1975 तो जैसे हिन्दी फिल्मों के लिए टर्निंग पाइंट था...। "शोले" ने फिल्म में जिस तरह की अभिव्यक्ति को जन्म दिया और अमिताभ ने हिन्दी फिल्मों को जिस तरह की एक नई भाषा दी, उसका हिन्दी फिल्मों के ट्रेंड पर दूरगामी प्रभाव पड़ा। उसी दौर में रंजीता ने हिन्दी फिल्मों में प्रवेश किया, जब हेमा मालिनी, रेखा, जीनत अमान और परवीन बाबी अपने व्यस्ततम दौर में थीं। तब अपने गैर-पारंपरिक चेहरे, लेकिन अभिनय की ट्रेनिंग के दम पर आई रंजीता ने "लैला मजनूँ" में अपनी छाप छोड़ी।