"कांग्रेसी बात नहीं कर रहे हैं, लेकिन चुपके से गाँव-गाँव लोगों को संगठित कर रहे हैं। वो अपने पुराने हथकंडे आजमा रहे हैं, वो भी किसी को बिना बताए। इसलिए वो प्रेस में नहीं आते हैं, ना ही प्रेस कॉन्फ्रेंस करते हैं। इसलिए भ्रम में न रहें। सावधान रहें, ये कांग्रेस की नई चाल है।"
गुजरात में चुनाव प्रचार करने आए प्रधानमंत्री ने जब यह बयान दिया तो इस पर काफ़ी बहस हुई थी। बयान को "बीजेपी के कैडरों में जान फूंकने" और कांग्रेस से "सावधान रहने" के संदर्भ के रूप में भी देखा गया।
इस एक बयान ने आम आदमी पार्टी के कार्यकर्ताओं को भी चौकन्ना कर दिया और गुजरात चुनाव में राहुल गांधी की "अनुपस्थिति" को भी बीच चुनावी बहस में ला खड़ा किया ।
गुजरात विधानसभा चुनाव 2022 के लिए दोनों चरणों के मतदान के बाद अब सभी की निगाहें आठ दिसंबर को आने वाले नतीजों पर टिकी हैं। 182 विधानसभा सीटों के साथ, गुजरात में पिछले 27 वर्षों से भाजपा का शासन है। फिर भी प्रचार में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह कोई कोर कसर नहीं छोड़ी।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को इतना प्रचार क्यों करना पड़ा?
गुजरात में पिछले चुनाव में बीजेपी ने सरकार बनाई थी, लेकिन उसे सिर्फ़ 99 सीटों से संतोष करना पड़ा था। जबकि कांग्रेस को 77 सीटें मिली थीं। तो इस बार यह भी संभावना है कि आम आदमी पार्टी किसी भी पार्टी (भाजपा, कांग्रेस) का राजनीतिक गणित बिगाड़ सकती है।
वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक दिलीप गोहिल नरेंद्र मोदी के अभियान को उनके 'चिरपरिचित राजनीतिक स्टाइल' के तौर पर देखते हैं।
वे कहते हैं, ''जो पार्टी जीतना चाहती है, उसके लिए यह स्वाभाविक है कि वह ज़्यादा प्रचार करे। यहां मुख्यमंत्री बदल दिया गया, लेकिन चुनाव नरेंद्र मोदी के नाम पर लड़ा जा रहा है। तो स्वाभाविक है कि वह ख़ुद ही आएंगे और प्रचार करेंगे।"
"दूसरी बात, टिकट बंटवारे के बाद कई जगहों पर संतोष हुआ, कहीं निर्दलीय उम्मीदवार भी खड़े हुए। इसलिए सभी बातों पर ग़ौर करें तो भाजपा को कोर समर्थकों को आकर्षित करने के लिए संगठन की बजाय नरेंद्र मोदी के नाम को आकर्षित करने की कोशिश करनी थी, इसलिए नरेंद्र मोदी ने ज़्यादा प्रचार किया।"
इन वजहों से गोहिल कहते हैं कि बीजेपी के लिए उनके (नरेंद्र मोदी के) नाम पर प्रचार करना या ख़ुद प्रचार करना अनिवार्य था।
वो आगे जोड़ते हैं, "जब पहले चरण में मतदान कम था तो शायद पार्टी को लगा कि बीजेपी अपने समर्थकों को बूथ तक नहीं ला सकी। इसलिए, दूसरे चरण में (विशेष रूप से अहमदाबाद में) मतदान बढ़ाने और अन्य ज़िलों में प्रभाव डालने के लिए, उन्होंने अहमदाबाद का रोड शो किया।"
मोदी के प्रचार पर कांग्रेस का तंज
ग़ौरतलब है कि गुजरात में नरेंद्र मोदी और केंद्रीय नेताओं के प्रचार अभियान पर कांग्रेस ने हमला बोला था कि केंद्र की पूरी टीम गुजरात में प्रचार करने आ गई है।
कांग्रेस नेता और प्रवक्ता पवन खेड़ा ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर कहा कि अगर बीजेपी ने गुजरात में पिछले 27 सालों में अच्छा काम किया होता तो इतना प्रचार नहीं होता। केंद्र सरकार की पूरी टीम आज गुजरात में प्रचार कर रही है।
प्रधानमंत्री किसी राज्य के विधानसभा चुनाव में धुआंधार प्रचार करते हैं तो विपक्ष आख़िर आलोचना क्यों कर रहा है?
इस सवाल के जवाब में राजनीतिक विश्लेषक दिलीप गोहिल कहते हैं, "यह राजनीति है, इसलिए वास्तविकता यह है गुजरात जीतना बीजेपी के लिए ज़रूरी है।"
"हमेशा यह दिखाने की कोशिश की जाती है कि भले ही पार्टी के ख़िलाफ़ नाराज़गी है, नरेंद्र मोदी के ख़िलाफ़ कोई नाराज़गी नहीं है, चाहे कोई भी मुख्यमंत्री हो, नरेंद्र मोदी को दीर्घकालिक दृष्टिकोण से वोट दें। जो अक्सर कहा जाता है। ये सभी कारक हैं जिसके कारण नरेंद्र मोदी ने अधिक प्रचार किया।"
लोकसभा चुनाव
ग़ौरतलब है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पिछले दो कार्यकाल से केंद्र में शासन कर रहे हैं और अगला लोकसभा चुनाव 2024 में है। गुजरात चुनाव प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के लिए प्रतिष्ठा की लड़ाई है। इसलिए विशेषज्ञों का अनुमान है कि वे गुजरात में ज़ोर देंगे।
अगर बीजेपी गुजरात चुनाव में हारती है या उनकी सीटें कम हो जाती हैं, तो इसका असर 2024 के लोकसभा चुनाव पर पड़ सकता है। गुजरात प्रधानमंत्री मोदी और गृह मंत्री का गृह राज्य है। इस वजह से राजनीतिक विश्लेषक हरि देसाई गुजरात अभियान को आगामी लोकसभा चुनाव से जोड़ते हैं।
बीबीसी से बात करते हुए वे कहते हैं, "2002 में गोधरा और उसके बाद, जब बीजेपी को चुनाव में 127 सीटें मिलीं तो पार्टी के निर्वाचित सदस्यों की संख्या कम हो गई क्योंकि चुनाव मोदी के नेतृत्व में लड़े गए थे। बीजेपी 127 तक गई थी, लेकिन पिछली बार 99 तक पहुँच गई। इस वजह से भी ये चुनाव थोड़ा मुश्किल रहा है।"
"इस बार भले ही आम आदमी पार्टी, या एआईएमआईएम चुनावी मैदान में हों, लेकिन बीजेपी को डर था कि वो बहुमत खो देंगे। इसलिए भारतीय जनता पार्टी के लिए गुजरात की जीत ज़रूरी है।"
हरि देसाई आगे कहते हैं, "अगर मोदी को 2024 का लोकसभा चुनाव अपने नेतृत्व में जीतना है तो गुजरात में जीतना उनके लिए ज़रूरी है। अगर वह गुजरात में हार जाते हैं या सीटें 99 से नीचे आ जाती हैं तो मोदी की पार्टी में भी उनके नेतृत्व पर सवाल उठेंगे।"
"पार्टी में भी असंतोष था, विरोध करने के लिए हज़ारों लोग गांधीनगर के बीजेपी मुख्यालय गए थे, उम्मीदवार बदले गए जहां उन्हें बदलना था, जिन बाहुबली नेताओं के ख़िलाफ़ मामले थे उन्हें टिकट देना पड़ा, आरएसएस के उम्मीदवारों को भी मैदान में उतारना पड़ा। ऐसे तमाम समझौते किए गए। इसलिए उनका किसी भी क़ीमत पर गुजरात में चुनाव जीतना ज़रूरी है।"
नरेंद्र मोदी का प्रचार
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पूरे गुजरात में रैलियां कीं। उन्होंने सौराष्ट्र, उत्तर गुजरात, मध्य गुजरात और दक्षिण गुजरात में रैलियों को संबोधित करके पार्टी के लिए प्रचार किया। एक रिपोर्ट के मुताबिक़, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गुजरात में 30 से ज़्यादा रैलियां कीं और रोड शो किए।
इतना ही नहीं, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह समेत बीजेपी के केंद्रीय नेता, मंत्री और मुख्यमंत्री भी गुजरात में चुनाव प्रचार में शामिल रहे।
अहमदाबाद में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के रोड शो ने सबका ध्यान खींचा और यह सबसे लंबा रोड शो था।
प्रचार में बीजेपी ने गुजरात की विकास यात्रा को आगे बढ़ाने का वादा किया। सरकार के विकास कार्यों का ज़िक्र किया। यानी ज़्यादातर प्रचार 'पार्टी की उपलब्धियों' के इर्द-गिर्द बुना गया था।
कांग्रेस और आम आदमी पार्टी का प्रचार
राम मंदिर निर्माण से लेकर विभिन्न धार्मिक स्थलों के पुनर्विकास तक पर विपक्षी कांग्रेस ने हमला बोला, तो राहुल गांधी की 'भारत जोड़ो यात्रा' में शामिल मेधा पाटकर ने भी कांग्रेस के पक्ष में बयान दिए।
मेधा पाटकर ने महाराष्ट्र में राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा में भाग लिया था। कांग्रेस ने राहुल के साथ उनकी तस्वीर ट्वीट की। तो नरेंद्र मोदी ने कलोल में जनसभा में कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे द्वारा की गई '100 सिर वाले रावण' वाली टिप्पणी का भी ज़िक्र किया और अपने 'अपमान' से जोड़ा।
ग़ौरतलब है कि गुजरात चुनाव में कांग्रेस नेता राहुल गांधी की 'कम मौजूदगी' भी चर्चा का विषय रही थी।
चुनाव की घोषणा के बाद राहुल गांधी ने केवल एक बार गुजरात का दौरा किया और रैलियों को संबोधित किया। चुनाव घोषणा के पहले भी वो एक बार गए थे। उनके अलावा ना तो सोनिया गांधी ने और ना ही प्रियंका गांधी ने गुजरात में प्रचार किया।
हालाँकि, कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने गुजरात में रैलियों ज़रूर कीं। कांग्रेस नेताओं ने महंगाई, बेरोज़गारी, मोरबी पुल हादसा आदि का हवाला देकर प्रचार किया।
इस चुनाव में आम आदमी पार्टी भी चर्चा में रही। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल पार्टी के स्टार प्रचारक रहे। साथ ही उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया, सांसद राघव चड्ढा भी प्रचार में जी तोड़ मेहनत करते नज़र आए।
ईसुदान गढवी को आम आदमी पार्टी के मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार के रूप में घोषित किए जाने के बाद उनकी रैलियां भी बढ़ गईं।