नरेंद्र मोदी सरकार के 43 मंत्रियों ने शपथ ले ली है। ये किसी सरकार का सबसे बड़ा मंत्रिमंडल विस्तार है। शपथ ग्रहण से कुछ घंटे पहले ही देश के स्वास्थ्य, शिक्षा, पर्यावरण और सूचना एवं प्राद्योगिकी मंत्रियों ने इस्तीफ़े दे दिए। मोदी सरकार के कुल 12 मंत्रियों को पद से हटाया गया है। 'मिनिमम गवर्नमेंट और मैक्सिमम गवर्नेंस' का नारा देने वाले नरेंद्र मोदी की सरकार में 36 नए मंत्री शामिल किए गए हैं। राजनीतिक विश्लेषक इसके पीछे दो बड़े कारण मानते हैं- एक तो व्यावहारिक राजनीतिक मजबूरियां और दूसरा महामारी के बाद जनता को ज़मीनी काम दिखाने की ज़रूरत।
मंत्रिमंडल विस्तार में बड़ी संख्या में मंत्रियों को शामिल करने के सवाल पर वरिष्ठ पत्रकार प्रदीप सिंह कहते हैं, 'ये पॉलिटिकल प्रैगमेटिज्म यानी राजनीतिक व्यवहारिकता है। सरकार की राजनीतिक मजबूरियां भी होती हैं। ये बात सही है कि पहले प्रधानमंत्री ने कई मंत्रालयों को समेटा था, कई मंत्रालय को एक किया था, इस बार भी लगता है ऐसी कोशिश होगी कि एक तरह के मंत्रालय एक जगह रहें।'
प्रदीप सिंह कहते हैं, 'आपने क्या नारा दिया, क्या सिद्धांत बनाए या फिर आपकी नीयत क्या थी, ये मायने नहीं रखता है, अंत में नतीजे ही देखे जाते हैं। जनता वोट इसी बात पर देगी कि आपने प्रदर्शन कैसा किया है। सरकार ने ये प्राथमिकता ज़ाहिर की है कि ज़मीनी स्तर पर काम दिखना चाहिए। और मंत्रिमंडल विस्तार का मक़सद भी यही है।'
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के दूसरे कार्यकाल का यह पहला मंत्रिमंडल विस्तार है। इसमें कुल 43 मंत्री शामिल किए गए हैं, जिनमें से 15 को कैबिनेट मंत्री पद की शपथ दिलाई गई है।
दरअसल, प्रधानमंत्री मोदी ने जून में सभी मंत्रालयों की समीक्षा की थी। सभी के कामकाज़ का 360 डिग्री रिव्यू किया गया था। जानकार बताते हैं कि इस दौरान पीएम मोदी ने तय किया कि किस-किस मंत्री को हटाना है। सबसे पहले जानते हैं उन पांच बड़े मंत्रियों के बारे में, जिन्हें पद से हटाया गया है।
1. हर्षवर्धन
कोविड महामारी के दौरान भारत के स्वास्थ्य मंत्रालय का नेतृत्व कर रहे हर्षवर्धन को इस्तीफ़ा देना पड़ा है। राजनीतिक विश्लेषक और वरिष्ठ पत्रकार प्रदीप सिंह कहते हैं, 'ज़ाहिर है प्रधानमंत्री उनके काम से ख़ुश नहीं थे।'
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जून में सभी मंत्रालयों के कामकाज़ की समीक्षा की थी।
वरिष्ठ पत्रकार अदिति फडनीस कहती हैं, 'स्वास्थ्य मंत्रालय को पूरी तरह बदल दिया गया है। सरकार दिखाना चाहती है कि कोविड महामारी के दौरान लोगों को जो भी दिक़्क़तें आई हैं, या नुक़सान हुआ है, अब नहीं होने दिया जाएगा।'
स्वास्थ्य मंत्री को हटाने से सरकार पर ये सवाल भी उठेगा कि उसने महामारी के दौरान ठीक से प्रबंधन नहीं किया और लोगों की जान बचाने में नाकाम रही। विश्लेषकों का मानना है कि प्रधानमंत्री मोदी को विपक्ष की आलोचना की बहुत परवाह नहीं है।
प्रदीप सिंह कहते हैं, 'स्वास्थ्य मंत्री को हटाने का मतलब है कि सरकार ने विपक्ष को आलोचना करने का मौक़ा दे दिया है। उनको हटाते ही ये सवाल उठेगा कि सरकार कोरोना महामारी के प्रबंधन में विफल रही है। ये बात प्रधानमंत्री भी जानते हैं, लेकिन उनके काम करने का तरीक़ा यही है, वो विपक्ष की आलोचना की बहुत परवाह नहीं करते हैं।'
वहीं अदिति फडनीस कहती हैं, 'कोविड प्रबंधन का एक दौर ये था कि लोगों से ताली-थाली बजाने के लिए कहा गया, फिर एक दौर वो आया कि मोदी जी टीवी चैनल पर आकर रोने लगे और अब एक दौर ये है जब ये संकेत दिया जा रहा है कि अब रोना-धोना बंद, अब काम करने का समय है।'
2. रमेश पोखरियाल निशंक
नए कैबिनेट विस्तार के दौरान शिक्षा मंत्री को भी पद से हटा दिया गया है। उत्तराखंड से आने वाले रमेश पोखरियाल निशंक केंद्रीय मंत्रिमंडल में पहाड़ का प्रतिनिधित्व कर रहे थे। भारत की नई शिक्षा नीति उन्हीं के कार्यकाल में लागू की गई है।
प्रदीप सिंह मानते हैं कि नई शिक्षा नीति लागू करने में निशंक की विफलता ही उन्हें हटाए जाने का कारण है।
प्रदीप सिंह कहते हैं, 'प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी नई शिक्षा नीति पर निशंक के काम से नाराज़ थे। शिक्षा में इतना बड़ा बदलाव सरकार ने किया लेकिन इस पर चर्चा ही नहीं हुई। ये ख़बर ही नहीं बन पाई कि नई शिक्षा नीति क्या है, इससे क्या बदलेगा। निशंक जन-जन तक शिक्षा नीति को पहुंचाने में नाकाम रहे, शायद इस बात को लेकर भी प्रधानमंत्री नाराज़ थे।'
कोविड महामारी के दौरान केंद्रीय बोर्ड की 10वीं और 12वीं की परीक्षाएं भी रद्द करनी पड़ीं।
अदिति कहती हैं, 'नई शिक्षा नीति इन्हीं मंत्री ने बनाई थी। सीबीएसई की 12वीं और 10वीं की परीक्षा को लेकर जो अफ़रा-तफ़री मची, उससे लोग बहुत परेशान हुए। एक महीना रह गया था और छात्रों को पता नहीं था कि इम्तेहान होगा या नहीं होगा। सरकार क्या करना चाह रही है, लोगों को ये समझ नहीं आ रहा था।'
3. रविशंकर प्रसाद
ट्विटर से दो-दो हाथ कर रहे रविशंकर प्रसाद को भी त्यागपत्र देना पड़ा है। अदिति फडनीस मानती हैं कि रविशंकर प्रसाद को पद से हटाने की वजह ये विवाद भी हो सकता है।
फडनीस कहती हैं, 'रविशंकर प्रसाद के इस्तीफ़े को ट्विटर विवाद से जोड़कर भी देखा जा रहा है। रविशंकर प्रसाद ने जिस तरह से दुनिया की बड़ी तकनीक कंपनियों कौ चुनौती दी, उससे भारत एक अजीब स्थिति में फंस गया। जहां अमेरिका को भी कहना पड़ा कि भारत ग़लत कर रहा है। मुझे लगता है कि भारत का आशय किसी वैश्विक विवाद में फंसना नहीं था। इससे भी भारत को बहुत दिक़्क़त हुई है।'
भारत लोगों की निजी जानकारियों को लेकर डेटा प्रोटेक्शन लॉ भी ला रहा है। इस पर संयुक्त संसदीय समिति रिपोर्ट तैयार कर रही है। लेकिन रविशंकर प्रसाद ने रिपोर्ट के पेश होने से पहले ही ट्वीट कर दिया था कि वो इस रिपोर्ट से बहुत ख़ुश हैं।
अदिति फडनीस कहती हैं कि इससे सरकार की बहुत फ़जीहत हुई थी। भारत सरकार नया डेटा प्रोटेक्शन लॉ तैयार कर रही है, जिसे संयुक्त संसदीय समिति देख रही है, इसकी रिपोर्ट अभी आनी है, लेकिन रविशंकर प्रसाद को ये मालूम ही नहीं था कि रिपोर्ट अभी पूरी तरह से तैयार नहीं हुई है और उन्होंने ट्वीट कर दिया कि वो इस रिपोर्ट से बहुत ख़ुश हैं।
फडनीस कहती हैं, 'डेटा पॉलिसी पर बहुत गंभीरता से काम किया जा रहा है। जिस गंभीरता से भारत का संविधान लिखा गया था, उसी गंभीरता से इस पर काम चल रहा है।'
4. प्रकाश जावड़ेकर
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर को भी बाहर का रास्ता दिखा दिया है। इसके दो कारण समझ में आते हैं, एक तो पर्यावरण मंत्रालय में बहुत कुछ काम नहीं हुआ है और दूसरा प्रकाश जावड़ेकर का पार्टी के भीतर समर्थन भी कम हुआ है।
अदिति कहती हैं, 'पर्यावरण मंत्रालय की वेबसाइट देखेंगे तो लगेगा कि सरकार और पर्यवारण मंत्रालय ने 2020 के बाद से कोई भी नया इनिशिएटिव नहीं लिया है। ऐसा लगता है कि जैसे पर्यावरण मंत्रालय ने 2020 के बाद कोई काम नहीं किया है। जो भी काम नज़र आता है, वो 2019 तक का ही आता है।'
भारत के सामने इस समय कई पर्यावरण चुनौतियां हैं, दिसंबर में कैनबरा में कोप-26 की बैठक होनी हैं, उसमें पर्यावरण को लेकर कई बड़े निर्णय लिए जाने हैं। अदिति कहती हैं कि बावजूद इसके पर्यावरण मंत्रालय ने इस दिशा में कोई ख़ास काम नहीं किया है।
अदिति कहती हैं, 'प्रधानमंत्री ने नारा दिया है कि भारत अगले साल तक सिंगल यूज प्लास्टिक फ्री हो जाएगा, लेकिन पर्यावरण मंत्रालय की वेबसाइट या काम को देखकर ये नहीं लग रहा है कोई इतनी बड़ी चीज़ होने जा रही है। शायद इससे भी प्रधानमंत्री नाराज़ हों।'
5. संतोष गंगवार
कुछ महीने पहले उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की सरकार की खुली आलोचना करने वाले संतोष गंगवार को भी पद से हटा दिया गया है। भारत में जब कोरोना की पहली लहर आई थी, तो बड़ी तादाद में प्रवासियों ने बेहद मुश्किल हालात में शहरों से गांवों की तरफ पलायन किया था।
प्रवासी संकट की वजह से केंद्र सरकार को आलोचना का सामना करना पड़ा था और वैश्विक स्तर पर भारत की ब्रैंड इमेज को भी धक्का लगा था।
अदिति फडनीस कहती हैं, 'संतोष गंगवार को हटाने के पीछे सबसे बड़ी वजह ये मानी जा रही है कि वो प्रवासी संकट से सही से नहीं निबटे। केंद्र सरकार और राज्य सरकारों को आपस में बात करके एक नीति बनानी थी और इसमें श्रम मंत्री की बहुत बड़ी भूमिका नहीं थी। लेकिन फिर भी उन्हें पद से हटा दिया गया है।'
अदिति मानती हैं कि गंगवार को पद से हटाने की एक और वजह योगी आदित्याथ के नाम लिखी उनकी चिट्ठी हो सकती है।
अदिति कहती हैं, 'मुझे लगता है कि संतोष गंगवार को हटाने की असल वजह उनकी योगी आदित्यनाथ को लिखी चिट्ठी है, जिसमें उन्होंने कोविड की दूसरी लहर के दौरान सरकार के कामकाज की खुले दिल से आलोचना की थी। संतोष गंगवार ने अहम सवाल उठाए थे, लेकिन शायद सरकार ने ये संकेत दिया है कि योगी आदित्यनाथ की आलोचना स्वीकार नहीं की जाएगी। बीजेपी सरकार इस बात को लेकर सजग है कि यूपी में योगी आदित्यनाथ के कामकाज की आलोचना का असर आगामी चुनावों पर हो सकता है।'
इस्तीफा देने वाले अन्य मंत्री
इन मंत्रियों के अलावा पश्चिम बंगाल से आने वाले बाबुल सुप्रियो को भी मंत्री पद से हटा दिया गया है। माना जा रहा है कि पश्चिम बंगाल में पार्टी के ख़राब प्रदर्शन की वजह से उन्हें हटाया गया है।
प्रदीप सिंह कहते हैं, 'बाबुल सुप्रियो को पश्चिम बंगाल के नतीजों की क़ीमत चुकानी पड़ी है। साथ ही वो एक स्टार की तरह व्यवहार करते थे, मंत्री से ऐसी उम्मीद नहीं की जाती है।'
इनके अलावा थावरचंद गहलोत (सामाजिक न्याय मंत्री), देबोश्री चौधरी (महिला बाल विकास मंत्री), सदानंद गौड़ा (उर्वरक और रसायन मंत्री) संजय धोत्रे (शिक्षा राज्य मंत्री), प्रताप सारंगी और रतन लाल कटारिया को भी पद से हटा दिया गया है।
इतनी बड़ी तादाद में मंत्रियों को हटाने की एक वजह तो ये है कि सरकार में नए मंत्रियों के लिए जगह बनानी है। वहीं प्रदीप सिंह कहते हैं, 'सरकार का सिद्धांत स्पष्ट है कि आप परफ़ॉर्म करिए या पेरिश हो जाइए, यानी या तो काम कीजिए या घर जाइए।'
प्रदीप सिंह कहते हैं, 'प्रधानमंत्री ने हर मंत्रालय के काम की समीक्षा की है। इस सरकार में एक समस्या ये भी है, आप इसे अच्छी स्थिति भी कह सकते हैं, कि प्रधानमंत्री टॉस्क मास्टर हैं। बाक़ी लोग उनके साथ क़दम मिलाकर चल नहीं पाते हैं। जो उनकी रफ़्तार से नहीं चल पाते हैं, वो धीरे-धीरे बाहर होने लगते हैं। जो मंत्री हटाए गए हैं, उनके साथ यही हुआ है।'
प्रधानमंत्री मोदी का काम करने का स्टाइल ऐसा है कि मंत्रालय में उनका सीधा दखल भी रहता है। प्रदीप सिंह कहते हैं, 'कई मंत्रियों को ऐसा लगता होगा कि प्रधानमंत्री ही हमारा मंत्रालय चला रहे हैं। मंत्रियों को हर सप्ताह प्रधानमंत्री को वॉट्सऐप पर रिपोर्ट देनी होती है।'
नए मंत्री जिनकी हो रही है चर्चा
कांग्रेस से बीजेपी में आए ज्योतिरादित्य सिंधिया ने कैबिनेट मंत्री के रूप में शपथ ली है। असम के पूर्व सीएम सर्बानंद सोनोवाल को भी मंत्री बनाया गया है।
इसके अलावा अनुप्रिया पटेल को फिर से केंद्रीय मंत्रीमंडल में जगह दी गई है। मोदी सरकार के 8वें साल में पहली बार सबसे ज़्यादा महिला मंत्रियों को जगह दी गई है। अब मोदी सरकार में 11 महिला मंत्री होंगी।
बुधवार शाम को 15 कैबिनेट मंत्रियों और 28 राज्य मंत्रियों ने शपथ ली है। इसमें लोकजनशक्ति पार्टी के पशुपति पारस और जदयू के आरसीपी सिंह भी शामिल हैं।
नज़र यूपी चुनावों पर भी?
उत्तर प्रदेश से मंत्रिमंडल विस्तार में सात लोगों को शामिल किया जा रहा है। उत्तर प्रदेश की महाराजगंज सीट से भाजपा सांसद पंकज चौधरी को मंत्रिपरिषद में राज्य मंत्री पद की शपथ दिलाई गई है। वहीं अपना दल की अनुप्रिया सिंह पटेल को भी राज्य मंत्री बनाया गया है। अनुप्रिया पटेल मोदी सरकार के पहले कार्यकाल में भी मंत्री बनाई गई थीं।
इनके अलावा भाजपा के आगरा से सांसद एसपी सिंह बघेल को मंत्रिपरिषद में राज्य मंत्री के तौर पर शामिल किया गया है। बघेल भाजपा में आने से पहले सपा और बसपा में भी रह चुके हैं।
राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि आगामी उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों में पार्टी सभी जातियों को साधने की कोशिश कर रही है।
अदिति फडनीस कहती हैं, 'अधिकतर नए मंत्री जो आ रहे हैं, वो यूपी के ही हैं, इससे ही स्पष्ट है कि सरकार यूपी के चुनावों को लेकर गंभीर हैं। उदाहरण के तौर पर अनुप्रिया पटेल ने पहले कार्यकाल में कोई बहुत ख़ास काम नहीं किया था, लेकिन उनकी फिर से केंद्रीय मंत्रीमंडल में वापसी हो रही है, उनकी वापसी की वजह राजनीतिक ही ज़्यादा लगती हैं।'
वहीं प्रदीप सिंह कहते हैं, ''इसका राजनीतिक अर्थ बिलकुल स्पष्ट है। साल 2014 में बीजेपी ने सोशल इंजीनियरिंग का जो प्रोजेक्ट शुरू किया था, उसे और मज़बूत किया जा रहा है। पहले 2014 फिर यूपी 2017 और फिर लोकसभा 2019, इन चुनावों में बीजेपी को जिन जातिगत समीकरणों ने सत्ता सौंपी उन्हें और मज़बूत करने का काम किया जा रहा है।'
प्रदीप सिंह कहते हैं, 'बीजेपी ग़ैर जाटव दलितों और ग़ैर यादव ओबीसी को सत्ता में अधिक हिस्सा देना चाहती है। पार्टी का साल 2014 के बाद से इन जातियों पर ही फ़ोकस है, अब इन जातियों को और मज़बूत करने की कोशिश की जा रही है। सरकार ये संदेश देना चाहती है कि पिछड़ों के नाम पर राजनीति करने वाले दलों या नेताओं ने जो इन जातियों को नहीं दिया है, वो उन्हें दिया जा रहा है।'
प्रधानमंत्री मोदी के नए मंत्रिमंडल में 4 पूर्व ब्यूरोक्रेट भी हैं। अदिति मानती हैं कि ये प्रधानमंत्री मोदी की ही नीति में एक बदलाव है, अब वो सरकार को लेकर अधिक व्यावहारिक हो गए हैं।
अदिति फडनीस कहती हैं, 'प्रधानमंत्री मोदी ने अपने पहले कार्यकाल के दौरान ऐसे ब्यूरोक्रेट्स को मंत्रिमंडल में शामिल नहीं किया था, जो सिविल सेवा के बाद राजनीति में आए थे और चुनाव जीत गए थे। तब मोदी ने कहा था कि इन लोगों ने सारी ज़िंदगी सरकार की मिठाई खाई है, मैं अब और नहीं खिलाउंगा। लेकिन अब इस बार उन्होंने 4 पूर्व नौकरशाहों को सरकार में शामिल किया है। यानी मोदी 360 डिग्री का टर्न लेकर वहीं आ गए हैं, जहां से उन्होंने शुरू किया था। इस बार एक तरह से हर तीसरा व्यक्ति या तो प्रोफ़ेशनल है, या उद्यमी है या फिर ब्यूरोक्रेट है।'
मंत्रिमंडल विस्तार और पुराने मंत्रियों को हटाए जाने को लेकर विपक्ष ने सरकार की आलोचना शुरू कर दी है। लेकिन विश्लेषकों का मानना है कि इससे मोदी सरकार को बहुत फ़र्क नहीं पड़ेगा।
जैसा कि अदिति कहती हैं कि ये एक साहसिक फ़ैसला है, विपक्ष तो कहेगा ही कि आपने इतने लोगों को हटाया है, ये काम नहीं कर रहे थे, इसका जवाब दीजिए, लेकिन मोदीजी को मालूम है कि आज की तारीख़ में जो विपक्ष कह रहा है, उसके बहुत ज़्यादा मायने नहीं हैं।