कौन सुनता है राष्ट्रपति के फ़ोन कॉल्स और क्यों छिपाई जाती हैं जानकारियां

रविवार, 29 सितम्बर 2019 (10:51 IST)
तारा मेकेल्वी, बीबीसी व्हाइट हाउस रिपोर्टर
अमेरिका में एक व्हिसलब्लोअर ने राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप की ओर से किए गए एक फ़ोन कॉल से संबंधित जानकारी को असमान्य ढंग से बेहद गोपनीय रखने का आरोप लगाया है। इसके बाद से अमेरिका में यह चर्चा होने लगी है कि राष्ट्रपति की ओर से किसी अन्य देश के नेता को की जाने वाली फ़ोन कॉल्स को कैसे मॉनिटर किया जाता है और बातचीत के ब्यौरे को कैसे और क्यों छिपाया जाता है।
 
व्हिसलब्लोअर, एक अमेरिकी ख़ुफ़िया अधिकारी हैं, उनको लगा कि राष्ट्रपति ट्रंप और यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदीमीर ज़ेलेंस्की के बीच फ़ोन पर हुई बात की लिखित प्रतिलिपि को गोपनीय इलेक्ट्रॉनिक लोकेशन पर रखा गया था। उनका मानना था कि ऐसा राष्ट्र की सुरक्षा से जुड़े कारणों के चलते नहीं बल्कि राजनीतिक कारणों से किया गया था।
 
शिकायत के अनुसार इस फ़ोन कॉल की प्राथमिक ट्रांस्क्रिप्ट को पहले 'सीक्रेट' श्रेणी में गोपनीय रखा गया और फिर इसे 'टॉप सीक्रेट' के तौर पर वर्गीकृत कर दिया गया ताकि इसे पढ़ने के लिए आला अधिकारियों से इजाज़त लेनी पड़े।
 
व्हिसलब्लोअर का कहना है कि यह ख़तरे का संकेत था क्योंकि इससे पता चलता है कि व्हाइट हाउस के अधिकारियों को न सिर्फ़ राजनीतिक तौर पर संवेदनशील इस कॉल का पता था बल्कि वे इस जानकारी को अमेरिकी सरकार के अन्य लोगों से छिपाने की भी कोशिश कर रहे थे।
 
ट्रंप के आलोचक कहते हैं कि इस कॉल के माध्यम से ट्रंप ने यूक्रेन के राष्ट्रपति को अपने प्रदिद्वंद्वी (राष्ट्रपति के पद के लिए संभावित उम्मीदवार) उप-राष्ट्रपति जो बाइडन और उनके बेटे के ख़िलाफ़ जांच शुरू करने के लिए मनाने की कोशिश की थी ताकि अपने राजनीतिक हित साध सकें। आलोचकों का यह भी कहना है कि राष्ट्रपति के सहयोगी इसी बातचीत को छिपाने की कोशिश कर रहे थे।
 
हालांकि, राष्ट्रपति ट्रंप और उनके सहयोगी इन आरोपों को ग़लत बताते हैं और कहते हैं कि फ़ोन कॉल की ट्रांस्क्रिप्ट को सेव करने में कुछ भी अलग या असामान्य नहीं था। तो क्या यह सब सामान्य प्रक्रिया के तहत किया गया था?
 
कौन सुनता है कॉल्स?
पारंपरिक रूप से किसी विदेशी नेता से बात करने से पहले अमरीकी नेशनल सिक्युरिटी काउंसिल (एनएससी) के अधिकारी राष्ट्रपति को जानकारी करते हैं। फिर, जिस समय विदेश के नेता से बात हो रही होती है, जानकारी देने वाले यही अधिकारी राष्ट्रपति के साथ ओवल ऑफ़िस में बैठे रहते हैं। यूएसए टुडे के अनुसार इस दौरान एनएससी के कम से कम दो अधिकारी मौजूद रहते हैं।
 
इस दौरान व्हाइट हाउस के एक दूसरे हिस्से में कुछ और अधिकारी भी एक सुरक्षित कमरे में बैठे होते हैं और वे राष्ट्रपति की बात को सुनकर नोट्स ले रहे होते हैं। उनके नोट्स को "मेमोरंडम ऑफ टेलिफ़ोन कन्वर्सेशन" कहा जाता है और इसके लिए छोटा शब्द- memcon (मेमकॉन) इस्तेमाल किया जाता है। बाद में राष्ट्रपति की विदेशी नेताओं से फ़ोन पर हुई बात को कंप्यूटरों के माध्यम से लिखित प्रतिलिपि यानी ट्रांस्क्रिप्ट में बदला जाता है।
 
व्हाइट हाउस के एक पूर्व अधिकारी बताते हैं कि कंप्यूटर में दर्ज ट्रंस्क्रिप्ट का अन्य कर्मचारियों द्वारा ख़ुद सुनकर नोट की गई बातों से मिलान किया जाता है। फिर इन दोनों को मिलाकर एक दस्तावेज़ बना दिया जाता है। यह लिखित कॉपी भले ही एकदम सटीक न हो मगर फिर भी उस समय उपलब्ध संसाधनों के हिसाब बहुत सावधानी से तैयार की जाती है।
 
व्हिसलब्लोअर की शिकायत के अनुसार, ज़ेलेंस्की और ट्रंप की फ़ोन पर हुई बात को लगभग एक दर्जन लोग सुन रहे थे।
 
एनएससी के एक पूर्व अधिकारी के मुताबिक़, जबसे ट्रंप राष्ट्रपति बने हैं, फ़ोन कॉल्स करने से पहले ब्रीफिंग का इंतज़ाम हड़बड़ी में किया जाता है और यह काम अलग-अलग स्तर की विशेषज्ञता रखने वाले लोगों द्वारा किया जाता है। वह कहते है कि कई बार तो उन्हें आख़िरी समय पर कॉल सुनने के लिए कहा जाता था।
 
कैसे होता है 'सीक्रेट' या 'टॉप सीक्रेट' का वर्गीकरण
 
व्हाइट हाउस के पूर्व अधिकारी बताते हैं, अमेरिकी नेशनल सिक्युरिटी काउंसिल के एग्ज़िक्यूटिव सेक्रेटरी के कार्यालय में काम करने वाले अधिकारी तय करते हैं कि फ़ोन पर हुई बातचीत की लिखित प्रतिलिपि को किस दर्ज़े में वर्गीकृत करना है।
 
अगर बातचीत में ऐसी जानकारी है जो कि देश की सुरक्षा या फिर लोगों की ज़िंदगी को ख़तरे में डाल सकती है तो इसे 'टॉप सीक्रेट' बताकर वर्गीकृत किया जाता है और सुरक्षित जगह पर रखा जाता है।
 
'द प्रॉजेक्ट ऑन मिडल ईस्ट डेमोक्रेसी' के लिए काम करने वाले एंड्रू मिलर ओबामा प्रशासन के दौरान नेशनल सिक्युरिटी काउंसिल में रहकर मिस्र से संबंधित मामलों को देखते थे। वो वग्रीकरण की प्रक्रिया से वाकिफ़ रहे हैं।
 
मिलर इस बात की भी समझ रखते हैं कि क्यों बातचीत की कुछ ट्रांस्क्रिप्ट को 'टॉप सीक्रेट' बताया जाता है। मगर वह कहते हैं कि ट्रंप और ज़ेलेंस्की के बीच हुई बातचीत में ऐसा कुछ नहीं था कि उसे इस श्रेणी में रखा जाता। वह कहते हैं, "मुझे ऐसी कोई वजह नज़र नहीं आती जिससे इसे 'टॉप सीक्रेट' बताया जा सके। ऐसा राजनीतिक कारणों से किया गया होगा।"
 
'टॉप सीक्रेट' बताई जाने वाली ट्रांस्क्रिप्ट का क्या होता है
 
अगर किसी बातचीत की कॉपी पर 'टॉप सीक्रेट' की मुहर लग जाए तो इसका मतलब है कि अमेरिकी सरकार में शीर्ष पदों पर मौजूद लोग विशेष इजाज़त मिलने पर ही इसे देख सकते हैं।
 
एक पूर्व अधिकारी बताते हैं, "इन प्रतिलिपियों को ज्विक्स (Jwics) नाम के एक सिस्टम के माध्यम से शेयर किया जाता है। Jwics यानी जॉइंट वर्ल्डवाइड इंटेलिजेंस कम्यूनिकेशंस सिस्टम। यह एक ऐसा नेटवर्क है जिसे ख़ुफ़िया तंत्र में काम करने वाले लोग इस्तेमाल करते हैं।"
 
इन फ़ाइलों को ऐसी जगह रखा जाता है जो गोपनीय तो होती हैं मगर उनके लिए बहुत अधिक सुरक्षा के इंतज़ाम नहीं किए जाते।
 
अगर किसी ट्रांस्क्रिप्ट को 'टॉप सीक्रेट' के बजाय सिर्फ़ 'सीक्रेट' रखा जाता है तो इसका मतलब है कि अधिकारी उनके बारे में सरकार में मौजूद अन्य लोगों से थोड़ी आसानी से चर्चा कर सकते हैं।
 
क्या इस मामले में सही प्रक्रिया अपनाई गई थी
कुडलो और राष्ट्रपति के अन्य सलाहकारों का कहना है कि विवादित फ़ोन कॉल में ऐसी कोई बात नहीं थी और ट्रांसक्रिप्ट को लेकर भी कुछ बहुत अलग नहीं किया गया। वे व्हिसलब्लोअर की बात से सहमत नहीं हैं।
 
मगर अन्य लोगों का कहना है कि राष्ट्रपति की ओर से ये फ़ोन कॉल किया जाना और फिर उसके ट्रांसक्रिप्ट को लेकर बहुत गोपनीयता बरतना दिखाता है कि यह राष्ट्रपति पद की शक्तियों का दुरुपयोग है।
 
ओबामा प्रशासन के दौरान व्हाइट हाउस मे काम कर चुके अधिकारी ब्रेट ब्रूएन कहते हैं, "सुरक्षा के लिहाज़ से गोपनीय ढंग से सूचनाओं के वर्गीकरण की प्रणाली लोगों की ज़िंदगियां बचाने के लिए है। अगर इसका इस्तेमाल अचानक से राष्ट्रपति के राजनीतिक हितों के लिए किया जाने लगेगा तो नेशनल सिक्युरिटी क्लासिफ़िकेशन सिस्टम की विश्वसनीयता ही नहीं बचेगी।"
 
मिलर कहते हैं कि अपने बॉस की राजनीतिक संभावनाओं की रक्षा के लिए फ़ोन कॉल के ट्रांसक्रिप्ट को 'सीक्रेट' बना देना पूरे सिस्टम को खोखला करने जैसा काम है।
 
वह कहते हैं, "जो लोग व्हाइट हाउस मे काम करते हैं वे राष्ट्रपति की नहीं, संविधान की शपथ लेते हैं। आपकी पहली वफ़ादारी देश के लिए होनी चाहिए न किसी किसी व्यक्ति के लिए।"
 

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