असम में नागरिकता क़ानून के ख़िलाफ़ आंदोलन : आख़िर सैम स्टफर्ड का कसूर क्या था?

Webdunia
रविवार, 15 दिसंबर 2019 (17:50 IST)
- फ़ैसल मोहम्मद अली, गुवाहाटी
सैम स्टफर्ड ने मां से फ़ोन पर कहा था, ज़ोर की भूख लगी है माई चिकन-पुलाव बनाओ। लेकिन नसीब में कुछ और लिखा था, कुछ ही देर बाद 2 गोलियों ने उसके शरीर को भेद डाला। एक सैम की ठुड्डी को चीरती हुई सिर की तरफ़ से निकल गई, दूसरी ने पीठ पर अपना निशान छोड़ दिया। बीते गुरुवार को याद करते हुए मां मैमोनी स्टफर्ड के चेहरे की मांसपेशियां हल्के-हल्के कांपने लगती है, ख़ुद पर क़ाबू पाकर वो कहती हैं, वो पुलाव-चिकन नहीं खा पाया, उसको अस्पताल ले गए...

मैमोनी स्टफर्ड बताती हैं, उस दिन नागरिकता क़ानून के खिलाफ़ लताशिल मैदान में विरोध-प्रदर्शन था, जिसमें मशहूर असमिया गायक ज़ुबिन गर्ग समेत कई बड़े आर्टिस्ट आ रहे थे, तो सैम सुबह-सुबह ही वहां चला गया था, और गोधूलि बेला के समय लौटते हुए उसका फ़ोन आया था।

चश्मदीदों और परिवार वालों के मुताबिक़, गोली तब चली जब सैम एक तरफ़ से घर को जा रहा था और सामने से एक छोटी रैली आ रही थी। असम में नागरिकता विधेयक के लोकसभा में पेश किए जाने के साथ ही विरोध-प्रदर्शनों का सिलसिला शुरू हो गया था जिसमें कई तरह की निषेधाज्ञा के बावजूद लोग बड़ी तादाद में शामिल हो रहे थे।

असम में 3 जानें जा चुकी हैं...
कई लोगों का तो कहना था कि इनमें से कुछ प्रदर्शन तो इतने विशाल थे कि पिछले 3 दशकों में नहीं देखे गए। प्रशासन पर बेहद दबाव था और इसी दौरान हिंसा हुई जिसमें अब तक असम में 3 जानें जा चुकी हैं। सैम स्टफर्ड उस दिन गोली खाकर जहां गिरे थे, उस जगह को ईंटों से घेरकर लोगों ने उसकी तस्वीर वहां डाल दी है जहां एक दिया दिनभर जलता रहता है। शनिवार को वहां एक शोकसभा हुई जिसमें उसके परिवार को बुलाया गया था, रविवार को वहां से एक रैली निकाली गई। पास की गली में रहने वाले मुफ़ीद लश्कर गुरुवार शाम की रैली के साथ थे।

ख़ौफ़ का माहौल
मुफ़ीद लश्कर कहते हैं, दूर कुछ एसयूवी खड़ी थी, 4 या 5 जिनकी एकसाथ ऑन हुई हैडलाइट ने सामने से आ रही रैली को अचानक से रोशनी में नहला दिया, पर मिनटभर में ही गाड़ियों की लाइट बंद हो गईं और तभी गोली चलने की तेज़ आवाज़ आई, सामने एक लड़का सड़क की तरफ़ गिर रहा था। मुफ़ीद लश्कर के मुताबिक़ उसके बाद सफ़ेद रंग की 5 एसयूवी का काफ़िला सड़क पर औंधेमुंह पड़े सैम स्टफर्ड के पास से होते हुए आगे बढ़ गया।

पुलिस ने गोली चलाने की बात से इनकार किया है और जांच की बात कही है। विरोध-प्रदर्शनों पर लगाम लगाने का ज़िम्मा मगर कुछ सख़्त माने जाने वाले पुलिस अधिकारियों के हाथों सौंपे जाने की बात दबे लफ़्ज़ों में कई तरफ़ हो रही है। हालांकि विरोध-प्रदर्शनों का सिलसिला अब भी जारी है लेकिन लोगों के अंदर एक ख़ौफ़ का माहौल है।

इंटरनेट पर पाबंदी
दोपहर के बाद से ही दुकानें बंद होने लगती हैं, शाम में सड़कों पर लोगों का दिखना मुश्किल है। 4 बजे के बाद से शहर में कर्फ्यू जारी है, इंटरनेट पर पूरी पाबंदी है, वाईफाई भी ज़्यादा जगहों पर काम नहीं कर रहे। सैम स्टफर्ड के घर नाते-रिश्तेदारों से लेकर राजनीतिज्ञों का तांता लगा है, प्रार्थना सभाएं हो रही हैं, उसे शहीद बुलाया जा रहा। कुछ हिंदू, मुस्लिम मां और ईसाई पिता की इस संतान यानी सैम स्टफर्ड का श्राद्ध करने की बात कह रहे हैं। घरवालों के लिए मगर उनका लाडला तूतू वही 17 साल का गोल मटोल सा बच्चा है।

अब क्रिसमस नहीं होगा...
बहन मासूमी बेगम आंसुओं के बीच कहती हैं, उसको एविएटर स्कूटर का शौक था, कहता था कहीं से लेकर दो, मैंने कहा था मैं कर्ज़ लेकर भी दूंगी। क्रिसमस से हफ्ता दस दिन पहले हुई दुर्घटना ने घर के माहौल को और ग़मगीन बना दिया है। उसके दोस्त आते थे, खाना-पीना खाते थे, मगर अब क्रिसमस नहीं होगा न, आख़िरी जुमला कहते-कहते उनकी आवाज़ भर्रा जाती है। दुख के साथ उनके सवाल भी हैं।

मासूमी बेगम पूछती हैं, उसके पास कोई हथियार नहीं था तो क्यों मारा? मारना था तो पैर में मार देते, हम फिर भी उसको रख लेते, लेकिन जान से क्यों मार डाला? किसने दिया उनको ये अधिकार? सवाल तो लेकिन ये भी है कि भारत की नई व्यवस्था (नागरिकता क़ानून और एनआरसी) सैम स्टफर्ड के परिवार को किस खांचे में रखेगा, जिसके पिता क्रिश्चियन यानी ईसाई हैं, मां और बहन मुसलमान और चाची हिंदू?

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