अनूप सोनी बोले- मेरी उम्र 15 या 16 साल छोटी होती तो 'तांडव' में यह रोल निभाना चाहता

रूना आशीष

बुधवार, 27 जनवरी 2021 (16:10 IST)
हर कलाकार के रोल का अपना एक समय होता है। एक समय था जब मुझे लोगों ने भैरो से यानी कि बालिका वधू के एक रोल के रूप में या फिर क्राइम पेट्रोल में एंकर के रूप में पसंद किया। लेकिन अब मैं उससे आगे बढ़कर एक ओटीटी प्लेटफॉर्म पर तांडव जैसी एक बड़ी वेब सीरीज में काम कर रहा हूं तो अब मेरी इच्छा है कि वही दर्शक मुझे ओटीटी प्लेटफॉर्म में भी देखें पसंद करें।

 
वैसे भी एक कलाकार अगर बार-बार एक ही तरीके का काम करें तो दर्शक भी बोर हो जाएंगे। बतौर कलाकार मुझे ऐसा लगता है कि मुझे नई नई चीजें हमेशा अपनाते रहना चाहिए और मुझे अपने दर्शकों को पूरा मनोरंजन और सरप्राइज देना चाहिए। यह कहना है अनूप सोनी का, जो कि वेब सीरीज तांडव में एक बड़ी ही महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हुए नजर आए हैं।
 
वेबदुनिया से बातचीत करते हुए अनूप ने आगे बताया, इस वेब सीरीज में जितना भी रोल मुझे दिया गया है। मैंने अच्छे से निभाया है और उस पूरे रोल मैं बहुत खुश हूं। ऐसे बड़े स्टार कास्ट के साथ अगर मुझे काम करने का मौका मिल जाता है तो क्यों नहीं? मैं तो कहूंगा जो रोल मुझे दे दो मैं उसी में खुश हूं, लेकिन फिर भी अगर मेरी उम्र कुछ 15 या 16 साल छोटी होती तो मैं जीशान अय्यूब का रोल निभाना चाहता।
 
वह इसलिए क्योंकि वह एक कॉलेज स्टूडेंट है और उस के रोल में बहुत अलग तरीके का फ्लेवर मुझे नजर आया है। मुझे बहुत पसंद आया है। कॉलेज स्टूडेंट का दमदार किरदार अब मैं कॉलेज जाने वाला तो नहीं लगता हूं लेकिन यहां मौका मिलता तो मैं जीशान का रोल जरूर निभाता।
 
अपने इस रोल के बारे में बताइए
यह वेब सीरीज पॉलिटिकल ड्रामा है। पॉलिटिकल ड्रामा में कुछ एक चीज फिक्शन के तौर पर भी डाली गई हैं। हालांकि आज हमारे देश में क्या हो रहा है और किस तरीके से हमारे देश का राजनीतिक माहौल रहा है। हम सभी उस बारे में जानते हैं। मैं भी पढ़ता देखता सुनता रहा हूं, लेकिन हां फिक्शनल के तौर पर कुछ इसमें डाला गया था की कहानी को रोचक बनाया जा सके।
 
मैं एक ऐसा किरदार बना हूं जो बहुत ही शांत किस्म का व्यक्ति है। दरअसल मेरा किरदार जो है उसके पिताजी एक छोटे से समूह का प्रतिनिधित्व करते आए हैं। उन्होंने बहुत सारा काम किया है, नाम कमाया है अब मैं उनकी मेहनत का फल खा रहा हूं, यह भी कह सकते हैं और मेरा व्यक्तित्व कुछ ऐसा है कि मेरे सामने कोई कितना भी आकर चीख चिल्लाकर बात कर ले। मैं बहुत ही सरल शब्दों में लेकिन बहुत ही स्पष्ट शब्दों में शांत रहकर उसे अपनी बातों से जवाब देकर चुप करवा सकता हूं।
 
जब आप इस रोल के नरेशन को सुन रहे थे तो क्या आपको कहीं प्रकाश झा की फिल्म गंगाजल की याद आई क्योंकि पॉलिटिकल ड्रामा तो वह भी था?
प्रकाश झा की फिल्म गंगाजल में भी पॉलीटिकल ड्रामा थी आप सही कह रहे हैं लेकिन दोनों में अंतर यह है कि दोनों अलग तरीके हैं। गंगाजल बात करती है राज्य में होने वाले राजनैतिक समीकरणों की जबकि तांडव बात करती है देश में होने वाले राजनैतिक समीकरणों की। उसमें हम मुख्यमंत्री की बात करते हैं। जबकि तांडव में हमने देश के प्रधानमंत्री, भावी प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति, रक्षा मंत्री इन सब की बात की है। वह फिल्म एक छोटे से दायरे में होने वाली सभी उथल पुथल को दर्शाती है जबकि तांडव यह वेब सीरीज बहुत ही बड़े पैमाने पर सोची और बनाई गई फिल्म है।
 
आपको टीवी की दुनिया और ओटीटी की दुनिया में क्या समानता है और क्या असमानता है समझ में आई?
मैं एक एक्टर हूं और एक्टर के लिए ओटीटी प्लेटफॉर्म पर एक्टिंग करना हो या फिर टेलीविजन शो के लिए एक्टिंग करना हो या फिल्म के लिए एक्टिंग करना है। यह सभी समान है। मतलब ऐसा तो मैं कभी नहीं कर सकता की किसी एक प्लेटफार्म पर या ओटीटी प्लेटफॉर्म पर अच्छा एक्ट ना करूं या टेलीविजन शो पर कितना काम करूं और फिर यह कहूं कि अरे भाई, मैंने तो सोचा था कि यह प्लेटफार्म अलग लग रहा है, मैंने थोड़ी सी ढिलाई बरत दी।
 
जब बात आती है कंटेंट की, जब बात आती है फिल्म में या फिर किसी बात को दिखाने की या भव्यता की तो टेलीविजन और वेब सीरीज दोनों में बहुत ज्यादा अंतर आ जाता है। अब अगर मैं तांडव की बात करता हूं तो तांडव में हम बात कर रहे हैं देश के पॉलिटिक्स की प्रधानमंत्री की, तो दिल्ली की बात होना लाजमी है। दिल्ली में पॉलिटिक्स कैसी है या केंद्र की पॉलिटिक्स कैसी है। कभी आपने भी देखा होगा कि जब भी कोई मंत्रिमंडल शपथ ग्रहण कर रहा होता है या फिर राष्ट्रपति भवन में कोई समारोह चल रहा होता है या फिर कहीं और किसी सरकारी संस्थान में यह शपथ विधि समारोह चल रही होती है तो कितनी भव्यता के साथ रखा जाता है। कितने सारे लोग उसमें शरीक होते हैं। तो तांडव एक बहुत बड़े कैनवस के साथ लोगों के सामने आ रही है।
 
अनूप आगे बताते हैं, जहां तक बात कहूं कांटेट की तो टेलीविजन का कांटेट आज कुछ इस तरीके से भी हो रहा है कि लोगों का इससे जुड़ाव और तारतम्य कम हो गया है। क्योंकि आज के जमाने में एक ही घर में 15 या 20 लोग नहीं रहते। ऐसा बिल्कुल नहीं होता है कि देवरानी जेठानी मिलकर घर के किसी बड़े के खून का प्लानिंग कर रही हो या फिर कोई देवर है, वह भाभी के खून का प्यासा हो गया है। लेकिन हां, टेलीविजन का अपना एक चीज है उसका अपना एक मनोरंजन देने का तरीका है और वह लोगों को पसंद आ रहा है तो मुझे इसमें कहीं कोई आपत्ति नजर नहीं आ रही, क्योंकि यह चीज लोगों को पसंद आती है।

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