Maharaja Agrasen biography: महाराजा अग्रसेन, भारतीय इतिहास के एक ऐसे महान व्यक्तित्व थे, जिन्हें न केवल एक राजा के रूप में बल्कि एक दूरदर्शी समाज सुधारक और जनकल्याणकारी शासक के रूप में भी याद किया जाता है। उनका जन्म आश्विन शुक्ल प्रतिपदा तिथि को हुआ था। अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार वर्ष 2025 में इस बार 22 सितंबर, दिन सोमवार को महान लोकनायक महाराजा अग्रसेन का जन्मोत्सव मनाया जाएगा।ALSO READ: प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी : स्वदेशी का संकल्प और राष्ट्र निर्माण के प्रेरक
महाराजा अग्रसेन कौन थे?: महाराजा अग्रसेन का जन्म द्वापर युग में, लगभग 5174 वर्ष पहले, महाराजा वल्लभ और महारानी भगवती के घर हुआ था। वे भगवान राम के पुत्र कुश की 34वीं पीढ़ी में जन्मे थे। उनका जन्म स्थान प्रताप नगर था। उनके जन्म के समय गर्ग ॠषि ने उनके पिता राजा वल्लभ सेन से कहा था- 'तुम्हारा ये पुत्र राजा बनेगा और इसके राज्य में एक नई शासन व्यवस्था उदय होगी और हजारों वर्ष बाद भी इनका नाम अमर होगा।
अत: गर्ग ॠषि के कथनानुसार ही महाराजा अग्रसेन का कार्य था, वे एक क्षत्रिय राजा थे और उनका उद्देश्य एक ऐसे राज्य की स्थापना करना था जहां कोई भी व्यक्ति गरीब या दुखी न हो। वे अग्रोहा गणराज्य के एक प्रसिद्ध महाराजा थे और उन्हें अग्रवाल समुदाय का जनक माना जाता है। उनका जीवन, वीरता, करुणा और न्याय के सिद्धांतों पर आधारित था और उनके सिद्धांत आज भी प्रासंगिक हैं।
जीवन की कहानी: महाराजा अग्रसेन ने अपने राज्य को एक आदर्श गणराज्य बनाने का संकल्प लिया। उन्होंने अपने राज्य का नाम अग्रोहा रखा, जो आज हरियाणा में स्थित है। अग्रोहा को उन्होंने व्यापार और वाणिज्य का एक प्रमुख केंद्र बनाया। उनके शासनकाल की सबसे खास बात उनकी सामाजिक विचारधारा थी, जो आज के समाजवाद से मिलती-जुलती थी। उन्होंने 'एक रुपया, एक ईंट' का सिद्धांत अपनाया।ALSO READ: Happy Birthday to Narendra Modi ji: विकास, विश्वास और नेतृत्व का प्रतीक– नरेंद्र मोदी जी को जन्मदिन की हार्दिक बधाई!
इसका मतलब यह था कि अग्रोहा में बसने वाले हर नए नागरिक को राज्य का प्रत्येक व्यक्ति एक रुपया और एक ईंट देता था। इससे वह व्यक्ति बिना किसी कठिनाई के अपना घर और व्यापार शुरू कर सकता था। इस व्यवस्था ने यह सुनिश्चित किया कि उनके राज्य में कोई भी व्यक्ति गरीब या बेसहारा न रहे।
वीरता और करुणा के किस्से: महाराजा अग्रसेन की वीरता का सबसे बड़ा किस्सा युद्ध के मैदान से नहीं, बल्कि उनके विवेक और करुणा से जुड़ा है।
1. यज्ञ में पशुबलि का विरोध: महाराजा अग्रसेन ने अपने जीवन में 18 महायज्ञ करने का संकल्प लिया था। जब वे 18वें यज्ञ को पूरा करने वाले थे, तब उन्होंने देखा कि यज्ञ के लिए एक घोड़े को बलिदान के लिए लाया गया है। घोड़े की आंखों में पीड़ा देखकर उनका हृदय करुणा से भर गया। उन्होंने तुरंत यज्ञ को बीच में ही रोक दिया और घोषणा की कि उनके राज्य में किसी भी जीवित प्राणी की बलि नहीं दी जाएगी।
उन्होंने कहा, 'मेरा राज्य अहिंसा के सिद्धांत पर चलेगा।' यह उनकी नैतिक और आध्यात्मिक वीरता का सबसे बड़ा प्रमाण था, क्योंकि उन्होंने उस समय की परंपराओं को तोड़कर एक नया मार्ग प्रशस्त किया।
2. दूरदर्शिता और सामाजिक समानता: अग्रसेन की सबसे बड़ी वीरता उनकी दूरदर्शिता थी। उन्होंने अपने 'एक रुपया, एक ईंट' के सिद्धांत के माध्यम से एक ऐसा समाज बनाया, जहां कोई भी व्यक्ति गरीब नहीं था। अगर किसी के पास व्यापार या जीवनयापन के लिए पैसे नहीं होते थे, तो पूरा समाज उसकी मदद करता था।
यह उनकी बहादुरी थी कि उन्होंने एक ऐसे राज्य की कल्पना की और उसे साकार किया, जहां राजा नहीं, बल्कि समाज की सामूहिक शक्ति ही सबसे बड़ी थी। उन्होंने अपने राज्य को 18 गणों में विभाजित किया और हर गण को एक विशेष कुल का नाम दिया, जिससे अग्रवाल समुदाय के 18 गोत्रों का जन्म हुआ।
महाराजा अग्रसेन की खासियतें: महाराजा अग्रसेन ने अपने जीवन के अंतिम पड़ाव में, अपनी सारी जिम्मेदारियां अपने पुत्रों को सौंप दी और स्वयं वनप्रस्थ आश्रम में चले गए। उनका जीवन हमें यह सिखाता है कि सच्चा राजा वह होता है जो अपनी प्रजा के लिए न केवल शासन करता है, बल्कि उनके सुख-दुःख को अपना मानकर एक आदर्श समाज का निर्माण करता है। उनकी विरासत आज भी अग्रवाल समुदाय के सेवाभाव और उद्यमिता में जीवित है।
भारतीय इतिहास में आज भी महाराजा अग्रसेन एक ऐसे दूरदर्शी और जनकल्याणकारी शासक के रूप में जाने जाते हैं, जिन्होंने अपने राज्य को सामाजिक समानता और समृद्धि का प्रतीक बनाया।
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