पंचायत के कलाकारों ने बताया किससे करते हैं अपनी जिंदगी की पंचायत

रूना आशीष

गुरुवार, 26 जून 2025 (15:38 IST)
नीना मैम को तो मैं हमेशा से पसंद करता आया ही हूं। उनके साथ मैंने एक फिल्म भी की है और बाद इतने सीजन जब पंचायत के करता हूं तो करीब 7 या 8 साल हो गए हमें साथ में काम करते करते, मैं हमेशा को देखता रहता हूं हर शॉट पर ध्यान देता हूं। किसी भी सीन को नीना जी या रघुवीर जी किस तरीके से करते हैं, उसमें से थोड़ा भी मैं सीख जाऊं तो मुझे बहुत अच्छा लगेगा। 
 
यह कहना है जितेंद्र कुमार का, जो कि पंचायत के नए सीजन के साथ आपके सामने आए हैं। पंचायत के प्रमोशन इंटरव्यू के दौरान नीना गुप्ता, जितेंद्र कुमार और फैसल मलिक मीडिया से बातचीत में मौजूद थे। यहां पर कलाकारों ने मीडिया के सामने अपने दिल की बातें खुलकर रखीं।
 
जितेंद्र कुमार के साथ नीना गुप्ता पहले भी शुभ मंगल सावधान जैसी फिल्म में काम कर चुकी है। उनके बारे में अपनी राय रखते हुए नीना गुप्ता बताती है कि शुभ मंगल के समय हम बनारस में एक ही होटल में करीब डेढ़ महीना रहे थे। आम दिनों में थे जब आप मुंबई में शूट क रहे होते हैं तब सेट पर शूट कर रहे होते हैं। तब तो आप काम करते हैं और चले जाते हैं। अपने घर की राह पकड़ लेते हैं। 
 
लेकिन जब आप आउटडोर पर होते हैं तो शूट करते हैं, उसके बाद फ्री ही होते हैं। तब आपस में बातचीत होती, तब आपस में बॉन्डिंग होती है। सब एक दूसरे के असली रूप को देखना और पहचानना इसका समय भी होता और मौका भी मिलता है। मुझे तो जितेंद्र बहुत पसंद है। इतना समय जब साथ में काम करते हैं तो ऐसा लगता है अपने परिवार सा ही है। 
 
इतने सीजन करने के बाद आप कैसे अपने आप को तैयार करते हैं कि आप पिछले दिनों से कुछ अलग नजर आएं?
नीना गुप्ता- हमारा कैरेक्टर समान ही रहता है जो हम शुरू से दिखाएं हैं उसी को आगे कैरी करना है, वरना कैरेक्टर कहीं चला जाएगा, लेकिन हां कहानियां अलग होती रहती है। हर बार आसपास का माहौल कुछ बदल जाता है तो इस तरीके से बदलाव आता है हर सीजन में। 
 
अब होता यह है कि एक सीजन से दूसरे सीजन में जाने के बीच में कुछ एक या डेढ़ साल का अंतर आ जाता है। तब अपने कैरेक्टर में अपने लहजे को पकड़ना बड़ा मुश्किल हो जाता है मेरे लिए। क्योंकि यह आम लहजा मेरे लिए भी नहीं है। इसको पकड़ने में थोड़ी सी मेहनत लगती है। उसके बाद फिर शुरू हो जाता हमारा काम। 
 
जीतेन्द्र कुमार- मेरा भी यही कहना है कि हम जिस तरीके से दिखाए गए हैं, हमें उसी कैरेक्टर को आगे बढ़ाना है। मेरे लिए अभी के सीजन में तो इतनी तकलीफ वाली बात नहीं थी, लेकिन पहले सीजन में थोड़ा सा मुश्किलों का सामना मुझे करना पड़ा था। उसमें एक ऐसा भ्रमित सा लड़का जो शहर से आकर गांव में बस गया है और ऐसा काम कर रहा है जो समझ में ज्यादा आता नहीं है। उसे एक्शन कम और रिएक्शन ज्यादा देने हैं। 
 
चाहे वह हंसने वाला रिएक्शन हो या थोड़ा सा गुस्से वाला रिएक्शन हो या दुखी हो जाने वाला रिएक्शन हो। वह सब देने में मुझे कुछ सीखने में सात या आठ दिन का समय लगा  उस रिएक्शन वाले मोड में आने के लिए उसके बाद तो मुझे कहीं कोई तकलीफ नहीं होती है। कहानियां आसपास की बदलती रहती है। बस एक गांव है। गांव के पंचायत की बात है और पंचायत में अलग अलग तरीके की बातें होती रहती हैं। वाकए होते रहते हैं और उसी पर हमारी पंचायत की सीरीज आगे बढ़ती है। 
 
अगर आपको अपनी जिंदगी की पंचायत करनी हो तो किससे करते हैं? 
नीना गुप्ता- अपनी बेटी मसाबा से उससे इतनी पंचायतें इतनी सारी बातचीत हो जाती है, हम लोगों की। जो भी है सब उसके साथ ही होता है। मेरा और किस विषय पर होती है तो बहुत सारे विषय हैं। उससे कभी तो मुझे बड़ा डर लगता है। कहीं ऐसा हो जाए कि मैंने कुछ लिख दिया है सोशल मीडिया पर पोस्ट कर दिया है तब उसका फोन आता है। तुम पागल हो गई हो मां। क्या लिख रही हो? 
 
मैं कभी भी कोई गलत समय पर सोशल मीडिया पर कुछ अपडेट डाल दूं या गलत तरीके से लिख दूं या गलत टैग कर दूं, उसका फौरेन फोन आता है और फिर मैं चुप करके उसकी बात मान लेती हूं कि वह मुझसे ज्यादा जानती है। यह बात तो मैं भी जानती हूं। और कभी कभार लड़ाई हो जाती तो एक-दो दिन हम लोग बात नहीं करते हैं। जैसे कि बाकी की आम मां और बेटी के बीच होता है। और दो दिन बाद हम फिर एक साथ हो जाते हैं। 
 
फैसल मलिक-  मैं तो बहुत पंचायत करता हूं। अपने दोस्तों के साथ स्कूल के दोस्तों का मेरा अपना एक ग्रुप है। इसमें दो ग्रुप वैसे बनाकर रखें- एक है जिसमें लड़कियां भी हैं और एक है जिसमें हम सिर्फ लड़के ही हैं। आप समझ सकते हैं कि हम किस तरीके की बातें करते होंगे। लड़कियों वाले ग्रुप में हम हां भाई क्या चल रहा है, स्वास्थ्य कैसा है, बच्चे कैसे हैं और वहीं लड़कों वाला ग्रुप अलग ही रंग लिए है। बहुत सारी बातें होती है जिसमें हम सिंपल बातें तो बिल्कुल भी नहीं करते हैं। 
 
जितेंद्र कुमार- बिल्कुल बातें होती रहती है मेरी बहुत सारे दोस्त हैं मेरे। उनसे हमेशा बातचीत जारी रहती हैं। आस-पास ही रहते हैं तो मिल लेते हैं और नहीं मिल पाए तो फोन पर बात कर लेते हैं। मेरी पंचायत वहीं तक है। 
 
पंचायत को लेकर आप का अभी तक का सबसे अच्छा कॉंप्लिमेंट कौन सा रहा? 
फैसल मलिक- मेरे पिताजी ने दिया था। अब तो वह इस दुनिया में नहीं है। उनका इंतकाल हो गया है। उन्होंने जो पहला सीजन देखा तब मुझे फोन लगाया था। वह तो दूसरे शहर में रहते थे तो सुबह सुबह सात बजे फोन लगा कर बातें करना शुरू कर देते थे। बिना यह सोचे हुए कि बेटा दूसरे शहर में रहता है। उसका समय और गांव में मेरा समय एक जैसा नहीं होगा वो काम कर के लौटा होगा। लेकिन वो हमारे पिताजी ठहरे उन्होंने लगाया फोन और बोला, बेटा काम तो बहुत पसंद किया। तुम्हारी इस वेब सीरीज को पूरा देख भी लिया है और सिर्फ इतना ही नहीं। 
 
वह अपने जान पहचान वालों को सब को फोन लगाते हैं और कहते मेरा बेटा एक्टर बन गया है। उसकी पंचायत सीरीज आई है। देखिए मैंने तो उसे बधाइयां दे दी। आप सभी को अब उसको फोन लगाकर एक-एक करके बधाइयां देना है। लेकिन मेरी जिंदगी का सबसे अच्छा कॉन्प्लीमेंट मेरे पिताजी ने दे दिया था। जब उन्होंने कहा था कि यह जो काम कर रहे हो, यह ठीक कर रहे हो बाकी तो तुम पता ही नहीं क्या करते रहते हो? 
 
जीतेन्द्र कुमार- मेरे लिए कंप्लीमेंट बहुत अलग-अलग जगह से आते हैं। कई बार जो लोग अपना शहर छोड़कर किसी दूसरे शहर में काम कर रहे होते हैं और फिर फिर कहीं किसी कमरे में रह रहे होते हैं। जैसे माइनिंग वाले लोग होते हैं। जो है खदान के आसपास उनको कोई जहां भी कमरा मिलता है, वहां रहते हैं। फिर वह लोग मुझे मैसेज करते हैं। अब मैं भी देर रात तक जागने वाला में से हूं। वह लिखते हैं कि देखो हम पंचायत देख रहे हैं और हमारी भी वही हालत है जैसे सचिव जी की हालत हो रही है। मुझे लगता है कि कोई कहीं किसी शहर में बैठकर यह सोचता है कि मेरी हालत को दिखाते हुए किसने व्यक्ति इस तरह की वेब सिरीज बनाई है और उसमें काम किया है। यह बहुत बड़ा कॉंप्लिमेंट है मेरे लिए। 

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