कोलकाता रेप और मर्डर केस को लेकर पूरे देश में विरोध प्रदर्शनों का दौर जारी है। सीबीआई मामले की जाँच कर रही है। प्रदेश में विपक्षी पार्टियाँ ममता बनर्जी की सरकार को घेर रही हैं, तो सुप्रीम कोर्ट ने भी इस मामले का स्वत: संज्ञान लेते हुए सख़्त टिप्पणी की है। लेकिन इस सबके बीच सोशल मीडिया पर भी आरोप प्रत्यारोप जारी है और दावे-प्रतिदावे किए जा रहे हैं।
सोशल मीडिया में फैल रही 'ख़बरों' और बयानों का संज्ञान लेते हुए कोलकाता की पुलिस ने अब तक 280 लोगों को नोटिस भेजा है, जबकि एक छात्रा को गिरफ़्तार भी किया गया था।
हालांकि छात्रा को बाद में ज़मानत मिल गई। जिन्हें कोलकाता पुलिस ने नोटिस भेजा है, उनमें सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस के राज्यसभा सांसद से लेकर वरिष्ठ ह्रदय विशेषज्ञ, छात्र, सिविल सोसाइटी के लोग, विभिन्न राजनीतिक दलों से जुड़े लोग और आम लोग भी शामिल हैं।
नोटिस के बाद तृणमूल कांग्रेस के राज्यसभा सांसद सुखेंदु शेखर रॉय ने कोलकाता हाई कोर्ट में अग्रिम ज़मानत की याचिका भी दायर की है।
कोलकाता पुलिस की जनसंपर्क शाखा से जुड़े एक अधिकारी का कहना है कि सोशल मीडिया साइट एक्स से लेकर इंस्टाग्राम और फेसबुक के साथ-साथ यूट्यूब पर जिन लोगों ने 'आपत्तिजनक' पोस्ट डाली हैं, सिर्फ़ उन्हीं को नोटिस भेजे गए हैं।
उनका कहना था कि जिन लोगों ने आरजी कर मेडिकल कॉलेज और अस्पताल की मृतक छात्रा की तस्वीर और नाम साझा किए हैं, उनको भी नोटिस दी गई हैं। इसके अलावा 'पोस्टमार्टम की रिपोर्ट को सार्वजनिक करने से लेकर उसकी ग़लत व्याख्या करने वालों' को भी नोटिस भेजे गए हैं।
सुखेंदु शेखर के आरोप, पुलिस का इनकार
ये नोटिस कोलकाता पुलिस की साइबर अपराध शाखा के उपायुक्त की ओर से भेजे गए हैं। जिन्हें नोटिस भेजे गए हैं, उन्हें या तो अपनी पोस्ट हटाने के निर्देश दिए गए हैं या फिर साइबर थाने में उपस्थित होने को कहा गया है।
सुखेंदु शेखर रॉय ने सोशल मीडिया साइट एक्स पर अपनी पोस्ट में लिखा था, सीबीआई को चाहिए कि वह कोलकाता पुलिस के कमिश्नर विनीत कुमार गोयल और मेडिकल कॉलेज के प्रिंसिपल को 'हिरासत में लेकर पूछताछ करे। उन्होंने ये भी लिखा था, घटना के तीन दिनों तक कोलकाता पुलिस के खोजी कुत्तों को घटनास्थल पर नहीं लाया गया था।
पुलिस ने इन आरोपों का खंडन किया था और कहा था कि पुलिस ने प्रारंभिक जाँच में कोई कोताही नहीं बरती है।
दूसरी ओर टीएमसी सांसद सुखेंदु शेखर रॉय का कहना था कि अगर किसी भी आम नागरिक को लगता है कि उसे पुलिस बिना बात के परेशान कर रही है, तो वह अदालत का दरवाज़ा खटखटा सकता है। ऐसा नोटिस भारतीय जनता पार्टी की वरिष्ठ नेता और पूर्व सांसद लॉकेट चटर्जी को भी भेजा गया है।
वहीं, शहर के साल्ट लेक के इलाक़े की रहने वाली एक छात्रा पर आरोप है कि उन्होंने अपने एक्स हैंडल पर मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के ख़िलाफ़ 'हिंसा भड़काने' वाली पोस्ट लिखी थी। छात्रा को गिरफ़्तार भी किया गया और बाद में एक हज़ार रुपए के निजी मुचलके पर ज़मानत दे दी गई।
तृणमूल कांग्रेस का क्या कहना है?
तृणमूल कांग्रेस के प्रवक्ता तौसीफ़ ख़ान ने बीबीसी से बात करते हुए कहा कि जो भी सोशल मीडिया पर अपनी पोस्ट के ज़रिए 'फ़ेक न्यूज़' देकर शहर का माहौल बिगाड़ने की कोशिश कर रहे थे, उन्हें ही नोटिस भेजे गए हैं।
वो कहते हैं, "चाहे वह तृणमूल कांग्रेस के नेता हों या किसी भी राजनीतिक दल के क्यों न हों, वे अगर सोशल मीडिया पर फ़र्ज़ी जानकारी लिखकर माहौल ख़राब करने की कोशिश कर रहे हैं, तो जवाबदेह होना पड़ेगा। इसीलिए नोटिस भेजे गए हैं।"
प्रतिष्ठित चिकित्सक को भी पूछताछ के लिए बुलाया गया
सोमवार को जाने-माने डॉक्टर कुणाल सरकार और सुवर्ण गोस्वामी जब लाल बाज़ार स्थित कोलकाता पुलिस के मुख्यालय में पेश होने के लिए निकले, तो डॉक्टरों और स्वास्थ्य कर्मियों का हुजूम उनके साथ-साथ निकला। दोनों ही डॉक्टरों ने बाद कहा कि उन्हें पुलिस ने 'मामूली सी बात पूछने के लिए' बुलाया था।
उनका कहना था, "अगर मामूली बात पूछनी थी तो फिर नोटिस क्यों भेजा गया? यही हमने पुलिस के अधिकारियों से पूछा। ये बातें वह फ़ोन पर भी पूछ सकते थे। हम तो सिर्फ़ उस युवा चिकित्सक के लिए न्याय चाहते हैं। बस इतनी सी बात है।"
जहाँ एक तरफ़ तृणमूल कांग्रेस के राज्यसभा सांसद साकेत गोखले ने अपने सोशल मीडिया अकाउंट पर लिखकर आरोप लगाया है कि "आरजी कर की घटना के ख़िलाफ़ हो रहे प्रदर्शनों को भाजपा ने 'हाईजैक' कर लिया है।"
तो वहीं विधानसभा में विपक्ष के नेता और बीजेपी विधायक सुवेंदु अधिकारी का कहना है कि उनकी पार्टी सभी को क़ानूनी सहायता देने के लिए तैयार है। पिछले दिनों उन्होंने कहा था कि सरकार के इशारे पर कोलकाता पुलिस दमन चक्र चला रही है।
उनका कहना था, "कोलकाता पुलिस हर किसी को तत्परता से नोटिस भेज रही है, उसके लिए जो उन्होंने सोशल मीडिया पर पोस्ट किया है। इतनी तत्परता पुलिस को घटना की जाँच और आरजी कर अस्पताल की सुरक्षा के लिए दिखानी चाहिए थी।"
सुवेंदु अधिकारी का कहना है कि उन्होंने अपने कार्यालय में एक प्रकोष्ठ बनाया है, जहाँ पर ऐसे सभी लोगों को मुफ़्त क़ानूनी सहायता प्रदान की जाएगी जिन्हें इस तरह के नोटिस भेजे गए हैं।
पश्चिम बंगाल पुलिस ने दूसरे राज्यों में भी भेजे हैं नोटिस
कोलकाता पुलिस ने सिर्फ़ कोलकाता या पश्चिम बंगाल में ही नोटिस नहीं भेजे हैं, बल्कि राजस्थान, उत्तर प्रदेश और देश के अन्य हिस्सों में रहने वाले सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर्स को भी ऐसे नोटिस भेजे गए हैं।
कोलकाता के एक अन्य मेडिकल कॉलेज की छात्रा को भी उनके सोशल मीडिया पोस्ट को लेकर न सिर्फ़ नोटिस मिला है, बल्कि उनके घर पर स्थानीय थाने से भी फ़ोन आया था।
नाम नहीं छापने की शर्त पर बीबीसी से बात करते हुए वे कहती हैं कि उनके घर के लोग अब डरे हुए हैं, जबकि उन्होंने सोशल मीडिया से घटना से संबंधित सभी पोस्ट को डिलीट कर दिया है।
जो लोग छात्र संगठनों से जुड़े हुए हैं और जिन्हें नोटिस मिले हैं, उनके लिए तो उनके संगठन साथ खड़े हुए हैं। लेकिन जिन्होंने व्यक्तिगत हैसियत से पोस्ट किए हैं, अब वे परेशान हैं।
ऐसी ही एक और छात्र से बातचीत हुई, तो उन्होंने बताया कि उन्हें ये पता ही नहीं था कि पीड़ित का नाम या तस्वीर सार्वजनिक तौर पर साझा नहीं किया जा सकता है।
उनका कहना था, "चूंकि सब शेयर कर रहे थे, मैं भी आहत था। इसलिए शेयर कर दिया था। अब मैंने डिलीट कर दिया है, मगर पुलिस ने डर का माहौल पैदा कर दिया है।"
पश्चिम बंगाल कांग्रेस का क्या कहना है?
पश्चिम बंगाल कांग्रेस कमेटी के महासचिव आशुतोष चटर्जी कहते हैं कि सबसे पहले अगर कोलकाता पुलिस के ख़िलाफ़ किसी ने अविश्वास प्रकट किया था, तो वो ख़ुद मुख्यमंत्री हैं।
उन्होंने आरोप लगाते हुए कहा, "ख़ुद मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने कहा था कि सात दिनों के अंदर अगर कोलकाता पुलिस घटना की छानबीन पूरी नहीं कर लेती है तो वह ये मामला सीबीआई को सौंप देंगी। ये अविश्वास किसने जताया था? इसीलिए भी आम लोगों का विश्वास कोलकाता पुलिस में नहीं है, तो उनकी क्या गलती है?"
बीबीसी से बात करते हुए वो कहते हैं कि कोलकाता पुलिस को अपना घर पहले दुरुस्त करना चाहिए क्योंकि मामले का मुख्य अभियुक्त 'सिविल वॉलंटियर' था, जो कोलकाता पुलिस के अधीन काम कर रहा था।
वो कहते हैं, "बिना किसी प्रशिक्षण के सिविल वॉलंटियर पुलिस में कैसे शामिल हो गए? इसका जवाब कोलकाता को सबसे पहले देना चाहिए। ये कौन लोग हैं जो सरकारी संरक्षण में वर्दी पहनकर पुलिस का काम कर रहे हैं? ये अपराध भी कर रहे हैं। पुलिस के बड़े अधिकारी खुलकर नहीं बोल पा रहे हैं लेकिन वे भी इससे क्षुब्ध हैं।"
सुप्रीम कोर्ट ने भी पुलिस और राज्य सरकार पर उठाए सवाल
मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट ने कोलकाता रेप और मर्डर मामले की सुनवाई के दौरान पश्चिम बंगाल सरकार और पुलिस से भी सवाल किए।
मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने इस बात पर गहरी चिंता जताई कि पीड़िता का नाम, शव को दिखाने वाली तस्वीरें और वीडियो क्लिप पूरे मीडिया में फैल गई हैं। उन्होंने कहा, "यह बेहद चिंताजनक है।"
पश्चिम बंगाल सरकार की ओर से पैरवी कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने दलील दी कि पुलिस के पहुँचने से पहले ही तस्वीरें खींची गईं और प्रसारित की गईं।
सुप्रीम कोर्ट ने मेडिकल कॉलेज के प्रिंसिपल के आचरण, एफ़आईआर दर्ज करने में देरी और 14 अगस्त को सार्वजनिक विरोध प्रदर्शन के दौरान अस्पताल में हुई तोड़फोड़ पर भी राज्य से सवाल किए।
कोर्ट ने एफआईआर के समय के बारे में भी सवाल किया। जिस पर कपिल सिब्बल ने कहा कि "अप्राकृतिक मौत" का मामला तुरंत दर्ज किया गया था। उन्होंने दावा किया कि एफ़आईआर दर्ज करने में कोई देरी नहीं हुई है।
इस पर सीजेआई ने बताया कि शव का पोस्टमार्टम दोपहर 1 बजे से शाम 4।45 बजे के बीच किया गया और अंतिम संस्कार के लिए शव को रात क़रीब 8।30 बजे माता-पिता को सौंप दिया गया था। हालांकि, एफ़आईआर रात 11.45 बजे दर्ज की गई।
चीफ जस्टिस ने पूछा, "एफ़आईआर रात 11.45 बजे दर्ज की गई? क्या अस्पताल में कोई भी एफ़आईआर दर्ज नहीं करता? अस्पताल के अधिकारी क्या कर रहे थे? क्या पोस्टमार्टम से यह पता नहीं चलता कि पीड़िता के साथ बलात्कार किया गया और उसकी हत्या की गई?"
पुलिस ने जारी किए हैं निर्देश
कोलकाता की घटना को लेकर सोशल मीडिया पर चल रहे दावे प्रतिदावे को लेकर पुलिस ने सख़्त निर्देश जारी किए हैं। कोलकाता पुलिस के साइबर सेल ने कहा है कि कोलकाता की घटना को लेकर ग़लत जानकारी या फ़ेक न्यूज़ फैलाना अपराध की श्रेणी में आता है और पुलिस इस पर कार्रवाई कर सकती है।
पुलिस ने सुप्रीम कोर्ट के पहले के फ़ैसले का हवाला देते हुए कहा है कि रेप विक्टिम की पहचान और उनकी तस्वीरें जारी नहीं की जा सकती। पुलिस ने ये भी स्पष्ट किया है कि पीड़िता के परिजनों की स्वीकृति के बावजूद ऐसा नहीं किया जा सकता है। आईटी एक्ट 2000 के तहत अगर कोई भी सोशल मीडिया पर आपत्तिजनक या ग़लत जानकारी शेयर करता है,तो उस पर कार्रवाई की जा सकती है।
भारत में आईटी एक्ट के तहत दोषी पाए जाने पर तीन साल से लेकर आजीवन कारावास तक की सज़ा हो सकती है। साथ ही एक लाख रुपए से लेकर 10 लाख रुपए तक का जुर्माना भी हो सकता है।
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित