अफगानिस्तान और पठान: काबुलीवाला से लेकर टोरबाज तक रहे हैं बॉलीवुड का हिस्सा

समय ताम्रकर
बुधवार, 18 अगस्त 2021 (15:22 IST)
अफगानिस्तान और उसके बाशिंदों की झलक हिंदी फिल्मों में देखने को मिलती रही है। अफगानिस्तान का पठान ऐसा किरदार रहा है जिसका बॉलीवुड वालों ने समय-समय पर उपयोग किया है। पठान, यानी कि 6 फीट से भी ज्यादा ऊंचा, हट्टा-कट्टा आदमी। जो एक अलग ही लहजे में हिंदी बोलता है। ऊपर से सख्त नजर आता हो, लेकिन दिल से मुलायम होता है। कुछ फिल्मों में शुरुआत में पठान को थोड़ा निगेटिव दिखाया जाता है और बाद में उसका हृदय परिवर्तन होता है और फिर वह हीरो का पूरी फिल्म में साथ देता है। 
 
पठान का जो किरदार सबसे ज्यादा मशहूर हुआ वो प्राण ने फिल्म 'जंजीर' में निभाया था। जंजीर में भले ही अमिताभ बच्चन का किरदार सशक्त था, लेकिन प्राण के रोल पर भी खासी मेहनत की गई थी। वो इसलिए कि 'जंजीर' के पहले अमिताभ की सितारा हैसियत नहीं थी। प्राण के नाम पर भी लोग फिल्म देखने आते थे। हीरो की सितारा हैसियत कमजोर देखते हुए प्राण के रोल पर भी ज्यादा ध्यान दिया गया ताकि हीरो कमजोर नहीं लगे। 
 
 
शेर खान नामक किरदार प्राण ने 'जंजीर' में निभाया था जो कि जुए का अड्डा चलाता है। जब इंसपेक्टर विजय (अमिताभ बच्चन) उसे थाने बुलाता है दोनों में गहमागहमी होती है। थाने वाला सीन जबरदस्त है जब कुर्सी देख शेर खान उस पर बैठने वाला होता है तो विजय कुर्सी को लात मार कर कहता है कि यह पुलिस स्टेशन है तो तुम्हारे बाप का घर नहीं है। 'जंजीर' का यह शॉट फिल्माया जा रहा था तो अमिताभ के एक्टिंग के तेवर देख प्राण ने निर्देशक प्रकाश मेहरा के कान में कहा था कि यह लड़का बहुत आगे जाएगा, और हुआ भी ऐसा ही। जंजीर के बाद अमिताभ सुपरस्टार बन गए। 
 
विजय को शेरखान चुनौती देता है कि थाने में वह वर्दी के बल पर जोर दिखा रहा है। विजय इस चैलेंज को स्वीकार कर शेरखान के अड्डे पर लड़ने के लिए जाता है और उसके बाद विजय की शेरखान इज्जत करने लगता है। शेरखान पर फिल्माया 'यारी है ईमान मेरा यार मेरी जिंदगी' खूब सुना गया। 
 
काबुलीवाला का जवाब नहीं 
थोड़ा पीछे चले तो 1961 में बलराज साहनी को लेकर बनाई गई 'काबुलीवाला' एक बेहतरीन फिल्म थी जो अफगानिस्तान में रहने वाले शख्स अब्दुल रहमान खान की कहानी थी। इस कहानी को रवीन्द्रनाथ टैगोर ने 1892 में लिखा था। यह उनकी लघुकथा थी जिस पर फिल्म बनी थी। अफगानिस्तान से हर साल अब्दुल कोलकाता में आकर ड्रायफ्रूट बेचता था। इसी दौरान वह मिनी नामक बच्ची को प्यार करने लगता है। मिनी में उसे अपनी बेटी नजर आती है। 
 
 
इमोशनल कहानी को बहुत ही संवेदनशील तरीके से फिल्म में पेश किया गया। मन्ना डे द्वारा गाया, प्रेम धवन द्वारा लिखा और सलिल चौधरी द्वारा संगीतबद्ध गीत 'ऐ मेरे प्यारे वतन' आज भी स्वतंत्रता और गणतंत्र दिवस पर सुनने को मिलता है। 'काबुलीवाला' कहानी ने फिल्ममेकर्स को लगातार आकर्षित किया। बंगाली में भी दो बार फिल्म बनी। हिंदी में भी बाद में प्रयास हुए। 
 
1977 में जोगिंदर ने 'पंडित और पठान' नामक फिल्म बनाई थी। मेहमूद ने शंकर नामक पंडित का रोल निभाया था तो जोगिंदर पठान बने थे। दो मुल्क और दो धर्मों को लेकर एकता की बात की गई थी। फिल्म अत्यंत लाउड थी, लेकिन जो इसके जरिये मैसेज दिया गया था वो अच्छा था। 
 
मेरा नाम अब्दुल रहमान और अफगान जलेबी 
 
 
अफगानी ड्रायफ्रूट बढ़े मशहूर हैं। तालिबान के फिर सत्ता संभालते ही भारत में अफगानी ड्रायफ्रूट महंगे हो गए। एक मशहूर गाना है जो किशोर कुमार ने गाया है- 'मेरा नाम अब्दुल रहमान', फिल्म भाई-भाई (1956) से। इसे किशोर कुमार पर फिल्माया गया है जो पठान बने ड्रायफ्रूट बेचते हुए गाने में नजर आते हैं। यह गाना भी खूब सुना गया था। इस तरह से समय-समय पर हिंदी फिल्मों में पठान के किरदार नजर आते रहे। 
 
बात गाने की निकली है तो अफगान शब्द गाने में सुनाई दिया। फिल्म 'फैंटम' का गीत 'अफगान जलेबी' बहुत लोकप्रिय हुआ था। गाने में कैटरीना कैफ नजर आती हैं। 
 
 
धर्मात्मा दिलाती है अफगानिस्तान की याद 
कुछ फिल्मों की शूटिंग अफगानिस्तान में भी हुई है। हिंदी फिल्मों में अफगानिस्तान का नाम लेते ही फिरोज खान की 'धर्मात्मा' (1975) याद आती है। फिरोज खान, हेमा मालिनी, रेखा, डैनी, प्रेमनाथ, रंजीत, मदनपुरी, फरीदा जलाल, दारा सिंह, हेलन, फरीदा जलाल जैसे सितारों से सजी यह फिल्म 'द गॉडफादर' से प्रेरित थी। फिल्म का बड़ा हिस्सा अफगानिस्तान में फिल्माया गया था और भारतीय दर्शकों को पहली बार दुनिया के इस हिस्से को हिंदी फिल्म के जरिये देखने का अवसर मिला था। 
 
 
कमल बोस ने अफगानिस्तान की खूबसूरती को बेमिसाल तरीके से फिल्माया था। इस फिल्म के लिए उन्हें बेस्ट सिनेमाटोग्राफर का फिल्मफेअर अवॉर्ड भी मिला। बुज़कशी का खेल भी इस फिल्म में दिखाया गया। संगीत पर भी प्रभाव नजर आया। अफगानी म्यूजिक और वेस्टर्न म्यूजिक को फ्यूजन कर कल्याणजी-आनंदजी ने गीत रचे। क्या खूब लगती हो, तेरे चेहरे में वो जादू है, तुमने कभी किसी से प्यार किया है, मेरी गलियों से लोगों की यारी जैसे गानों ने धमाल मचा दिया। 
 
फिल्म 'जानशी' के कुछ हिस्से को फिल्माने के लिए फिरोज खान फिर अफगानिस्तान पहुंचे। इस फिल्म में फिरोज के बेटे फरदीन खान और सेलिना जेटली मुख्य कलाकार थे। लेकिन धर्मात्मा वाला जादू फिरोज नहीं जगा पाए। जहां धर्मात्मा बॉक्स ऑफिस पर ब्लॉकबस्टर रही थी वहीं जानशी बुरी तरह फ्लॉप रही। 
 
खुदा गवाह के दौरान अफगान एअरफोर्स करती थी अमिताभ की सुरक्षा 
अमिताभ बच्चन और श्रीदेवी को लेकर निर्देशक मुकुल एस. आनंद ने भव्य बजट की फिल्म 'खुदा गवाह' (1992) बनाई थी। इस फिल्म की कहानी अफगानिस्तान, भारत और नेपाल में फिल्माई गई थी। बुजकशी का खेल भी दिखाया गया। फिल्म को काबुल और मज़ार-ए-शरीफ में फिल्माया गया। फिल्म में अमिताभ ने बादशाह खान और श्रीदेवी ने बेनज़ीर नामक किरदार निभाए। अमिताभ बच्चन जब अफगानिस्तान शूटिंग के लिए गए थे तो अफगानिस्तान में उनके फैंस का उत्साह देखते ही बनता था। 
 
अफगानिस्तान के तत्कालीन राष्ट्रपति मोहम्मद नजीबुल्लाह भी बिग बी के बड़े प्रशंसक थे। अमिताभ ने 18 दिनों तक शूटिंग की। नजीबुल्लाह ने अफगान एअर फोर्स के जरिये अमिताभ को सुरक्षा प्रदान की। फिल्म की शूटिंग के दौरान क्रू मेंबर और सभी कलाकार टैंक, सेना के जवान और फाइटर जेट से घिरे रहते थे। खुदा गवाह को काबुल में रिलीज किया गया तो दस सप्ताह तक शो हाउसफुल रहे। 2001 में जब सिनेमाघर फिर खुले तो 'खुदा गवाह' की खूब मांग थी। कहा जाता है कि अफगानिस्तान में सबसे ज्यादा देखी जाने वाली फिल्म 'खुदा गवाह' है। 
 
काबुल एक्सप्रेस से अफगानी नाराज, कहा बेइज्जत करती है यह मूवी 
कमर्शियल फिल्मों और काल्पनिक अफगानी किरदारों के अलावा कुछ ऐसी हिंदी फिल्में भी बनीं जो अफगानिस्तान की परिस्थितियों का वास्तविक चित्रण करती नजर आईं। इसमें कबीर खान निर्देशित 'काबुल एक्सप्रेस' (2006) एक अहम फिल्म है। कबीर ने भारतीय एक्टर जॉन अब्राहम और अरशद वारसी, पाकिस्तानी कलाकार सलमान शाहिद, अफगान एक्टर हनीफ हम ग़म और अमेरिकन अभिनेत्री लिंडा अर्सेनियो को लेकर यह फिल्म बनाई। 
 
 
कबीर ने यह मूवी अपने और अपने दोस्त राजन कपूर के अनुभव के आधार पर बनाई। दो भारतीय पत्रकार अफगानिस्तान का जायजा लेने पहुंचते हैं और इसके जरिये तालिबान वाले अफगानिस्तान का यथार्थ दिखाया गया। अफगानिस्तान में इस फिल्म को लेकर खासा बवाल हुआ। यह फिल्म आज तक वहां रिलीज नहीं हो पाई। कहा गया कि यह फिल्म अफगानिस्तानियों की बेइज्जती है। इस फिल्म से जुड़े अफगानिस्तान के कलाकारों को माफी भी मांगनी पड़ी। 
 
एस्केप फ्रॉम तालिबान' के लेखक की तालिबानियों ने कर दी हत्या 
2003 में प्रदर्शित 'एस्केप फ्रॉम तालिबान' उज्जल चटोपाध्याय ने बनाई थी। यह फिल्म सुष्मिता बनर्जी द्वारा लिखी कहानी 'ए काबुलीवालाज़ बंगाली वाइफ' पर आधारित थी। इसमें दिखाया गया था कि एक बंगाली ब्राह्मण लड़की अफगानी व्यवसायी से शादी कर अफगानिस्तान शिफ्ट होती है। तालिबानी उस महिला पर धर्म परिवर्तन का दबाव डालते हैं जिसे मानने से वह इंकार कर देती है। छ: साल बाद वह तालिबानियों से बचकर किसी तरह वह भारत वापस आती है। यह सुष्मिता की ही कहानी थी। उनसे नाराज होकर 2013 में तालिबानियों ने सुष्मिता की हत्या कर दी थी। फिल्म में मनीषा कोईराला ने लीड रोल अदा किया था। पता नहीं यह फिल्म चर्चा में नहीं आई। 
 
शाहरुख-दीपिका-जॉन को लेकर पठान 
2020 में संजय दत्त को लेकर बनाई गई 'टोरबाज' नेटफ्लिक्स पर दिखाई गई। यह एक ऐसे शख्स की कहानी है जो काबुल स्थित भारतीय दूतावास में काम करता है। वहां अपनी पत्नी और बच्चे को खो चुका है। फिल्म में दिखाया गया है कि किस तरह से बच्चों को अफगानिस्तान में सुसाइड बॉम्बर्स के रूप में तैयार किया जाता है। फिल्म की शूटिंग अफगानिस्तान में हुई थी। लेकिन यह फिल्म खास पसंद नहीं की गई। 


 
इन दिनों 'पठान' नामक फिल्म भी बन रही है जिसमें शाहरुख खान, दीपिका पादुकोण और जॉन अब्राहम जैसे कलाकार हैं। यह मूवी क्या अफगान के पठान के बारे में है या नहीं, फिल्म रिलीज होने के बाद पता चलेगा, लेकिन यह फिल्म चर्चा में जरूर है। 
 
अफगानियों पर बॉलीवुड का जादू 
अब बात करते हैं अफगानिस्तान में भारतीय फिल्मों की। बॉलीवुड फिल्में और कलाकार वहां खूब पसंद किए जाते हैं। भाषा नहीं जानने के बावजूद अफगानियों को भारतीय फिल्में अच्‍छी लगती हैं, खासतौर से एक्शन फिल्में उनको भाती है। अमिताभ बच्चन, सनी देओल, संजय दत्त जैसे सितारे वहां पर लोकप्रिय हैं। हिंदी फिल्मों की हीरोइनों को भी वहां चाहने वालों की संख्या कम नहीं है। 

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