साहेर के इज़राइल अंसारी की अपने गांव में बड़ी इज्ज़त है। वे अपनी पंचायत के चलते-फिरते बैंक हैं। इनके झोले में एक मशीन है। बैंकिग की भाषा में इसे माइक्रो-एटीएम कहते हैं। इसके ज़रिए वे 12 गांवों के क़रीब दस हज़ार लोगों को उनके दरवाज़े पर ही बैंकिंग की सुविधा उपलब्ध कराते हैं।
नोटबंदी के बाद इनकी अहमियत और बढ़ गई है। लोग इन्हें बैंक वाले भैया कहते हैं। नोटबंदी के बाद इनका काम चार गुना बढ़ गया है। आम दिनों में 6-7 हजार का ट्रांज़ैक्शन कराने वाले इजराइल अंसारी इन दिनों 25-30 हजार का ट्रांज़ैक्शन करा रहे हैं।
वह बताते हैं, "यह काम हमारे लिए समाज सेवा का ज़रिया है। इससे घर नहीं चलता। इज्ज़त ज़रूर मिलती है। मैं साल-2011 से इस काम में लगा हूं। मेरे काम को देखने एक राष्ट्रीयकृत बैंक की चेयरमेन भी साहेर आ चुकी हैं। यह मेरे लिए गर्व की बात है।" इज़राइल अंसारी ने बताया कि वे रोज़ सुबह पैदल ही अपने गांव का चक्कर लगाते हैं। अलबत्ता, दूसरे गांवों में जाने के लिए साइकिल या बाइक का सहारा लेना होता है।
इनके माध्यम से लोग पैसा जमा करने, निकालने, खाता खोलने और अकाउंट से अकाउंट फंड ट्रांसफ़र करने की सुविधा ले सकते हैं। साहेर में इनके साथ मैंने आधा दिन बिताया। इस दौरान हम हीरा देवी के घर पहुंचे। उन्हें पैसों की ज़रूरत थी। तो उन्होंने इज़राइल अंसारी को घर बुलवाया था।
वहां अपने झोले से इन्होंने वह मशीन निकाली। आधार कार्ड देखा। अंगूठे का डिजिटल निशान लिया। इसके साथ ही मशीन से प्रिंटेड पर्ची निकली। मैं अब हीरा देवी से रूबरू था। उन्होंने बताया कि बैंक मित्र होने से बैंकिंग आसान हो चुकी है। उन्हें 8 किलोमीटर दूर स्थित बैंक की शाखा में नहीं जाना पड़ता। वह लाइन भी नहीं झेलनी पड़ती, जो नोटबंदी के बाद लगने लगी है।
उन्होंने बताया कि नोटबंदी के बाद के 15 दिन काफ़ी कष्टप्रद थे। क्योंकि, तब इज़राइल अंसारी भी इनकी मदद नहीं कर पा रहे थे। इसी दौरान इज़राइल अंसारी ने साहेर के मतीन अंसारी और एरचोड़ो गांव के नसीम अंसारी की भी बैंकिंग कराई। दोनों ने 2-2 हज़ार की निकासी की। क्या आपके पास सिर्फ 2000 रुपये के नोट हैं। उन्होंने बताया कि अब 100 रुपये और 500 रुपये के भी नोट आ गए हैं। इज़राइल अंसारी बैंक आफ इंडिया की नगड़ी शाखा से संबद्ध हैं।
ब्रांच के मुख्य प्रबंधक वीरसेन बोयपायी ने बताया, "बैंक मित्र के माध्यम से 2500 रुपये तक की निकासी और दस हज़ार रुपये जमा कराये जा सकते हैं। नोटबंदी के बाद बिज़नेस कारस्पोंडेंट का काम बढ़ गया है। यूं कहें इनकी अहमियत बढ़ गई है।" झारखंड की 4000 से भी अधिक पंचायतों में से अधिकतर में ऐसे बैंक मित्र काम कर रहे हैं। इन्हें कमीशन के बतौर कुल ट्रांजैक्शन का 0.3 प्रतिशत कमीशन के तौर पर मिलता है।