हम सब इस चीज़ को कभी न कभी महसूस कर चुके होंगे: आप किसी काम के लिए एक कमरे में जाते हैं और फिर रुक जाते हैं। आप भ्रमित हो जाते हैं और आपको कुछ समझ नहीं आता है। ऐसा लगता है कि जैसे आप यह भूल गए हैं कि आप यहां क्यों आए थे। 2011 में यूनिवर्सिटी ऑफ नॉट्रेडैम के शोधार्थियों ने इस चीज़ की पड़ताल करने की कोशिश की। उन्होंने पाया कि दरवाज़े से गुज़रने की गतिविधि की वजह से यह अचानक भूलने की स्थिति पैदा होती है।
इनकी स्टडी में पता चला कि दिमाग़ एक वक़्त में ज़रूरत वाली सूचनाएं रखने के लिए बना हुआ है। ऐसे में लोकेशन में बदलाव एक ट्रिगर के तौर पर काम करता है और इस वजह से कुछ डेटा इसमें से निकल जाता है ताकि अन्य सूचनाओं के लिए जगह बनाई जा सके।
कोरोनावायरस के फैलने के साथ ही मुझे एक दिन में कई मर्तबा यह महसूस होता है कि मैं यह भूल रही हूं कि मैं रसोई में क्या करने आई थी। मेरे लिए किसी भी चीज़ पर फ़ोकस करना तक़रीबन नामुमकिन हो जाता है।
मैं यह भूल जाती हूं कि मुझे किसे कॉल करना है। साथ ही एक सामान्य-सा ई-मेल लिखने में मुझे लंबा वक़्त लगता है। मैं कोई काम शुरू करता हूं और चंद मिनटों में ही मेरा ध्यान भंग हो जाता है। मेरी उत्पादकता गिर चुकी है। मैं अकेली नहीं हूं। जिस किसी से भी मैं अपनी इस नई समस्या का ज़िक्र करती हूं वो ख़ुद भी इसी तरह की समस्याओं से जूझ रहा होता हैः किसी मामूली से काम को करने में भी बहुत मेहनत करनी पड़ती है।
हाल में एक लेखक दोस्त ने कहा, 'मैं हद से ज़्यादा व्यस्त हूं। खाना बनाने और वॉक करने के अलावा मैं कुछ भी नहीं कर रहा हूं।' एक तनाव की स्थिति मामूली काम को बहुत मुश्किल बना देती है। यह सब वर्किंग मेमरी में गड़बड़ी की वजह से हो रहा है। वर्किंग मेमरी, आने वाली सूचनाओं को ग्रहण करने, इसे एक विचार की शक्ल देने और इसे तब तक बनाए रखने जब तक कि आपको इसकी ज़रूरत है, की काबिलियत होती है।
फ़िनलैंड की आबो अकेडमी यूनिवर्सिटी के मनोविज्ञान के प्रोफ़ेसर मैट्टी लेइन कहते हैं, 'इसे अपने कॉग्निटिव (संज्ञानात्मक) कामकाज के लिए मेंटल प्लेटफॉर्म के तौर पर समझें, जिस चीज़ के बारे में हम अभी सोच रहे हैं।' वो कहते हैं, 'वर्किंग मेमरी का ध्यान से काफ़ी नज़दीकी रिश्ता है। आप किसी काम, किसी लक्ष्य, किसी निर्देश या व्यवहार पर फ़ोकस करते हैं जिसे आप पूरा करना चाहते हैं।'
दूसरे शब्दों में, वर्किंग मेमरी एक रियल टाइम में काम करने की काबिलियत है। और इंसानी दिमाग़ को इतना ताक़तवर बनाने में इसका अहम योगदान है। लेकिन, शोध से पता चलता है कि परिस्थितियों में तेज़ रफ़्तार से होने वाले बदलाव, चिंताओं और बेचैनी से आपके फ़ोकस करने की काबिलियत पर बड़ा असर पड़ता है।
बेचैनी और वर्किंग मेमरी का रिश्ता
लेइन कहते हैं, 'महामारी से काफ़ी पहले हमने अमेरिकी वयस्कों के एक बड़े समूह पर एक ऑनलाइन स्टडी की थी। इन लोगों ने सेल्फ़-असेसमेंट के सवालों के जवाब दिए थे।' 'हमने बेचैनी और वर्किंग मेमरी के बीच एक नकारात्मक रिश्ता देखा था। बेचैनी जितनी ज़्यादा होगी, वर्किंग मेमरी का परफॉर्मेंस उतना ही घट जाता है।'
जब आप एक गंभीर बेचैनी का सामना कर रहे होते हैं, जैसे मान लीजिए कि अंधेरे में आपके घर लौटते वक़्त आपके पीछे कोई चल रहा हो, तो इसका मतलब यह है कि आपको शायद उनके चेहरों को याद करने में दिक्कत हो रही हो।
एक लंबे वक्त तक जारी रही तनावपूर्ण स्थिति से भी वर्किंग मेमरी पर बुरा असर पड़ सकता है। इससे आपके लिए बेहद सामान्य से काम करने में भी मुश्किलें आ सकती हैं। लेइन कहते हैं, 'हम ऐसी एंग्जाइटी और तनाव की बात कर रहे हैं जो कि गंभीर नहीं है।'
'यह सब एक अनिश्चित भविष्य से जुड़ा हुआ है। आपको यह नहीं पता कि यह कितना लंबा चलेगा। यह भी एक गंभीर बेचैनी की स्थिति की वजह बन रही है।' वर्किंग मेमरी पर अभी तक प्रकाशित नहीं हुई इस स्टडी के लिए लेइन और उनकी टीम ने ब्रिटेन और उत्तरी अमेरिका के क़रीब 200 लोगों से यह भी पूछा है कि क्या उन्हें खासतौर पर इस महामारी से जुड़ी हुई बेचैनी का सामना करना पड़ा है।
लेइन कहते हैं, 'हमने महामारी के चलते एंग्जाइटी का एक सवाल जोड़ा क्योंकि उस वक्त चारों तरफ़ यही चल रहा था।' लेइन कहते हैं, 'हमने लोगों से कहा कि वे अपने एंग्जाइटी लेवल को ज़ीरो से 10 के स्केल पर रिपोर्ट करें। 10 नंबर का मतलब है कि इस एंग्जाइटी की वजह से आपके रोज़ाना के कामकाज पर बुरा असर पड़ रहा है। इस सर्वे में औसत 5।6 निकला जो कि काफ़ी ज़्यादा है।'
लेइन कहते हैं कि इसके अलावा ये आंकड़े महामारी से जुड़ी हुई बेचैनी और वर्किंग मेमरी के घटते प्रदर्शन के बीच भी संबंध को ज़ाहिर करती हैं। वो कहते हैं, 'जब आप बेचैन होते हैं तो आपका दिमाग़ विचारों से भर जाता है और आपका दिमाग़ किसी न किसी रूप में पक्षपात वाला होता है और यह नकारात्मक चीज़ों पर ज़्यादा ग़ौर करता है।'
यूनिवर्सिटी कॉलेज लंदन के इंस्टीट्यूट ऑफ़ कॉग्निटिव न्यूरो साइंस के ओलिवर रॉबिंसन बताते हैं कि लगातार एंग्जाइटी के चलते भी भूलने की बीमारी हो सकती है। वो कहते हैं, 'अगर आप अच्छी नींद नहीं ले पा रहे हैं तो इससे भी वर्किंग मेमरी पर बुरा असर पड़ता है।' रॉबिंसन बताते हैं कि यहां तक कि शॉपिंग लिस्ट बनाने जैसे बेहद सामान्य काम जैसी कॉग्निटिव प्रक्रिया को करने के लिए अब कहीं ज़्यादा दिमाग़ी मशक्कत करनी पड़ रही है।
अच्छी ख़बर यह है कि आप वर्किंग मेमरी की एक्सरसाइज़ कर सकते हैं। इस वक्त कई तरह के ब्रेन गेम्स मौजूद हैं, लेकिन एक्सपर्ट्स कहते हैं कि इनमें से ज्यादातर गेम में आपको अच्छा करने में सक्षम बनाने से ज्यादा कुछ नहीं करते हैं। दुकान के बाहर खड़े होने के अलावा कोविड-19 के दौर में ऐसे कई वर्कलोड बढ़े हैं जिससे बेचैनी पैदा होती है।
रॉबिंसन कहते हैं, 'कॉग्निटिव ट्रेनिंग गेम्स मेरी शॉपिंग लिस्ट को मुझे याद रखने में बेहतर नहीं बनाते हैं। ये लोगों को टेनिस खेलने के लिए उन्हें दौड़ने में सक्षम बनाने जैसी चीजों से जुड़े हुए हैं।'
हालांकि, एक ख़ास तरह की ट्रेनिंग एक्सरसाइज़ जिसे एन-बैक कहते हैं, उसने कुछ स्टडीज़ में अच्छे नतीजे दिखाए हैं। एन-बैक टास्क एक क्लासिक कॉन्सनट्रेशन गेम जैसा है जिसमें खिलाड़ियों को मैचिंग कार्ड्स के जोड़े ढूंढने पड़ते हैं। लेकिन, जोड़ों की जगह पर इसमें केवल एक वस्तु होती है जो कि ग्रिड जैसे बोर्ड में घूमती है। खिलाड़ियों को 1-बैक, 2-बैक, आदि जैसे एक खास टर्न की संख्या के आधार पर वस्तु की पोजिशन को याद रखना होता है।
वर्किंग मेमरी में घंटों सुडोकू से मदद नहीं मिल सकती है
क्या इस खेल को खेलने से हकीकत में वर्किंग मेमरी पर असर पड़ता है या नहीं, यह अभी न्यूरोसाइंस समुदा में विवाद का विषय है, लेकिन इसके कुछ राउंड से आपको तनाव को कुछ कम करने में मदद ज़रूर मिलती है।
रॉबिंसन कहते हैं, 'आमतौर पर, एंग्जाइटी के चिकित्सकीय इलाज में हम लोगों को यह दिखाने पर भरोसा करते हैं कि चीजें उतनी बुरी नहीं हैं जितना वे सोच रहे हैं। इस मामले में आप इसका इस्तेमाल नहीं कर सकते हैं। लेकिन, आप उन चीजों को सीमित कर सकते हैं जो कि आपको इन चीजों के बारे में सोचने पर मजबूर करती हैं।'
दूसरे शब्दों में, अपनी वर्किंग मेमरी को रीबूट करने का यह भी मतलब है कि आपको अपनी खबरों की खपत को कम करना होगा और सोशल मीडिया से ब्रेक लेने के बारे में विचार करना पड़ेगा। लेकिन, ऐसा करने का सबसे प्रभावी तरीका शायद यह है कि आप खुद को समझाएं कि चीजों से जूझने में कोई बुराई नहीं है।
रॉबिंसन कहते हैं, 'आप पहले के जैसे प्रोडक्टिव न हों और इसमें कोई बुराई नहीं है कि आप 100 फ़ीसदी कैपेसिटी पर काम नहीं कर पा रहे हैं: हम अभी भी एक महामारी के बीच में हैं।'