'पाप' किया है तो उपलब्ध है मुक्ति का सर्टिफिकेट

मंगलवार, 17 जुलाई 2012 (14:04 IST)
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भारत में पुण्य अर्जित करने के लिए लोग चार धाम और तीर्थ स्थानों की यात्रा करते रहे हैं। कोई अपने पाप धोने के लिए भी धर्म स्थलों की यात्रा करता है, किसी को गंगा में स्नान से दोष निवारण का सुख मिलता है तो कोई नदी, सरोवर और पोखर में डुबकी लगाकर अपने कथित पाप से मुक्ति लेता है।

पर क्या इससे इंसान को पाप से मुक्ति मिल जाती है? दक्षिणी राजस्थान में गौतमेश्वर ऐसा तीर्थ है जहां मंदाकिनी कुंड में डुबकी लगाओ और लगे हाथ 'पाप मुक्ति प्रमाण पत्र' भी हासिल कर लो।

श्रद्धालु आते हैं, अपनी गलतियों का प्रायश्चित करते हैं और पुजारी उनको प्रमाण पत्र जारी कर देते हैं। जयपुर से कोई साढ़े चार सौ किलोमीटर दूर आदिवासी बहुल प्रतापगढ़ जिले में स्थित गौतमेश्वर ऐसे स्थान पर है जहां अरावली के पहाड़ और मालवा के पठार संधि करते नजर आते हैं।

यहां सदियों पुराने मंदिर आशीर्वाद मुद्रा में मुखातिब हैं। ये तीर्थ अपनी भौगोलिक स्थिति के कारण राजस्थान, मध्यप्रदेश और गुजरात के बीच त्रिकोण बनाता है।

यहां मंदाकिनी कुंड के जल को गंगा जैसा पवित्र माना जाता है क्योंकि विश्वास है कि महर्षि गौतम को अपने ऊपर लगे गोहत्या के आरोप से यहीं मुक्ति मिली थी और तब से लोग अपने गुनाह धोने के लिए यहां आते रहे हैं।

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आत्मशुद्धि : मध्यप्रदेश के मंदसौर से आए गजेन्द्र ने कोई गुनाह नहीं किया। मगर उन्हें लगता है कि रोजमर्रा में कई बार अनजाने ही कोई गलती हो ही जाती है। वैदिक मंत्रों की ध्वनि गूंजी और श्रद्धा से अभिभूत गजेन्द्र ने मंदाकिनी कुंड में डुबकी लगाई।

वे उस भारत का हिस्सा हैं जो खेत खलिहान, गांव-देहात और नगर-कस्बों में रहता है। कानून की किसी किताब ने उनकी गलती का हिसाब नहीं लगाया, ना ही कोई आरोप पत्र दाखिल हुआ। लेकिन भारत में करोडों लोग ऐसे हैं जिनकी जिंदगी में पाप-पुण्य का बड़ा महत्व है।

गजेन्द्र मंदाकिनी से बाहर निकले तो लगा अनजाने अपराध का बोध इस पानी में बह गया। वो कहने लगे, 'मैं खेती करता हूं तो गलती तो होती है। काम करते वक्त कीड़े मकोड़े और जानवर मर जाते हैं। तो ये सावन का महीना है। यहां आकर स्नान कर लिया तो लगा जो भी भूल से गलती या कोई गुनाह हुआ है तो धुल गया।'

यूं तो गौतम ऋषि न्याय दर्शन के प्रवक्ता थे। मगर खुद उन्हें इंसाफ के लिए यही गौतमेश्वर आना पड़ा था। त्रेता युग में महर्षि श्रृंग ने यहां तपस्या की थी। मंदिर के एक पुजारी जगदीश शर्मा कहते हैं कि ये श्रृंग के तप का बल था कि गंगा मैया यहां मंदाकिनी बन प्रकट हुईं।

प्रमाण पत्र : इस क्षेत्र के उपखंड अधिकारी प्रभाती लाल जाट मंदिर के लिए बनी समिति के प्रमुख है। वे स्थान को आदिवासियों का हरिद्वार बताते हैं।

लिखित में पाप मुक्ति का प्रमाण पत्र जारी करने के सिलसिले को बहुत पुराना बताने वाले पुजारी शर्मा कहते हैं, 'मेरे दादा के समय था, मेरे समय है। पहले एक पुजारी थे, अब छह हैं। राज्य सरकार ने समिति बना रखी है। एसडीएम उसके प्रमुख हैं। चढ़ावे का 30 फीसदी पुजारी को मिलता है। बाकी विकास पर खर्च होता है।'

इस मंदिर में पाप मुक्ति के लिए कौन आते हैं?

पुजारी शर्मा कहते हैं, 'आम लोग आते हैं। जैसे कोई हल हांक रहा है, इसमें किसी गिलहरी जैसे प्राणी की मौत हो गई, किसी जानवर के अंडे नष्ट हो गए आपकी गलती से, किसी वाहन से गाय की मौत हो गई। ऐसे में समाज के लोग कहते हैं तेरे से गुनाह हो गया, तू गौतमजी जा और स्नान करके आ। साथ ही वहां से कोई प्रमाण लाना, तो ये प्रमाण पत्र काम आता है।

मंदिर के एक व्यवस्थापक सुधीर के मुताबिक, इन प्रमाण पत्रों का कई सालों का रिकॉर्ड उपलब्ध है।

गौतमेश्वर शिव को समर्पित है। लिहाजा सावन में श्रदालुओं की भीड़ उमड़ती है और यहां मालवा, मेवाड़ और वागड़ अंचल की संस्कृति के दर्शन होते हैं। अपनी गलतियों की मंदाकिनी में डुबकी लगा रही भीड़ में कदाचित मैं अकेला पत्रकार था।

पाप मुक्ति के कागज का पुर्जा हाथ में आया तो लगा जिस्म नहीं रूह धुल गई है। धर्म शास्त्रों के ज्ञाता कला नाथ शास्त्री कहते हैं अपनी गलतियों और गुनाह के प्रायश्चित और दुःख व्यक्त करने की परंपरा वैदिक काल से चली आ रही है।

वे कहते हैं, 'केवल हिंदू धर्म में ही ऐसा नहीं है, बल्कि जैन धर्म तो क्षमा को बड़ा महत्व दिया जाता है। इस्लाम, बौद्ध और ईसाई धर्म में भी यही बात है।'

नदारद नेता-अफसर : मटमैले रास्तों, संकरी गलियों, छोटे मोहल्लों और खेतों की पगडण्डी से निकली इस भीड़ में कहीं भक्ति का भाव था तो किसी चेहरे पर किए पर पछतावे की छाया। पर क्या कभी कोई नेता और नौकरशाह अपने पर लगी तोहमत के बीच इस मुकाम तक आया है?

मंदिर के पुजारी शर्मा कहते हैं, 'नहीं जी नेता आते भी नहीं हैं, वो पाप को मानते भी नहीं हैं। जो मलाई काढ़ने में मशगूल हैं वो ना तो पाप को मानते हैं न भगवान को। हम पुजारी लोग भी नेता के पास काम के लिए जाएंगे तो कहेंगे बाबा कुछ दो तब काम होगा। कोई अफसर भी नहीं आता है।'

पाप मुक्ति प्रमाण पत्र के लिए 15 रुपए जमा करने होते हैं। इसमें 10 रुपए दोष-निवारण, एक रुपया गोमुख के बाद दोष- निवारण और एक रुपया प्रमाण पत्र निमित्त जमा होते हैं।

वाल्मीकि ने अपने गुनाहों को मन चंगा कर कठौती की गंगा में धोया, फिर उनके हाथों ने रामकथा को रामायण में ढाल दिया।

सम्राट अशोक में जंग के बाद प्रायश्चित का भाव जगा और वो बुद्धम् शरणम् हो गए। मगर क्या सत्ता और व्यवस्था में ऊंचे बैठे लोग भी इसका महत्व समझेंगे।

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