बिहार में आज विधानसभा चुनाव के पहले चरण का मतदान हो रहा है। मतदान से ठीक पहले राजधानी पटना में प्लुरल्स पार्टी की सीएम पद की उम्मीदवार पुष्पम प्रिया चौधरी को पुलिस ने हिरासत में लिया। वैशाली में पार्टी के उम्मीदवार की पिटाई के बाद पुष्पम प्रिया जब अपने समर्थकों के साथ राज्यपाल से मिलने और उनको ज्ञापन देने के लिए राजभवन जाने की कोशिश कर रही थी तभी पुलिस ने पुष्पम प्रिया को हिरासत में ले लिया।
पहले चरण के मतदान से ठीक पहले पुष्पम प्रिया की गिरफ्तारी से प्रदेश में सियासी पारा अचानक से चढ़ गया। वहीं हिरासत में लेने के बाद सुबह तड़के पुलिस ने पुष्पम प्रिया को रिहा कर दिया। अपनी रिहाई के बाद पुष्पम प्रिया ने ट्वीट करते हुए लिखा कि “मेरे प्यारे साथियों, घर आ गई हूँ। परेशान न हों। मिथिला की बेटी पहले भी रावण की लंका जा चुकी है, मैं तो बस कोतवाली थाने गई थी। अगर मर्यादा पुरुषोत्तम आपके मन में बसते हैं तो सुबह उठिये, बिहार के तीस साल का वनवास समाप्त कीजिये, और हाँ, इन राक्षसों का हमेशा के लिये लंका-कांड कर दीजिये। तब मैं मानूँगी कि बिहार मरा नहीं, राम है।
बिहार चुनाव में मुख्यमंत्री का चेहरा पुष्पम प्रिया का आरोप है कि वैशाली में उनकी पार्टी उम्मीदवार की पुलिस ने जमकर पिटाई की और इस मामले में पुलिस-प्रशासन सरकार के दबाव में कोई कार्रवाई नहीं कर रहा है। पुष्पम प्रिया इस पूरे मामले को लेकर राज्यपाल से मिलकर राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाने की मांग को लेकर ज्ञापन सौंपना चाहती थी।
पुलिस ने राजभवन जाने की कोशिश में पुष्पम प्रिया और उनके समर्थकों को हिरासत में ले लिया। पुलिस की कार्रवाई का विरोध करते हुए पुष्पम प्रिया ने कहा कि “इससे पहले पिछले पाँच घंटे तक सड़क और थाने में आपने अपने प्रशासन और पुलिस से मुझे प्रताड़ित किया जबकि मैं 20 किलोमीटर पैदल चलकर वैशाली से पटना पहुँच गई थी। इस दिन को याद रखियेगा नीतीश जी। मैं आ रही हूँ। भगवान आपकी रक्षा करें”।
वहीं आज सुबह पुष्पम प्रिया ने सोशल मीडिया पर पूरे घटनाक्रम को लेकर एक पोस्ट भी लिखी है। पुष्पम प्रिया लिखती है कि कल रात आपके पास आ रही थी तो आपके बग़ल में रहने वाले एक अयोग्य मुख्यमंत्री ने मुझे थाने भिजवा दिया। आपने अंग्रेजों को भगाया, संविधान बनाया, लेकिन क्या हुआ? अंग्रेजों की कोठियों में ऐसे ही अनपढ़,अनैतिक,असभ्य मंत्री-मुख्यमंत्री और उनके चाटुकार अफ़सर बैठ गए और “हम भारत के लोग” उन्हीं कोठियों के पीछे के स्लम में रहते हैं। आज उन्हीं लोगों के लिए लोकतंत्र के त्योहार का नहीं, एक तमाशे का महाभोज है। लेकिन इन जाहिलों के साथ न चाहकर भी उस तमाशे में शामिल होना ज़रूरी है ताकि इनको हमेशा के लिए ख़त्म किया जा सके और आपकी और आज़ादी के लिए क़ुर्बान हुए लाखों शहीदों की आत्मा को शांति मिले।