एम्बुलेंसों की क़तार, तेज़ी से बसों से उतरते एसडीआरएफ़ के जवान, छूट गए जूते-चप्पलों का ढेर, लाइव रिपोर्टिंग करते टीवी मीडिया के पत्रकार और लापता हुए अपनों को तलाशते लोग। ये उत्तरप्रदेश के हाथरस ज़िले के सिकन्द्राराऊ क़स्बे के नज़दीक सत्संग कार्यक्रम में हुई भगदड़ के बाद का मंज़र है, जो इस हादसे की पूरी कहानी कहने के लिए काफ़ी नहीं है।
2 जुलाई की देर शाम, उत्तरप्रदेश के प्रमुख सचिव मनोज कुमार ने इस हादसे में कम से कम 116 लोगों के मारे जाने की पुष्टि की। उन्होंने कहा कि एफ़आईआर दर्ज होगी और घटना की पूरी जांच होगी। इस हादसे में ज़्यादातर महिलाओं की मौत हुई है। इस सत्संग के आयोजन की तैयारी कई दिनों से चल रही थी। टेंट 8 दिन में लगकर पूरा हुआ।
आयोजनकर्ताओं ने अनुमति मांगते हुए प्रशासन को बताया था कि क़रीब 80 हज़ार लोग सत्संग में हिस्सा लेंगे, लेकिन यहां पहुंचने वालों की वास्तविक संख्या इससे कहीं ज़्यादा रही।
चश्मदीदों और भक्तों के मुताबिक़, सत्संग समाप्त होने के बाद यहां आए श्रद्धालुओं में बाबा के चरणों की धूल इकट्ठा करने की होड़ मच गई और यही भगदड़ का कारण रही।
हाथरस भगदड़: अहम बातें
यूपी के हाथरस में 2 जुलाई को नारायण साकार के सत्संग में भगदड़
100 से ज़्यादा लोगों की मौत, बढ़ सकती है संख्या
प्रशासन ने जारी किए हेल्पलाइन नंबर- 9259189726, 9084382490
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जो गिरा, वो उठ नहीं पाया
आयोजन स्थल अलीगढ़ से एटा को जोड़ने वाले नेशनल हाईवे 34 पर सिकन्द्राराऊ क़स्बे से क़रीब 4 किलोमीटर दूर फुलराई गांव में हैं।
यहां सैकड़ों बीघा ज़मीन में टेंट लगाया गया था जिसे जल्दबाज़ी में उखाड़ा जा रहा है।
अधिकतर लोगों की मौत, आयोजन स्थल के उस पार हाईवे किनारे हुई है। बारिश होने की वजह से हाईवे के इस ढलान पर फिसलन है।
चश्मदीदों के मुताबिक़, जो इस भगदड़ में गिरा वो उठ नहीं सका। दिन में हुई बारिश की वजह से भी मिट्टी गीली थी और फिसलन थी, इससे भी हालात और मुश्किल हो गए।
नारायण साकार विश्व हरि उर्फ़ 'भोले बाबा' के निकलने के लिए अलग से रास्ता बनाया गया था। बहुत सी महिलाएं बाबा के क़रीब से दर्शन पाने के लिए खड़ी थीं।
जैसे ही सत्संग समाप्त हुआ, हाईवे पर भीड़ बढ़ गई। नारायण साकार जब अपने वाहन की तरफ़ जा रहे थे, उसी वक़्त भगदड़ मची।
नारायण साकार के भक्त जब भगदड़ में फंसे थे, वो वहां रुके बिना आगे बढ़ गए। इस घटना के बाद से बाबा या उनके सत्संग से जुड़े लोगों की तरफ़ से कोई अधिकारिक बयान नहीं आया है।
भक्तों की श्रद्धा
बहराइच ज़िले से आई गोमती देवी के गले में नारायण साकार की तस्वीर का लॉकेट है। जिसे उन्होंने पूरी आस्था के साथ पहन रखा है।
जिस बस में वो आईं थी, उसकी 2 सवारियां लापता हैं। इस हादसे के बाद भी गोमती के मन में नारायण साकार के लिए जो श्रद्धा है, उसमें कोई कमीं नहीं आई है।
कुछ घंटे तलाशने और लापता लोगों को खोजने में नाकाम रहने के बाद, बहराइच से आई बस बाक़ी बचे श्रद्धालुओं को लेकर लौट गई।
इस भीषण हादसे के बाद भी इस समूह के श्रद्धालुओं का विश्वास नारायण साकार में कम नहीं हुआ है।
क़रीब 4 साल पहले बाबा के सत्संगियों के संपर्क में आने वाली गोमती देवी गले में लटकी नारायण साकार की तस्वीर की माला दिखाते हुए दावा करती हैं, 'इसे गले में लटकाने से लाभ मिलता है, सुकून मिलता है, मर्ज़ ठीक हो जाते हैं, घर का क्लेश कट जाता है, रोज़गार मिलता है।'
बहराइच से ही आए दिनेश यादव कहते हैं, 'हमारी तरफ़ के लोग बाबा की छवि रखकर पूजा करते थे, उन्हें देखकर हम भी पूजा करने लगे, हम एक साल से इस संगत में हैं। अभी हमें कोई अनुभव नहीं हुआ लेकिन परमात्मा (बाबा) पर हमें विश्वास है, जो मन्नत मांगते हैं वो पूरी होती है।'
दिनेश इस हादसे के लिए नारायण साकार को ज़िम्मेदार नहीं मानते थे।
भगदड़ के बाद का हाल
भगदड़ क़रीब दिन में 2.30 बजे मची। घायलों को आनन-फानन में सिकनद्राराऊ सीएचसी ले जाया गया। यहां पहुंचने वाले पत्रकार बताते हैं कि सीएचसी के ट्रामा सेंटर के आंगन में लाशों का ढेर लग गया था।
हाथरस में एक दशक से अधिक से पत्रकारिता कर रहे बीएन शर्मा बताते हैं, 'मैं 4 बजे यहां पहुंचा। हर जगह लाशें पड़ी हुई थीं। एक लड़की की सांस चल रही थी। उसे इलाज नहीं मिल सका और मेरे सामने ही उसने दम तोड़ दिया।'
यूं तो ये सिकन्द्राराऊ का सबसे बड़ा अस्पताल है लेकिन इसकी क्षमता इतने बड़ी संख्या में हताहतों को संभालने के लिए काफ़ी नहीं है।
इस हादसे के बारे में शुरुआती जानकारी 10-15 लोगों को हताहत होने की थी। प्रशासन के अधिकारी भी क़रीब 4 बजे अस्पताल पहुंच पाए।
शाम क़रीब 6 बजे बीबीसी से बात करते हुए हाथरस के पुलिस अधीक्षक निपुण अग्रवाल ने 60 लोगों के शव गिने जाने की पुष्टि की थी। हर बीतते घंटे के साथ मरने वालों का आंकड़ा बढ़ता गया।
प्रशासन ने शवों को आसपास के ज़िलों एटा, कासगंज, आगरा और अलीगढ़ भिजवा दिया। ये उन लोगों के लिए परेशानी का सबब बना जिनके अपने लापता हो गए हैं।
अपनों को खोजते लोग
मथुरा के रहने वाले और गुरुग्राम में प्लंबर का काम कर रहे विपुल अपनी मां को खोजने के लिए कुछ दोस्तों के साथ किराए की टैक्सी करके रात क़रीब 11 बजे सिकनद्राराऊ पहुंचे।
उन्होंने हेल्पलाइन नंबरों, कंट्रोल सेंटर और अस्पतालों में फोन किया लेकिन मां के बारे में कोई जानकारी नहीं मिली।
विपुल हाथरस के ज़िला अस्पताल पहुंचे जहां क़रीब 30 शव पहुंचाए गए थे। उन्हें अपनी मां नहीं मिलीं।
रात क़रीब 2 बजे वो अलीगढ़ के जेएन मेडिकल कॉलेज पहुंचे। यहां भी उनकी तलाश जारी थी।
विपुल बताते हैं, 'मेरी मां सोमवती क़रीब एक दशक से बाबा के सत्संग से जुड़ी थीं। उनकी बाबा में गहरी आस्था थी। उनके साथ आई महिलाओं ने बताया कि वो लापता हो गईं हैं तो मैं तुरंत गुरुग्राम से भागकर यहां आया।'
अलग-अलग ज़िलों से आए कई और लोग परिजनों को तलाशने की मशक्कत करते दिखे।
कासगंज से आए शिवम कुमार की मां भी लापता हैं। जब वो सीएचसी पहुंचे यहां से सभी शवों को दूसरे अस्पतालों में भेजा जा चुका था। वो अपनी मां का आधार कार्ड लेकर भटक रहे थे।
अलीगढ़ से आए बंटी के पास सीएचसी के बाहर की एक तस्वीर थी जिसमें उनकी मां मौहरी देवी कई महिलाओं के साथ सीएचसी के बाहर पड़ीं थीं। उन्होंने मीडिया में प्रसारित हुए वीडियो से अपनी मां को पहचाना है।
बंटी जानते हैं कि उनकी बुज़ुर्ग मां अब इस दुनिया में नहीं है। वो बस जल्द से जल्द अपनी मां के शव को खोज लेना चाहते हैं।
बंटी कहते हैं, 'सीधे यहां पहुंचा हूं। समझ नहीं आ रहा कि कासगंज जाऊं, एटा जाऊं, अलीगढ़ जाऊं या फिर हाथरस। बंटी कंट्रोल सेंटर के कई नंबरों पर कॉल करते हैं, कहीं से कोई पुख़्ता जानकारी नहीं मिलती। एक ऑपरेटर उन्हें सभी अस्पतालों में जाकर देख लेने की सलाह देता है।'
पहचान कैसे की जाए?
घटना में मारे गए कई लोगों की पहचान रात 12 बजे तक भी नहीं हो सकी। जिन लोगों की पहचान हुई है, प्रशासन ने उनकी सूची जारी की है। लेकिन लावारिस लोगों के परिजनों के सामने उन्हें तलाशने की चुनौती है।
नारायण साकार के सत्संग में आने वाले अधिकतर लोग कमज़ोर आर्थिक वर्ग और पिछड़ी जातियों से हैं। एक दूसरे के संपर्क में आने से ये अपने आप को बाक़ी सत्संगियों के क़रीब पाते हैं और जीवन में आ रही चुनौतियों के समाधान के लिए नारायण साकार का सहारा लेते हैं।
स्थानीय पत्रकारों के मुताबिक़, नारायण साकार हाथरस में पिछले कुछ सालों में कई बार सत्संग कर चुके हैं और हर बार पिछली बार से अधिक भीड़ होती है जो इस बात का इशारा है कि सत्संग से जुड़ने वालों की संख्या लगातार बढ़ रही है।
पत्रकार बीएन शर्मा बताते हैं, 'बाबा के सत्संग में मीडिया की एंट्री नहीं होती है, वीडियो बनाने पर रोक रहती है। बाबा मीडिया में भी अधिक प्रचार नहीं करते हैं।'
बीएन शर्मा कई बार बाबा के सत्संग को 'बाहर से' देख चुके हैं। उनके मुताबिक़- सत्संगी बेहद अनुशासित होते हैं। सत्संग स्थल की साफ़-सफ़ाई ख़ुद करते हैं और बाक़ी ज़िम्मेदारियां भी स्वयं ही संभालते हैं। भीड़ के प्रबंधन से लेकर ट्रैफिक के प्रबंधन तक का काम सत्संगियों के ही जिम्मे होता है।
नारायण साकार की सुरक्षा में सत्संगियों का भारी दस्ता रहता है जो उनके इर्द-गिर्द चलता है जिसकी वजह से नारायण साकार के क़रीब तक पहुंचना मुश्किल हो जाता है।
सत्संग के दौरान बाबा के पैरों और शरीर को धोने वाले जल जिसे चरणामृत भी कहा जाता है, इसे लेने की होड़ भी भक्तों में मची रहती है।
बीएन शर्मा कहते हैं, 'भक्त बाबा के चरणों की धूल को आशीर्वाद समझते हैं और बाबा जहां से गुज़रते हैं वहां की मिट्टी को उठाकर ले जाते हैं। मंगलवार को जब भगदड़ मची, बहुत सी महिलाएं इसी धूल को उठाने के लिए नीचे झुकी हुईं थीं। यही वजह है कि जब भगदड़ मची, बहुत से लोगों को उठने का मौक़ा ही नहीं मिल पाया।'