पटना। बिहार विधानसभा चुनाव में चौथे दौर के मतदान का प्रतिशत बढ़ने के बाद भाजपा के रणनीतिकारों ने राहत की सांस तो ली है, लेकिन पांचवें और आखिरी दौर का घमासान पार्टी के लिए अभी भी बेहद चुनौतीपूर्ण बना हुआ है।
आखिरी दौर में जिन सीटों पर मतदान होना हैं उनको जनता दल (यू), राष्टीय जनता दल (राजद) और कांग्रेस के महागठबंधन के दबदबे वाली माना जाता है। लिहाजा भाजपा के रणनीतिकार इन सीटों पर जमीनी समीकरणों को ज्यादा अहमियत दे रहे हैं। इस सिलसिले में पार्टी की दो स्तरीय रणनीति में अपनी मजबूत सीटों पर जीत हासिल करने के साथ ही कमजोर सीटों पर महागठबंधन को न जीतने देना शामिल है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लेकर भाजपा के सभी स्टार प्रचारकों ने पूरी ताकत झोंकी है। भाजपा की उम्मीदें अपनी ताकत के साथ ही समाजवादी पार्टी और पप्पू यादव द्वारा बनाए गए मोर्चा व असदउद्दीन ओवैसी की एआईएमआईएम के प्रदर्शन पर भी टिकी हैं। ये दोनों ताकतें जितना अच्छा प्रदर्शन करेंगी, भाजपा को उतना ही ज्यादा फायदा होगा।
भाजपा नेता जाहिरा तौर पर तो अपनी जीत का भरोसा जता रहे हैं लेकिन अंदर ही अंदर वे आशंकित भी हैं। इसलिए वे चुनाव बाद की सभी संभावनाओं का आकलन करके भी चल रहे हैं। भाजपा त्रिशंकु विधानसभा की स्थिति में खुद को सबसे बड़े दल और राजग को सबसे बड़े गठबंधन के रूप में रखना चाहती है, ताकि सरकार बनाने का उसका दावा मजबूत रह सके।