मलेशिया में मुस्लिम महिलाओं के लिए मुसीबत बना सोशल मीडिया

Webdunia
सोमवार, 21 अगस्त 2017 (12:33 IST)
15 साल की मलेशियाई लड़की ने एक ट्वीट के ज़रिए ख़्वाहिश जताई थी कि वह देश की पहली महिला प्रधानमंत्री बनना चाहती हैं, इसके बाद उन्हें सोशल मीडिया पर हिजाब न पहनने के लिए खूब अपशब्द कहे गए। सुरेखा राघवन ने सवाल किया कि क्या मलेशियाई मुस्लिम महिलाएं सोशल मीडिया पर ज़्यादा ग़ुस्से का सामना करती हैं?
 
यह छुपी हुई बात नहीं है कि हर जगह महिलाएं ऑनलाइन गाली-गलौज का शिकार हो रही हैं। मलेशिया में सभी धर्मों की महिलाओं को इसका सामना करना पड़ता है, लेकिन एक्टिविस्ट कहते हैं कि मुस्लिम महिलाओं को ख़ासकर निशाना बनाया जा रहा है।
 
महिलाओं के अधिकारों से जुड़े मामलों की वकील जुआना जाफ़र ने कहा, ''हमने एक ट्रेंड देखा है जहां मुस्लिम महिलाओं (ख़ासकर मलय मुस्लिम) को अलग-अलग तरीकों से निशाना बनाया जा रहा है। विशेष रूप से तब जब ये बात आती है कि वो ख़ुद को किस तरह पेश करती हैं।''
 
जाफ़र, 15 साल की लड़की का केस देख रही हैं। उन्होंने कहा कि ऑनलाइन हुए हमले लड़की के लिए बेहद भयावह थे और वह अपना अकाउंट डिलीट करने को मजबूर हो गईं और ऑफ़लाइन मदद मांगी।
''निश्चित तौर पर अगर आपके पास मलय नाम है तो आप बहुत जल्दी दिखने लगेंगे।''
 
'धर्म कुछ और कहता है'
ऐसे में सवाल ये है कि यहां ख़ास क्या है? दरअसल, यहां लोग अपने बजाय दूसरों के काम से ज़्यादा मतलब रखते हैं। यह आम बात है। किसी के गंदे कपड़ों की तस्वीर ऑनलाइन जारी करने का आइडिया यहां तेजी से बढ़ा है और इसकी वजह से मलय भाषा के कई टैबलॉयड और गॉसिप साइट ख़ूब हिट हो रही हैं। लेकिन धर्म के बजाय यह सांस्कृतिक मुद्दा ज़्यादा है। 
 
जाफ़र ने कहा, ''धर्म कभी दूसरों के मामलों में दख़ल देने की बात नहीं कहता। धर्म में निजता का सम्मान करने की बात है।'' मलय यूनिवर्सिटी में जेंडर स्टडीज की सीनियर लेक्चरर डॉ. एलिसिया इज़हारुद्दीन कहती हैं, ''ये चीज़ें दुनियाभर में होती हैं, लेकिन मलेशिया में ये क़दम आगे बढ़कर हो रही हैं।''
 
उन्होंने कहा कि यह धर्म की संकीर्ण व्याख्याओं में मौजूद नैतिक पक्ष की भावना है। नफ़रत भरी बातों को सही ठहराने और ऑनलाइन गुंडागर्दी करने वाले लोग सोशल मीडिया पर अपनी पहचान ज़ाहिर नहीं करते। जितनी ज़्यादा मलेशियाई युवा महिलाएं सोशल मीडिया, ख़ासकर ट्विटर, पर महिलाओं से जुड़े मुद्दों पर बात करने आ रही हैं, ऐसे मामले भी उतनी तेजी से बढ़ रहे हैं।
 
25 साल की ट्विटर यूजर मरियम ली ने हाल ही में हिजाब न पहनने का फ़ैसला लिया, जिसके बाद उन्हें ऑनलाइन काफ़ी अपशब्द कहे गए। कई दिनों तक उन्हें इससे जुड़े नोटिफिकेशन आते रहे और इसकी वजह से वह अपनी सुरक्षा को लेकर चिंतित थीं।
 
उन्होंने कहा, ''सिर्फ इतना नहीं है कि लोग आपके विचारों को पसंद नहीं कर रहे हैं, लोग आपकी मौज़ूदगी, आपकी अपनी इज्ज़त को ही ख़त्म कर देना चाहते हैं।'' लंबे समय से ऑनलाइन हिंसा का शिकार रहीं ली ने कहा कि जब से लोगों के यह पता चला है कि मैं एक फेमिनिस्ट हूं, ऐसे हमले बढ़ गए हैं। वह कहती हैं, ''जब आप रुढ़िवादी सोच पर सवाल उठाते हैं, उस पर बात करते हैं तो ऐसे लोग ख़ुद को असुरक्षित महसूस करने लगते हैं।''
 
'महिला का शरीर युद्धस्थल है'
दूसरे मामलों में, ज़्यादा मेकअप करना, ज़्यादा भड़कीले कपड़े पहनना या ज़्यादा बोलना भी अपराध की नज़र से देखा जाता है। इसकी वजह से महिलाओं को हिंसा का शिकार होना पड़ता है। डीएपी सोशलिस्ट यूथ पार्टी की कार्यकारी समिति की सदस्य डायना सोफिया भी स्थानीय गॉसिप साइट्स पर हेडलाइन बन रही हैं।
 
इन वेबसाइट्स पर उनके कपड़ों से लेकर उनकी रंग-रूप को लेकर भी सवाल उठाए गए। वह कहती हैं कि जो पुरुष उनके समकक्ष हैं उन्हें ये सब नहीं झेलना पड़ता। एक ईमेल में वह कहती हैं, ''पुरुषों के लिए एक महिला का शरीर युद्धस्थल की तरह जिसके बारे में वो बहस करते हैं। एक महिला सिर से पैर तक खुद को ढके हो सकती है लेकिन कोई इस बात की शिकायत करेगा कि उसके कपड़े पर्याप्त लंबे या ठीक नहीं थे।''
 
दूसरे मामले में, ट्विटर यूज़र नालिसा आलिया अमीन को समलैंगिकता का समर्थन करने और पितृसत्ता का विरोध करने के साथ ही मलेशिया में प्रचलित मुस्लिम महिला की पारंपरिक छवि को अपनाने से मना करने पर ऑनलाइन धमकियां मिलीं।
 
उन्होंने कहा, ''जो लोग मेरे विचारों से सहमत नहीं हुए उन्होंने मेरे वज़ूद पर हमला किया, ख़ासकर मेरे शरीर को लेकर, क्योंकि मैं थोड़ी मोटी हूं।'' सोशल मीडिया के कई यूज़र उनकी तस्वीर में पैरों का हिस्सा ज़ूम करेंगे और उनके स्क्रीनशॉट सोशल प्लेटफॉर्म पर पोस्ट करेंगे या किसी जानवर के साथ उनकी तस्वीर लगाकर तुलना करेंगे।
 
ऑनलाइन प्रताड़ना से सुसाइड तक
ज़्यादातर महिलाओं का कहना है कि उन्हें ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर अपशब्द कहने वालों में मुस्लिम पुरुष ज़्यादा हैं। ऐसे मामलों में कोई भी पीड़ित शारीरिक हिंसा से भले ही बच जाएं लेकिन उनके मानसिक स्वास्थ्य पर ऑनलाइन हिंसा का बुरा असर पड़ता है।
 
ट्विटर और इंस्टाग्राम यूजर अरलीना अरशद ने स्वीकार किया कि अपने वज़न की वजह से उन्हें सोशल मीडिया पर जो सुनना पड़ा, उसके चलते उनके मन में आत्महत्या तक के ख़्याल आने लगे। ऑनलाइन पोस्ट किए गए उनके सुसाइड मैसेज में भी ट्रॉल करने वाले लोगों ने उनका मज़ाक उड़ाया और आरोप लगाया कि वह सिर्फ अपनी तरफ़ ध्यान खींचने के लिए ऐसा कर रही हैं। एक कमेंट में यह भी कहा गया, ''अगर चाकू भी मार दिया जाए तो भी तुम अपने वजन से मुक्ति नहीं पाओगी।''
 
वर्तमान में मलेशिया में ऐसा कोई जेंडर आधारित कानून नहीं है जो ऑनलाइन हिंसा से महिलाओं को बचा सके। क्योंकि यहां अभी भी माना जा रहा है कि जो कुछ भी ऑनलाइन हो रहा है वह असल ज़िंदगी में नहीं घटता। इंटरनेट पर तेजी से हो रहे बदलावों की वजह से एक्टिविस्ट के लिए भी उचित कानून का प्रस्ताव रखना कठिन हो रहा है।
 
क़ानूनी मुश्किलें
स्थानीय एनजीओ 'एम्पावर' के ज़रिए 'इंटरनेट पर महिलाओं की आज़ादी' को लेकर रिसर्च करने वाली सेरेने लिम कहती हैं, '''क़ानून सुस्त, रुढ़िवादी और केंद्रीकृत है। आप आज क़ानून बना सकते हैं, लेकिन कल कोई बदलाव होता है तो ये लागू नहीं होगा।'' ''लेकिन हम जानते हैं कि जब भी हमारे पास एकतरफ़ा क़ानून होते हैं वहां सत्ता का दुरुपयोग भी ज़्यादा होता है।''
 
मौजूदा संचार और मल्टीमीडिया एक्ट कई बार यूज़र्स को सज़ा देकर इंटरनेट इस्तेमाल की आज़ादी पर लगाम लगाता है। आमौतर पर ऐसा सरकार की राजनीतिक या धार्मिक विचारधारा के ख़िलाफ़ लिखने पर होता है।
 
सत्तारूढ़ और विपक्षी दलों की ओर से राजनीतिक मामलों में लोगों की ऑनलाइन गतिविधि पर नज़र रखने के लिए 'साइबर्ट्रोपर्स' टूल का इस्तेमाल किया जाता है।
 
जुआना जाफ़र कहती हैं, ''काउंटर-प्रोपगैंडा का तरीका बेहद विपरीत होगा और जब महिलाओं की बात होती है तो हिंसा होने लगती है, जहां महिलाओं पर हमले होते हैं, उनके शरीर पर सवाल उठाए जाते हैं और बतौर मुस्लिम उनकी पहचान पर भी सवाल होते हैं।''

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