इंसान आने वाले दिनों में बुढ़ापा आना रोक देगा?

शनिवार, 22 दिसंबर 2018 (10:45 IST)
- डिएगो आर्ग्यूदेज़ ओरटीज़, बेथ सागर फेंटन और हेलेना मेरीमैन (बीबीसी फ़्यूचर)
 
बुढ़ापा इंसान की उम्र का सबसे खराब दौर माना जाता है। आम हिंदुस्तानी तो इसे बुरा आपा भी कहते हैं। यानी उम्र का ये वो हिस्सा होता है जिसका आना तय है लेकिन कोई इसे जीना नहीं चाहता। बुढ़ापे में इंसान शारीरिक रूप से कमज़ोर और दूसरों पर आश्रित हो जाता है।
 
 
एक रिसर्च के मुताबिक़ बुढ़ापे में कैंसर, अल्ज़ाइमर और हड्डियों की कई बीमारियों का शिकार होकर दुनिया भर में हर रोज़ क़रीब एक लाखबुज़ुर्गों की मौत होती है। बुढ़ापा दुनिया भर के लिए चिंता का विषय है। बड़े-बड़े वैज्ञानिक और रिसर्चर इस अवस्था से बचने के उपाय सोच रहे हैं। आपको जानकर हैरानी होगी कि बुढ़ापा रोकने में कुछ ख़ास क़िस्म के कीड़े और थ्री-डी प्रिंटेड ऑर्गन मुख्य भूमिका निभाएंगे।
 
 
बुढ़ापा है क्या
आख़िर बुढ़ापा है क्या और ये क्यों होता है। डेनमार्क के डॉक्टर कारे क्रिससेन का कहना है कि एक खास उम्र तक हमारे शरीर में कोशिकाएं बनने का सिलसिला चलता रहता है। बढ़ती उम्र के साथ ये सिलसिला कमज़ोर पड़ने लगता है और बेकार कोशिकाएं शरीर में इकट्ठा होने लगती हैं।
 
 
यही कोशिकाएं आगे चलकर बुढ़ापे की वजह बनती हैं। डॉक्टर कारे ख़ुद अपना डेनिश एजिंग रिसर्च सेंटर चलाते हैं। उनकी पहली कोशिश यही होती है कि लोगों को बीमार होने से रोका जाए। ज़्यादा बीमार होने की वजह से भी बुढ़ापा जल्दी दस्तक देता है।
 
 
उन्नीसवीं सदी की शुरुआत तक दुनिया भर में इंसान की औसत उम्र 40 साल थी। लेकिन, आज लोग ज़्यादा लंबी और सेहतमंद ज़िंदगी जीते हैं। उत्तरी यूरोप में तो औसत उम्र 80 साल तक है। बहुत जल्द दुनिया के बाक़ी देशों में भी औसत उम्र इतनी हो जाएगा।
 
 
इसकी बड़ी वजह है बीमारियों पर काबू। जब तक बीमारियों और दवाओं पर रिसर्च नहीं हुई थी बड़ी संख्या में कम उम्र में ही मौत हो जाती थी। इस तरक़्क़ी से साफ़ है कि इंसान बुढ़ापे को लंबे वक़्त के लिए टाल सकता है। मौत का समय आने में देर कर सकता है। सेहत में बेहतरी से ऐसा मुमकिन हो सकता है। और इसकी शुरुआत दांतों से हो सकती है।
 
 
अंग ट्रांसप्लांट एक रास्ता
डॉ। कारे के मुताबिक़ किसी की सेहत का अंदाज़ा उसके दांतों से लगाया जा सकता है। अगर दांत मज़बूत हैं तो आप कुछ भी अच्छी तरह चबाकर खा सकते हैं। अच्छा खाना खाएंगे तो सेहत भी अच्छी रहेगी। साथ ही आई-क्यू लेवल भी अच्छा रहता है। अब तो बुज़ुर्गों के दांत भी ख़ूब मज़बूत होने लगे हैं। यानि हालात बदल रहे हैं, आगे इसमें और सुधार होगा।
 
 
अभी तक फ़्रांस की ज्यां लुई कालमेंट के नाम दुनिया की सबसे उम्रदराज़ महिला होने का रिकॉर्ड दर्ज है। कालमेंट ने 1997 में 122 साल की उम्र में दुनिया छोड़ी थी। इस बात को आज बीस साल से ज़्यादा का वक़्त गुज़र चुका है और तब से अब तक सेहत और तकनीक के मोर्चे पर काफ़ी तरक़्क़ी हो चुकीहै।
 
 
बुढ़ापे में ज़्यादातर लोगों की मौत शरीर के नाज़ुक अंगों जैसे दिल, जिगर और गुर्दों के काम बंद करने की वजह से होती है। अगर ये नाज़ुक अंग हमेशा स्वस्थ रहें या इनके ख़राब होने पर सेहतमंद अंग ट्रांसप्लांट कर दिए जाएं तो ज़्यादा वक़्त जिया जा सकता है। लेकिन, दुनिया में बुज़ुर्ग इतने ज़्यादा हैं कि सभी के लिए ये बंदोबस्त नहीं किया जा सकता। इसके अलावा डोनर और रिसीवर का अंग एक जैसा होना भी शर्त है और ऐसा अक्सर हो नहीं पाता।
 
 
ऐसे में भारत के बायोफ़िज़िस्ट तुहिन भौमिक ने आर्टिफ़िशयल एंड पोर्टेबल अंग बनाने के बारे में सोचा। उनका कहना है कि मरीज़ की एम।आर।आई और सी।टी स्कैन किया जाता है जिसमें अंग का सटीक साइज़ और आकार नज़र आता है। इसी मोल्ड को कंप्यूटर में फीड करके समान आकार और साइज़ वाले अंग थ्री-डी प्रिंटिंग के ज़रिए बनाए जा सकते हैं।
 
 
तुहिन भौमिक बताते हैं कि थ्री-डी प्रिंटिंग में आला दर्जे की स्याही का इस्तेमाल होता है। भौमिक ने ऐसी डिवाइस तैयार की है जिसमें प्रोटीन और मरीज़ के शरीर की कोशिकाओं से बनी स्याही इस्तेमाल होती है। लिहाज़ा बहुत ही कम संभावना है कि इस तरह के अंगों को मरीज़ का शरीर स्वीकार ना करे।
 
 
भौमिक और उनकी टीम भारत का पहला ह्यूमन लिवर टिशू बना चुकी है और अब उनका अगला क़दम पोर्टेबल मिनिएचर लिवर बनाने का है जिसके साथ मरीज़ कहीं भी घूम फिर सकता है। वहीं, अगले दस साल में ऐसा लिवर तैयार करने की तैयारी है, जिसे शरीर कें अंदर फ़िट किया जा सकेगा। इस काम में क़रीब दस साल का वक़्त लग सकता है। भौमिक का मानना है कि अगर ये तजुर्बा कामयाब रहा तो इंसान की उम्र 135 साल की हो जाएगी।
 
 
कितने काम के माइक्रोबायोम
हमारे शरीर के अंदर और बाहर बहुत तरह के छोटे-छोटे कीटाणु रहते हैं। ये इतने छोटे होते हैं कि हम इन्हें नंगी आंखों से नहीं देख सकते। बैक्टीरिया,फफूंद और भी कई तरह के वायरस इसी फ़ेहरिस्त में आते हैं। साइंस की भाषा में इन्हें माइक्रोबायोम कहा जाता है। ये माइक्रोबायोम बीमारियों का कारण तो हैं ही, साथ ही हमें सेहतमंद रखने के लिए ज़रूरी भी हैं।
 
 
हाल में हुई रिसर्च से पता चला है कि माइक्रोबायोम हमारे शरीर के लिए उतने ही ज़रूरी हैं जितना कि शरीर का कोई अंग। अमरीका के बेलर कॉलेज ऑफ मेडिसिन की प्रोफ़ेसर मेंग वांग रिसर्च के ज़रिए ये पता लगाने की कोशिश कर रही हैं कि क्या माइक्रोबायोम के ज़रिए बुढ़ापे के असर को कम किया जा सकता है।
 
 
रिसर्च के लिए उन्होंने ख़ास क़िस्म के कीड़ों को चुना जिनकी खुद की उम्र बहुत छोटी थी। प्रोफ़ेसर वांग ने कीड़ों की आंत में पलने वाले बेक्टीरिया को तोड़कर दूसरी क़िस्म के कीड़ों में डाल दिया। तीन हफ़्ते बाद उन्होंने देखा कि जिन कीड़ों को इतने वक़्त में मर जाना चाहिए उनमें से बहुत से कीड़े ना सिर्फ़ ज़िंदा थे बल्कि सेहतमंद थे।
 
 
अब प्रोफ़ेसर मेंग वांग यही तजुर्बा चूहों पर कर रही हैं। अगर ये तजुर्बा कामयाब रहा तो ऐसी गोलियां बना ली जाएंगी जिनके खाने से इंसान की उम्र 100 से 200 साल तक हो सकेगी।
 
 
हमारा शरीर छोटी-छोटी कोशिकाओं से मिलकर बनता है। हर एक कोशिका की एक खास उम्र होती है जो समय के साथ बूढ़ी होकर निष्क्रिय हो जाती हैं और शरीर में जमा रहती हैं। ये अन्य स्वस्थ कोशिकाओं को प्रभावित करने लगती हैं। शरीर एक हद तक इनकी मार झेलता है लेकिन एक समय बाद हिम्मत हार जाता है।
 
 
इंग्लैंड की एक्सटर यूनिवर्सिटी में मॉलिक्युलर जेनेटिक्स की प्रोफ़ेसर लोरेना हैरिस का कहना है कि बहुत जल्द रिसर्च के ज़रिए ऐसे रसायन तैयार कर लिए जाएंगे जिनकी मदद से बूढ़ी हो रही कोशिकाओं को फिर से जवान किया जा सकेगा और मौजूदा कोशिकाओं को बूढ़ा होने से रोका जकेगा। इससे ना सिर्फ़ उम्र में इज़ाफ़ा होने की उम्मीद है बल्कि बहुत सी बीमारियों से लड़ने में भी मदद मिलेगी।
 
 
सवाल अंत में यही है कि इन तजुर्बों के बाद अगर कामयाबी मिल भी जाती है तो और कितने साल हम अपनी उम्र में जोड़ सकते हैं। तुहिन भौमिक की बात पर विश्वास किया जाए तो 135 साल की उम्र तो कम से कम हर इंसान को मिल ही जाएगी। लेकिन, ज़िंदगी का अंत तो मौत ही है। मौत से कोई भी रिसर्च किसी भी जीव को नहीं बचा सकती। ज़िंदगी छोटी हो या बड़ी वो सेहतमंद, खुशहाल और कामयाब होनी चाहिए।
 

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