ओटीटी पर होने वाली पैसों की बरसात के कारण बॉलीवुड के बड़े सितारे भी अब वेबसीरिज में दिखाई देने लगे हैं। जो काम नवाजुद्दीन सिद्दीकी, मनोज बाजपेयी या पंकज त्रिपाठी करते आए हैं, वो अब अजय देवगन जैसा सितारा भी करने लगा है। स्टार की उपस्थिति में निर्देशक थोड़ा बहक जाते हैं। वे स्टार को तवज्जो देने लगते हैं और दूसरे किरदारों को साइडलाइन कर देते हैं। यह बात अजय देवगन की सीरिज 'रूद्र : द एज ऑफ डार्कनेस' में भी नजर आती है। अजय को ज्यादा से ज्यादा फुटेज देने का असर कहानी पर भी हो गया और थ्रिलर होने के बावजूद यह सीरिज उतना मजा नहीं दे पाती है।
अजय देवगन ने फिल्मों में इस तरह के किरदार निभाए हैं, लेकिन वहां लार्जर देन लाइफ का टच होता है। यहां पर वे हीरो नहीं बल्कि आम हैं और इस अंदाज में उन्हें देखना दिलचस्प है। डीसीपी रूद्रवीर सिंह (अजय देवगन) को बेहद काबिल ऑफिसर माना जाता है जो बड़े-बड़े केस सुलझा देता है। वह गुस्सैल भी है। ऑफिस में टेबल पलट देता है तो कभी शीशा भी फोड़ देता है। केस सुलझाने में नियम तोड़ने से भी उसे कोई परेशानी नहीं है। पत्नी शाइला (ईशा देओल) से उसके संबंध ठीक नहीं है और शाइला की जिंदगी में राजीव (सत्यदीप मिश्रा) की एंट्री हो चुकी है। काबिल अफसर के वैवाहिक जीवन में होने वाली उथल-पुथल 'सेक्रेड गेम्स', 'द फैमिली मैन' जैसी कुछ वेबसीरिज में हम पहले देख चुके हैं और यह ट्रेक अब टाइप्ड सा लगता है।
बीबीसी वन की ड्रामा सीरिज 'लुथर' का यह सीरिज हिंदी रीमेक है जो 6 एपिसोड में फैला है। हर एपिसोड लगभग 50 मिनट का है। हर एपिसोड में एक केस सुलझाता हुआ रूद्र नजर आता है। पहले एपिसोड में आलिया चोकसी (राशि खन्ना) के माता-पिता और कुत्ते की हत्या हो जाती है। रूद्र को पूरा शक आलिया पर है, लेकिन अपने आपको 'जीनियस' कहलाना पसंद करने वाली आलिया सबूतों के अभाव में बच निकलती है। यही एक अनसुलझा केस रह जाता है। रूद्र पर आलिया मोहित है तो दूसरी ओर आलिया की होशियारी का उपयोग रूद्र अपने केस सुलझाने में भी करता है।
पुलिस वालों की हत्या करने वाला साइकोलॉजिकल किलर, खून से पेंटिंग करने वाले आर्टिस्ट, अपनी नपुसंकता का बदला बेकसूर लड़कियों की हत्या करने वाला, शरीर के अंग काट देने वाला निर्दयी अपराधी जैसे कठिन केस रूद्र के आगे आते हैं। हर केस दिलचस्प इसलिए है क्योंकि अपराध करने वाले बहुत होशियार और चालाक है। वे सबूत नहीं छोड़ते हैं। लेकिन मजा तब आता है जब इन केसेस को सफाई से सुलझाया जाए। बस, यही सफाई 'रूद्र' में नजर नहीं आती। कुछ बिंदुओं पर अचानक पहुंचकर वह अपराधियों को पकड़ लेता है, लेकिन वह यहां कैसे पहुंचा इस जर्नी को ढंग से दर्शाया नहीं गया है। इस वजह से रूद्र सीरिज असर नहीं छोड़ पाती।
रूद्र की पत्नी से क्यों अनबन है? आलिया क्यों रूद्र के प्रति आकर्षित है? इन सवालों के ठीक से जवाब नहीं मिलते। आलिया और रूद्र को खूब चालाक और होशियार बताया गया है, लेकिन ये दृश्यों के जरिये जस्टिफाई नहीं होते। केवल बातों-बातों में ये बात कही गई है। आलिया जिस पेशेवर तरीके से अपने काम को अंजाम देती है वो विश्वसनीय नहीं है। संभव है कि उसके किरदार के बारे में और जानकारी दूसरे सीज़न में दी जाएगी।
राजकुमार हिरानी के सहायक रह चुके राजेश मापुस्कर ने इस सीरिज का निर्देशन किया है। एक विदेशी सीरिज का भारतीयकरण करने में थोड़ा चूके हैं। रूद्र का ऑफिस एक सेट नजर आता है। ऐसा ही सेट अनिल कपूर की सीरिज '24' में भी देखा जा चुका है। कुछ संवाद भी ऐसे हैं जो अंग्रेजी से अनुवाद कर दिए हो। राजेश ने सीरिज को जरूरत से ज्यादा डार्क रख माहौल बनाने की कोशिश की है, लेकिन इसका कुछ खास असर नहीं होता। वे फिनिशिंग टच देने में कई जगह चूके हैं।
सुलगती आंखें लिए अजय देवगन ने एक जैसे एक्सप्रेशन रखे हैं। हालांकि उन्हें डिजीटल डेब्यू का अच्छा मौका मिला है और अपने गंभीर अभिनय के जरिये वे दर्शकों को आकर्षित करते रहते हैं। लंबे समय बाद नजर आईं ईशा देओल को पहचानना मुश्किल हो जाता है। अभिनय भी उनका औसत रहा है। राशि खन्ना का स्क्रीन प्रेजेंस अच्छा है और वे प्रभावित करती हैं। अतुल कुलकर्णी को अंतिम एपिसोड में चमकने का मौका मिलता है, लेकिन उनका किरदार विश्वसनीय नहीं बन पाया। आशीष विद्यार्थी जैसे कलाकार के साथ स्क्रिप्ट न्याय नहीं करती। मिलिंद गुणाजी, अश्विनी कलसेकर, ल्यूक केनी, सत्यदीप मिश्रा साइडलाइन पर रह जाते हैं।
कुल मिलाकर रूद्र : द एज ऑफ डार्कनेस एक ऐसी सीरिज है जो अच्छी और बुरी के बीच झूलती रहती है।