर काम, हर योजना नीतीश कुमार जी के ज़िले में ही क्यों? मुख्यमंत्री किसी एक ज़िला का तो नहीं होता वो तो पूरे राज्य का होता है। फिर हर काम वहां क्यों हो रहा है। वैसे भी नालंदा, राजगीर में पानी की कोई कमी नहीं है। गया में ज़रूर गर्मियों में पानी की थोड़ी दिक्कत होती है।"
हमने गया के हालात जानने के लिए वहां सिंचाई विभाग के एक अधिकारी से बात की। उन्होंने बताया कि साल के ज़्यादातर मौसम में फल्गू नदी के पास बोरवेल से घरों में पानी सप्लाई हो जाती है। लेकिन गर्मियों में यहां काफ़ी परेशानी होती है।
वहीं राजगीर की बात करें तो यहां भी गर्मियों में कई ऐतिहासिक कुंड के सूखने की ख़बरें बहुत सामान्य हैं।
ज़मीनी हक़ीकत
सरकार के दावों की हक़ीकत जानने के लिए हम पिछले सप्ताह ही राजगीर पहुंचें। यहां हल्के ठंड की शुरुआत हो चुकी है। यहां हमें एक बुज़ुर्ग सत्येंद्र सिंह मिले। सत्येंद्र सिंह हमें राजगीर बाज़ार के पास ही एक कुएं की तरफ ले गए। यह कुआं पूरी तरह से सूख चुका था और एक तरह का कूड़ाघर बन गया था।
सत्येंद्र सिंह ने हमें बताया कि पूरे राजगीर की यही हालत है, यहां कुएं सूख चुके हैं। जिनके पास पैसे हैं उनलोगों ने बोरिंग कराई है और इसी से यहां पानी की ज़रूरत पूरी की जाती है।
सत्येंद्र सिंह का कहना है, "राजगीर में पानी की ऐसी ही समस्या कई साल से बनी हुई है। लोग पीने का पानी दो-तीन किलोमीटर दूर राजगीर कुंड से लेकर आते हैं। जो ख़र्च कर सकते हैं वो हर रोज़ जार का पानी मंगाकर पीते हैं।"
इसी कुएं के पास पानी की एक बड़ी टंकी भी नज़र आई। इसके ठीक सामने वाले घर में आज काफ़ी हलचल है। दरअसल 'हर घर गंगाजल' योजना का पहला नल इसी घर में लगा है।
यहां मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के आने का इंतज़ार किया जा रहा है। सरकारी अधिकारी इसकी व्यवस्था करने में लगे हैं। सुरक्षाकर्मी हर जगह की सुरक्षा जांच में लगे हैं। घर के लोगों को मुख्यमंत्री के आने के बाद के कार्यक्रम की जानकारी दी जा रही है।
इस घर में बाहर की तरफ पानी के दो कनेक्शन दिए गए हैं, जिनपर पीतल के नए नल लगाए गए हैं। हमने इस घर की बबीता देवी से बात की।
बबीता देवी ने बीबीसी को बताया, "हम लोगों ने पानी की बहुत परेशानी देखी है। यह पहाड़ी इलाक़ा है, हमने कभी सोचा भी नहीं था कि कभी हमारे घर पानी आएगा। हमारा कुआं सूख गया था। हमारे घर में बोरिंग नहीं था तो हम दूसरे के घर से पानी लाते थे।"
बबीता देवी कहती हैं, "पड़ोसियों को भी पता था कि पानी के बगैर काम नहीं चल सकता तो वो पानी दे देते थे। अब हमारे घर में दो नल लग गए हैं। बहुत खुशी होती है कि जिस गंगाजल को बोतल और डब्बे में लाने के लिए लोग दूर-दूर तक जाते थे वो अब घर पर आ गया है।"
वहीं नौकरी के सिलसिले में रोहतास से आकर राजगीर में रहने वाले अंजनी कुमार का कहना है, "पानी की कोई ख़ास समस्या हमें नहीं रही है क्योंकि हमारे घर में बोरिंग है। जिनके पास बोरिंग नहीं है वो पास के कुंड से पानी ले आते थे।"
बोरवेल के पानी के भरोसे राजगीर
पड़ोस की ही ममता शुक्ला बताती हैं कि मुहल्ले के सारे कुएं सूख गए थे तो लोगों को सबमर्सिबल बोरिंग कराना पड़ा था। पूरा राजगीर पानी का भीषण संकट झेल रहा था।
राजगीर के ही बंगाली टोले में हमें एक बंद पड़ा हैंड पंप दिखा। समय के साथ पानी का स्तर नीचे चले जाने से यह हैंड पंप बेकार हो चुका है। यहां गली में हमें कई महिलाएं दिखीं,हमने उनसे भी बात की।
यहां रहने वाली प्रिया ने बताया कि दस साल पहले सप्लाई का पानी आता था, फिर वो बंद हो गया तो लोगों ने बोरिंग कराना शुरू कर दिया। इससे पानी की समस्या बहुत हद तक ख़त्म हो गयी थी। लेकिन गर्मियों में फिर परेशानी शुरू होने लगी। ख़ासकर पिछले दो-तीन साल में यह ज़्यादा बढ़ गया था। लोगो दूर-दूर से पीने का पानी लाते थे।
यहीं की शर्मिला कुमारी कहती हैं, लाइट चले जाने से बोरिंग का पानी भी नहीं ले सकते थे। अब अच्छा लग रहा है कि हर घर पानी आएगा।
बंगाली टोले की कुछ महिलाएं हमें दूर से बता रही थीं कि उनके घरों तक अभी भी पानी नहीं आया है, हालांकि कैमरे को देखते ही वो वापस अपने घरों में चली गईं।
हमें वहीं पास में सप्लाई पाइप को ठीक करते कुछ लोग दिखे। उन लोगों ने बताया कि अभी पाइप का काम चल रहा है और सभी घरों में पाना आ जाएगा।
हर साल आने वाली बाढ़ पर क्या होगा असर
सरकार का दावा है कि यह देश की ऐसी पहली योजना है जिसमें बाढ़ के पानी का इस तरह से इस्तेमाल होगा। इस योजना में बिहार में ही हाथीदह के पास के गंगा के बाढ़ का पानी बारिश के मौसम में पंप से खींचकर राजगीर और तेतर के रिजरवायर में स्टोर किया जाएगा।
चार शहरों के लिए बनी यह योजना क़रीब साढ़े चार हज़ार करोड़ की है। लेकिन क्या इससे हर साल बिहार में आने वाली बाढ़ पर भी असर पड़ेगा?
बीजेपी के संजय जायसवाल कहते हैं, "पानी की कमी बिहार की समस्या नहीं है, यहां की समस्या बाढ़ है। लेकिन 5000 करोड़ ख़र्च करने के बाद भी नीतीश कुमार ये नहीं बता सकते कि किस इलाक़े की पचास एकड़ भी ज़मीन को बाढ़ मुक्त किया हो।"
सरकार भी मानती है कि हर घर गंगाजल योजना से बारिश के बाद आने वाली बाढ़ ख़त्म हो जाएगी ऐसा नहीं है।
बिहार से जल संसाधन विकास विभाग के सचिव संजय अग्रवाल का दावा है कि गंगा अथाह है। एक प्रोजेक्ट से बाढ़ ख़त्म हो जाएगा ऐसा नहीं हो सकता, लेकिन उसपर असर पड़ेगा। आगे इस योजना का और विस्तार किया जाएगा। बिहार सरकार लगातार इस तरह की योजना पर काम कर रही है।