"मैं के कामराज के इस विचार से इत्तेफ़ाक़ रखता हूँ कि चुनाव सर्वसम्मति से होना चाहिए, लेकिन सहमति नहीं बन पाए तो चुनाव ज़रूरी हो जाता है।
कांग्रेस एकमात्र पार्टी है जहाँ लोकतांत्रिक और पारदर्शी ढंग से चुनाव होता है। फ़िलहाल गहलोत जी ने चुनाव लड़ने की घोषणा की है और थरूर ने भी संकेत दिया है कि वह चुनाव लड़ेंगे। ऐसे में संभावना है कि 17 अक्तूबर को चुनाव होगा।"
कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव जयराम रमेश ने पिछले दिनों कांग्रेस अध्यक्ष पद के चुनाव को लेकर पूछे गए एक सवाल का ये जवाब दिया।
जब राहुल गांधी ने कांग्रेस के अध्यक्ष पद से त्याग पत्र दिया था, तब उन्होंने कांग्रेस कार्यसमिति से कहा था कि उनकी जगह किसी ग़ैर गांधी नेता को लेनी चाहिए। तब प्रियंका गांधी वाड्रा ने भी अपने भाई राहुल के सुर में सुर मिलाए थे और कहा था कांग्रेस का अध्यक्ष गांधी परिवार से बाहर का होना चाहिए।
कांग्रेस के कई नेताओं ने राहुल को मनाने की कोशिश की। राहुल के अड़े रहने पर सोनिया गांधी को मनाने की कोशिशें हुई, लेकिन सोनिया ने स्वास्थ्य कारणों का हवाला देते हुए ज़िम्मेदारी लेने से इनकार कर दिया।
आज़ाद भारत के ग़ैर नेहरू-गांधी कांग्रेस अध्यक्ष
1948-1949 (पट्टाभि सीतारमैया)
आज़ाद भारत के कांग्रेस के पहले अध्यक्ष
पेशे से डॉक्टर, जयपुर अधिवेशन में अध्यक्ष चुने गए
1930 में मछलीपट्टनम (आंध्र प्रदेश) में तोड़ा था नमक क़ानून
1950 (पुरुषोत्तम दास टंडन)
इलाहाबाद में जन्म, 1906 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के प्रतिनिधि
पेशे से वकील, हिंदी को राष्ट्र भाषा बनाने के बड़े पैरोकार
1961 में देश का सर्वोच्च सम्मान भारत रत्न दिया गया
1960-63 (नीलम संजीव रेड्डी)
1931 में पढ़ाई छोड़ सविनय अवज्ञा आंदोलन में कूदे
आंध्र प्रदेश के प्रमुख कांग्रेस नेता रहे
1977 से 1982 तक भारत के राष्ट्रपति रहे
1964-1967 (के कामराज)
1940 में तमिलनाडु कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष, 1954 में मुख्यमंत्री
दो बार पीएम पद ठुकराया, 1964 में लाल बहादुर शास्त्री और 1966 में इंदिरा गांधी के पक्ष में
1976 में मरणोपरांत भारत रत्न
1968-1969 (एस निजलिंगप्पा)
पेशे से वकील, कर्नाटक के एकीकरण में अहम भूमिका
कर्नाटक के पहले मुख्यमंत्री बने
निजलिंगप्पा के कार्यकाल में ही कांग्रेस विभाजित हुई
1970-71 (जगजीवनराम)
दलितों के लिए राजनीति में भागीदारी बढ़ाने के लिए आवाज़ बुलंद की
1971 में भारत-पाकिस्तान युद्ध के दौरान भारत के रक्षा मंत्री
1972-74 (शंकर दयाल शर्मा)
1959 में कराची में यूनेस्को सम्मेलन में भारत का प्रतिनिधित्व
1992 से 1997 तक भारत के राष्ट्रपति रहे
1975-77 (देवकांत बरुआ)
असम के डिब्रूगढ़ में जन्म
'इंडिया इज इंदिरा, इंदिरा इज इंडिया' का विवादित नारा दिया
आपातकाल के दौरान कांग्रेस अध्यक्ष रहे
1992-96 (पीवी नरसिम्हा राव)
भारत के नौवें प्रधानमंत्री रहे
आर्थिक उदारीकरण की बड़ी पहल की
1996-98 (सीताराम केसरी)
इंदिरा गांधी, राजीव गांधी और नरसिम्हा राव सरकार में केंद्रीय मंत्री
शरद पवार, राजेश पायलट के साथ त्रिकोणीय मुक़ाबले में जीते
24 साल में पहला ग़ैर-गांधी अध्यक्ष
कांग्रेस के अगले महीने होने वाले चुनाव निश्चित रूप से ऐतिहासिक होंगे क्योंकि नया अध्यक्ष सोनिया गांधी की जगह लेगा जो सबसे लंबे समय तक पार्टी की अध्यक्ष हैं। सोनिया 1998 से अध्यक्ष हैं (2017 और 2019 के बीच के दो वर्षों को छोड़कर जब राहुल गांधी ने पदभार संभाला था)।
मौजूदा चुनाव प्रक्रिया के बारे में बात करते हुए, राजनीतिक पर्यवेक्षक रशीद किदवई ने कहा कि इस बार के चुनावों में अभूतपूर्व और ऐतिहासिक दोनों होने की संभावना है क्योंकि सोनिया गांधी, राहुल गांधी और प्रियंका गांधी का स्थापित कांग्रेस नेतृत्व मैदान में नहीं है।
आज़ादी के बाद अब तक 16 लोगों ने पार्टी का नेतृत्व किया है, जिनमें से पाँच गांधी परिवार के अध्यक्ष रहे हैं।
आजादी के बाद कांग्रेस अध्यक्ष पद का पहला चुनाव 1950 में हुआ। आचार्य कृपलानी और पुरुषोत्तम दास टंडन के बीच चुनावी मुक़ाबला हुआ। इसमें टंडन विजयी हुए। बाद में तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू के साथ मतभेदों की वजह से टंडन ने इस्तीफ़ा दे दिया।
फिर नेहरू ने पार्टी की कमान संभाली। उन्होंने 1951 और 1955 के बीच पार्टी प्रमुख और प्रधानमंत्री के रूप में काम किया।
वर्ष 1950 के बाद कांग्रेस अध्यक्ष पद के लिए 47 साल तक चुनावी मुक़ाबला नहीं हुआ। 1997 में पहली बार त्रिकोणीय चुनावी मुक़ाबला हुआ। सीताराम केसरी, शरद पवार और राजेश पायलट ने चुनाव लड़ा और इसमें केसरी विजेता बने।
केसरी को 6,224 वोट मिले तो पवार को 882 और पायलट को 354 वोट हासिल हुए थे। इस चुनाव के एक साल बाद ही कांग्रेस कार्यसमिति ने एक प्रस्ताव पारित कर केसरी को हटा दिया था और यह बहुत ही चर्चित एवं विवादित प्रकरण रहा।
22 साल पहले सोनिया के सामने थे जितेंद्र प्रसाद
आज़ाद भारत में कांग्रेस अध्यक्ष पद के लिए तीसरी बार चुनाव साल 2000 में हुआ, जब सोनिया गांधी के सामने उत्तर प्रदेश के दिग्गज ब्राह्मण नेता जितेंद्र प्रसाद खड़े हुए।
कभी राजीव गांधी के राजनीतिक सचिव रहे प्रसाद को हालाँकि इस चुनाव में करारी हार झेलनी पड़ी और उन्हें सिर्फ़ 94 वोट हासिल हुए। सोनिया को 7,400 प्रतिनिधियों का समर्थन मिला था।
यानी 1947 के बाद अब तक पार्टी की कमान 16 लोग संभाल चुके हैं, जिसमें गांधी परिवार के पांच अध्यक्ष रहे हैं। वर्तमान में कांग्रेस की अध्यक्ष सोनिया गांधी है और वह कांग्रेस के इतिहास में सबसे लंबे समय तक अध्यक्ष पद पर रहने वाली महिला नेता हैं।
कितना असरदार होगा ग़ैर गांधी कांग्रेस अध्यक्ष?
अब जब क़रीब-क़रीब तय हो गया है कि कांग्रेस का अगला अध्यक्ष गाँधी परिवार से बाहर का होगा, चर्चा होने लगी है 'ग़ैर गांधी कांग्रेस अध्यक्ष' कितना ताक़तवर और असरदार होगा?
महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चव्हाण ने कहा कि अगर किसी को 'कठपुतली अध्यक्ष' बनाया जाता है तो पार्टी बच नहीं पाएगी। वहीं बीजेपी ने कहा कि कांग्रेस अध्यक्ष चाहे गहलोत बनें या शशि थरूर, वो राहुल गांधी के हाथों की 'कठपुतली' होंगे।
बीजेपी के राष्ट्रीय प्रवक्ता टॉम वडक्कन ने कहा, "कांग्रेस पार्टी चाहे जो भी व्यवस्था अपना ले, चाहे गहलोत अध्यक्ष बनें या थरूर।।। वे महज कठपुतली होंगे। पार्टी की कमान राहुल गांधी के हाथ में ही होगी, बस वह 'बैकसीट' से पार्टी चला रहे होंगे।"
पत्रकार शेखर अय्यर का कहना है कि ये सब कुछ निर्भर करता है गांधी (सोनिया-राहुल) परिवार पर। वो नए अध्यक्ष को कैसे समर्थन देते हैं।
उन्होंने कहा, "इसमें शक नहीं कि बिना गांधी परिवार कांग्रेस पार्टी नहीं है। पिछला चुनाव ही लें तो जब तक सीताराम केसरी को गांधी परिवार का समर्थन रहा, वो पद पर रहे। गांधी परिवार का असर हमेशा रहेगा, ये तो बार-बार कहा जा रहा है।"
हालाँकि वरिष्ठ पत्रकार नीरजा चौधरी का कहना है कि कांग्रेस में जो हालात 20 साल पहले थे वो अब नहीं हैं। कांग्रेस को ऐसे नेतृत्व की ज़रूरत है जो अनुभवी हो, ज़मीनी हक़ीक़त की जानकारी रखता हो, कार्यकर्ताओं में जीतने का विश्वास जगा सके और सबसे बड़ी बात जब कोई उनकी नरेंद्र मोदी से तुलना करे तो उसे ख़ारिज न कर दे।
दरअसल, बीजेपी की लंबे समय से यह रणनीति रही है कि वह चुनावी मैदान में मोदी के सामने राहुल गांधी को प्रधानमंत्री पद के दावेदार और बिखरे हुए विपक्ष को देखना चाहती है। ऐसे में गांधी परिवार से बाहर के व्यक्ति को निशाना बनाने के लिए नए सियासी दांव चलने होंगे।
नीरजा चौधरी कहती हैं, "मैं पिछले कुछ दिनों से पंजाब और हिमाचल में हूँ। जहाँ जाती हूँ लोग मोदी बनाम राहुल करते हैं। लेकिन जब कांग्रेस की कमान गांधी परिवार के बाहर के किसी नेता के हाथ में होगी तो सत्ता पक्ष को भी अपनी रणनीति में बदलाव करना होगा।"
स्वतंत्र फ़ैसले ले पाएँगे?
तो क्या कांग्रेस का अगला अध्यक्ष स्वतंत्र तौर पर फ़ैसला कर पाएगा? नीरजा चौधरी कहती हैं, "सियासत में ऐसा नहीं होता। आज की स्थिति में सिर्फ़ नरेंद्र मोदी के साथ ही ऐसा होगा कि उनके निर्णयों पर शायद पार्टी सवाल नहीं उठाती होगी। इसकी वजह है कि वह पार्टी का चेहरा हैं, लोकप्रिय हैं और पार्टी को लगातार जीत दिला रहे हैं। जबकि कांग्रेस के साथ ऐसा नहीं है। राहुल अपने नेतृत्व में कोई करिश्मा नहीं कर सके।"
हालाँकि शेखर अय्यर का कहना है कि छोटे-मोटे फ़ैसले को छोड़ दें तो अहम फ़ैसले तो गांधी परिवार ही लेगा। अय्यर कहते हैं, "दौर कोई भी हो, गांधी परिवार के समर्थन के बिना अध्यक्ष बनना मुश्किल क्या नामुमकिन है। तो फिर अहम फ़ैसले लेने में गांधी परिवार को नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता।"
गहलोत की साख दांव पर?
हालाँकि राजस्थान में जिस तरह से तेज़ी से सियासी समीकरण बदल रहे हैं, उससे गहलोत की दावेदारी और उन्हें सोनिया-राहुल के समर्थन को लेकर सवाल उठने लगे हैं।
शेखर अय्यर कहते हैं, "गहलोत राहुल-सोनिया के नज़दीकी रहे हैं और यही वजह है कि पिछली बार राजस्थान के विधानसभा चुनावों के बाद उन्हें मुख्यमंत्री पद दिया गया, जबकि तमाम लोग मानते थे कि सचिन पायलट ने बतौर पार्टी अध्यक्ष बहुत मेहनत की थी। लेकिन अभी के हालात से लग रहा है कि गहलोत सचिन के लिए कुर्सी नहीं छोड़ना चाहते।"
एक तरफ़ मुख्यमंत्री की कुर्सी और दूसरी तरफ़ गांधी परिवार की वरदहस्ती में कांग्रेस के अध्यक्ष पद की दावेदारी। गहलोत ने फ़िलहाल तो पार्टी आलाकमान को राजस्थान से बाहर निकालने की स्थिति में होने वाले नफ़ा-नुकसान का गणित समझने में उलझा दिया है।