बांग्लादेश को हर मंच पर इतनी तवज्जो क्यों दे रहे हैं पीएम मोदी

BBC Hindi
गुरुवार, 14 सितम्बर 2023 (07:44 IST)
अभिनव गोयल, बीबीसी संवाददाता
पिछले हफ़्ते नई दिल्ली में हुए जी-20 शिखर सम्मेलन में भारत ने बांग्लादेश को भी विशेष अतिथि के तौर पर आमंत्रित किया था। बांग्लादेश एकमात्र पड़ोसी देश था, जिसे भारत ने जी-20 में इतनी तवज्जो दी।
 
आठ सितंबर को पीएम नरेंद्र मोदी ने जिन तीन देशों के साथ द्विपक्षीय बैठक की, उनमें मॉरिशस और अमेरिका के साथ एक नाम बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना का भी था।
 
राष्ट्रपति जो बाइडन के साथ के साथ शेख़ हसीना की सेल्फ़ी और ब्रिटेन के पीएम ऋषि सुनक के साथ उनकी तस्वीर सोशल मीडिया पर काफ़ी चर्चा में रही।
 
इतना ही नहीं जी-20 का समापन होते ही फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों ढाका पहुँच गए, जहाँ वह ख़ुद एयरपोर्ट पर अगवानी करने के लिए आईं।
 
इससे पहले रूस के विदेश मंत्री सेर्गेई लावरोफ़ बांग्लादेश गए थे। यह किसी भी रूसी विदेश मंत्री का पहली बार बांग्लादेश दौरा था।
 
जी-20 शिखर सम्मेलन से पहले दक्षिण अफ्रीका के जोहानिसबर्ग में ब्रिक्स समिट में बांग्लादेश को बुलाया गया था। ज़ाहिर है बांग्लादेश न तो ब्रिक्स का सदस्य है और न ही जी-20 का लेकिन दोनों अहम वैश्विक मंचों पर उसे विशेष अतिथि के रूप में आमंत्रित किया गया।
 
भारत ब्रिक्स और जी-20 दोनों का सदस्य है, ऐसे में बांग्लादेश को अहम अंतरराष्ट्रीय मंच पर जगह दिलाने में भारत कोई कसर नहीं छोड़ रहा है।
 
दो सवाल उठते हैं। एक तो यह कि बांग्लादेश की अहमियत अंतरराष्ट्रीय मंचों पर क्यों बढ़ गई है और भारत उसकी अहमियत के लिए इतना सजग क्यों है?
 
बांग्लादेश 1971 में पाकिस्तान से अलग हुआ था लेकिन कई मामलों में अब वह पाकिस्तान को पीछे छोड़ चुका है। पाकिस्तान भले परमाणु शक्ति संपन्न देश है लेकिन बांग्लादेश की विश्वसनीयता अंतरराष्ट्रीय मंचों पर ज़्यादा बढ़ी है और आर्थिक रूप से भी ज़्यादा स्थिर और मज़बूत है।
 
बांग्लादेश को लेकर भारत इतना मुखर क्यों?
बांग्लादेश की राजनीति के दो बड़े और प्रमुख चेहरे हैं- बांग्लादेश अवामी लीग की शेख़ हसीना और बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी(बीएनपी) की खालिदा ज़िया।
 
पिछले 14 सालों से बांग्लादेश में शेख़ हसीना की पार्टी आवामी लीग की सरकार है और वे प्रधानमंत्री की कुर्सी पर काबिज हैं।
 
बीएनपी ने साल 2014 के आम चुनावों का बहिष्कार किया था और 2018 के चुनावों में उसे सिर्फ़ सात सीटों पर ही जीत मिली थी।
 
दिल्ली की जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी के सेंटर फॉर साउथ एशियन स्टडीज़ के प्रोफ़ेसर संजय भारद्वाज कहते हैं कि भारत, बांग्लादेश में शेख़ हसीना की सरकार को देखना चाहता है।
 
वह कहते हैं, “बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी का झुकाव इस्लामिक कट्टरपंथियों की तरफ़ रहा है। वे हमेशा से पाकिस्तान की वकालत करते आए हैं, जिसका फ़ायदा चीन को मिलता है, क्योंकि चीन और पाकिस्तान दोस्त हैं। वहीं अवामी लीग लिबरल, सेक्युलर, डेमोक्रेटिक फैब्रिक में विश्वास करती है। यही वजह है कि भारत उसे वरीयता देता है।”
 
ऐसे में भारत नहीं चाहता कि उसके पड़ोस में कोई ऐसी सरकार रहे, जो उसके दुश्मन माने जाने वाले देशों का साथ दे।
 
विदेशी मामलों के जानकार क़मर आग़ा कहते हैं, “बीएनपी न सिर्फ़ पाकिस्तान बल्कि चीन समर्थित भी है। भारत का बांग्लादेश के साथ एक लंबा बॉर्डर लगता है। दोनों देशों के बीच पुराने सामाजिक आर्थिक रिश्ते हैं, जिन्हें भारत कमज़ोर नहीं होने देना चाहता।”
 
शेख़ हसीना के रहने से फ़ायदा?
व्यापार के मामले में बांग्लादेश, दक्षिण एशिया में भारत का सबसे बड़ा पार्टनर है। एशिया में सबसे ज़्यादा सामान अगर बांग्लादेश किसी को बेचता है, तो वह भारत है। दोनों देशों के बीच 2 हजार करोड़ अमेरिकी डॉलर से ज्यादा का ट्रेड होता है।
 
प्रोफेसर संजय भारद्वाज मानते हैं कि जब से शेख़ हसीना सत्ता में आई हैं, तब से दोनों देशों ने मिलकर बहुत काम किया है।
 
वह कहते हैं, “भारत अपनी 'एक्ट ईस्ट' पॉलिसी के लिए बांग्लादेश को बहुत अहम मानता है। हमारे पूर्वी राज्य और बांग्लादेश एक दूसरे से घिरे हुए हैं। वहां विकास और कनेक्टिविटी के लिए बांग्लादेश का साथ ज़रूरी है और यही बात उस पर भी लागू होती है।”
 
प्रो संजय कहते हैं, “शेख़ हसीना सरकार से पहले जब भारत ने कनेक्टिविटी के लिए उनके चटगांव पोर्ट को इस्तेमाल करने की बात कही, तो हमें मना कर दिया गया था। पहले हमें अगरतला से सामान को कोलकाता के पोर्ट पर लाने के लिए 1500 किलोमीटर से ज़्यादा का सफ़र तय करना पड़ता है, लेकिन आज 200 किलोमीटर से कम की दूरी पर ही सामान को चटगांव पोर्ट पर लाकर दुनिया में कहीं भी भेजा सकता है।”
 
पिछले आठ सालों में भारत ने सड़क, रेलवे, शिपिंग और बंदरगाहों जैसे क्षेत्रों में इंफ्रास्ट्रक्चर को बनाने के लिए बांग्लादेश को करीब 800 करोड़ अमेरिकी डॉलर की लाइन ऑफ क्रेडिट दी है। इसके अलावा अखौरा-अगरतला रेल लिंक, इंटरनेशनल जलमार्ग की ड्रेजिंग और मैत्री पाइपलाइन के लिए भी ग्रांट भी दिए गए हैं।
 
प्रोफेसर संजय कहते हैं, “लाइन ऑफ क्रेडिट में ज़्यादातर विकास से जुड़े प्रोजेक्ट हैं, जो बांग्लादेश को पर्यटन और व्यापार के हिसाब से पूर्वी भारत में एक्सेस देते हैं। यह एक तरह से क़र्ज़ नहीं बल्कि डिवेलपमेंट सपोर्ट है, जिसका अच्छा रिटर्न मिलता है। यह चीन की तरफ़ बांग्लादेश को क़र्ज़ के जाल में नहीं फंसाता है।”
 
सालों से श्रीलंका, बांग्लादेश, पाकिस्तान और नेपाल के साथ भारत के संबंधों पर दस्तावेज संकलित करने में लगे लेखक अवतार सिंह भसीन कहते हैं, “शेख़ हसीना एक समझदार नेता हैं, उन्हें पता है कि भारत से अच्छे संबंध रखने से उन्हें फ़ायदा होगा। कोई प्रो और एंटी इंडिया वाली बात नहीं है। हर देश अपने फ़ायदे के हिसाब से चलता है।”
 
वहीं विदेशी मामलों के एक्सपर्ट क़मर आग़ा कहते हैं, “नेपाल, श्रीलंका और बांग्लादेश जैसे देश भारत और चीन की दुश्मनी का दोहन कर रहे हैं। वे एक दो प्रोजेक्ट भारत से ले लेते हैं और एक दो प्रोजेक्ट चीन से। इन देशों का भारत के बिना रहना मुश्किल है।”
 
सुरक्षा के लिहाज से ज़रूरी है साथ
बांग्लादेश के साथ भारत की लगभग चार हज़ार किलोमीटर की सीमा लगती है। लिहाजा चीन और पाकिस्तान जैसे देशों की चुनौतियों को देखते हुए भारत के लिए इस इलाक़े में ऐसी सरकार की ज़रूरत है, जो उसका दोस्त हो।
 
क़मर आग़ा कहते हैं कि शेख़ हसीना से पहले की सरकार ने उत्तर पूर्वी भारत में अलगाववादियों को पनाह देने में अहम भूमिका निभाई थी।
 
बांग्लादेश के कैंपों से पूर्वोत्तर भारत में अलगाववादी आंदोलन को जिस तरह से समर्थन मिल रहा था उसे कुचलने में भी शेख़ हसीना सरकार ने अहम भूमिका निभाई है।
 
वहाँ रह रहे अलगाववादी आंदोलन के बड़े नेताओं को बांग्लादेश सरकार ने भारत को सौंप दिया, जिसमें उल्फा नेता अरविंद राजखोवा समेत कई दूसरे अलगाववादी नेता शामिल हैं। अब वे भारत से शांति वार्ता कर रहे हैं।
 
बांग्लादेश के लिए फील्डिंग कर रहा है भारत?
दिसंबर 2021 में अमेरिका ने बांग्लादेश के अर्धसैनिक बल रैपिड एक्शन बटालियन(आरएबी) और उसके कई वरिष्ठ अधिकारियों पर प्रतिबंध लगाए थे।
 
मई 2023 में अमेरिका ने बांग्लादेश की चुनाव प्रक्रिया को प्रभावित करने का प्रयास करने वाले लोगों पर वीज़ा प्रतिबंध लगाने की चेतावनी दी थी।
 
अमेरिका ने कहा था कि राजनीतिक दलों, नागरिक समूहों या मीडिया की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को प्रभावित करने पर ये क़दम उठाये जा सकते हैं।
 
अमेरिका और यूरोपीय संघ के देश बांग्लादेश सरकार पर स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव कराने के लिए दबाव बना रहे हैं। इससे विपक्ष की बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (बीएनपी) को बल मिल रहा है। हाल के महीनों में बीएनपी ने बांग्लादेश में कई बड़ी राजनीतिक रैलियां की हैं।
 
प्रोफेसर संजय भारद्वाज कहते हैं, “बांग्लादेश सरकार और अमेरिका के बीच ज़रूर कुछ मुद्दों पर खिंचाव है, लेकिन जी20 शिखर सम्मेलन में अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडन, ब्रिटेन के पीएम सुनक और फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों के साथ जो शेख़ हसीना की मुलाक़ात हुई है, उसे जमी हुई बर्फ़ पिघलने लगेगी। पिछले एक दशक में साबित हुआ है कि शेख़ हसीना भारत के लिए अच्छी रही हैं, ऐसे में भारत उनके लिए फिल्डिंग करेगा और कर रहा है।”
 
क़मर आग़ा भी कहते हैं कि इससे ज़रूर बांग्लादेश के संबंध अमेरिका से अच्छे होंगे और उस पर जो दबाव है, वह कम होने लगेगा।
 
आग़ा कहते हैं, “अमेरिका और यूरोपी की बड़ी टेक्स्टाइल कंपनियां बांग्लादेश से डील कर रही हैं, लेकिन इंडस्ट्री और टेक्नॉलजी के क्षेत्रों में ऐसा नहीं है। संबध अच्छे होने पर कुछ बड़े प्रोजेक्ट बांग्लादेश को मिल सकते हैं।”
 
क़मर आग़ा कहते हैं, “अमेरिका की इंडो पैसेफिक नीति के लिए भी बांग्लादेश का साथ ज़रूरी है। वहीं फ्रांस के ख़िलाफ़ अफ़्रीका में कई फ्रंट बन रहें हैं, ऐसे में वह अर्धविकसित और विकसित देशों के साथ अच्छे रिश्ते बना रहा है। अमेरिका और यूरोप नहीं चाहता कि बांग्लादेश चीन के साथ चला जाए, क्योंकि म्यामांर और श्रीलंका का पहले ही चीन की तरफ़ झुकाव है, नेपाल में पश्चिम के प्रति लगाव नहीं है, ऐसे में वह साउथ एशिया में अलग थलग नहीं पड़ना चाहता।”

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