दिल्ली हिंसा: शर्मा जी और सैफ़ी साब ने मिल कर विजय पार्क को कैसे बचाया? - ग्राउंड रिपोर्ट

शुक्रवार, 28 फ़रवरी 2020 (08:31 IST)
फ़ैसल मोहम्मद अली, बीबीसी संवाददाता
रविवार की उस दोपहर मनोज शर्मा और जमालउद्दीन साथ ही बैठे थे जब अचानक विजय पार्क आने वाली मुख्य सड़क से आई हिंसक भीड़ ने पत्थरबाज़ी शुरू कर दी। भीड़ ने दुकानों पर भी हमले करना शुरू कर दिया।
 
शर्मा और सैफ़ी के पास भागने के अलावा कोई विकल्प नहीं था। लेकिन, कुछ ही देर बाद वो आसपास रहने वाले लोगों को एकजुट करके लौटे और हिंसक भीड़ को वापस दौड़ा दिया। इसी बीच पुलिस की कुछ गाड़ियां भी वहां पहुंच गईं।
 
भीड़ ने जो किया, उसके निशान अब भी मुख्य सड़क पर साफ़ देखे जा सकते हैं। टूटी हुई खिड़कियां, जली हुई मोटरसाइकिलें और गाड़ियां।
जब हम इस इलाक़े में पहुंचे, तो सफ़ाईकर्मी यहां से मलबा हटा रहे थे।
 
स्थानीय निवासी अब्दुल हमीद आरोप लगाते हैं कि पुलिस ने नारेबाज़ी कर रही भीड़ को उकसाया था और ये भीड़ लाठी-डंडों से लैस थी।
 
स्थानीय लोगों का ये भी दावा है कि यहां गोलियां चलीं थीं, जिनमें एक व्यक्ति की जान चली गई। मारे गए व्यक्ति का नाम मुबारक़ है, जो बिहार के रहने वाले हैं। सुरेंद्र रावत नाम के एक व्यक्ति गंभीर रूप से घायल हैं और फिलहाल अस्पताल में उनका इलाज चल रहा है।
 
दंगाइयों ने तोड़ दिया सैफ़ी का घर
जमालउद्दीन सैफ़ी कहते हैं कि उस दिन हिंसक भीड़ इलाक़े के भीतर नहीं घुस पाई, लेकिन अगले दिन एक बार फिर कोशिश की गई। वो कहते हैं कि इस बार स्थानीय निवासी और वो पहले से बेहतर तैयार थे, "मुख्य सड़क बंद कर दी गई थी और समुदाय के लोग बाहर एक साथ बैठे थे।" जमालउद्दीन सैफ़ी के अपने घर को दंगाइयों ने तोड़ दिया है।
 
विजय पार्क मौजपुर इलाक़े में ही है, जो दिल्ली में हुई हिंसा से सबसे ज़्यादा प्रभावित इलाक़ों में शामिल है। इस जगह के सबसे नज़दीक मौजपुर-बाबरपुर मेट्रो स्टेशन के अलावा आसपास के चार और मेट्रो स्टेशनों को सुरक्षा कारणों के मद्देनज़र बंद कर दिया गया था। हालांकि, बाक़ी इलाक़ों में मेट्रो रेल सेवाएं सामान्य रहीं। उत्तरपूर्वी दिल्ली के इन सभी मेट्रो स्टेशनों को बुधवार को फिर से खोल दिया गया।
 
विजय पार्क ऐसा इलाक़ा है, जहां हिंदुओं और मुसलमानों के घर आसपास हैं। जिस तरह भारत के हज़ारों अन्य शहरों में अलग-अलग धर्मों के धर्मस्थल आसपास होते हैं, यहां भी मंदिर और मस्जिद के बीच बस दो गलियों का फासला है। यहां यदि दंगा फैलता, तो उसके परिणाम गंभीर हो सकते थे।
 
पवन कुमार शर्मा मंदिर समिति के ट्रस्टी और रिटायर पुलिस अधिकारी हैं। शर्मा बताते हैं कि हिंदु और और मुसलमान समुदाय के लोगों ने मिल कर एक समिति बनाई गई। इस समिति में बीस लोग थे, ये लोग घर-घर गए और लोगों को बताया कि किसी भी अफ़वाह पर यक़ीन न करें और अपने बच्चों को घर से बाहर निकलने न दें।
 
सोमवार को दंगाइयों के दोबारा इलाक़े में घुसने की कोशिश के बाद मंगलवार को इस इलाक़े में एक शांति मार्च भी निकाला गया था जिसमें अलग-अलग समुदाय के लोग शामिल हुए।
 
रातभर गलियों के बाहर पहरा
ज़ुल्फ़िकार अहमद शांति समिति के सदस्य हैं। वो कहते हैं, "इलाक़े के लोग रातभर गलियों के बाहर पहरे पर बैठे रहे। जहां हिंदू ज़्यादा हैं, वहां हिंदुओं से पहरा देने के लिए कहा गया और जहां मुसलमान ज़्यादा हैं, वहां मुसलमानों से पहरा देने के लिए कहा गया।"
 
वहीं रिटायर सरकारी कर्मचारी और इलाक़े की गतिविधियों में सक्रिय धरम पाल कहते हैं कि "अब यहां पुलिस नहीं आएगी, तब भी कुछ नहीं होगा।"
 
हिंसा के कुछ दिन बीत जाने के बाद विजय नगर की गलियों में ज़िंदगी अब सामान्य नज़र आती है। गलियों में सब्ज़ी बेचने वाला एक हिंदू व्यक्ति दो दिन के अंतराल के बाद लौट आए हैं। जहां ये व्यक्ति रहते हैं, वहां दंगा हुआ है।
 
इलाक़े के पास मौजूद बिरयानी की एक दुकान भी किसी सामान्य दिन की तरह ही खुली है। तंदूर में सिकती रोटियों की ख़ुशबू हवा में घुली हुई है। लेकिन, लोग कहीं से आई गोली से मारे गए मुबारक और गंभीर रूप से घायल हुए सुरेंद्र रावत के बारे में बात करते हुए गमज़दा हो जाते हैं।
 

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