"जब मुझे बताया गया कि मैं 'खानदानी शफाखाना' में हीरो का किरदार निभाने वाला हूं तो मुझे यकीन नहीं हो रहा था। मुझे समझ नहीं आ रहा था कि मुझे कोई क्यों चुनेगा? फिर मैंने स्क्रिप्ट सुनी। ठीक लगी। फिर सेट पर गए और शूटिंग शुरू हो गई। जब ट्रेलर लांच हो गया तब जाकर मुझे लगा कि मैंने अपनी पहली फिल्म में एक्टिंग कर ली, वरना मैं तो ये ही सोचता रहता था कि कोई मुझे एक्टर क्यों बनाना चाहेगा? ऐसा क्या है मुझमें जो मेरी एक्टिंग पर पैसा लगाएगा?"
रैप आर्टिस्ट बादशाह के गाने पब या डांस फ़्लोर की शान होते हैं, लेकिन उन्हें अपनी ऐक्टिंग डेब्यू को ले कर काफी दिनों तक कनफ्यूजन बना हुआ था। हाल ही में रिलीज हुई 'ख़ानदानी शफाखाना' में वो बतौर अभिनेता सामने आए। पेश है उनसे बातचीत के मुख्य अंश:
कैसा रहा था पहला टेक?
मैं तो कन्फ्यूज था। पता नहीं था कि मैं टेक दे पाऊंगा या नहीं? एक तो सिंगर का रोल था, फिर शिल्पी मैम और मृग सर को पहले से जानता था। मैं, सोनाक्षी और वरुण अच्छे दोस्त भी हैं। सोचा अगर कहीं कोई गड़बड़ कर दूँ तो सोनाक्षी के साथ एक या दो टेक फिर कर लूंगा। बस, मुझे डांट ना पड़ जाए। मुझे डांट से डर लगता है। पहला टेक तो पहली बार में ही हो गया। टेक हुआ तो मैंने शिल्पी मैम को देखा। वह मेरे तरफ आ रही थीं, लेकिन आते-आते सोनाक्षी की तरफ मुड़ गईं। सोनाक्षी को बताने लगी गई कि और क्या करना है। मैंने उनसे पूछा मेरा टेक ठीक हो गया? उन्होंने कहा हां हो गया। मैं तो बड़ा खुश हो गया। फिर लगा कि कहीं ऐसा तो नहीं है कि ये लोग मुझे इग्नोर कर रहे हों? यह सोच कर कि यह एक सिंगर है। इससे अच्छा तो इससे नहीं हो पाएगा।
पहला गाना मुश्किल था या पहली फिल्म?
पहले गाने के समय तो मुझे कोई परेशानी नहीं थी क्योंकि खोने को कुछ नहीं था, लेकिन पहली फिल्म में मुझे लगा कि अच्छा करना चाहिए वरना नाम खराब हो जाएगा और इज़्ज़त जाएगी वो अलग।
इसके पहले कभी एक्टिंग के बारे में सोचा था?
मुझे एक्टिंग का शौक नहीं रहा, हालांकि ऑफर मिलते रहे। 'लस्ट स्टोरीज़' में विकी कौशल वाला रोल पहले मुझे मिला था। लेकिन उस समय मुझे लगा कि यह रोल करना मेरी इमेज के खिलाफ हो जाएगा। वैसे भी बड़ा रोल नहीं था। मुझे 'गुड न्यूज' में रोल मिला, लेकिन मैंने इनकार कर दिया। फिर इस फिल्म के लिए मैंने हां कर दी क्योंकि इसका सब्जेक्ट अलग हट कर था। लगता है कि मेरी शक्ल में ही ऐसा कुछ है जो मुझे एक के बाद एक रोल ऑफर हो रहे हैं।
आपके लिए सेक्स एजुकेशन के क्या मायने हैं?
मैं बहुत खुश किस्मत रहा कि हमारी बैच से ही स्कूलों में सेक्स एजुकेशन को शुरू किया गया। घर में तो ऐसा कोई माहौल नहीं था। हो सकता है कि हमारे माता-पिता बताना भी चाहते हों लेकिन हम लोग ही भाग जाते थे। लकी हूँ कि हमारे टीचर्स ने इतने अच्छे से समझाया। आज जब बातें और पीढ़ियाँ बदल गई हैं तो माता-पिता को बच्चों को बताना चाहिए कि जैसे उंगली टूट जाए तो उसे ठीक कराने के लिए डॉक्टर के पास जाते हैं वैसे ही जब सेक्स संबंधी परेशानी या बीमारी हो तो डॉक्टर के पास जाकर इलाज करा ले। इस फिल्म में भी यही बात कही है।