2019 चुनाव के लिए वरुण गांधी और उनकी मां मेनका गांधी ने अपनी सीटें क्यों बदलीं, इसे लेकर चर्चाएं ख़त्म होने का नाम नहीं ले रही हैं। माना यह जा रहा है कि वरुण को सुल्तानपुर से अपना राजनीतिक गढ़ पीलीभीत शिफ़्ट करने के पीछे मां की अपने बेटे को 'सुरक्षित' सीट देने की भावना हो सकती है।
दोनों ने ही अपने चुनाव क्षेत्रों की अच्छी देखभाल की है और दोनों ही अपने क्षेत्रों से काफ़ी जुड़े हुए हैं। मेनका ने पीलीभीत से छह चुनाव और पड़ोस की आंवला सीट से एक चुनाव जीता। फिर जब उन्होंने सुल्तानपुर से लड़ने का तय किया तो यह भी उन्होंने बेटे वरुण के फ़ायदे के लिए ही किया।
2009 के चुनावों में यह साफ़ हो गया था कि जोखिम मां ने उठाया। ज़ाहिर है, वह नहीं चाहती होंगी उनका बेटा यह जोखिम उठाए। सांसद के तौर पर सात बार चुनी गईं मेनका के लिए यह पहला मौक़ा था जब वह 8000 से भी कम वोटों से जीतीं। पीलीभीत से उन्होंने जितने भी चुनाव लड़े, जीत का मार्जन सवा लाख से ढाई वोटों के बीच रहा था।
वहीं, बेटे वरुण ने पीलीभीत से पहला चुनाव लड़ते हुए 4 लाख 19 हज़ार 539 वोटों से जीत हासिल की। उनके क़रीबी प्रतिद्वंद्वी कांग्रेस के प्रत्याशी वी.एम. सिंह थे जो उनकी मां के चेचेरे भाई हैं। उन्हें सिर्फ़ 1 लाख़ 38 हज़ार 38 वोट मिले।
संजय गांधी की राजनीतिक नर्सरी थी सुल्तानपुर
2014 तक वरुण ने ख़ुद को बीजेपी के फ़ायरब्रैंड लीडर के तौर पर स्थापित करने में क़ामयाबी हासिल कर ली थी जो कि कड़ी चुनौतियों से जूझने के लिए तैयार थे। ऐसा कहा जाता है कि उन्होंने सुल्तापुर से लड़ने की इच्छा भी जताई थी। सुल्तानपुर एक समय उनके पिता संजय गांधी की राजनीतिक नर्सरी रही थी। उन्होंने अमेठी से पहला चुनाव लड़ा था जो उस समय सुल्तानपुर ज़िले का हिस्सा था।
मज़ेदार बात यह है कि वरुण के चचेरे भाई बहन राहुल और प्रियंका ने कभी उन्हें परेशान नहीं किया। भले ही वे बगल की अमेठी और रायबरेली सीटों पर प्रचार करते रहे। वरुण ने भी ख़ुद को दूर ही रखा और कभी अपने भाई-बहनों का रास्ता नहीं काटा।
वह सुल्तानपुर से जीते और अपने क़रीबी प्रतिद्वंद्वी बीएसपी के पवन पांडे को 1 लाख 80 हज़ार वोटों के अंतर से हराया। हालांकि इस बार कांग्रेस के मज़बूत प्रत्याशी संजय सिंह हैं जो न सिर्फ़ 2009 में यहां से जीते थे बल्कि अमेठी के पूर्व राज परिवार से भी आते हैं। 2014 में तो फिर भी मोदी लहर थी। ऐसे में इस बार इन सब बातों ने सुल्तानपुर से फिर से लड़ने का वरुण का विचार बदला होगा।
मेनका की इच्छा राजनीतिक विरासत संभालें वरुण
ऐसे में राजनीतिक समझ यही बनती है कि मां ने बेटे का ख्याल रखते हुए उसके हित में इस बार सीट बदल ली। मेनका चाहती हैं कि बेटा पीलीभीत में उनकी विरासत संभाले, जिसकी वह 1989 से लेकर बच्चे की तरह देखभाल करती आई हैं, जबसे उन्होंने पहला चुनाव जीता था।
पहले एक बार यहां से सांसद रह चुके वरुण भी इस इलाके़ को अच्छी तरह से समझते हैं। अहम बात यह है कि मां को पूरा विश्वास है कि पीलीभीत से जीतना बेटे के लिए आसान रहेगा। और सुल्तानपुर में संभावित चुनौतियों से जूझने के लिए ख़ुद वह सुल्तानपुर शिफ्ट हो गईं। मेनका गांधी के समर्थकों के मुताबिक़ उनके अंदर कांग्रेस के प्रत्याशी संजय सिंह से लड़ने की हिम्मत है। संजय सिंह शुरुआती दिनों में मेनका के पति संजय गांधी के क़रीबी थे।
बहुत से लोगों को हैरानी इस बात की है कि वरुण अपनी सीट बदलने के लिए तैयार कैसे हो गए? उनके पार्टी के नेतृत्व से रिश्ते कैसे हैं, यह बात छिपी नहीं है। और इसकी वजह भी यह मानी जाती है कि उन्हें मन में जो आए, वह कहने की आदत है और वह किसी का आदेश नहीं सुनते।
उनके क़रीबी सहयोगी, जिन्होंने पहचान ज़ाहिर न करने की शर्त पर बताया, "वरुण गांधी जिसके हक़दार हैं, वह उन्हें कभी बीजेपी से नहीं मिला। इसलिए क्योंकि वह 'गांधी' हैं। सोचिए, योग्य वरुण गांधी के नाम पर उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री पद के लिए विचार नहीं किया गया और यह पद भगवाधारी योगी आदित्यनाथ को चला गया।"
भड़काऊ भाषण से लेकर काम करने वाले नेता की छवि
इसकी संभावनाएं कम ही हैं कि पार्टी के नेतृत्व ने उन्हें पीलीभीत जाने के लिए कहा होगा। पीलीभीत में कथित तौर पर भड़काऊ भाषण देने को लेकर उन्हें काफ़ी आलोचना का सामना करना पड़ा था। हालांकि बाद में कोर्ट ने उन्हें दोषमुक्त कर दिया था। मगर इसके बाद वरुण ने सुल्तानपुर में अच्छे काम करके वाहवाही भी बटोरी है।
उन्होंने सुल्तानपुर में ग़रीबों के लिए अपने निजी पैसों से 300 घर बनाए हैं और 700 घर क्राउड फ़ंडिंग के माध्यम से बनाए हैं। वह ख़ुद मानते हैं कि यह अनोखा काम था।
कुछ महीने पहले एक बैठक में उन्होंने कहा था, "अपने चुनाव क्षेत्र में ग़रीब और ज़रूरतमंदों के लिए इतना तो मैं कर ही सकता हूं। सड़कों के नए जाल से इतर मुझे जिस बात पर गर्व होता है, वह है नया ज़िला अस्पताल जिसमें आधुनिकतम सुविधाएं हैं। यह उत्तर प्रदेश में इस तरह का पहला अस्पताल है।"
सरकार के इतर वह निजी संगठनों को भी लाए, जैसे कि टाटा ट्रस्ट ने अस्पताल के लिए फ़ंड दिया। यह उदाहरण है कि सांसद किस तरह से योगदान कर सकते हैं। ज़ाहिर है, वरुण को उनकी कर्मभूमि से उनकी मातृ भूमि (मां के क्षेत्र) जाने के लिए अन्य चीज़ों से ज़्यादा उनकी मां की इच्छा ने ही प्रेरित किया होगा।