कला का आभास

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कहते हैं कि सृष्टि का आरंभ घुप्प अंधकार में प्रकाश के प्रस्फुटन के साथ हुआ। शायद इस मान्यता के पीछे यह सोच भी हो कि अंधकार माने 'कुछ नहीं' होना और प्रकाश माने 'कुछ' का अस्तित्व होना। या शायद हम संसार के गढ़े जाने से पूर्व की स्थिति को लेकर हमारे अज्ञान को अंधकार के रूप में चिह्नित करते हैं।

प्रकाश सृष्टि के शुरू होने के साथ-साथ ज्ञान के शुरू होने का भी प्रतीक है। तो हमारा अस्तित्व प्रकाश के होने से ही है, यह स्पष्ट है। इसके बिना न कोई वनस्पति होती, न ही उससे शुरू होकर हम मनुष्यों तक पहुँचने वाली समूची खाद्य श्रृंखला। न इसके बिना सभ्यता की नींव पड़ती और न संस्कृति अंकुरित होती। फिर ऐसे में क्या आश्चर्य कि हमने देश-समाज की विभाजन रेखाओं को दरकिनार कर प्रकाश को एक उच्च आध्यात्मिक स्थान दिया है, यहाँ तक कि उसे पूजा भी है!

प्रकाश और ऊर्जा के स्रोत के रूप में सूर्य का होना आदिम मानव के लिए किसी अजूबे, किसी चमत्कार से कम नहीं था। फिर उसने पाया कि उस विशाल आसमानी अग्नि का लघु रूप वह स्वयं धरती पर गढ़ सकता है। अग्नि प्रज्वलित करने का विज्ञान जानकर इंसान ने पका हुआ आहार ग्रहण करना शुरू किया, जाड़े से बचाव का नुस्खा जाना और साथ ही जाना रात के अंधियारे में दिन की रोशनी के चंद टुकड़े लेकर चलना।

संभवतः पहला दीया किसी पोले पत्थर में किसी पशु की चर्बी जलाकर रोशन किया गया होगा। फिर इसका उत्तरोत्तर परिष्कार होता गया और आगे चलकर तो तरह-तरह के दीये कलाकृतियों का रूप लेकर भी सामने आए। दीयों ने माटी से लेकर धातु तक का सफर तय किया।

विज्ञान और कला, दोनों ही की कसौटियों पर इन्हें लेकर कई प्रकार के प्रयोग हुए। जहाँ इन्होंने मनुष्य के भीतर कला-बोध की लौ जलाई, वहीं मनुष्य ने इन्हें आध्यात्मिक आभा से नवाजा। देवी या देवता के रूप में अग्नि की पूजा तो प्राचीन सभ्यताओं में होती ही थी, बाहर-भीतर का अंधियारा भगाने वाले दीपक को भी श्रद्धा से देखा जाने लगा। कई संस्कृतियों में दीया धार्मिक अनुष्ठानों के अहम हिस्से के रूप में शामिल किया गया।

विद्युतीकरण के इस आधुनिक युग में हम भले ही रोशनी के लिए दीये पर निर्भर नहीं रह गए हों, लेकिन पूजा-पाठ में आज भी हम दीया ही जलाते हैं। फिर दिवाली तो है ही रोशनी का त्योहार। हम विद्युत चलित चाहे जितनी भारतीय-चीनी लाइटों से घर सजा लें, लेकिन माटी के दीयों के बिना इस त्योहार की कल्पना संभव नहीं है।

दीये और रोशनी अन्य देशों और संस्कृतियों के पर्वों का भी हिस्सा है। यहूदी पर्व हनुका में दीपक और प्रकाश का विशेष महत्व है। हर साल दिसंबर में आठ दिनों तक मनाए जाने वाले इस त्योहार के पीछे लगभग सवा दो हजार साल पुरानी कहानी है। तब वर्तमान इसराइल पर यूनानी-सीरियाई साम्राज्य का कब्जा था। जब सम्राट एंटियोकस चतुर्थ ने यहूदियों द्वारा अपने रीति-रिवाजों के पालन पर रोक लगा दी और यरुशलम के ऐतिहासिक मंदिर पर अपना कब्जा जमा लिया, तो यहूदी बगावत पर उतर आए।

तीन वर्ष तक चले युद्ध के बाद यहूदी अपने मंदिर पर पुनः कब्जा पाने में सफल हुए। बताते हैं कि जब उन्होंने मंदिर में प्रवेश किया, तो पाया कि वहाँ केवल इतना ही तेल शेष बचा था जिससे मंदिर का दीया एक दिन तक जल सके, लेकिन जब वह तेल डालकर दीया जलाया गया तो वह चमत्कारिक रूप से आठ दिन तक जलता रहा। तभी से आठ दिन का यह पर्व मनाने की परंपरा शुरू हुई। इन आठ दिनों तक यहूदी लोग रोज अपने घरों में एक विशेष क्रम में दीया या मोमबत्ती जलाते हैं। बच्चों को उपहार दिए जाते हैं और साथ ही तले हुए पकवानों का सेवन किया जाता है।

चीन में भी रोशनी का उत्सव मनाया जाता है, जिसे स्थानीय भाषा में युआन शियाओ कहा जाता है और जिसे लालटेन उत्सव के रूप में अंतरराष्ट्रीय प्रसिद्धि मिली है। यह चीनी वर्ष के पहले महीने की पूर्णिमा को मनाया जाता है। इसकी उत्पत्ति को लेकर कई अलग-अलग कहानियाँ प्रचलित हैं। इस दिन चीन में घरों के बाहर रंग-बिरंगी, आकर्षक, कलात्मक लालटेनें लगाई जाती हैं। मानो आसमान में रोशनी बिखेर रहे चंद्रमा से प्रतिस्पर्धा करती हैं धरती पर जल रही हजारों-हजार लालटेनें। कई लोग अपने घर के बाहर जो लालटेन लगाते हैं, उस पर कोई पहेली भी लिख देते हैं।

बच्चे लालटेनों को निहारने और पहेलियों को हल करने के लिए मोहल्लों में घूमते रहते हैं। यदि किसी पहेली का सही हल वे बता देते हैं, तो उस घर के मालिक की ओर से उन्हें विशेष उपहार मिलता है। नाच-गाना, जुलूस, मिठाई और पटाखे इस त्योहार के अभिन्न अंग हैं।

उत्सव हमारे जीवन में उत्साह और उमंग की उजास लेकर आते हैं। जीवन की जद्दोजहद की निराशाओं के अँधेरे में ये आशा का प्रकाशपुंज बनकर उपस्थित होते हैं। ऐसे में प्रकाश और प्रकाश फैलाने वाले आदिम स्रोत का पर्व-त्योहारों के केंद्र में आना स्वाभाविक ही था। यही कारण है कि एशिया से अमेरिका और योरप से अफ्रीका तक अनेक त्योहारों में दीप, लालटेन, मोमबत्ती और उनके द्वारा फैलाए जाने वाले प्रकाश का विशेष महत्व होता है।

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