* हिंदू पंचांग और कैलेंडर तिथि पर आधारित स्वामी विवेकानन्द की जयंती 2 फरवरी 2024 को।
* अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार विवेकानन्द जी का जन्म 12 जनवरी, 1863 को हुआ था।
* हिंदू चंद्र कैलेंडर के अनुसार 2024 में स्वामी विवेकानन्द की जयंती 2 फरवरी को है।
Birthday of Swami Vivekananda : स्वामी विवेकानंद जी की जयंती हिन्दू चंद्र कैलेंडर की तिथि के अनुसार 2 फरवरी को मनाई जाएगी। विवेकानंद जी का जन्मदिन पौष कृष्ण सप्तमी को पड़ता है यानी हिंदू मास की पौष की पूर्णिमा के बाद 7वां दिन है। इसीलिए साल-दर-साल तारीख बदलती रहती है। तथा तारीख के अनुसार उनका जन्म 12 जनवरी सन् 1863 को हुआ था। उनका घर का नाम नरेंद्र दत्त था, और वे बचपन से ही बड़ी तीव्र बुद्धि के थे। उनमें परमात्मा को पाने की प्रबल लालसा थी।
उनके पिता विश्वनाथ दत्त पाश्चात्य सभ्यता में विश्वास रखते थे। वे अपने पुत्र नरेंद्र को भी अंगरेजी पढ़ाकर पाश्चात्य सभ्यता के ढंग पर ही चलाना चाहते थे। लेकिन ऐसा हो न सका, सन् 1884 में उनके पिता की मृत्यु हो गई। फिर घर का भार विवेकानंद पर आ पड़ा। उन दिनों उनके घर की दशा बहुत खराब थी, लेकिन अत्यंत गरीबी में भी वे बड़े अतिथि-सेवी थे। वे स्वयं भूखे रहकर अतिथि को भोजन कराते, स्वयं रातभर बाहर वर्षा में भीगते-ठिठुरते पड़े रहते और अतिथि को अपने बिस्तर पर सुला देते। बस कुशल यह था कि उनका विवाह नहीं हुआ था।
एक बार रामकृष्ण परमहंस की प्रशंसा सुनकर वे उनके पास पहले तो तर्क करने के विचार से ही गए थे, किंतु परमहंस जी ने देखते ही पहचान लिया कि ये तो वही शिष्य है जिसका उन्हें कई दिनों से इंतजार है। और परमहंस जी की कृपा से उन्हें आत्म साक्षात्कार हुआ, फलस्वरूप वे परमहंस जी के शिष्यों में प्रमुख हो गए। संन्यास लेने के बाद इनका नाम विवेकानंद हुआ। स्वामी विवेकानन्द अपना जीवन अपने गुरुदेव स्वामी रामकृष्ण परमहंस को समर्पित कर चुके थे।
गुरुदेव के शरीर त्याग के दिनों में अपने घर परिवार की नाजुक हालत की परवाह किए बिना तथा स्वयं के भोजन की परवाह किए बिना ही विवेकानंद सतत गुरु सेवा में हाजिर रहे। गुरुदेव का शरीर अत्यंत रुग्ण हो गया था। कैंसर के कारण गले में से थूक, रक्त, कफ आदि निकलता था। इन सबकी सफाई वे खूब ध्यान से करते थे। एक बार जब किसी ने गुरुदेव की सेवा में घृणा और लापरवाही दिखाई तथा नाक-भौंहें सिकोड़ीं तो यह देखकर उन्हें गुस्सा आ गया। और उस गुरुभाई को पाठ पढ़ाते हुए तथा गुरुदेव की प्रत्येक वस्तु के प्रति प्रेम दर्शाते हुए उनके बिस्तर के पास रक्त, कफ आदि से भरी थूकदानी उठाकर पूरी पी गए।
गुरु के प्रति ऐसी अनन्य भक्ति और निष्ठा के प्रताप से ही वे अपने गुरु के शरीर और उनके दिव्यतम आदर्शों की उत्तम सेवा कर सके। इस तरह गुरुभक्ति, गुरुसेवा और गुरु के प्रति अनन्य निष्ठा निभाते हुए समग्र विश्व में भारत के अमूल्य आध्यात्मिक खजाने की महक फैलाने की इच्छा उनके नींव में थी।
अत: 25 वर्ष की अवस्था में उन्होंने गेरुआ वस्त्र धारण कर पैदल ही पूरे भारतवर्ष की यात्रा की। तथा भारत के गौरव को देश-विदेश में फैलाने का सदा प्रयत्न किया। अध्यात्म-विद्या और भारतीय दर्शन के बिना विश्व अनाथ हो जाएगा ऐसा उनका दृढ़ विश्वास था। स्वामी विवेकानंद जी ने 4 जुलाई 1902 को अपना देह त्याग किया।