करवा चौथ को फिल्मों ने बनाया फैशनेबल

समय ताम्रकर
रविवार, 24 अक्टूबर 2021 (06:45 IST)
आखिर करवा चौथ मनाया ही क्यों जाता है? क्यों स्त्री से ही अपेक्षा की जाती है कि वही अपने जीवन साथी की लंबी उम्र के लिए उपवास रखे? पुरुष क्यों नहीं? यह त्योहार तो तब सार्थक होता जब दोनों ऐसा करते? कहीं न कहीं करवा चौथ स्त्री की कमजोर स्थिति को बयां करता है। 
 
स्त्रियां दिन भर भूखी-प्यासी बैठी रहती हैं और उनका पति इस स्थिति का मजा लेते हुए खाना-पीना जारी रखता है। रात को नाटकबाजी के साथ उपवास खत्म होता है। भू्खे रहने के एवज में किसी-किसी को उपहार मिलता है तो कई स्त्रियां खाली हाथ रह जाती हैं। 
 
कुछ वर्ष पहले करवा चौथ का चलन बहुत ज्यादा नहीं था। फिल्म वालों की निगाह जब इस पर पड़ी तो उन्हें इसमें बहुत दम नजर आया। करवा चौथ को प्यार बढ़ाने वाला पर्व माना गया और इस तरह के घटनाक्रम फिल्मों में रखे गए। 
 
जौहर और चोपड़ा जैसे फिल्मकारों ने करवा चौथ को न केवल अपनी फिल्मों में रखा बल्कि इसे फैशनेबल भी बना दिया। 'दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे' में शाहरुख के हाथों पानी पीकर काजोल अपना व्रत खोलती है। 
 
कभी खुशी कभी गम में तो ढेर सारे सितारे करवा चौथ त्योहार मनाते नजर आते हैं। इनके दृश्य देख ऐसा लगता है कि यदि पत्नी ने व्रत नहीं रखा तो अगले ही दिन पति के साथ कुछ अनिष्ट हो जाएगा। 
 
हम दिल दे चुके सनम में करवा चौथ के जरिये संजय लीला भंसाली ने ऐश्वर्या और सलमान के प्यार को आगे बढ़ाते हुए दिखाया। बागबां में पति-पत्नी की बेबसी इस त्योहार के जरिये दिखाई गई। 
 
यस बॉस, इश्क-विश्क, बीवी नंबर वन में भी यही सब दिखाया गया। व्यापारियों को इसमें बाजार नजर आया और महिलाओं की कमजोरियों का उन्होंने भरपूर फायदा उठाया। 
 
करवा चौथ पर कपड़े, गहने और सजने-संवरने की चीजों की बिक्री अचानक बढ़ जाती है। ब्यूटी पॉर्लर वालों को फुर्सत नहीं रहती। व्रत के बहाने खाली समय को ब्यूटी पार्लर में काटा जाता है। 
 
अब तो होटल बुक होने लगे हैं जहां पर सैकड़ों महिलाएं करवा चौथ का त्योहार मनाती हैं। पतियों से महंगे गिफ्ट की आशाएं रखती हैं। 
 
करवा चौथ अब बड़ा व्यावसायिक रूप ले चुका है और इसमें फिल्मों के योगदान को नकारा नहीं जा सकता। कौन कहता है कि फिल्मों का असर नहीं होता? 

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