अमेरिकी चुनाव: पांच वजहें जो डोनाल्ड ट्रंप को फिर बना सकती हैं राष्ट्रपति

BBC Hindi

मंगलवार, 20 अक्टूबर 2020 (13:02 IST)
एंथनी जर्चर (नॉर्थ अमेरिका रिपोर्टर, बीबीसी)
 
हाल के जनमत सर्वेक्षणों से पता चलता है कि डेमोक्रेटिक पार्टी के उम्मीदवार जो बिडेन इस साल राष्ट्रपति पद की दौड़ में रिपब्लिकन डोनाल्ड ट्रंप पर महत्वपूर्ण और नियमित बढ़त बनाए हुए हैं। उन्हें न सिर्फ़ राष्ट्रीय स्तर पर, बल्कि कड़ी टक्कर वाले राज्यों में भी बढ़त मिलती दिख रही है।
 
रिकॉर्डतोड़ चुनावी फ़ंड इकट्ठा करने के कारण डेमोक्रेटिक पार्टी को एक बड़ा वित्तीय फ़ायदा भी है। इसका मतलब ये भी है कि वे आख़िरी दौर में अपने चुनावी संदेशों के साथ मीडिया में छाए रहेंगे। चुनावी विश्लेषकों को लगता है कि शायद ट्रंप ये चुनाव हार जाएं। नेट सिल्वर के Fivethirtyeight.com ब्लॉग के मुताबिक़ बिडेन के जीतने की संभावना 87 प्रतिशत है, जबकि डिसिजन डेस्क एचक्यू का मानना है कि बिडेन के जीतने की संभावना 83.5 प्रतिशत है।
 
हालांकि, पिछले राष्ट्रपति चुनावों में भी हिलेरी क्लिंटन की जीत को लेकर इसी तरह की ही भविष्यवाणियां की गई थीं, लेकिन नतीजे जो आए वो सबके सामने हैं। ऐसे में क्या डोनाल्ड ट्रंप चुनावी सर्वेक्षणों को एक बार फिर ग़लत साबित कर पाएंगे? क्या उनकी जीत के साथ ही इतिहास ख़ुद को दोहरा सकता है? ऐसे 5 कारण ज़रूर हैं, जो ये संकेत देते हैं कि डोनाल्ड ट्रंप फिर से राष्ट्रपति पद की शपथ ले सकते हैं।
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पिछले अक्टूबर का विवाद
 
2016 में राष्ट्रपति चुनाव से 11 दिन पहले तत्कालीन एफ़बीआई प्रमुख जेम्स कोमी ने हिलेरी क्लिंटन के ख़िलाफ़ फिर से जांच शुरू करने की बात कही थी। मामला था विदेश मंत्री रहते हिलेरी क्लिंटन का निजी ईमेल सर्वर का इस्तेमाल करना। इसके बाद क़रीब एक हफ़्ते तक ये मामला सुर्ख़ियों में बना रहा जिससे डोनाल्ड ट्रंप के चुनावी अभियान में जैसे जान आ गई।
 
साल 2020 में भी चुनावों से क़रीब 2 हफ़्ते पहले इसी स्तर की कोई राजनीतिक घटना डोनाल्ड ट्रंप को जीत के रास्ते पर ले जा सकती है। लेकिन, अभी तक तो ये महीना डोनाल्ड ट्रंप के लिए बुरी ख़बरें ही लेकर आया है। जैसे उनके टैक्स रिटर्न्स का सामने आना और कोविड-19 के कारण उनका अस्पताल में भर्ती होना।
 
न्यूयॉर्क पोस्ट ने एक लेख में एक रहस्यमय लैपटॉप और एक ईमेल का ज़िक्र किया था, जो शायद बिडेन को उनके बेटे हंटर को यूक्रेन की एक गैस कंपनी के लिए लॉबी करने की कोशिशों से जोड़ सकता है। कंज़र्वेटिव्स ने इसे बड़ा मुद्दा बनाने की कोशिश की, लेकिन इस आरोप के संदिग्ध होने और इसमें स्पष्टता ना होने के चलते मतदाताओं पर इसका बहुत कम असर पड़ने की संभावना है। डोनाल्ड ट्रंप ने वादा किया था कि और भी बहुत कुछ सामने आने वाला है। अगर यह सिर्फ़ एक शुरुआत है तो उपराष्ट्रपति रहते बिडेन पर गड़बड़ी करने का आरोप लगाना और उसके पुख़्ता प्रमाण लाना एक बड़ी बात हो सकती है।
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सर्वे हो सकते हैं ग़लत
 
जो बिडेन को डेमोक्रेटिक पार्टी से राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार चुने जाने के बाद से चुनावी सर्वे उन्हें ट्रंप से आगे दिखा रहे हैं। यहां तक कि कड़ी टक्कर वाले राज्यों में भी बिडेन ने लगातार बढ़त दिखाई है। लेकिन, 2016 के चुनावों को देखें तो राष्ट्रीय स्तर की बढ़त बेमतलब हो गई थी और राज्य स्तरीय सर्वे भी ग़लत साबित हुए थे।
 
राष्ट्रपति चुनाव में मतदाता कौन होंगे, इसका अनुमान लगाना एक चुनौती होता है। पिछली बार कुछ चुनावी सर्वे यही अनुमान लगाने में असफल साबित हुए। डोनाल्ड ट्रंप को बिना कॉलेज डिग्री वाले गोरे अमेरिकीकियों ने बढ़-चढ़कर वोट किया था जिसका अंदाज़ा नहीं लगाया गया था।
 
हालांकि, इस बार न्यूयॉर्क टाइम्स ने अनुमान लगाया है कि बिडेन का मौजूदा मार्जिन उन्हें 2016 जैसी स्थिति से बचाएगा। लेकिन, 2020 में सर्वे करने वालों के सामने कुछ नई बाधाएं हैं। जैसे कि कई अमेरिकी पहली बार मेल के ज़रिए वोट करने के बारे में सोच रहे हैं। लेकिन, रिपब्लिकन पार्टी के नेता पहले से ही मेल से होने वाली वोटिंग पर सवाल उठाने लगे हैं। उन्होंने इसमें धोखाधड़ी होने की आशंका जताई है। हालांकि, डेमोक्रेट्स ने इसे मतदाताओं का दमन करने की कोशिश बताया है।
 
अगर मतदाता अपने फ़ॉर्म ग़लत भर देते हैं या प्रक्रिया का पूरी तरह पालन नहीं करते हैं या मेल की डिलिवरी में देरी या रुकावट हो जाती है तो इससे वैध वोट भी ख़ारिज हो सकते हैं। वहीं, मतदान केंद्र कम होने और स्टाफ़ कम होने से मतदान करना मुश्किल हो सकता है। ऐसे में संभव है कि कई लोग जिन्हें चुनावी सर्वे में संभावित मतदाता मान जा रहा है, वो मतदान करने में रुचि न दिखाएं।
 
बहस के बाद की छवि
 
क़रीब 2 हफ़्ते पहले डोनाल्ड ट्रंप और जो बिडेन के बीच हुई डिबेट के बाद डोनाल्ड ट्रंप के लिए स्थितियां नकारत्मक हुई हैं। चुनावी सर्वे बताते हैं कि ट्रंप का आक्रामक और दखलअंदाज़ी भरा तरीक़ा उपनगरीय इलाक़ों में रहने वाली महिलाओं को पसंद नहीं आया। इन क्षेत्रों की महिलाओं के वोट चुनाव में महत्वपूर्ण माने जा रहे हैं। इस दौरान, बिडेन ने अपनी ज़्यादा उम्र को लेकर आशंकाओं को ख़ारिज करने की कोशिश की है।
 
डोनाल्ड ट्रंप ने पहली डिबेट के बाद बनी छवि को बदलने का एक मौक़ा भी खो दिया। उन्होंने दूसरी डिबेट से इनकार कर दिया था, क्योंकि वो आमने-सामने नहीं, बल्कि वर्चुअल तरीक़े से हो रही थी। अब उनके पास आने वाले गुरुवार को एक और मौक़ा आने वाला है। अगर डोनाल्ड ट्रंप इस बार शांत दिखते हैं, राष्ट्रपति के अनुरूप व्यवहार करते हैं और बिडेन कोई ग़लती कर बैठते हैं तो ट्रंप का पलड़ा भारी हो सकता है।
 
महत्वपूर्ण राज्यों में स्थिति
 
भले ही चुनावी सर्वे बिडेन को आगे दिखा रहे हैं, लेकिन कई ऐसे राज्य हैं जिनमें डोनाल्ड ट्रंप बढ़त बना सकते हैं। ऐसे में इलेक्टोरल कॉलेज उनके पक्ष में काम कर सकता है। पिछली बार डोनाल्ड ट्रंप पॉपुलर वोटों में पिछड़ गए थे, लेकिन इलेक्टोरल कॉलेज में उन्होंने जीत हासिल कर ली।
 
दरअसल, जब अमेरिकी लोग राष्ट्रपति चुनावों में वोट देने जाते हैं तो वे वास्तव में अधिकारियों के एक समूह को वोट देते हैं, जो इलेक्टोरल कॉलेज बनाते हैं। ये लोग इलेक्टर्स होते हैं और इनका काम राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति को चुनना होता है। हर राज्य से इलेक्टर्स की संख्या मोटे तौर पर उस राज्य की आबादी के अनुपात में होती है।
 
डोनाल्ड ट्रंप को मिशिगन और विस्कॉन्सिन जैसे राज्यों में जीत मिली थी। इस बार ये राज्य पहुंच से बाहर दिख रहे हैं। अगर ट्रंप बाक़ी जगहों पर पहुंच बना लेते हैं, पेंसिल्वेनिया और फ़्लोरिडा जैसी जगहों पर ज़्यादा गोरे नॉन-कॉलेज वोटर्स उनके पक्ष में मतदान कर देते हैं तो ट्रंप इस बार भी जीत हासिल कर सकते हैं। ऐसी भी संभावनाएं बन रही हैं जिनमें ट्रंप और बिडेन दोनों को 269 इलेक्टोरल कॉलेज के वोट्स मिल सकते हैं। बराबर वोट मिलने की स्थिति में प्रतिनिधि सभा में राज्यों के प्रतिनिधिमंडल फ़ैसला करेंगे। माना जा रहा है कि इस स्थिति में बहुमत ट्रंप के पक्ष में जा सकता है।
 
जो बिडेन की फिसलती ज़ुबान
 
जो बिडेन ने अब तक अनुशासित चुनाव अभियान चलाया है। चाहे ये चुनाव अभियान इसी तरह तैयार किया गया था या कोरोनावायरस के कारण बनी स्थितियों के कारण ऐसा हुआ है। जो बिडेन आमतौर पर अव्यावहारिक टिप्पणी के लिए जाने जाते हैं, लेकिन इस बार वो ऐसे किसी भी विवाद से दूर नज़र आए हैं।
 
लेकिन, अब बिडेन का चुनाव प्रचार और तेज़ होने वाला है। ऐसे में ग़लतबयानी का ख़तरा भी बढ़ जाता है, जिसका उन्हें चुनाव में नुक़सान उठाना पड़ सकता है। जो बिडेन को पसंद करने वालों में उपनगरीय उदारवादी, असंतुष्ट रिपब्लिकन, डेमोक्रेट श्रमिक वर्ग और जातीय अल्पसंख्यक शामिल हैं।
 
ये सभी एक-दूसरे से अलग हैं और इनमें हितों का टकराव भी है। ऐसे में जो बिडेन की एक ग़लती इन्हें नाराज़ कर सकती है। साथ ही ऐसे भी आशंका है कि चुनाव अभियान की थकान जो बिडेन पर हावी होने से उनकी उम्र को लेकर चिंताएं पैदा हो सकती हैं। अगर ऐसा होता है तो डोनाल्ड ट्रंप के लिए जीत का रास्ता खुल सकता है।

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