डिक्शनरी छोड़कर सुनिए चिड़िया का गाना!

मंगलवार, 23 अगस्त 2011 (16:27 IST)
लो जी, एक और बुलबुला फूट गया! हम हमेशा से बड़े प्यार से यह भरम पाले हुए थे कि चिड़िया "गाती" है। प्रकृति के सौंदर्य का एक अनिवार्य अंग चिड़ियों का "गाना" रहता आया है। इसे लेकर कई तरह के रूमानी फलसफे गढ़े गए, कवि हृदयों के तार चिड़ियों के "गाने" के ख्याल मात्र से झंकृत हो उठे। प्रकृति की शांत, सुरम्य गोद में पंछियों की ध्वनि को हमने अपनी शांति में व्यवधान कभी नहीं माना, बल्कि उससे सुकून ही हासिल किया। अब जरा जी कड़ा करके नई बात जान लीजिए।

एक विज्ञान जर्नल के लिए कनाडा के कुछ विश्वविद्यालयों द्वारा किए गए शोध में यह निष्कर्ष निकाला गया है कि जिसे हम चिड़ियों का गाना मानते आए हैं, दरअसल वह कोई गाना-वाना नहीं है। कम से कम वैसा मधुर, पावन, आत्मा की शुद्धि करने वाला गायन तो नहीं ही, जो हम इसे समझते आए हैं।

इन वैज्ञानिकों का कहना है कि यह तो अपने प्रतिस्पर्धियों से किया जाने वाला "मुकाबला" है और वह भी कोई कव्वाली के मुकाबले जैसा सुसंस्कृत मुकाबला नहीं। ये पंखधारी गवैये तो एक-दूसरे के प्रति अपमानजनक जुमले गीत में पिरोकर गाते हैं! इधर से एक ने दूसरे के लिए कोई अपमानजनक पंक्ति गाई तो उधर से दूसरा उसी पंक्ति को दोहराकर पहले को "सेम टू यू" कह डालेगा। यहाँ तक कि यह मुकाबला कई बार उस शब्दावली के इलाके में भी चला जाता है, जिसे हम असंसदीय कहते हैं!

अब बताइए, दिया न इन वैज्ञानिकों ने हमें तगड़ा झटका! कहाँ तो हम बड़े प्यार से चिड़ियों का "मधुर गाना" सुनने बैठते थे और कहाँ हमें यह बताया जा रहा है कि ये परिंदे सृष्टि के सौंदर्य का महिमा गान नहीं कर रहे, बल्कि काफी हद तक "देल्ही बैली" के नायकों की स्टाइल में डायलॉगबाजी कर रहे हैं। शोधकर्ताओं के अनुसार यह सारा खेल मादा को लुभाने के लिए किया जाता है। जो नर अपने प्रतिद्वंद्वी को सबसे ज्यादा अपमानजनक उलाहने देगा, उसी को मादा "माचो बर्ड" मानकर अपना साथी चुनेगी! चलिए माना कि यह शोध एक प्रजाति विशेष की गौरैया पर ही किया गया। यह भी माना कि गीत का गाली पाया जाना नर परिंदों के मामले में ही पाया गया है और यह भी कि इस शोध के परिणाम कोई अंतिम सत्य नहीं हैं, लेकिन हमारा दिल बैठने के लिए इतना काफी है।

क्या पता, कल को यह जानने को मिले कि मादा गौरैया भी जब गला साफ करती है तो उसकी चोंच से अमृत नहीं, कुछ और झरता है! यह भी शायद प्रकट हो कि गौरैया से अधिक मधुर माने जाने वाले पंछी भी ऐसे गीत गा रहे हैं, जिन्हें हम अपनी भाषा में अनुवाद कर घर-परिवार के बीच गा-बजा नहीं सकते। है न दिल तोड़कर रख देने वाला ख्याल? अपनी सुंदरता, कोमलता और मासूमियत के कारण पंछी हमेशा इंसानों के दिल के करीब रहे हैं। तिस पर इनमें से अधिकांश के सुरों ने सदा हमारे कानों में अमृत घोला है या फिर शायद हमने अमृत घुलने का भ्रम पाल लिया था।

शायद "सुंदरता देखने वाले की नजरों में होती है" की तर्ज पर आत्मिक आनंद देने वाली मधुर ध्वनि भी सुनने वाले के "कान" में होती हो...! यदि ऐसा है तो ऐसा ही सही। उन मूर्तिभंजक वैज्ञानिकों को बैठने दीजिए परिंदा शब्दकोश लेकर पोस्टमॉर्टम करने कि कौन क्या बोला और वह कितना आपत्तिजनक था। हम तो यह भ्रम पालने में ही खुश हैं कि पंछी गा रहे हैं शीतल हवा के झोंकों से पुलकित होकर, बागों में खिले फूलों के सौंदर्य से मदहोश होकर, झरनों की निर्मलता से आह्लादित होकर, उगते सूरज के प्रकाश से रोमांचित होकर। कुल मिलाकर खुदा की कायनात का हिस्सा होने का शुक्राना अदा करते हुए वे बस मगन होकर गा रहे हैं।

वैसे अतीत में हमारे पूर्वजों ने पक्षियों की वाणी को खासा महत्व दिया है। कई देशों की पौराणिक कथाओं में इसका हवाला मिलता है। यूनानी पौराणिक कथाओं में पंछियों की भाषा के ज्ञान को बड़ा महत्व दिया जाता था। यह ज्ञान किसी देवी या देवता की कृपा होने पर प्राप्त हो सकता था। सूफी मत में पंछियों की भाषा को फरिश्तों की भाषा माना गया है। नॉर्वे, स्वीडन आदि में कई किस्से प्रचलित हैं कि कैसे कोई विद्वान राजा पक्षियों की भाषा समझता था और कैसे उसका पालतू पंछी राज्य का भ्रमण कर लौटता और सारा हाल राजा को बताता।

यहूदी मान्यता है कि विद्वान राजा सुलेमान की विद्वत्तता का राज भी यही था कि उसे पक्षियों की भाषा समझने का वरदान प्राप्त था। यह भी माना जाता है कि पक्षियों की भाषा का ज्ञान परिपूर्ण ज्ञान की कुँजी है। उत्तरी योरप में एक ऐसे पंछी के बारे में कथाएँ सुनाई जाती हैं, जो कभी नहीं मरता और जो बीते दौर की बातें सुनाता है। कहते हैं कि बहुत पुराने जमाने में यह पंछी राज-कवियों के वाद्य में घोंसला बनाकर रहता था, अतः प्राचीन राजाओं की वीरता के किस्से यह सुनता रहा और फिर घूम-घूमकर इन किस्सों को गाकर सुनाता रहा। आज भी यह शायद बीते जमाने के ऐसे ही कोई किस्से गा रहा है।

चीन में एक चिड़िया की लोक कथा सुनाई जाती है, जो इतना मीठा गाती थी कि जो भी उसे सुनता, वह मंत्रमुग्ध रह जाता। एक दिन सम्राट के पास इस अद्भुत चिड़िया की खबर पहुँची और उन्होंने उसे दरबार में हाजिर करने का फरमान दे डाला। चिड़िया को दरबार में लाया गया और उसने खुशी से सम्राट के लिए गाया। उसका गाना सुनते हुए सम्राट इतने भाव-विभोर हो गए कि उनकी आँखों से आँसू छलक पड़े। उन्होंने चिड़िया को सोने का उपहार देना चाहा, किंतु चिड़िया बोली कि आपकी आँखों में आँसू देखना सबसे बड़ा उपहार है।

सम्राट ने उसे अपने दरबार में नियुक्त कर दिया। उसे सोने के पिंजरे में रखा गया, उसकी सेवा के लिए बारह सेवक रखे गए, लेकिन इस कैद की जिंदगी से चिड़िया खुश नहीं थी। एक दिन मौका पाकर वह उड़ गई और वापस जंगल में पहुँच गई। बरसों बाद जब सम्राट मृत्युशैया पर थे तो वह उनके लिए गाने राजमहल आई।

उसने ऐसा गाया कि सम्राट के मृतप्राय शरीर में पुन: प्राण लौटने लगे। देखते ही देखते सम्राट पूरी तरह स्वस्थ हो गए। उन्होंने चिड़िया से पूछा कि तुम्हारे लिए मैं क्या कर सकता हूं। इस पर चिड़िया बोली कि मैं आपके महल में कैद होकर नहीं रहूंगी, जब इच्छा होगी, तब आकर आपके लिए गाऊंगी..। सच है, परिदों के परों को कैद किया जा सकता है, सुरों को नहीं।

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