फिल्म में हर वक्त धर्म की मौजूदगी है, वो ईसाई धर्म हो यहूदी। यह वो दौर था जब धर्म परिवर्तन प्यार से बहला फुसला कर या किसी लालच की वजह से ही किया जाता था। फिल्म देखते हुए लगातार धार्मिक कट्टरता कितनी डरावनी और किस कदर खतरनाक हो सकती है इसका नतीजा है यह फिल्म।
फिल्म में बच्चे एडगार्डो का किरदार निभाने वाले एन्या साला ने कमाल का काम किया है। फिल्म इटली की पुरानी गलियों और वैटिकन में फिल्माई गई है। यह वैटिकन और ईसाई धर्म का वो दौर था जब पोप को गुस्साई भीड़ से घबरा कर पनाह लेनी पड़ी थी। इसी दौर में न सिर्फ लोगों ने चर्च जाना बढ़ा दिया और धर्म को फिर से अपनाया।
फिल्म के अंत में पता चलता है कि यह फिल्म विट्टोरिओ मैसूरी की किताब पर बनी है जिसमें लेखक के धार्मिक होने की वजह से इस तरह से बच्चे को घर से उठवा लेना जायज भी ठहराया जाता है। शानदार स्क्रिप्ट की वजह से यह फिल्म भी ढीली नहीं पड़ती है। किताब में लेखक ने चर्च की पैरवी की है लेकिन साथ ही स्क्रिप्ट में इसे आज के दौर का नजरिया शामिल है।
फिल्म चौंकाती है, चिंता देती है, अपने आसपास के बच्चों की याद ताज़ा हो जाती हैं। धर्म की सख्ती और उससे जुड़े नुकसानों को इटालियन फिल्मों से बेहतर और कोई नहीं कर सकता। यह फिल्म अपनी ओपनिंग और रेड कारपेट की शाम को ही आने वाले समय में क्लासिक्स में गिनी जायेगी।