हिमाचल प्रदेश के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस इस बार न केवल बीजेपी के विरोध की लहर बल्कि महंगाई और बेरोज़गारी जैसे मुद्दों को लेकर मैदान में उतरी है। कांग्रेस दावा कर रही है कि इस बार चुनाव में वो बीजेपी को सत्ता से बाहर कर देगी।
हालांकि कांग्रेस के सामने एक बड़ी चुनौती यह भी है कि इस बार के विधानसभा चुनाव में उसे सबसे ज़्यादा कमी एक नेता की खलेगी और वो हैं- वीरभद्र सिंह।
छह दशक तक राजनीति में सक्रिय रहे और हिमाचल प्रदेश में छह बार मुख्यमंत्री रह चुके वीरभद्र सिंह के बिना कांग्रेस क्या बीजेपी को सत्ता से बेदखल कर पाएगी, यह सवाल जनता के बीच भी है।
हिमाचल प्रदेश कांग्रेस की मौजूदा अध्यक्ष प्रतिभा सिंह पूर्व मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह की पत्नी हैं। 8 जुलाई 2021 को वीरभद्र सिंह के निधन के बाद अक्टूबर में हुए उपचुनाव में प्रतिभा सिंह ने मंडी लोकसभा सीट से चुनाव लड़ा था और भारी मतों से जीत हासिल की थी।
इसके बाद चुनावों को देखते हुए कांग्रेस के केंद्रीय नेतृत्व ने उन्हें प्रदेश कांग्रेस की कमान सौंपी। इसकी वजह यह मानी जा रही है कि कांग्रेस, प्रदेश में वीरभद्र सिंह के काम और उनकी विरासत को लेकर जनता के बीच जाना चाहती थी।
वीरभद्र सिंह के नाम पर चुनाव
लेकिन प्रतिभा सिंह को प्रदेश कांग्रेस की कमान सौंपने से पार्टी में अंदरूनी टकराव बढ़ा है। प्रदेश कांग्रेस के नेता भी यह बात स्वीकार करते हैं कि वीरभद्र सिंह के बाद कांग्रेस में नेतृत्व को लेकर कई चेहरे उभरे। लेकिन प्रतिभा सिंह को अध्यक्ष बनाए जाने से कई वरिष्ठ नेता नाख़ुश हैं।
अब सवाल यह उठता है कि क्या वीरभद्र सिंह के जाने के बाद उनकी पत्नी और उनके बेटे विक्रमादित्य सिंह प्रदेश में अपना प्रभाव दिखा पाएंगे और हिमाचल प्रदेश की राजनीति में वीरभद्र सिंह के परिवार की अहमियत कितनी है?
हिमाचल प्रदेश कांग्रेस की अध्यक्ष प्रतिभा सिंह का मानना है कि वीरभद्र सिंह का नाम आज भी हिमाचल प्रदेश की जनता की ज़ुबान पर है और लोग बेहद संजीदगी से उन्हें याद करते हैं।
वो कहती हैं, ''वीरभद्र सिंह की जो विरासत है, उनका नाम आज भी लोगों के दिलों में जीवित है। उनके जाने के बाद भी लोग उन्हें याद करते हैं।
इसलिए हमें लगता है कि अगर हम उनका नाम लेकर, उनका चेहरा लेकर आगे बढ़ेंगे, तभी लोग खुलकर हमारा समर्थन करेंगे, क्योंकि लोग नहीं चाहते कि इतनी जल्दी हम उन्हें भुला दें।''
वीरभद्र सिंह के शासन के बारे में लोगों की राय
वीरभद्र सिंह के जाने के बाद भी जनता के बीच उनकी छवि अभी बरक़रार है। हालांकि उनकी पत्नी और बेटे के राजनीतिक प्रभाव को लेकर आम लोग उतने आश्वस्त नहीं हैं।
करसोग में हमारी मुलाक़ात संतराम से हुई। सरकारी नौकरी से रिटायर हुए संतराम कहते हैं, ''बहुत मुश्किल लगता है कि ये लोग राजा साहब जैसी छवि बना पाएंगे। वो बहुत सख़्त और साफ़ बोलने वाले आदमी थे। जनता के बीच रहते थे।
लेकिन उनकी पत्नी और बेटे को अभी बहुत मेहनत करनी पड़ेगी। आठ से 10 साल लग जाएंगे इन्हें तब जाकर उनके जैसा प्रभाव बन पाएगा।''
खेती करने वाले दौलतराम कहते हैं कि वीरभद्र सिंह का परिवार हिमाचल प्रदेश की राजनीति के लिए बेहद ज़रूरी है। उनका प्रभाव अब भी जनता में है।
वो कहते हैं, ''वीरभद्र सिंह ने मुख्यमंत्री रहते हुए प्रदेश को स्कूल, अस्पताल सब दिए। जो मांगा वो मिला, लेकिन अब बीजेपी की सरकार में वो व्यवस्थाएं बदहाल हैं। छोटी से छोटी बीमारी के लिए शिमला भागना पड़ता है। राजा साहब थे तो इतनी परेशानियां नहीं थीं।''
वीरभद्र सिंह और 2017 विधानसभा चुनाव
2017 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को हार झेलनी पड़ी थी। बीजेपी ने 68 में ले 44 विधानसभा सीटों पर जीत दर्ज की थी और कांग्रेस को 20 सीटें मिली थीं। पिछले चुनाव में बीजेपी का वोट प्रतिशत भी बढ़ा था।
2012 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी का वोट प्रतिशत 38।47 प्रतिशत था जो 2017 में बढ़कर 48।8 प्रतिशत हो गया। प्रदेश में वोट शेयर के मामले में बीजेपी का यह सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन था। जबकि 2017 में कांग्रेस का वोट प्रतिशत 42।81 से घटकर 41।7 प्रतिशत हो गया।
यह चुनाव कांग्रेस ने वीरभद्र सिंह की अगुवाई में लड़ा था। हालांकि राजनीतिक विश्वेषक कहते हैं कि 2017 में कांग्रेस की हार की बड़ी वजह देशभर में मोदी लहर का होना थी। कांग्रेस के नेता भी खुलकर इसे स्वीकार करते हैं।
'हिमाचल में वीरभद्र का परिवार आज भी प्रभावी'
हिमाचल प्रदेश की राजनीति को क़रीब से देखने वाले राजनीतिक विश्लेषक और राष्ट्रीय स्तंभकार केएस तोमर कहते हैं कि प्रदेश की राजनीति में वीरभद्र सिंह के परिवार की अहमियत और प्रभाव काफ़ी है।
वो कहते हैं, ''वीरभद्र सिंह राज घराने से थे, लेकिन इसके बावजूद वो एक सच्चे लोकतांत्रिक नेता थे। हिमाचल प्रदेश के संस्थापक कहे जाने वाले डॉक्टर वाईएस परमार के बाद अगर प्रदेश की राजनीति और इतिहास में कोई नाम मज़बूती से दर्ज होगा वो वीरभद्र सिंह का है।
छह बार मुख्यमंत्री होना, 9 बार विधायक बनना, पांच बार सांसद बनना, भारतीय राजनीति में ऐसे उदाहरण बेहद कम मिलेंगे। वो राजा साहब के नाम से जाने जाते थे। हर कोई उन्हें राजा साहब ही मानता था।''
केएस तोमर यह भी कहते हैं कि कांग्रेस का वीरभद्र सिंह की पत्नी पर भरोसा जताना यह स्पष्ट करता है कि वो वीरभद्र की विरासत को आगे बढ़ाना चाहती है और इसका उदाहरण भी पार्टी ने मंडी लोकसभा सीट के उपचुनाव में देख लिया कि उनके प्रति जनता में भावना कैसी है।
कांग्रेस का विज़न क्या है?
मौजूदा मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर मंडी ज़िले से आते हैं, पिछले विधानसभा चुनाव में यहां 10 विधानसभा सीटों पर कांग्रेस का सफ़ाया हो गया था। लेकिन लोकसभा उपचुनाव में बीजेपी को यहां हार झेलनी पड़ी।
केएस तोमर बताते हैं कि वीरभद्र को आधुनिक हिमाचल का निर्माता माना जाता है। प्रतिभा सिंह पहले भी मंडी से सांसद रही हैं। लेकिन उसके पीछे भी वजह और प्रभाव वीरभद्र सिंह का ही था।
वो कहते हैं, ''प्रदेश कांग्रेस में जो नेता हैं उनमें से अधिकतर वीरभद्र सिंह के तैयार किए नेता ही हैं। चाहे वो मुकेश अग्निहोत्री हों या फिर दूसरे नए नेता। वीरभद्र सिंह ने अपने राजनीतिक करियर में हर विधानसभा क्षेत्र में अपना वोटबैंक तैयार किया था।''
प्रतिभा सिंह के कांग्रेस अध्यक्ष बनने से कांग्रेस को क्या फ़ायदा हुआ? इस सवाल पर केएस तोमर कहते हैं कि प्रतिभा सिंह को अध्यक्ष बनाने से प्रदेश में वीरभद्र सिंह के जो 50-60 प्रतिशत कार्यकर्ता थे वो सक्रिय हो गए। इसका फ़ायदा आने वाले सालों में भी कांग्रेस को मिलेगा।
केएस तोमर कहते हैं, ''बीजेपी आरएसएस की 'वेल ऑयल्ड मशीनरी' की वजह से काफ़ी मज़बूत है। उसे काउंटर करने के लिए कांग्रेस की मज़बूरी थी कि वो वीरभद्र सिंह की लेगेसी पर भरोसा करे और लोगों के बीच उन्हें संवेदना का वोट भी मिलेगा।
जब प्रतिभा सिंह लोगों के बीच जाती हैं तो लोग यह भी देखते हैं कि राजा की पत्नी आई हैं और उसका असर बहुत है। महिलाएं भी उनके समर्थन में आगे आती हैं।''
'कांग्रेस के टूटने का कारण बनेगा वीरभद्र परिवार'
राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि प्रतिभा सिंह को वीरभद्र सिंह के चेहरे के तौर पर कांग्रेस ने उतारा। लेकिन पार्टी के भीतर यह संदेश न जाए कि सबकुछ राजपरिवार ही है।
इसी वजह से इस बार विधानसभा में उन्हें चुनाव नहीं लड़ाया गया ताकि यह साबित किया जा सके कि वो मुख्यमंत्री पद की रेस में नहीं हैं, वो लीडरशिप तैयार करने में हैं।
हालांकि हिमाचल प्रदेश बीजेपी के अध्यक्ष सुरेश कुमार कश्यप कहते हैं कि कांग्रेस वीरभद्र सिंह की विरासत को आगे बढ़ाने की कोशिश कर रही है, लेकिन इसमें कामयाबी ज़्यादा नहीं मिलेगी।
सुरेश कश्यप कहते हैं, ''वीरभद्र सिंह का परिवार अब प्रयास कर रहा है, लेकिन सफल नहीं होगा। कांग्रेस इसी चक्कर में टूटेगी क्योंकि पहले एक चेहरा था जो सबको साथ लेकर चलता था।
ऐसा कोई चेहरा आज की तारीख में हिमाचल प्रदेश कांग्रेस में नहीं है। और अब यहां एक लीडरशिप नहीं है और अब लोग भी ये कहने लगे हैं कि इन्हें कोई मानने को तैयार नहीं है।''
वीरभद्र सिंह के बेटे में कितना दम
वो यह भी कहते हैं कि अभी वीरभद्र सिंह का प्रभाव मंडी की कुछ सीटों पर है। लेकिन अब क्योंकि वीरभद्र सिंह नहीं हैं। जब तक वो थे तो लोग उनको मानते थे और अब इनको मानने के लिए कोई तैयार नहीं हैं।
कांग्रेस नेता हरीश जनार्था कहते हैं, 'राजा साहब' का जो काम है और उनका जो कार्यकाल रहा है, उसका असर लोगों के ज़हन से इतनी जल्दी नहीं जाएगा। उस चीज़ का प्रभाव अभी भी लोगों पर है।
प्रतिभा सिंह को इसी कारण समर्थन मिल रहा है और इसी कारण वो लोगों से ख़ुद को जोड़ पा रही हैं।
वो कहते हैं, ''अगर उनके बेटे की बात करें तो वो अभी बहुत कम उम्र के हैं, लेकिन परिपक्व भी हैं। अभी एक ही चुनाव लड़ा है और भविष्य में प्रदेश के शीर्ष नेतृत्व के तौर पर उन्हें विकल्प के रूप में देखा जाता है। लेकिन अभी को काफ़ी युवा हैं।
राजा साहब के मॉडल पर काम होंगे, उनके मॉडल पर कांग्रेस की नीतियां रहेंगी तो मुझे विश्वास है कि हिमाचल प्रदेश में कांग्रेस का वर्चस्व रहेगा।''
प्रदेश कांग्रेस और वीरभद्र सिंह का प्रभाव
हिमाचल प्रदेश कांग्रेस के एक नेता ने नाम न छापने की शर्त पर बीबीसी से कहा कि वीरभद्र सिंह की छाप जनता के बीच अब भी बरक़रार है। उनकी विरासत को जनता भूल जाए इसमें बहुत वक्त लगेगा। लेकिन उनका परिवार उस विरासत को बरक़रार रख पाएगा, इसे लेकर थोड़ा संशय है।
क्या वीरभद्र सिंह की वजह से प्रदेश की राजनीति में कांग्रेस में कोई और नेतृत्व नहीं पनप पाया?
इस सवाल के जवाब में वो कहते हैं कि वीरभद्र सिंह 60 साल तक प्रदेश की राजनीति में सक्रिय रहे हैं जो एक लंबा समय है। उनसे लोगों ने बहुत कुछ सीखा है। उनसे सीखने वाले नेता अब उभर रहे हैं। जब इतने लंबे समय से जनता उनके लिए जान देने को तैयार रही है तो कोई और कैसे उभरेगा।
वो कहते हैं, ''आप विपक्ष में देखिए, वहां शांता कुमार, धूमल और जयराम ठाकुर जैसे चेहरे सामने आए, लेकिन कांग्रेस में इतने सालों तक सिर्फ़ एक ही चेहरा था।
शांता कुमार हारे और सत्ता से हटे, प्रेम कुमार धूमल हारे मुख्यमंत्री नहीं बन पाए, लेकिन वीरभद्र सिंह कभी हारे नहीं और नेतृत्व में बने रहे। उन्होंने कोई ऐसा चेहरा नहीं उभरने दिया जो उनका विकल्प बन सके। पर उनके जाने के बाद अब प्रदेश में कई लोग हैं जो ऊपर आना चाहते हैं।''
आम जनता और राजनीतिक विश्लेषक भी यह मानते हैं कि प्रतिभा सिंह और विक्रमादित्य सिंह को राजनीति में अपने वर्चस्व को बनाए रखने के लिए न सिर्फ ज़मीनी स्तर पर लड़ाई लड़नी होगी बल्कि पार्टी के भीतर भी लोगों को एकजुट रखना उनके लिए चुनौती होगी।