अगर आप जासूसी थ्रिलर्स के शौक़ीन हैं तो एफ़एसबी यानी फ़ेडरल सिक्योरिटी सर्विस के बारे में आपको ज़रूर पता होगा। रूस की सत्ता पर व्लादिमीर पुतिन की पकड़ को एफ़एसबी से जोड़कर देखा जा सकता है।
रूस की इस खुफ़िया सेवा को दुनिया भर में उसके इंटेलिजेंस नेटवर्क और चरमपंथ विरोधी अभियानों के लिए जाना जाता है।लेकिन पूर्व सोवियत संघ की खुफ़िया पुलिस केजीबी में इसकी जड़ों के कारण एफ़एसबी पर आरोप भी लगते रहे हैं।
सरकार की रजामंदी से होने वाले कत्ल और राष्ट्रपति से नजदीकी रिश्ते, ये वो बातें हैं जिनकी वजह से इसके मक़सद और अजेंडे पर सवाल उठते रहे हैं।कई लोगों को इस बात में दिलचस्पी रहती है कि आख़िर एफ़एसबी करता क्या है। इसके कुछ जवाब यहां हैं:
चरमपंथ और जासूसी के ख़िलाफ़
फ़ेडरल सिक्योरिटी सर्विस का गठन 1995 में किया गया था। रूस की तरफ़ बढ़ने वाले ख़तरों से निपटने की जिम्मेदारी एफ़एसबी को दी गई थी। व्लादिमीर पुतिन सत्ता में आने से पहले तक एफ़एसबी के चीफ़ हुआ करते थे।संगठित अपराध और चरमपंथियों के ख़िलाफ़ एफ़एसबी दुनिया के दूसरे पुलिस संगठनों से सहयोग करता है।
चेचेन्या में अलगाववादी विद्रोहियों के ख़िलाफ़ लड़ाई में नब्बे और 2000 के दशक के दौरान एफ़एसबी ने अपनी पूरी ताकत झोंक दी थी। सोवियत संघ से अलग होने वाले कई देशों के साथ रूस के तल्ख रिश्ते रहे हैं। एफ़एसबी का एक काम ये भी था कि रूस में पश्चिम समर्थक आवाज़ें ज़्यादा जोर न पकड़ें जैसा कि 2003 में जॉर्जिया में 'रोज़ क्रांति' और 2004 में यूक्रेन में 'ऑरेंज क्रांति' के तौर पर हुआ था।
एफ़एसबी की भूमिका
साल 2015 में रूस और इस्टोनिया के बीच जासूसों की अदला-बदली में भी एफ़एसबी की भूमिका थी। उस घटना ने शीत युद्ध के दिनों की यादें ताज़ा कर दी थीं। नैटो के सदस्य देश इस्टोनिया ने रूस पर जेल में बंद अपने जासूस को रिहा कराने के लिए उसके सुरक्षा अधिकारी को अगवा करने का आरोप लगाया था।
साल 2002 में चेचेन्या में अरब जिहादी कमांडर खत्तब की हत्या कर दी गई। इसका सेहरा भी एफ़एसबी के सिर बंधा था। चेचेन कमांडरों ने कहा कि खत्तब को ज़हर लगी चिट्ठी मिली थी। लेकिन एलेक्ज़ेंडर लिटविनेंको मर्डर केस ने एफ़एसबी को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सुर्खियों में ला दिया।
लितविनेंको मर्डर केस
एलेक्ज़ेंडर लितविनेंको एफ़एसबी के पूर्व अधिकारी थे और उनका नाम पुतिन के मुखर आलोचकों में शुमार किया जाता था। साल 2006 में एलेक्ज़ेंडर लितविनेंको को लंदन में ज़हर देकर मार दिया गया था। ये ज़हर रेडियोएक्टिव पदार्थ पोलोनियम था। ब्रिटेन ने लितविनेंको को शरण दी थी और रूस में उन्हें गद्दार कहा जाता था।
ब्रिटेन में इसकी आधिकारिक जांच हुई और इसकी रिपोर्ट में कहा गया कि लितविनेंको की हत्या को संभवतः पुतिन और एफ़एसबी के तत्कालीन प्रमुख निकोलाई पात्रुशेव ने मंजूरी दी थी।
रूस ने इन आरोपों को ख़ारिज कर दिया और नेशनल हीरो का दर्जा रखने वाले सांसद आंद्रेई लुगोवोई को लितविनेंको की हत्या का प्रमुख संदिग्ध बताया।एलेक्ज़ेंडर लितविनेंको ने एफ़एसबी पर एक खुफिया दस्ता चलाने का आरोप लगाया था जिसका काम दुश्मनों का क़त्ल करना था।
लितविनेंको के मुताबिक़ इस खुफ़िया दस्ते के टारगेट पर बोरिस बेरेज़ोवस्की जैसे ताक़तवर लोग थे। एलेक्ज़ेंडर लितविनेंको की मौत के कुछ साल बाद बोरिस बेरेज़ोवस्की ने 2013 में ब्रिटेन में खुदकुशी कर ली। लितविनेंको की मौत के कुछ हफ़्ते पहले ही रूस ने एक कानून बनाकर फ़ेडरल सिक्योरिटी सर्विस को देश के भीतर और बाहर चरमपंथियों और विद्रोहियों के ख़िलाफ़ कार्रवाई करने का आदेश दिया था।
पुतिन के कुछ मुखर विरोधियों की रहस्यमयी परिस्थितियों में मौत हो गई। इनमें कुछ पत्रकार भी थे। कहा गया कि इन हत्याओं के पीछे एफ़एसबी का हाथ है। लेकिन सरकार की तरफ़ से हमेशा यही कहा गया कि मरने वाले के और भी दुश्मन थे जो उन्हें निशाना बना सकते थे।
एफ़एसबी पर किताब
रूस में एफ़एसबी को ये अधिकार है कि वो लोगों को अपराध के हालात पैदा करने के लिए चेतावनी दे सकता है। आंद्रेई सोल्दातोव और एरीना बोरोगन ने हाल ही में एफ़एसबी पर किताब लिखी है। किताब का नाम है 'द न्यू नोबिलिटी'।इस किताब में आंद्रेई और एरीना ने ये बताया है पुतिन ने एफ़एसबी का विस्तार किया है।
उसके एजेंट्स विशेष अभियानों पर विदेश भेजे गए। इसमें खुफ़िया जानकारी इकट्ठा करने का काम भी शामिल था। लेकिन ब्रिटेन के एमआईसिक्स (MI6) के तर्ज पर रूस के लिए विदेशों में खुफ़िया गतिविधियों को अंजाम देने का काम एक्सटर्नल इंटेलिजेंस सर्विस पर था।मिलिट्री स्पाई सर्विस के एजेंट भी विदे्शों से खुफिया सूचनाएं इकट्ठा करते हैं।
साइबर जासूसी
डॉक्ट्रिन ऑफ़ इन्फॉर्मेशन वारफेयर में एफ़एसबी रूस के लिए मोर्चा संभाले हुए है।उसका काम सोशल मीडिया पर पब्लिक ओपिनियन भी तैयार करना है। अमरीका में सरकारी अधिकारियों का ये मानना है कि रूस ने हैकिंग और ग़लत जानकारी फैलाकर 2016 के अमरीकी राष्ट्रपति चुनावों को प्रभावित करने की कोशिश की।
मार्च, 2017 में अमरीका ने एफ़एसबी के दो अफ़सरों पर याहू अकाउंट्स हैक करने और लाखों लोगों से जुड़े डेटा चोरी करने का आरोप लगाया।एफ़एसबी के ये अधिकारी थे डिमित्री डोकुचाएव और इगोल सुशचिन। एफ़एसबी को इंटरनेट पर निगरानी करने का कानूनी हक़ मिला हुआ है।
आंद्रेई सोल्दातोव का कहना है कि रूस में टेलीकॉम सर्विस मुहैया कराने वाली कंपनियों को एफ़एसबी को अपने नेटवर्क में सीधे एक्सेस देना होता है।
पुतिन से नज़दीकी
सेंट्रल मॉस्को एफ़एसबी का मुख्यालय लुबियंका है। ये इमारत एफएसबी की ताक़त का प्रतीक है। सोवियत संघ के ज़माने में केजीबी इसी इमारत में राजनैतिक कैदियों से पूछताछ किया करती थी।
एफ़एसबी के चीफ़ एलेक्ज़ेंडर बोर्तनिकोव सीधे राष्ट्रपति पुतिन के लिए जवाबदेह हैं।साल 2000 में एफ़एसबी के तत्कालीन चीफ़ निकोलाई पात्रुशेव ने एफ़एसबी एजेंटों को "मॉडर्न नोबल" या "आधुनिक भद्र लोग" कहा था। राष्ट्रपति बनने के बाद पुतिन ने सेंट पीटर्सबर्ग के पुराने जासूसों को बड़े पदों पर बिठाया।
रूस की प्रमुख समाजशास्त्री ओल्गा क्रिश्तानोवस्काया कहती हैं, "हम पुतिन के नेतृत्व में केजीबी की पुरानी ताकत को फिर से बहाल होता हुआ देख रहे हैं। पुतिन जब पहली बार राष्ट्रपति बने थे तो उनकी टीम में ज्यादातर लोग सिलोविकी थे यानी पुराने जासूस।"
रूस के क्रीमिया पर कब्ज़े से नाराज़ यूरोपीय संघ और संयुक्त राष्ट्र ने मौजूदा वक़्त में बोर्तनिकोव समेत ज़्यादातर एलीट जासूसों पर प्रतिबन्ध लगा रखा है। साल 1990 में जब विदेशी व्यापार की कमान पुतिन के हाथ में थी तब उनके पुराने सहयोगियों के नाम अपराध में लिप्त पाए गए थे। इनका ब्योरा अमरीकी रिसर्चर केरेन डॉविशा की किताब 'पुतिन्स क्लेप्टोक्रेसी' में दिया गया है।
ये आरोप 'लित्विनेको इन्क्वायरी' और रूसी माफ़िया से सम्बन्धित एक प्रमुख स्पैनिश जांच में सामने आए थे। स्पैनिश वकील जोस ग्रिन्डा ने अमरीकी अधिकारियों को बताया था कि एफ़एसबी रूस में ऑर्गनाइज़्ड क्राइम को कंट्रोल कर रही है।