अपना दूसरा कार्यकाल शुरू करने से पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली भारतीय जनता पार्टी सरकार ने 2019 में चुनावी घोषणापत्र के लिए सरकारी योजनाओं के ख़ास लक्ष्य निर्धारित किए थे। क्या जिन लक्ष्यों का वादा किया गया था वो साल 2024 तक हासिल कर लिए गए? बीबीसी ने 5 सरकारी योजनाओं के बारे में उपलब्ध सार्वजनिक डाटा पर नज़र डाली।
हमें इससे ये पता चला-
पीएम किसान सम्मान निधि (पीएम-किसान)
वादाः 2 एकड़ तक ज़मीन के मालिक किसानों को वित्तीय सहयोग दिया जाएगा। आगे चलकर ये वित्तीय सहयोग देश के सभी किसानों को दिया जाएगा
2018-19 में लाई गई इस योजना का मक़सद देश के सभी छोटे और सीमांत किसानों को 6000 रुपए सालाना कैश ट्रांसफर देना है।
ये मदद 2 हैक्टेयर तक कृषि योग्य भूमि के मालिक सभी किसानों को दी जाती है। जून 2019 में देश के सभी किसानों को इस योजना के दायरे में लाया गया था और भूमि के मालिकाना हक़ की सीमा हटा दी गई थी।
सरकार सालाना 3 किस्तों में किसानों को पैसा भेजती है। ये मदद लाभार्थी के बैंक खाते में सीधे जमा की जाती है।
ये योजना शुरू होने के बाद से अब तक 52 करोड़ लाभार्थियों को फ़ायदा पहुंचाया गया है। साल 2023-24 में 8.5 करोड़ किसानों को किसान निधि की किस्त पहुंचाई गई।
इस योजना के लाभार्थियों के मामले में उत्तरप्रदेश सबसे आगे है। उत्तरप्रदेश में 1.8 करोड़ लाभार्थी हैं। देश के 21 प्रतिशत लाभार्थी किसान उत्तरप्रदेश में ही हैं।
पीएम किसान योजना
कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय के अंतर्गत किसान निधि सबसे बड़ी योजना है। वित्त वर्ष 2021-22 में मंत्रालय ने अपने कुल बजट का 49 प्रतिशत पैसा इसी योजना पर ख़र्च किया। योजना शुरू होने के बाद से इसके लिए आवंटित की जाने वाली धनराशि 3 गुना हो गई है।
साल 2018-19 में सरकार ने इस योजना के लिए 20 हज़ार करोड़ रुपए का बजट निर्धारित किया था जबकि साल 2019-20 के बजट में इस योजना के लिए 75 हज़ार करोड़ रुपए आवंटित किए गए थे।
हालांकि, कुछ समायोजन के बाद, उस वर्ष योजना के लिए अंतिम आवंटन 54370 करोड़ रुपए ही रहा था जो कि शुरुआती आवंटन से 28 प्रतिशत कम था।
अंतिम आवंटन में ये कमी इसलिए हुई क्योंकि योजना के लिए पंजीकरण करने वाले किसानों और योजना का लाभ लेने लायक किसानों की वास्तविक संख्या में बड़ा अंतर था। वहीं फ़रवरी-मार्च 2019 में चुनावों की वजह से कुछ भुगतान को रोक भी दिया गया था।
जल जीवन मिशन (नल से जल)
वादाः देश के सभी परिवारों को साल 2024 तक टंकी से पानी पहुंचाना
भारत सरकार ने 2009 में स्थापित मौजूदा राष्ट्रीय ग्रामीण पेयजल कार्यक्रम (एनआरडीडब्ल्यूपी) को जल जीवन मिशन (जेजेएम) में बदल दिया और 2024 तक प्रत्येक ग्रामीण परिवार को चालू घरेलू नल कनेक्शन (एफ़एचटीसी) देने का लक्ष्य निर्धारित किया।
भारत में क़रीब 19 करोड़ परिवार हैं और अब लगभग 14 करोड़ यानी तक़रीबन 73 प्रतिशत परिवारों के पास पानी की टंकी के कनेक्शन हैं।
ये साल 2019 के मुक़ाबले उल्लेखनीय वृद्धि है। तब भारत में सिर्फ़ 16.80 प्रतिशत परिवारों के पास ही पानी का कनेक्शन था।
राज्यों में पश्चिम बंगाल सबसे पीछे है। यहां सिर्फ़ 41 प्रतिशत परिवारों के पास ही पानी का कनेक्शन है। इसके बाद राजस्थान और झारखंड का नंबर है।
इन दोनों राज्यों में पानी के कनेक्शन वाले परिवारों की संख्या 50 प्रतिशत से कम है। वहीं गोवा, हरियाणा, तेलंगाना, गुजरात और पंजाब में 100 प्रतिशत परिवारों तक टंकी का पानी पहुंच चुका है।
जनवरी 2024 तक, केंद्र और राज्य दोनों सरकारों ने सामूहिक रूप से इस योजना के लिए 1 लाख करोड़ से अधिक का खर्च वहन किया है।
पिछले चार सालों में, न केवल केंद्र सरकार ने अपने वित्त पोषण में वृद्धि की है, बल्कि राज्य सरकारों का योगदान भी बढ़ा है। उदाहरण के लिए, वित्तीय वर्ष 2019-20 में, राज्यों का कुल धन ख़र्च का 40% हिस्सा था। ये आंकड़ा अब वित्तीय वर्ष 2023-24 में बढ़कर 44% हो गया है।
हालांकि अब भी देश के क़रीब 5 करोड़ परिवारों के पास पानी का कनेक्शन नहीं है। जल जीवन मिशन के तहत प्रति वर्ष औसतन क़रीब 2 करोड़ परिवारों को इस योजना से जोड़ा गया है।
सबसे ज़्यादा कनेक्शन 2019-20 में हुए। इस साल 3.2 करोड़ परिवारों तक टंकी का पानी पहुंचाया गया।
कनेक्शनों की गति का आकलन करने के लिए और यह पता करने के लिए कि क्या वित्त वर्ष 2023-24 के अंत तक सभी शेष घरों को जोड़ा जा सकता है, हमने कनेक्शनों की वार्षिक प्रतिशत वृद्धि को देखा।
2022-23 में, कनेक्शन में पिछले वर्ष की तुलना में 15% (2 से 2.33 करोड़ घरों तक) की वृद्धि हुई, लेकिन 2023-24 में दर धीमी होकर 6% की वृद्धि (2.48 करोड़ परिवार, अतिरिक्त 15 लाख परिवार) तक ही सीमित रह गई।
हालांकि इस रफ़्तार से साल के अंत तक हर घर तक टंकी का पानी नहीं पहुंचाया जा सकता है, लेकिन डेटा इंगित करता है कि 80% से अधिक घरों में साल के अंत तक पानी के कनेक्शन पहुंच जाएंगे।
बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ
वादाः लिंग आधारित चयनात्मक उन्मूलन को रोकना, बालिकाओं की सुरक्षा करने और उनके जीवन के अधिकार की रक्षा करना, परिवारों में बालिकाओं का मूल्य निर्माण करना और लड़कियों के लिए शिक्षा और भागीदारी सुनिश्चित करना
भारत सरकार ने साल 2015 में 'बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ' योजना लागू की थी। इसका मक़सद लिंग के आधार पर भेदभाव को मिटाना और महिलाओं का सशक्तीकरण करना है।
शुरुआत में इस योजना का बजट सौ करोड़ रुपए रखा गया था जिसे साल 2017-18 में बढ़ाकर 200 करोड़ कर दिया गया था।
मंत्रालय ने इस योजना के लिए निर्धारित कुल बजट का क़रीब 84 प्रतिशत ख़र्च किया और इसमें से अधिकतर पैसा क़रीब 164 करोड़ रुपए, जागरूकता और मीडिया अभियानों पर ख़र्च किया गया।
इससे अगले वित्तीय वर्ष में, कुल ख़र्च में कटौती के बावजूद साल 2018 से 2022 के बीच मंत्रालय ने कुल ख़र्च का 40 प्रतिशत जागरूकता और मीडिया अभियानों पर ही ख़र्च किया।
सरकार का ये वादा लड़कियों की शिक्षा पर भी ज़ोर देता है। इसका आकलन करने के लिए, महिला छात्रों के सकल नामांकन अनुपात (जीईआर) की जांच की और इससे एक सकारात्मक ट्रेंड नज़र आया।
2016-17 में लड़कियों का जीईआर (23.8) लड़कों (24.3) की तुलना में कम था। हालांकि, 2020-21 तक, यह लड़कों के अनुपात 27.3 को पार करते हुए बढ़कर 27.9 हो गया था।
इसके साथ ही, माध्यमिक विद्यालय में लड़कियों की ड्रॉपआउट दर 2018-19 में 17.1 से घटकर 2020-21 में 12.3 हो गई, जो लड़कों (13) के लिए इसी दर से कम है।
प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना (पीएमएफबीवाई)
वादाः सभी किसानों की फसलों का बीमा करना और कृषि में ख़तरों को कम करना
2016 में शुरू की गई, यह योजना प्राकृतिक आपदाओं, कीटों या बीमारियों के कारण फसल नुकसान का सामना करने वाले किसानों को बीमा और वित्तीय सहायता प्रदान करती है।
स्वैच्छिक होने के बावजूद, इस योजना के तहत कार्यान्वयन करने वाले राज्यों में सकल फसली क्षेत्र (जीसीए) के 30% से अधिक और गैर-ऋणी किसानों को इस योजना के साथ नामांकित किया गया है।
सबसे ताज़ा डाटा के मुताबिक़, किसानों द्वारा भुगतान किए गए 30800 करोड़ रुपए के प्रीमियम के बदले किसानों को इस योजना के तहत 150589 करोड़ रुपए का भुगतान किया जा चुका है।
इसके अतिरिक्त, डाटा से पता चलता है कि इस योजना के तहत पंजीकरण कराने वाले किसानों की तादाद बढ़ रही है। साल 2018-19 में 5.77 करोड़ किसानों ने पंजीकरण किया था जबकि साल 2021-22 में ये तादाद बढ़कर 8.27 करोड़ पहुंच गई।
हालांकि, इस योजना के तहत बीमित भूमि क्षेत्र साल 2021-22 में 525 लाख हैक्टेयर से घटकर 456 लाख हैक्टेयर हो गया है।
इसका प्रमुख कारण कुछ राज्यों का इस योजना से बाहर होकर अपनी अलग से फसल बीमा योजना लागू करना भी है।
लंबित भुगतान के मामले में राजस्थान और महाराष्ट्र सबसे अग्रणी राज्य हैं।
साल 2021-22 में राजस्थान में 430 करोड़ रुपए के दावों का भुगतान होना बाक़ी है जबकि महाराष्ट्र में 443 करोड़ रुपए का भुगतान किया जाना बाक़ी है।