कुछ फिल्मी किरदार और दृश्य कभी पुराने नहीं होते, कभी स्मृतियों से ओझल नहीं होते। इन्हें सच्चे अर्थों में 'ऑल टाइम हिट' कहा जा सकता है। ऐसा ही एक किरदार है 1972 में आई 'सीता और गीता' में मनोरमा द्वारा निभाया गया कौशल्या चाची का किरदार।
यूँ तो 1926 में बाल कलाकार के रूप में शुरुआत करते हुए मनोरमा ने अपने लंबे करियर में कोई 150 फिल्में कीं, मगर कोई एक रोल जो उनका नाम लेते ही जेहन में आता है, वह है 'सीता और गीता' में निभाया गया उनका रोल।
क्रूर, लालची कौशल्या के रूप में उन्होंने स्वयं को अमर कर दिया। कौन भूल सकता है उनका वो अपनी गोल-गोल आँखें, नचा-नचाकर बोलना, कभी उन आँखों से रौब या कोरी क्रूरता बरसाना, तो कभी चमकती बत्तीसी के साथ उन्हीं आँखों से नकली शहद-मिश्री उड़ेलना!
सीधी-सादी सीता (हेमा) पर अत्याचार करने वाली व उसकी संपत्ति पर कुंडली मारकर बैठी कौशल्या का पाला जब गीता (फिर हेमा) से पड़ता है, तो उनके किरदार में और जान आ जाती है। थप्पड़ का जवाब थप्पड़ से देने वाली गीता को सीता समझ उसमें आए बदलाव पर विस्मित कौशल्या, पीटने वाली से पिटने वाली बनने पर आतंकित कौशल्या, अपने दब्बू पति (सत्येन कप्पू) को हाशिए पर रख अपने गुंडे भाई (रूपेश कुमार) और खाली-खोपड़ी बेटी (डेजी ईरानी) पर जान छिड़कने वाली कौशल्या...।
बेशक फिल्म का सबसे यादगार सीन वह है, जिसमें पुलिस स्टेशन में सीता समझकर लाई गई गीता को लेने चाचा-चाची आते हैं और गीता उनके साथ जाने से इनकार कर देती है। वह छत से लटकते पंखे पर चढ़ जाती है।
पुलिस के सामने अपनी भतीजी पर नकली दुलार उड़लते हुए कौशल्या उर्फ मनोरमा बोलती है, 'नीचे आ जा, बेटी!' और इस पर गीता पंखे से लटकते हुए उसी स्वर में जवाब देती है, 'ऊपर आ जा, मोटी!' फिर वह दृश्य भी भुलाए नहीं भूलता, जिसमें दौड़ लगाती भारी-भरकम मनोरमा के लिए पार्श्व में हाथियों के कदमताल की धुन बजाई जाती है!
फिल्मों में क्रूर चाचियाँ-मामियाँ तो बहुत आईं, इनमें कुछ ने दर्शकों को हँसाया भी, लेकिन 'सीता और गीता' की मनोरमा की बराबरी न कोई कर सकी और न कर सकेगी। वाकई ऑल टाइम हिट है यह किरदार।