EVM: कैसा है पोलिंग बूथ से स्ट्रॉन्ग रूम तक का चक्रव्यूह

Webdunia
बुधवार, 22 मई 2019 (13:59 IST)
- टीम बीबीसी हिन्दी (नई दिल्ली)
 
मतगणना से पहले ईवीएम यानी इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन को लेकर विपक्षी पार्टियों में अविश्वास का माहौल और बढ़ गया है। मंगवार को 22 विपक्षी पार्टियों ने चुनाव आयोग से संपर्क कर ईवीएम को लेकर अपनी आपत्ति दर्ज कराई थी।
 
 
हालांकि चुनाव आयोग ने विपक्षी पार्टियों के आरोपों को सिरे से ख़ारिज कर दिया। क्या मतदान केंद्र से स्ट्रॉन्ग रूम तक की यात्रा में वाक़ई ईवीएम की सुरक्षा चिंताजनक होती है? क्या चुनाव आयोग के चक्रव्यू को भेदना इतना आसान है? जानिए ईवीएम की सुरक्षा में चूक चुनाव आयोग की हो रही है प्रत्याशियों की सतर्कता में कमी है?
 
स्ट्रॉन्ग रूम कितना स्ट्रॉन्ग
स्ट्रॉन्ग रूम का मतलब है कि वैसा कमरा जहां की सुरक्षा अचूक है और अनाधिकारिक लोगों की पहुंच असंभव है। भारतीय चुनाव में स्ट्रॉन्ग रूम का मतलब निष्पक्ष और पारदर्शी मतदान और वोटों की गिनती से है।
 
मतदान के बाद ईवीएम स्ट्रॉन्ग रूम में रखी जाती है और इनकी सुरक्षा के लिए चुनाव आयोग पूरी तरह से चाक-चौबंद रहता है। देश भर की स्ट्रॉन्ग रूम में ईवीएम की सुरक्षा चुनाव आयोग तीन स्तरों पर करता है। इसकी सुरक्षा के लिए केंद्रीय अर्द्ध सैनिक बलों की तैनाती रहती है। केंद्रीय बल स्ट्रॉन्ग रूम के भीतर की सुरक्षा देखते हैं जबकि बाहर की सुरक्षा राज्य पुलिस बलों के हाथों में होती है।
 
निगरानी कितनी कड़ी?
स्ट्रॉन्ग रूम की सुरक्षा की निगरानी ज़िले के डीएम और एसपी के हाथों में होती है। स्ट्रॉन्ग रूम की सीलिंग के वक़्त राजनीतिक पार्टियों के प्रतिनिधि मौजूद रहते हैं। इन प्रतिनिधियों को भी अपनी तरफ़ से सील लगाने का प्रावधान होता है।
 
स्ट्रॉन्ग रूम में केवल एक तरफ़ से एंट्री होनी चाहिए और इसमें डबल लॉक सिस्टम होता है। एक चाबी रिटर्निंग ऑफिसर के पास होती है और दूसरी चाबी संबंधित लोकसभा क्षेत्र के असिस्टेंट रिटर्निंग ऑफिसर के पास होती है। अगर किसी स्ट्रॉन्ग रूम कोई दूसरी एंट्री है, वो चाहे खिड़की ही क्यों न हो तो इसे सुनिश्चित करना होता है कि इससे किसी की पहुंच स्ट्रॉन्ग रूम तक ना हो।
 
कैमरे का पहरा
स्ट्रॉन्ग रूम के एंट्री पॉइंट पर सीसीटीवी कैमरा होता है। सुरक्षा बलों के पास एक लॉग बुक होती है जिसमें हर एंट्री का टाइम, तारीख़, अवधि और नाम का उल्लेख अनिवार्य रूप से करना होता है। वो चाहें पर्यवेक्षक, एसपी, राजनीतिक पार्टी, प्रत्याशी, एजेंट या कोई अन्य व्यक्ति हो। अगर काउंटिंग हॉल स्ट्रॉन्ग रूम के पास है तो दोनों के बीच एक मज़बूत घेरा होता है ताकि स्ट्रॉन्ग रूम तक कोई चाहकर भी पहुंच न सके।
 
इन सारे मानकों का पालन हर हाल में करना होता है तभी चीज़ें आगे बढ़ती हैं। अगर काउंटिंग हॉल और स्ट्रॉन्ग रूम के बीच ज़्यादा दूरी है तो दोनों के बीच बैरकेडिंग होनी चाहिए और इसी के बीच से ईवीएम काउंटिंग हॉल तक पहुंचनी चाहिए।
 
वोटों की गिनती के दिन अतिरिक्त सीसीटीवी कैमरे लगाए जा सकते हैं। स्ट्रॉन्ग रूम से काउंटिंग हॉल तक ईवीएम ले जाने को रिकॉर्ड किया जाएगा ताकि कोई फेरबदल ना हो। स्ट्रॉन्ग रूम और काउंटिंग हॉल की लोकेशन को लेकर भी कई मानक हैं।
 
बेसमेंट, उसके पास कोई छत, किचन या कैंटीन, पानी टंकी और पंप रूम नहीं होने चाहिए। इसके अलावा सभी प्रत्याशियों को लिखित में सूचित किया जाता है कि वो अपने प्रतिनिधि को भेजकर सुनिश्चित हो जाएं कि स्ट्रॉन्ग रूम सुरक्षित है।
 
चुनाव के पहले ईवीएम कहां होती है?
एक ज़िले में उपलब्ध सभी ईवीएम डिस्ट्रिक्ट इलेक्टोरल ऑफिसर (डीईओ) की निगरानी में गोदाम में रखी होती है। गोदाम में डबल लॉक सिस्टम काम करता है। गोदाम की सुरक्षा में पुलिस बल हमेशा तैनात रहते हैं। इसके साथ ही सीसीटीवी सर्विलांस भी रहता है।
 
चुनाव से पहले गोदाम से एक भी ईवीएम चुनाव आयोग के आदेश के बिना बाहर नहीं जा सकती है। चुनाव के वक़्त ईवीएम की जांच पहले इंजीनियर करते हैं और यह जांच राजनीतिक पार्टियों के प्रतिनिधियों की मौजूदगी में होती है।
 
चुनाव की तारीख़ क़रीब आने के बाद ईवीएम बिना कोई क्रम के आवंटित की जाती है। इस वक़्त अगर राजनीतिक पार्टी के प्रतिनिधि मौजूद नहीं होते हैं तो आवंटित ईवीएम और वीवीपीएटी की लिस्ट राजनीतिक पार्टियों के कार्यालयों को सौंप दी जाती है। इसके बाद रिटर्निंग ऑफिसर की ज़िम्मेदारी स्टोर रूम और चिह्नित स्ट्रॉन्ग रूम की होती है।
 
अलग-अलग मतदान केंद्रों पर ईवीएम का आवंटन पार्टी प्रतिनिधियों की मौजूदगी में होती है। सारी ईवीएम मशीनों के सीरियल नंबर को पार्टियों से साझा किया जाता है। मतदान शुरू होने से पहले ईवीएम के नंबर का मिलान राजनीतिक पार्टियों के एजेंटों की मौजूदगी में की जाती है।
 
जब सारी मशीनें बैलट और कैंडिडेट्स के नामों और चुनाव चिह्नों से लैस हो जाती हैं तो स्ट्रॉन्ग रूम को पार्टी प्रतिनिधियों की मौजूदगी में सील कर दिया जाता है। एक बार स्ट्रॉन्ग रूम बंद होने के बाद तभी खुलता है जब मतदान केंद्रों पर ईवीएम पहुंचाई जाती है।
 
जब ईवीएम मतदान केंद्र के लिए रवाना की जाती है तो सभी राजनीतिक पार्टियों को सूचित किया जाता है। उनके साथ टाइम और तारीख़ को साझा किया जाता है। कुछ अतिरिक्त ईवीएम भी रखी जाती है ताकि कोई तकनीकी ख़राबी आने की सूरत में मशीन बदली जा सके।
 
मतदान केंद्र से स्ट्रॉन्ग रूम ईवीएम कैसे पहुंचती है?
मतदान ख़त्म होते ही मतदान केंद्र से तत्काल ईवीएम स्ट्रॉन्ग रूम नहीं भेजी जाती है। प्रीज़ाइडिंग ऑफिसर ईवीएम में वोटों के रिकॉर्ड का परीक्षण करता है। सभी प्रत्याशियों के पोलिंग एजेंट को एक सत्यापित कॉपी दी जाती है। इसके बाद ईवीएम को सील कर दिया जाता है। प्रत्याशियों या उनके पोलिंग एजेंट सील होने के बाद अपना हस्ताक्षर करते हैं। प्रत्याशी या उनके प्रतिनिधि मतदान केंद्र से स्ट्रॉन्ग रूम ईवीएम के साथ जाते हैं।
 
अतिरिक्त ईवीएम भी इस्तेमाल की गई ईवीएम के साथ ही स्ट्रॉन्ग रूम तक आने चाहिए। जब सारी ईवीएम आ जाती है तो स्ट्रॉन्ग रूम सील कर दी जाती है। यहां प्रत्याशियों के प्रतिनिधि को अपनी तरफ़ से भी सील लगाने की अनुमति होती है।
 
इसके साथ ही प्रत्याशियों को स्ट्रॉन्ग रूम की देखरेख की अनुमति होती है। एक बार स्ट्रॉन्ग रूम सील होने के बाद गिनती के दिन की सुबह ही खोला जाता है। अगर विशेष परिस्थिति में स्ट्रॉन्ग रूम खोला जा रहा है तो यह प्रत्याशियों की मौजूदगी में ही संभव हो पाएगा।

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