ड्रग माफिया के खिलाफ ईमानदार पुलिस ऑफिसर की कहानी भारतीय सिनेमा में कई बार दोहराई जा चुकी है और तमिल फिल्म 'वलिमै' में भी यही कहानी नजर आती है जिसे डब कर हिंदी में रिलीज किया गया है। कहानी को थोड़ा अलग बनाने के लिए इसमें खतरनाक बाइकर्स को जोड़ा गया है जो अपने अपराध को खतरनाक तरीके से अंजाम देते हैं। इंटरनेट का इस्तेमाल करते हैं। अब इस बात को इतना टेक्नीकल बना दिया गया है कि जिस आम दर्शक के लिए यह फिल्म बनाई गई है उसे यह बात पल्ले ही नहीं पड़ती।
स्क्रीनप्ले राइटर्स ने रूटीन कहानी में कुछ चौंकाने वाले टर्न्स और ट्विस्ट्स डाले हैं जो कहीं-कहीं चौंकाते हैं। फैमिली ड्रामा और एक्शन ड्रामा में संतुलन बनाने की कोशिश की गई है, लेकिन दर्शकों की उत्सुकता एक्शन को लेकर है। माना कि मसाला फिल्मों में लॉजिक नहीं ढूंढना चाहिए, लेकिन कुछ ऐसी बातें हैं जिन्हें पचाया ही नहीं जा सकता और यह बात फिल्म देखते समय मजा किरकिरा कर देती है।
एक्शन इतने ओवर द टॉप हैं कि दर्शकों को मजा नहीं आता। मोटरबाइक हवा में इतनी उड़ाई गई है कि एक्शन सीन अपना प्रभाव खो देते हैं। साथ ही यह एक्शन सीन जरूरत से ज्यादा लंबे हैं। फिल्म को बेवजह बहुत ज्यादा खींचा गया है। कम से कम आधा घंटे इसे आसानी से छोटा किया जा सकता है। कई दृश्य इतने लंबे हैं कि बोरियत होने लगती है।
हीरोगिरी करने की उम्र अजीत कुमार पार कर गए हैं। वे फिट भी नहीं लगते, जिससे एक्शन सीन विश्वसनीय नहीं बन पाए। एक्टिंग भी उनकी ठीक-ठाक है। हुमा कुरैशी, कार्तिकेय घोमरकोंडा, राज अयप्पा, सेल्वा, अपनी एक्टिंग से प्रभावित करते हैं। इल्या बोयको की सिनेमाटोग्राफी शानदार है। एक्शन सीन अच्छे कोरियोग्राफ किए गए हैं, लेकिन अतिरेक से बचा जाना चाहिए था।