बिहार के बाहुबली: चुनाव दर चुनाव जीतते जा रहे 'माननीय' अनंत सिंह के अपराध की ‘अनंत' कथाएं

विकास सिंह
शुक्रवार, 9 अक्टूबर 2020 (13:05 IST)
बिहार में चुनाव बा...बाहुबली नेताओं की बहार बा। जी हां बात हो रही है बिहार विधानसभा चुनाव में बाहुबली नेताओं के चुनाव लड़ने और जीतने की। 90 के दशक का बिहार वैसे तो आज समय के साथ काफी बदल गया है लेकिन जो कुछ नहीं बदला है तो वह है बिहार की राजनीति में बाहुबली नेताओं का वर्चस्व। डेढ़ दशक लालू परिवार का शासन और उसके बाद पिछले डेढ़ दशक से सुशासन बाबू कहलाने वाले नीतीश कुमार का शासन। सरकार का चेहरा भले ही बदल गया हो लेकिन अगर इन तीस सालों में नहीं बदला है तो बिहार की राजनीति में बाहुबलियों का बोलबाला। 
 
बिहार विधानसभा चुनाव को लेकर ‘वेबदुनिया’ आज से बिहार के बाहुबली नेताओं पर एक खास सीरिज शुरु कर रहा है जिसमें हम आपको एक-एक कर बिहार के उन सभी बाहुबली नेताओं की पूरी दास्तां बताएंगे कि कैसे बदलते बिहार के नारे के साथ भी इन बाहुबली नेताओं का राजनीति पर दबदबा भी बढ़ता गया और हर चुनाव के बाद वह अपने बाहुबल के बल पर और ताकत बनकर उभरते गए। 
 
बिहार के बाहुबली में आज सबसे पहले बात राजनीति में आकर भी अपराध की अनंत कथा लिखते जा रहे माननीय अनंत सिंह की। बिहार की राजनीति में ‘छोटे सरकार’ के नाम से पहचाने जाने वाले बाहुबली अनंत सिंह लगातार पांचवी बार विधायक बनने के लिए एक बार फिर चुनावी मैदान में आ डटे है। 

पटना से लगे गंगा के कछार वाले मोकामा विधानसभा सीट से ताल ठोंकने वाले मगहिया डॉन अनंत सिंह जो इन दिनों बेऊर जेल में सजा काट रहे है वह आरजेडी के टिकट पर चुनावी मैदान में है। अनंत सिंह की आरजेडी से उम्मीदवारी बिहार की राजनीति में अपराध और सियासत के गठजोड़ का ऐसा उदाहरण है जिसकी मिशाल कम ही देखने को मिलती है। अनंत सिंह को जेल की सलाखों के पीछे भेजने में आरजेडी सुप्रीमो लालू यादव की बड़ी भूमिका रही वहीं अनंत सिंह आज उन्हीं की पार्टी से उम्मीदवार है।  
 
राजनीति संग अपराध की दुनिया में गजब भौकाल- बुधवार को बेऊर जेल से जेल की गाड़ी में बैठकर नामांकन करने पहुंचे अनंत सिंह का राजनीति के साथ अपराध की दुनिया में भी गजब का भौकाल है। भौकाल केवल जुबानी ही नहीं बकायदा रजिस्टर्ड है और उसकी गवाही भी चीख-चीख कर दे रहे है अनंत सिंह नामांकन फॉर्म के साथ दिया गया हलफनामा।
 
अनंत सिंह जब पहली बार विधायक बनने चुनावी मैदान में 2005 में कूदे थे तब उन्होंने अपने चुनावी हलफनामे में मात्र एक केस का जिक्र किया था जो आज बढ़कर 38 केसों तक पहुंच गया है। हत्या,अपहरण,रेप और रंगदारी जैसे 38 मामले बिहार के विभिन्न थानों में अनंत सिंह के खिलाफ पुलिस की फाइलों में दर्ज है। अनंत सिंह के इस साल नामांकन के साथ जो चुनावी हलफनामा दिया है उसके मुताबिक उन पर हत्या की कोशिश के 11 और जान से मारने की धमकी के ही 9 केस दर्ज है।  
महज 9 साल की उम्र में पहली बार जेल जाने वाले अनंत सिंह का सियासी सफर जैसे जैसे आगे बढ़ता जा रहा है वैसे-वैसे उनकी अपराध की अनंत कथा में नए-नए अध्याय भी जुड़ते जा रहे है लेकिन अनंत सिंह की अनंत अपराध कथा पर मौन है उनके सरपस्त नेता। 
 
संन्यासी से बाहुबली डॉन बनने का सफर- अपराध की दुनिया में ‘अनंत सितारे’ की तरह चमकने वाले अनंत सिंह के डॉन बनने की कहानी पूरी फिल्मी है। अनंत सिंह के संन्यासी से माफिया डॉन बनने की कहानी शुरु होती है 90 के दशक के बिहार की खूनी राजनीति से। यह वह दौर था जब बिहार राज्य जातीय संघर्ष की आग में झुलसने के साथ- साथ बुलेट बनाम बैलेट के जंग के आगाज का गवाह बन रहा था।  
 
बाहुबली अनंत सिंह की माफिया डॉन बनने की कहानी जनाने के लिए थोड़ा फ्लैशबैक में चलना होगा। जिस आरजेडी के टिकट पर आज अनंत सिंह चुनावी मैदान में है उस पार्टी के मुखिया लालू यादव और अनंत सिंह के परिवार के तीन दशक पुराने रिश्ते है। 1990 में जब लालू पहली बार बिहार के मुख्यमंत्री बने थे तब अनंत सिंह के भाई दिलीप सिंह चुनाव जीतकर लालू की सरकार में मंत्री बने थे। 
 
90 के दशक में अनंत सिंह का परिवार भले ही बिहार में अपराध की दुनिया के साथ चुनावी राजनीति में तेजी से आगे बढ़ रहा हो लेकिन चार भाईयों में सबसे छोटे अनंत सिंह इन सबसे दूर वैराग्य लेकर पटना से कोसों दूर हरिद्धार में साधु बन ईश्वर की आरधना में लीन हो गए थे।
कहते है न कि होइहि सोइ जो राम रचि राखा..अनंत सिंह के जीवन पर उक्त लाइन एकदम सटीक बैठती है। सियासी अदावत में अनंत सिंह के बड़े भाई बिरंची सिंह की दिनदहाड़े हत्या कर दी जाती है। भाई की हत्या की खबर सुनकर अनंत सिंह का खून खौल उठता है और भाई के हत्यारों को मौत के घाट उतारने के लिए वह वापस बिहार लौटता है और अपने भाई की हत्या का बदला ले लेता है। भाई के हत्यारे को मौत के घाट उतारने के साथ ही अनंत सिंह ने अपराध की दुनिया का बेताज बदशाह बढ़ने की ओर अपने कदम बढ़ा दिए और वह देखते ही देखते बिहार की राजनीति में भूमिहारों का सबसे बड़ा चेहरा बन बैठा।  
 
इसके बाद तो अनंत सिंह के नाम का डंका बजने लगा। अपराध की दुनिया में अनंत सिंह के अपराध की अनंत कथाएं पुलिस की फाइलों में एक के बाद दर्ज होनी शुरु हो गई है। बेहद शातिर,चालक अनंत सिंह देखते ही देखते अपराध की दुनिया का बेताज बदशाह बन गया है। उसको न तो पुलिस का खौफ था औऱ न ही कानून का डर। 
 
अपराध की दुनिया में अनंत सिंह का बढ़ता कद अब बिहार के सबसे बड़े बाहुबली नेता सूरजभान को खटकने लगा था। सूरजभान उस बाहुबली नेता का नाम था जिसने साल 2000 के विधानसभा चुनाव में अनंत सिंह के भाई दिलीप सिंह को मोकामा सीट से मात दी थी। विधायक बनने के बाद 2004 में सूरजभान बलिया सीट से सांसद बन गया। 
 
सूरजभान के सांसद बनने के बाद अब अनंत सिंह पर पुलिसिया प्रेशर बढ़ने लगा। 2004 में बिहार एसटीएफ ने अनंत सिंह के घर को घेर कर उसका एनकाउंटर करने की कोशिश की लेकिन अनंत सिंह बच निकला। 

माफिया डॉन से 'माननीय'बनने का सफर-अनंत सिंह अब तक इस बात को अच्छी तरह जान चुका था कि सूरजभान से मुकाबला करने के लिए उसको राजनीति के मैदान में उतरना ही पड़ेगा जिसके बाद वह साल 2005 के चुनाव में पहली बार मोकामा सीट से नीतीश की पार्टी जेडीयू के टिकट पर चुनावी मैदान में उतरा और अपराधी से माननीय विधायक जी बन गया। 
 
अनंत सिंह का विधायक बनना और फिर नीतीश कुमार का सत्ता में आना, मानो अनंत सिंह के लिए मुंह मांगी मुराद पूरी होने जैसा था। सत्तारूढ़ पार्टी का विधायक बनने के बाद उसके अपराधों की रफ्तार और तेजी से बढ़ती गई। इसके बाद 2010 में फिर अनंत सिंह फिर जेडीयू के टिकट पर मोकामा से चुनाव जीत गया। 
 
पुलिस की फाइलों का दुर्दांत अपराधी अनंत सिंह अब ‘छोटे सरकार’ के नाम से पहचाने जाना लगा था। मोकामा के लोगों के लिए अनंत सिंह ‘दादा’ बन कर और गरीबों के मसीहा यानि रॉबिनहुड बन बैठा।  

कहते हैं कि राजनीति में कुछ भी स्थाई नहीं होता है। साल 2014 में बिहार में सत्ता के समीकरण बदलते है। लालू और नीतीश के एक साथ आते ही अनंत सिंह के दिन बदलने शुरु हो जाते है। बिहार के एक और बाहुबली नेता पप्पू यादव जिसकी अनंत सिंह से अदावत काफी पुरानी थी वह लालू पर दबाव बनाता है और किंगमेकर लालू मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पर। सरकार के मुखिया का इशारा मिलते ही सालों से चुप बैठी बिहार पुलिस अनंत सिंह को गिरफ्तार करने पहुंच जाती लेकिन अनंत सिंह के किलेनुमा घर से गोलियों की बौछार होती है। घंटों संग्राम के बाद अनंत सिंह को अखिरकार गिरफ्तार कर लिया जाता है।   
 
2015 में अनंत सिंह जेल से मोकामा से निर्दलीय चुनाव लड़ता है और जीत हासिल करता है। अनंत सिंह भले ही लगातार चौथी बार विधायक चुन लिया गया हो लेकिन अब उस पर किसी पार्टी का हाथ नहीं था इसलिए वह थोड़ा कमजोर हो जाता है। एक बार फिर अनंत सिंह चुनावी मैदान में है। किसी जमाने में नीतीश के करीबी अनंत सिंह ने नामांकन भरते ही एलान कर दिया है कि नीतीश कुमार चुनाव के बाद जेल जाएंगे। 
 

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