राजस्थान: गहलोत ने ऐसा क्या किया कि कमलनाथ की तरह नहीं गिरी उनकी सरकार

BBC Hindi
रविवार, 19 जुलाई 2020 (12:48 IST)
नारायण बारेठ, जयपुर से, बीबीसी हिन्दी के लिए
राजस्थान और मध्य प्रदेश के भूगोल में फर्क हो सकता है, मगर दोनों राज्यों में राजनीति के रंग तो एक जैसे हैं।
फिर भी भोपाल में कमलनाथ सत्ता संघर्ष में 'कमल' के हाथों मात खा गए जबकि राजस्थान में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत अपने विरोधियों पर भारी पड़े हैं।
 
विश्लेषक कहते हैं मध्य प्रदेश में कांग्रेस का संख्या बल कमज़ोर था। पर राजस्थान में स्थिति थोड़ी बेहतर है।
सियासी पंडित कहते हैं कमलनाथ भी राजनीति के मंझे हुए खिलाड़ी हैं। लेकिन गहलोत राजनीतिक सूझ-बूझ और प्रबंधन में उनसे कहीं आगे हैं। इसीलिए जब चुनौती मिली, वे इंतज़ामों के साथ तैयार मिले।

पांच वर्ष के वनवास के बाद राजस्थान में कोई डेढ़ वर्ष पहले जब कांग्रेस सत्ता में लौटी तभी से पार्टी के भीतर का विभाजन साफ़-साफ़ दिखने लगा था।

इनमें एक धड़ा मुख्यमंत्री गहलोत का था तो दूसरे गुट की आस्था उस वक्त उप मुख्यमंत्री बनाये गए सचिन पायलट में थी।

राज्य में तीसरी बार मुख्यमंत्री बने गहलोत को अंदेशा हो गया था कि उन्हें पार्टी के एक गुट से कभी भी चुनौती मिल सकती है। क्योंकि कांग्रेस को दो सौ सदस्यों की विधानसभा में 99 सीटों पर ही सब्र करना पड़ा था।

गहलोत ने कैसे अपनी स्थिति मज़बूत की
लेकिन राष्ट्रीय लोक दल से कांग्रेस का चुनाव पूर्व गठबंधन था और इस पार्टी से जीत कर आये सुभाष गर्ग भी कांग्रेस सरकार में मंत्री बन कर शामिल हो गए। बाद में कांग्रेस ने एक सीट पर हुए उपचुनाव में जीत हासिल कर अपनी संख्या 101 कर ली।

गहलोत को लगा इतना काफी नहीं है। वे अपनी स्थिति को मज़बूत करने का प्रयास करते रहे। उन्हें इन प्रयासों में तब कामयाबी मिल गई जब बहुजन समाज पार्टी से जीत कर आये छह विधायकों ने पिछले साल कांग्रेस का दामन थाम लिया।

पर यह आसान नहीं था। क्योंकि पार्टी में उस वक्त राज्य कांग्रेस के प्रमुख सचिन पायलट ने इसे पसंद नहीं किया और विरोध किया। इन विधायकों के कांग्रेस में आ मिलने से विधानसभा में कांग्रेस की सदस्य संख्या 107 हो गई।
इसी बीच गहलोत ने निर्दलीय की हैसियत से चुनाव जीत कर आये एक दर्जन विधायकों को भी पार्टी से संबद्ध करा दिया। इनमें ज़्यादातर कांग्रेस पृष्ठभूमि के नेता थे।

मध्य प्रदेश और राजस्थान की स्थिति में अंतर
राज्य के सियासी हालात पर नज़र रखते रहे वरिष्ठ पत्रकार अवधेश अकोदिया ने बीबीसी से कहा, "राजस्थान और मध्य प्रदेश की स्थिति में फर्क है। वहां कांग्रेस के पास बहुमत कमज़ोर था। राजस्थान में बेहतर स्थिति थी।"
 
आकोदिया के मुताबिक़, "गहलोत शुरू से ही सतर्क थे। क्योंकि गहलोत बीजेपी के निशाने पर हैं। इसके कारण भी हैं। वे गुजरात विधानसभा चुनावों में पार्टी के प्रभारी होकर गए और अपनी पार्टी को मुकाबले में खड़ा कर दिया। फिर अहमद पटेल के चुनाव और कर्नाटक में उनकी सक्रियता से भी बीजेपी नेतृत्व उन पर नज़र रखे हुए था। इसीलिए जब चुनौती मिली, वे सावधान मुद्रा में खड़े मिले।"

आकोदिया कहते हैं, "मध्य प्रदेश में कमलनाथ के सामने ज्योतिरादित्य सिंधिया बगावत का झंडा लिए खड़े थे। सिंधिया का ग्वालियर क्षेत्र में प्रभाव है। वैसा प्रभाव सचिन पायलट का राजस्थान में नहीं है। क्योंकि सिंधिया के साथ पूर्व रियासत की विरासत भी है।"

राज्य में प्रतिपक्ष के नेता गुलाब चंद कटारिया ने बीबीसी से कहा, "यह जो चल रहा है, वो कांग्रेस का आंतरिक सत्ता संघर्ष है। बीजेपी को इससे कोई लेना-देना नहीं है।"

वे कहते हैं कि मध्य प्रदेश में बात कुछ और थी, वहां बीजेपी और कांग्रेस के संख्या ल में बहुत बारीक अंतर था।
राज्य में लोग उस वक्त हैरान रह गए जब मुख्यमंत्री गहलोत ने पिछले महीने राज्यसभा चुनाव से दस दिन पहले यकायक विधायकों को इकट्ठा किया और वहीं से उन्हें बाड़ेबंदी के लिए ले जाया गया।

सत्तारूढ़ पार्टी के नेताओं का कहना था कि बीजेपी ख़रीद-फ़रोख्त का प्रयास कर रही है। लेकिन पायलट समर्थकों ने इसे व्यर्थ की कवायद बताया और गहलोत पर निशाना साधते हुए कहा गया कि वे काल्पनिक भय पैदा कर रहे हैं।

भोपाल में वरिष्ठ पत्रकार गिरीश उपाध्याय दोनों राज्य में काम कर चुके हैं। वे दोनों राज्यों की सियासत से वाकिफ हैं।

उपाध्याय ने बीबीसी से कहा, "ऐसा नहीं है कि कमलनाथ सतर्क नहीं थे वे अलर्ट थे। क्योंकि मध्य प्रदेश में बीजेपी नेता पहले दिन से कह रहे थे ये सरकार गिर जाएगी। कमल नाथ एक चुतर नेता हैं और उनके साथ सियासी पैंतरों में प्रवीण दिग्विजय सिंह भी थे। लेकिन यह सब काम नहीं आया। कांग्रेस के पास संख्या कम थी और फिर उसमें भी टूट हो गई। दरअसल कमलनाथ और दिग्विजय सिंह यह आकलन नहीं कर पाए कि सिंधिया अपने लाव लश्कर के साथ बीजेपी में चले जाएं।"

उपाध्याय कहते हैं, "मध्य प्रदेश के नेताओं की तुलना में गहलोत राजनीतिक प्रबंधन और सियासी समझ में आगे हैं। गहलोत ने पार्टी के अंदर अपने विरोधियों को पूरी ढील दी। गहलोत ने उन्हें इस हद तक आगे जाने दिया कि बुने हुए जाल में वे प्रफुल्लित भाव से पैर रखते चले गए।"

उपाध्याय कहते हैं, "गहलोत विरोधी इतने आगे चले गए कि कांग्रेस हाई कमान भी मदद करने लायक नहीं रहा। गहलोत की रणनीति भी ठीक थी और कूटनीति भी।"

वे कहते हैं, "सिंधिया और पायलट में एक बड़ा अंतर है। सिंधिया ने मैदान में कूदने से पहले खुद और अपने समर्थकों को तौल लिया था। मगर सचिन न अपना और न ही समर्थकों का वजन तौल पाये।"

उपाध्याय कहते हैं, "सिंधिया समर्थकों ने अपने नेता के प्रति वैसी ही आस्था का प्रदर्शन किया जैसा कभी रियासत काल में होता था।"

मध्य प्रदेश में जब बीजेपी ने कमलनाथ का तख्ता पलटने का काम शुरू किया, शिवराज सिंह चौहान समेत बाकी सभी नेता साथ थे। मगर राजस्थान में पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे इस पूरे घटनाक्रम में ख़ामोशी ओढ़े रही।

इसी बीच पायलट ने गहलोत और राजे के बीच मिलीभगत का आरोप भी लगाए। बीजेपी के सहयोगी दल आरएलपी के सांसद हनुमान बेनीवाल तो यहाँ तक कह गए कि राजे इस लड़ाई में मुख्यमंत्री गहलोत की मदद कर रही हैं।

इस पर बीजेपी के भीतर भी काफी हंगामा हुआ और राजे समर्थकों ने तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की। राजे ने लंबी चुपी के बाद शनिवार को ट्वीट किया और कहा कांग्रेस कि अंतरकलह का नुक़सान जनता को भुगतना पड़ रहा है। राजे ने कहा कि लोग परेशान हैं और कांग्रेस बीजेपी नेतृत्व पर आरोप लगाने में मशगूल हैं।

जानकर कहते हैं कि पायलट समर्थकों को लगता है कि राजे उनके बीजेपी से कथित संपर्क का विरोध कर रही हैं। इसलिए पायलट ने राजे पर निशाना अनायास नहीं साधा है।
 
राज्य के परिवहन मंत्री प्रताप सिंह खाचरियावास को पायलट का क़रीब माना जाता रहा है। लेकिन जैसे ही पायलट ने अपने साथ तीस विधायकों के समर्थन का दावा करते हुए बगावत की, खाचरियावास ने पायलट के विरुद्ध मोर्चा खोल दिया।
 
खाचरियावास ने बीबीसी से कहा, "हमें यह गवारा नहीं है कि कोई पार्टी को क्षति पहुंचाए। मुझे लगने लगा था कि पायलट ऐसा कुछ सोच रहे हैं। जबकि मुख्यमंत्री गहलोत पहले ही सचेत थे।"
 
वे कहते हैं कि गहलोत अपने पिछले कार्यकाल में भी कम संख्या के बावजूद ठीक से सरकार चला चुके हैं।
'लड़ाई का साजो-सामन और उपकरण सब तैयार थे'
 
राज्य में पायलट के पद से हटाए जाने के बाद प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष नियुक्त किये गए गोविन्द सिंह डोटासरा कहते हैं, "सीएम पूरी तरह सजग थे। जो आदमी रात को ढाई बजे तक काम करता हो, ये लोग उसका क्या मुकबला करेंगे।"
 
वे कहते हैं कि "जब पायलट ने बीजेपी के साथ मिल कर बाज़ी पलटने की कोशिश की, तो हम पूरी तरह तैयार थे। हमारे पास संख्या, लड़ाई का साजो सामन और उपकरण सब तैयार थे।"
 
मुख्यमंत्री गहलोत ने मीडिया से कहा, "पायलट शुरू से ही इसी भाव से काम कर रहे थे। वे विगत सात माह से इसी योजना में लगे हुए थे। पहले 11 जून को वे विधायकों को एक कार्यक्रम के बहाने अपने साथ ले जाने वाले थे। पर हमने समय रहते कदम उठा लिए। गहलोत ने अपने प्रति समर्थन पुख्ता करने के लिए भारतीय ट्राइबल पार्टी के दो विधायकों को भी तैयार कर लिया। राज्य में कम्युनिस्ट पार्टी मार्क्सवादी के दो विधायक हैं, उनमें से एक विधायक को कांग्रेस ने समर्थन के लिए तैयार कर लिया है।"
 
मध्य प्रदेश और राजस्थान दोनों एक दूसरे के पड़ोसी हैं। लेकिन नदी के दो किनारों की तरह दोनों की सियासत के समीकरण और स्वभाव अलग-अलग है।

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