दो मई को पश्चिम बंगाल, असम, केरल, तमिलनाडु और पुद्दचेरी विधानसभा चुनाव के नतीज़ों की घोषणा कर दी गई। ये नतीजे कई लोगों के लिए चौंका देने वाले रहे क्योंकि चुनाव बाद हुए सर्वेक्षण पश्चिम बंगाल के मतदाताओं के मूड का अंदाजा लगा पाने में नाकाम रहे।
ये अंदाजा लगाया गया था कि पश्चिम बंगाल में भारतीय जनता पार्टी और राज्य में सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस के बीच कांटे की टक्कर होगी। लेकिन नतीजे आए तो ऐसा लगा कि ममता बनर्जी के लिए ये एक तरफा जीत वाला चुनाव था।
हम सभी पांच राज्यों के नतीजों को देखकर ये समझने की कोशिश करेंगे कि राजनीतिक दलों के लिए इस बार के चुनाव में क्या कारगर रहा और क्या गलती हो गई।
पश्चिम बंगाल
पश्चिम बंगाल के चुनावी नतीजे कुछ के लिए हैरत का सबब रहा और कुछ के लिए झटका देने वाला। यहां तक कि एग़्जिट पोल्स को भी ये अंदाजा नहीं था कि दो मई को क्या नतीजे कैसे आएंगे।
ममता बनर्जी के नेतृत्व वाले तृणमूल कांग्रेस ने पश्चिम बंगाल में 213 सीटों के साथ जबर्दस्त जीत दर्ज की।
साल 2016 की तुलना में ममता बनर्जी की पार्टी को इस बार दो सीटें ज़्यादा मिली हैं।
पिछले चुनाव के बनिस्बत तृणमूल कांग्रेस का वोट शेयर भी तीन फीसदी बढ़ा है। हालांकि बीजेपी पश्चिम बंगाल विधानसभा का चुनाव नहीं जीत पाई लेकिन इसमें कोई दो राय नहीं कि इस चुनाव में उसे काफी फायदा हुआ है।
साल 2016 के विधानसभा चुनाव में भाजपा को 10.16 फीसदी वोट के साथ तीन सीटें मिली थीं लेकिन इस बार उसका वोट शेयर बढ़कर 38 फीसदी हो गया है।
वाम दल
पश्चिम बंगाल की राजनीति में कभी वाम दलों को बोलबाला हुआ करता था लेकिन इन चुनाव में वाम मोर्चा एक भी सीट जीतने में नाकाम रहा। साल 2016 के विधानसभा चुनाव में सीपीएम को 26 सीटें मिली थीं जबकि सीपीआई को एक लेकिन इस बार के चुनावों में वाम गठबंधन खाता भी नहीं खोल पाया।
रायगंज की सीट जो पिछली बार कांग्रेस और वामदलों के गठबंधन उम्मीदवार मोहित सेनगुप्ता ने साल 2016 में जीती थी, वो इस बार बीजेपी की कृष्णा कल्याणी ने जीत ली है। साल 2016 में वामदलों की जीती ज़्यादातर सीटें इस बार तृणमूल के खाते में चली गई है।
अगर पश्चिम बंगाल में सीटों के नफा-नुकसान का आकलन क्षेत्रवार किया जाए तो हम पाते हैं कि तृणमूल को ज़्यादातर सीटें बंगाल के उत्तरी सीमावर्ती इलाकों में मिली है।
साल 2016 में तृणमूल ने इन इलाकों में 22 सीटें जीती थीं जबकि इस बार इन इलाकों से उसकी झोली में 43 सीटें गई हैं। हां, तृणमूल को कुछ इलाकों में नुकसान भी हुआ है। उत्तर बंगाल के पहाड़ी इलाके में तृणमूल इस बार केवल छह सीटें जीत पाईं जबकि साल 2016 में उसे यहां 19 सीटें मिली थीं।
उत्तरी पर्वतीय क्षेत्र में तृणमूल का नुक़सान बीजेपी के लिए फायदे की बात रही है। बीजेपी को इस इलाके में 21 सीटें मिली हैं। साल 2016 में बीजेपी इस इलाके में केवल एक ही सीट जीत पाई थी।
तमिलनाडु
तमिलनाडु में डीएमके को 133 सीटें मिली हैं और उसने राज्य में सत्तारूढ़ एआईए़डीएमके गठबंधन को इन चुनावों में हराया है। पिछले चुनाव की तुलना में डीएमके को 6 फीसदी ज़्यादा यानी 37.69 प्रतिशत वोट मिले हैं।
दूसरी तरफ़ सत्तारूढ़ एआईए़डीएमके गठबंधन को महज़ 66 सीटें मिल पाई हैं जबकि पिछले विधानसभा चुनाव में उसे 134 सीटों पर जीत मिली थी।
कांग्रेस पार्टी को साल 2016 में राज्य विधानसभा में महज 8 सीटें मिली थीं जबकि इस बार उसके खाते में दस सीटों का इज़ाफ़ा हुआ है। इस बार के चुनाव में कांग्रेस को 18 सीटें मिली हैं।
एआईए़डीएमके को सबसे बड़ा नुक़सान कावेरी बेसिन के इलाके में हुआ है जहां उन्होंने 19 सीटें गंवाई हैं।
साल 2016 में एआईए़डीएमके को इस क्षेत्र में 23 सीटें मिली थीं जबकि इस बार वो यहां केवल चार सीटें ही जीत पाई है।
एआईए़डीएमके को उत्तरी तमिलनाडु के इलाके में भी भारी संख्या में सीटों को नुक़सान हुआ है। पिछले चुनाव में एआईए़डीएमके को उत्तरी तमिलनाडु में 25 सीटें मिली थीं जबकि इस बार वो केवल 12 सीटों पर सिमट कर रह गई।
जहां अन्नाद्रमुक को नुक़सान हुआ, वहां द्रमुक फायदे में रही। कावेरी बेसिन के इलाके में डीएमके को सबसे ज्यादा फायदा हुआ। यहां उसके आंकड़े पिछले चुनाव की तुलना में 16 सीटों से बढ़कर 31 सीटें हो गईं।
केरल, असम और पुडुचेरी
इस बार के केरल विधानसभा चुनाव में सीपीएम सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी है। सीपीएम की अगुआई वाले लेफ़्ट डेमोक्रेटिक फ्रंट ने 62 सीटों पर जीत हासिल की। उसे 26 फीसदी वोट मिले। कांग्रेस का वोट शेयर तो सीपीएम के करीब ही रहा है लेकिन उसे 21 सीटों पर संतोष करना पड़ा। इस बार बीजेपी को एक भी सीट नहीं मिली है।
पिछली केरल विधानसभा में बीजेपी ने एक सीट जीती थी, दक्षिणी केरल से। लेकिन इस बार वो सीट पार्टी ने गंवा दी। हालांकि असम और पुद्दुचेरी में बीजेपी का प्रदर्शन अच्छा रहा है।
असम में बीजेपी गठबंधन ने 69 सीटें जीती हैं जबकि कांग्रेस को केवल 50 सीटें मिल पाई हैं। बीजेपी को ज्यादातर सीटें ऊपरी असम में मिली हैं। माना जाता है कि इस इलाके के पास असम के सत्ता की चाबी है।
पुद्दुचेरी में बीजेपी गठबंधन को राज्य विधानसभा की 30 में से 16 सीटें मिली हैं जबकि कांग्रेस को केवल आठ सीटें मिलीं। साल 2016 में कांग्रेस को यहां 17 सीटें मिली थीं।
इस केंद्र शासित प्रदेश में कांग्रेस को 9 सीटों का नुक़सान हुआ है जबकि बीजेपी को चार सीटों का फायदा हुआ है।