कश्मीरी पंडितों को कश्मीर से बेदखल करने की बात भी कई ने सुन रखी होगी, लेकिन उनके साथ इतना अत्याचार हुआ, यह बात कम ही लोगों को पता है। फिल्म देखते समय ये अत्याचार देख आप दहल जाते हैं तो सोचिए जिन्होंने यह सब भोगा है उन पर क्या बीती होगी।
फिल्म में दिखाया गया है कि किस तरह से सरकार, मीडिया, पुलिस, प्रशासन सभी के सामने कश्मीरी पंडितों को सताया गया, लेकिन यह बात ज्यादा बाहर निकल कर नहीं गई। चीत्कार की यह गूंज दूर तक नहीं सुनाई दी। जहां आप एक और कश्मीरी पंडितों की पीड़ा से रूबरू होते हैं वहीं कई जानकारियां आपको मिलती हैं।
फिल्म की मेकिंग आपको स्तरीय नहीं लग सकती है क्योंकि कम बजट में निर्देशक विवेक अग्निहोत्री ने काम किया है। फिल्म की लंबाई से आपको परेशानी हो सकती है, लेकिन फिल्म का विषय इतना शक्तिशाली है कि ये कमियां दब जाती हैं या इनकी ओर ध्यान नहीं जाता।
फिल्म में दिखाए गए विवरणों की सत्यता पर भी सवाल उठ रहे हैं। थोड़ी अतिश्योक्तिपूर्ण भी हुई तो 80 से 90 प्रतिशत तक फिल्म सच के करीब है। कई कश्मीरी पंडितों, जिन्होंने यह सब भोगा है, का कहना है कि फिल्म में दिखाया गया है उससे ज्यादा उन्होंने भोगा है।