आप ख़ुद को कितना भी स्मार्ट समझते हों, मगर कई बार ऐसा होता होगा कि आप अपनी याददाश्त का अच्छे से इस्तेमाल नहीं कर पाते। कई सर्वे से ये साबित हो चुका है कि ज़्यादातर छात्र याद करने के तरीक़ों का सही इस्तेमाल नहीं कर पाते। इसके बजाय वो ऐसे नुस्खों पर अमल करते रहते हैं, जो काम के नहीं हैं।
इसकी बड़ी वजह है कि हम अक्सर याद करने को लेकर अलग-अलग तरह के सलाह-मशविरे पाते रहते हैं। मां-बाप कुछ कहते हैं, टीचर और दोस्त कुछ और। फिर वैज्ञानिक अपनी रिसर्च के आधार पर कोई और सलाह देते हैं।
नतीजा ये कि हम कनफ्यूज़ हो जाते हैं कि याद करने का सही तरीक़ा है क्या। ख़ुशक़िस्मती से मनोविज्ञान की एक मशहूर पत्रिका में छपे लेख ने पढ़ने के पांच सही और ग़लत तरीक़ों की पड़ताल की है। इस लेख का सार हम आप को बताते हैं।
पहली रणनीति: दोबारा पढ़ना
आप नए शब्द सीखने की कोशिश कर रहे हैं, तो जो सब से आम रणनीति है, वो है लफ़्ज़ों को तब तक रटने की, जब तक वो ज़हन में बैठ न जाएं। मगर, मनोवैज्ञानिक कहते हैं कि ये तरीक़ा ठीक नहीं है। रट्टा लगाने के बावजूद हमारा दिमाग़ इन बातों को सहेज नहीं पाता।
नुस्खा: पढ़ाई के वक़्त में रखें फ़ासला
आप किसी विषय या बात को याद रखना चाहते हैं, तो उस लेख, शब्द या सबक़ को थोड़े-थोड़े अंतर के बाद दोहरा लें। इससे आप की याददाश्त तरोताज़ा होती रहेगी। किसी क़िताब का एक अध्याय पढ़ें। फिर कुछ और पढ़ें।
कुछ अंतराल के बाद दोबारा उसकी पढ़ाई करें, जो आप ने पहले पढ़ा था। ये फ़ासला एक घंटे, एक दिन या एक हफ़्ते का हो सकता है। आप पढ़ाई ख़त्म करने के बाद ख़ुद से सवाल भी कर सकते हैं कि आप ने जो भी पढ़ा वो कितना समझ में आया। इससे आप का दिमाग़ उस विषय से कई बार रूबरू होगा।
दूसरी रणनीति: अहम प्वाइंट को अंडरलाइन करना
दोबारा पढ़ने या रट्टा लगाने की तरह ही ये रणनीति भी बहुत आम है। इस नुस्खे में कोई ख़राबी भी नहीं। पढ़ते वक़्त, जो भी बात, शब्द या वाक्य आप को अहम लगता है, उसे चिह्नित कर लेने में कोई बुराई नहीं।
मगर, मनोविज्ञान कहता है कि ये नुस्खा अक्सर आप के लिए मददगार नहीं साबित होता। बहुत से छात्र तो पूरे पैराग्राफ़ को ही अंडरलाइन कर डालते हैं। वो अहम वाक्यों और छोड़ दिए जा सकने वाले वाक्यों में फ़र्क़ ही नहीं कर पाते।
ठहर कर सोचिए
वैज्ञानिक सलाह देते हैं कि एक बार कोई भी किताब पढ़ने के बाद उसके जो हिस्से आप को अहम लगते हैं, उन्हें अंडरलाइन कर लें। बाद में ये काम करेंगे, तो आप को दोबारा उस विषय पर ग़ौर करने का मौक़ा मिलेगा। आप बेफिक्र होकर हर वाक्य को अंडरलाइन करने से बच जाएंगे। सिर्फ़ अहम हिस्सों पर ही ग़ौर करेंगे।
तीसरी रणनीति: नोट बनाना
आप किसी भी क्लासरूम में, लाइब्रेरी में चले जाएं, तमाम छात्र नोट बताने दिख जाते हैं। अति उत्साह में हम फालतू बातों को भी नोट करते चलते हैं। बाद में वो किसी काम की नहीं होती हैं।
छोटे और नपे-तुले नोट बनाएं
तमाम तजुर्बों से साबित हुआ है कि छात्र जितने ही कम नोट्स बनाएंगे, उतना ही उन्हें पढ़ा हुआ सबक़ याद रहेगा। क्योंकि जब आप किसी पढ़े हुए अध्याय को नपे-तुले शब्दों में नोट के तौर पर लिखते हैं, तो आप को गहराई से सोचना पड़ता है। शब्दों और वाक्यों को नए सिरे से गढ़ना पड़ता है।
इससे आप का दिमाग़, पढ़े हुए सबक़ को दोबारा याद कर लेता है। अहम बातों को स्टोर कर लेता है। अक्सर काग़ज़ पर क़लम से नोट बनाना ज़्यादा फ़ायदेमंद होता है। लैपटॉप या कंप्यूटर पर टाइप करना याद करने का उतना कारगर नुस्खा नहीं है।
चौथी रणनीति: आउटलाइन बनाना
बहुत से टीचर अपने छात्रों को कहते हैं कि वो किसी भी सबक़ का एक ख़ाका तैयार कर लें। वो उन्हें बताते हैं कि किसी विषय की किन अहम बातों को आगे चल कर पढ़ना है और याद रखना है। टीचर कई बार ये काम ख़ुद करते हैं और कई बार छात्रों से भी कराते हैं।
नुस्खा: विषय की गहराई समझें
आउटलाइन या ख़ाका तैयार करने से छात्रों को विषय समझने में मदद मिलती है। पहले एक बुनियादी ख़ाका तैयार कर लेने और फिर उस विषय की गहरी बातों को उसमें दर्ज करने से याद रखना आसान हो जाता है। इससे विषय समझ में भी ज़्यादा आसानी से आ जाता है।
आप किसी भी लेक्चर के अहम मुद्दों के बुलेट प्वाइंट तैयार कर सकते हैं। याद रखें कि इन्हें जितने कम शब्दों में लिखेंगे, उतना याद करने में सहूलियत होगी।
पांचवीं रणनीति: ख़ुद का इम्तिहान लेना
जो भी सबक़ पढ़ा है, उसे बहुत से छात्र ख़ुद से इम्तिहान ले कर तैयारी को समझते हैं। तथ्यों को कितनी गहराई से समझ लिया है, ये जानने के लिए अपने आप से सवाल करते हैं। इससे याददाश्त बढ़ती है। मगर इसे और बेहतर किया जा सकता है।
अतिआत्मविश्वास से बचें
बहुत से लोग ये नहीं जानते कि उनके ज़ेहन के समझने की सीमा क्या है। वो ख़ुद को बहुत स्मार्ट समझते हैं। जबकि हक़ीक़त में वो उतने चतुर होते नहीं। सभी को इस अति आत्मविश्वास से बचना चाहिए।
इससे याद करने में जितनी सावधानी और मेहनत करनी चाहिए, वो हो नहीं पाती। अति आत्मविश्वास में लोग ये तो दावा कर देते हैं कि उन्हें याद हो गया है, मगर ज़रूरत पड़ने पर वो ज़ेहन की अलमारी से वो सबक़ निकाल नहीं पाते, जो उन्होंने पढ़ा होता है।
हम इस बात का ग़लत आकलन करते हैं कि हम जो पढ़ते हैं, उसका एक बड़ा हिस्सा आगे चल कर भूल जाते हैं। इसलिए अच्छा होगा कि कोई सबक़ पढ़ें, तो कुछ वक़्त के अंतराल के बाद दोबारा ख़ुद को जांचें कि जो याद किया था, वो वाक़ई याद हुआ भी था या नहीं।